हिमालय (अंग्रेजी: Himalayas) दक्खिन आ पूर्बी एशिया मे परबत माला हऽ, जवन भारतीय उपमहादीप आ तिब्बती पठार के बीचा में पुरुब-पच्छिम बिस्तार लिहले बा। ई एगो बिसाल परबत तंत्र हवे जहाँ संसार का सबसे बेसी ऊँचाई वाला अधिकांश पहाड़ी चोटी मौजूद बाड़ी। ए हिमालयी परबत तंत्र में करीब 110 गो चोटी 7,300 मीटर (24,000 फीट) से अधिका ऊँचाई वाली बाड़ी सऽ जिनहन में बिस्व क सभसे ऊँच परबत चोटी माउंट एवरेस्टो सामिल बा।
हिमालय | |
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Highest point | |
परबतचोटी | माउंट एवरेस्ट (नेपाल आ चीन) |
ऊँचाई | 8,848 मी (29,029 फीट) |
लोकेशन (भूगोलीय) | 27°59′17″N 86°55′31″E / 27.98806°N 86.92528°E 86°55′31″E / 27.98806°N 86.92528°E |
डाइमेंशन | |
लंबाई | 2,400 किमी (1,500 मील) |
भूगोल | |
देस | |
राज्य/प्रांत | एशिया |
भूबिज्ञान की हिसाब से देखल जाय त हिमालय परबत सभसे नया परबतन में गिनल जाला। एकरे उत्पत्ती क इतिहास देखल जाय त अन्य पर्वतन के तुलना में ई बहुते नया बा आ अभिन भी विकसिते हो रहल बा।
हिमालय पहाड़ के बिस्तार कुल छह गो देस — पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान चीन आ म्यांमार में बाटे। हिमालय से निकले वाली नद्दिन क ए इलाका खातिर महत्व बा। सिन्धु, सतलज, गंगा, सरजू, गंडक, कोसी, ब्रह्मपुत्र आ यांग्त्सी नदी हिमालय से निकले वाली कुछ मेन-मेन नदी बाड़ीं कुल। हिमालय परबत श्रेणी में 15 हजार से अधिका ग्लेशियर बाड़न सऽ जिनहन क बिस्तार करीब-करीब 12,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर बाटे।
हिमालय संस्कृत के शब्द ह जेकर माने होला "बरफ के घर"; (हिम माने बरफ आ आलय माने घर)।
हिमालय क पच्छिम से पूरुब के ओर बिस्तार सिंधु नदी की घाटी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ ले लगभग अढ़ाई हज़ार किलोमीटर (2,500 कि॰मी॰) आ उत्तर-दक्खिन के चौड़ाई करीब 160 से 400 कि॰ मी॰ बाटे। हालाँकि, एकर पूरबी आ पच्छिमी सीमा कौनो बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित नइखे। सिडनी बुर्राड नाँव क बिद्वान सिंधु नदी की मोड़ के एकर पच्छिमी सीमा मनलें।
सबसे पच्छिम ओर क ऊँच परबत चोटी नंगा परबत बा आ पूरुब ओर क चोटी नामचा बरवा बा। एकर देशांतरी बिस्तार कुल 22 डिग्री की आसपास बाटे आ ई अपना पूरा बेंड़ी-बेंड़ा बिस्तार में पूरुब से पच्छिम ओर के एगो तलवार के आकार में बा।
हिमालय की पहाड़ी इलाका क कुल क्षेत्रफल लगभग पाँच लाख वर्ग किलोमीटर (5,00,000 किमी2) बाटे। एकर औसत ऊँचाई समुंद्र-सतह से 600 मीटर हवे। राजनैतिक रूप से देखल जाय त हिमालय पहाड़ छह गो देसन में कुछ न कुछ बिस्तार लिहले बा। ई देश बाड़न — पाकिस्तान, भारत, नेपाल, भूटान चीन आ म्यांमार।
गंगा की मैदानी हिस्सा से अगर उत्तर की ओर बढ़ल जाय त क्रम से हिमालय क तीन गो परबत श्रेणी पड़ी।
ई सभसे दक्खिन ओर स्थित बा आ सबसे नया बनल श्रेणी हवे। एके उप-हिमालय, बाहरी हिमालय आ शिवालिक कहल जाला। जम्मू में ए के जम्मू पहाड़ी कहल जाला, पंजाब में एकर बिस्तार पोटवार बेसिन से शुरू होला आ ई कुमायूँ आ नेपाल में होत कोसी नदी ले जाला। नैपाल में बुटवल क पहाड़ी एही का हिस्सा हवे। आसाम-अरुणाचल में डफला, मिरी, अभोर आ मिशमी क पहाड़ी एही क बिस्तार हई कुल। एकरी उत्तर में मध्य हिमालय से एके अलग करे वाला भ्रंश मेन फ्रन्टल फॉल्ट कहल जाला। एकर निर्माण मायोसीन काल से निचला प्लीस्टोसीन की बीच भइल रहे।
शिवालिक की उत्तर में मध्य हिमालय या लघु-हिमालय श्रेणी बा। एके जम्मू काश्मीर में पीरपंजाल, कुमायूँ में नाग टिब्बा आ नैपाल में महाभारत श्रेणी कहल जाला। धौलाधार, हालाँकि एकरी दक्खिन ओर बा लेकिन एही क हिस्सा मानल जाला। एके महान हिमालय से अलग करे वाला भ्रंश के मेन बाउण्ड्री फॉल्ट कहल जाला।
हिमालय के तीन गो मुख्य समानांतर श्रेणी सब में सबसे उत्तरी आ सभसे ऊँच श्रेणी हवे जे बिना कौनों निचाई के लगातार फइलल श्रेणी हवे।
बिबरण के सुबिधा खातिर सिडनी बुर्राड एकरा के चार गो क्षेत्रीय हिस्सा में बटले रहलें: आसाम हिमालय (ब्रह्मपुत्र से तीस्ता नदी तक), नेपाल हिमालय (तीस्ता से काली नदी तक), कुमाऊँ हिमालय (काली से सतलज तक) आ पंजाब हिमालय (सतलज से सिंधु नदी तक)।
महानो हिमालय के अउरी उत्तर में भी चीन के तिब्बती इलाका में एकरे समानांतर एक ठो अउरी श्रेणी बाटे जेकरा के ट्रांस हिमालय कहल जाला।
महान हिमालय के चापाकार श्रेणी के बीचोबीच 8000 मीटर ऊँचाई वाली चोटी धौलागिरि आ अन्नपूर्णा नेपाल देस में मौजूद बाड़ी, इनहन के काली गंडकी के बिसाल गॉर्ज अलगा करे ला। ई गॉर्ज हिमालय के पच्छिमी आ पूरबी दू हिस्सा में बाँटे ला परबत के रूप में भी आ इकोलॉजी के हिसाब से भी। काली गंडकी के सुरुआती बिंदु के लगे 'कोरा ला' नाँव के दर्रा बाटे जे महान हिमालय के श्रेणी पर माउंट एवरेस्ट आ के2 के बीच सभसे निचला बिंदु हवे। अन्नपूर्णा के पुरुब ओर 8000 मीटर ऊँचाई वाली मनास्लु आ तिब्बत सीमा के लगे शिशापंगमा बाड़ी। इनहन के दक्खिन में काठमांडू स्थित बा जे नेपाल के राजधानी हवे आ हिमालय पर बसल सभसे बड़ शहर भी हऽ। काठमांडू के पूरुब में भोटे/सुन कोसी नदी बा जे तिब्बत में से निकले ले आ नेपाल आ चीन के बीचा में रस्ता एही के सहारे हो के जाला (अरानिको हाइवे आ चीनी नेशनल हाइवे 318)। अउरी पूरुब बढ़े पर महालंगुर हिमाल बा जे में दुनिया के छह गो सभसे ऊँच परबत चोटी मौजूद बाड़ी — चो ओयु, एवरेस्ट, ल्होत्से आ मकालू इनहन में सभसे ऊँच बाड़ी। खुम्बु प्रदेश के क्षेत्र, जवन पैदल यात्रा (ट्रेकिंग) खातिर मशहूर हवे, इहँवे बा आ माउंट एवरेस्ट के ओर दक्क्षिण-पच्छिम से बढ़े पर पड़े ला। अरुण नदी एह पहाड़ के उत्तरी ढाल पर बहे ले, एकरे बाद ई दक्खिन के ओर मुद जाले आ मकालू के पूरुब से हो के बहे लागे ले।
नेपाल में दूर पूरुब में जा के हिमालय परबत कंचनजंघा के रूप में उभार ले ला आ भारत नेपाल सीमा पर ई हिस्सा हिमालय के सभसे पूरबी आठ हजारी चोटी वाला हवे। कंचनजंघा के पूरबी साइड भारत के सिक्किम राज्य में पड़े ला जे पहिले अपने-आप में एगो राजघराना रहल। कंचनजंघा भारत के सभसे ऊँच चोटी हवे (K2 काश्मीर में भारत-पाक के बीच बिबादित बा)। सिक्किम में भारत से तिब्बत के राजधानी ल्हासा जाए के रस्ता बा जे नाथु ला से हो के गुजरे ला। सिक्किम के पूरुब ओर बौद्ध देस भूटान बा। भूटान के सभसे ऊँच पहाड़ गान्खर पुएन्सुम हवे। इहो दावेदारी बा कि ई परबत दुनिया के अइसन परबत सभ में सबसे ऊँच बाटे जिनहन पर अबतक ले न चढ़ल जा सकल बा। एह इलाका में हिमालय बहुत कटल-फटल बा आ एकरे पहाड़ी ढालन पर घन जंगल बाने। हिमालय एकरे बाद कुछ उत्तर-पुरुब के ओर मुड़ के अरुणाचल प्रदेश से हो के नामचा बरवा ले चहुँपे ला जे सभसे पूरबी ऊँच चोटी हवे। ई चोटी राजनीतिक रूप से तिब्बत में बा। नामचा बरवा पूरा तरीका से यारलुंग-सांपू मोड़ के भीतर पड़े ला आ सान्पू नदी के पूरुब ओर मौजूद चोटी ग्याला पेरी के भी कंचित-कलां हिमालये के हिस्सा मानल जाला।
हिमालय के परबत श्रेणी सभ धरती के सभसे नया पहाड़ सभ से बनल हवे। ई पहाड़ कुल अवसादी आ रूपांतरित चट्टानन के मुड़ के ऊपर उठे के कारन बनल हवें। प्लेट टेक्टानिक्स के आधुनिक थियरी के अनुसार ब्याख्या कइल जाय तब हिमालय के निर्माण महादीपन के टकराव से भइल हवे, जब भारतीय प्लेट दक्खिन ओर से आ के यूरेशियाई प्लेट से लड़ल आ इनहन के बीच में टेथीज सागर के मलबा बिचा में दबा के मोड़दार रूप में उपर के ओर उठ गइल।
हिमालय के ठीक नीचे, भूगर्भ में, भारतीय प्लेट आ यूरेशियाई प्लेट के बीच टकराव वाली बाउंडरी पावल जाले जहाँ भारतीय प्लेट अबो धीरे-धीरे यूरेशियाई प्लेट के नीचे धँसकत जात बा आ हिमालय के ऊपर उठे के काम धीरे-धीरे आजु ले चल रहल बाटे। एही प्लेट टकराव से बर्मा के अराकान योमा आ भारतीय दीपमाला अंडमान निकोबार के भी उत्पत्ती भइल हवे।
अपर क्रीटैशियस काल में, अबसे लगभग 70 मिलियन बरिस पहिले, उत्तर की ओर बढ़ रहल भारतीय-आस्ट्रेलियाई प्लेट दू हिस्सा में टूट के भारतीय प्लेट आ आस्ट्रेलियाई प्लेट के रूप ले लिहलस) आ ई 15 सेंटीमीटर प्रति साल के हिसाब से उत्तर की ओर बढ़ल जारी रखलस। लगभग 50 मिलियन साल पहिले ई भारतीय-आस्ट्रेलियाई प्लेट आगे बढ़ के टीथीस सागर के लगभग पूरा बंद क दिहलस। टीथीस सागर में जमा मलबा यूरेशियाई प्लेट आ भारतीय-आस्ट्रेलियाई प्लेट के बिचा में चपा गइल। ओह समय टीथीस के दुनों किनारा पर सक्रिय ज्वालामुखी सभ के निर्माण भी भइल। चूँकि दुन्नों प्लेट हलुक पदार्थ से बनल महादीपी प्लेट रहलीं, इनहन के बिचा में थ्रस्ट फॉल्ट के घटना घटल आ मोड़दार परबतन के उत्पत्ती भइल जबकि अगर इनहन में से एक ठो भारी प्लेट रहल रहित तब ऊ साफ तौर पर ट्रेंच सभ के सहारे धँस के मैंटल में घुस गइल रहित।
ई उदाहरण बहुत दिहल जाला कि माउंट एवरेस्ट नियर परबत चोटी समुंदरी चूना-पाथर के चट्टान से भइल हवे, ई एह बात के परमान हवे कि एह चट्टानन के जमाव समुंद्र में भइल रहे आ इहँवा पहिले समुंद्र रहल।
हिमालय के बिसाल आकार, अतना ढेर ऊँचाई आ जटिल थलरचना (टोपोग्राफी) नियर कई सारा चीज मिल के इहाँ जलवायु के बहुत बिबिधता वाला बना देलें, जहाँ दक्खिन ओर के निचली पहाड़ी सभ पर नम उपोष्ण कटिबंधी जलवायु पावल जाला ओही जे तिब्बती साइड ओर एकदम ठंडा आ सूखा वाली जलवायु मिले ले।
अगर सुदूर पच्छिम के हिस्सा के छोड़ दिहल जाय त बाकी पूरा हिमालय के दक्खिनी ढाल वाला इलाका सभ में सभसे प्रमुख चीज मानसून हवे। दक्खिन-पच्छिमी मानसून के जून में आगमन हो जाला आ सितंबर तक ले रहे ला, एह दौरान एह पहाड़ी ढाल पर खूब बरखा होले आ कबो-कबो भारी बारिश के कारण यातायात ठप हो जाला आ जमीन धँसके के घटना भी होले। एह दौरान पूरा इलाका में पर्यटन आ ट्रेकिंग के काम बंदे रहे ला जबले कि अक्टूबर के महीना न आ जाय।
अगर कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के हिसाब से देखल जाय तब एह पहाड़ के दक्खिनी ढाल वाला निचला इलाका सभ के, पूरुब से बीच नेपाल तक, नम उपोष्णकटिबंधी जलवायु (Cwa) में रखल जाला आ ऊपरी हिस्सा सभ के उपोष्ण कटिबंधी हाइलैंड जलवायु (Cwb) बर्ग में रखल जाला। पच्छिम के ओर जाये पर, मानसून के परभाव क्रम से कम होखत चल जाला आ काश्मीर के घाटी के पच्छिम ओर एकर कौनों महत्व ना रह जाला। पच्छिमी हिमालय में जाड़ा के सीजन में होखे वाला बर्षण (जेह में बरफ आ बरखा दुनों सामिल होला) के महत्व हवे। पच्छिमी हिमालय में बरखा के मात्रा भी कम होले आ बरखा के समय (सीजन) भी अलग होला। उदाहरण खाती काश्मीर घाटी में, जे भौतिक रूप से शिमला आ काठमांडू के नियर घाटी हवे, इनहना के तुलना में लगभग आधे बर्षण होला आ एहू के अधिकतम मात्रा मार्च-अप्रैल में होले।
हिमालय के उत्तरी भाग में बरखा बहुत कम होले आ बनस्पति के भी कमी पावल जाले। ई इलाका सभ एक तरह से सूखा वाला इलाका हवें आ ठंडा रेगिस्तान हवें। एशिया के ठंडा रेगिस्तान, तकला मकान आ गोबी वगैरह के निर्माण में भी हिमालय के भूमिका गिनावल जाला।
हिमालय क सबसे बड़ महत्व दक्षिणी एशिया की क्षेत्रन खातिर बा जहाँ की जलवायु खातिर ई पहाड़ बहुत महत्वपूर्ण नियंत्रक कारक क काम करे ला। हिमालय क विशाल पर्वत शृंखला कुल साइबेरियाई ठंढा वायुराशियन के रोक के भारतीय उपमहाद्वीप के जाड़ा में बहुत ढेर ठण्ढा होखला से रक्षा करेलीं। इहे पहाड़ मानसूनी हवा की रस्ता में रुकावट पैदा कइ के ए क्षेत्र में पर्वतीय वर्षा करावे ला जेवना पर ए इलाका क पर्यावरण आ अर्थव्यवस्था निर्भर बा। हिमालय क उपस्थितिये अइसन कारण हवे जेवना की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप की ओहू इलाकन में भी उष्ण कटिबंधी आ उपोष्ण कटिबंधी जलवायु पावल जाला जेवन इलाका कर्क रेखा की उत्तर ओर परे लन , नाहीं त ए इलाकन में त अक्षांशीय स्थिति की हिसाब से समशीतोष्ण कटिबंधी जलवायु मिले के चाही।
उत्तरी भारत क मैदान जेवना के सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र क मैदान भी कहल जाला, एही हिमालय से नद्दी कुल की द्वारा ले आइल गइल जलोढ़ माटी के जमा भइला से बनल हवे। हिमालय क सालो भर बरफ से तोपाइल रहे वाला चोटी आ इहँवा पावल जाए वाला हिमनद सदावाहिनी नदियन क स्रोत हवें जिनहन से भारत, पाकिस्तान, नेपाल, आ बांग्लादेश के महत्वपूर्ण जल संसाधन उपलब्ध होला।
वन संसाधन की रूप में शीतोष्ण कटिबंधीय मुलायम लकड़ी वाली बनस्पति आ शंक्वाकार जंगल इहवाँ पावल जाला जवना क काफ़ी आर्थिक महत्व हवे। जंगल से अउरी कई तरह क चीज मिलेले जइसे किजड़ी-बूटी वाला पेड़-पौधा। फल की खेती खातिर भी ई क्षेत्र मशहूर बा आ सेब, आडू, खुबानी आ तरह तरह क फल आ सूखा मेवा इहाँ पैदा होला। जानवरन की चरागाह खातिर हिमालय का महत्व हवे काहें से की एकरी घातिन में नर्म घास वाला इलाका मिलेला जिनहन के पश्चिमी हिमालय में मर्ग आ कुमायूँ क्षेत्र में बुग्याल अउरी पयाल कहल जाला।
बहुत तरह क खनिज पदार्थ, जइसे की चूना पत्थर, डोलोमाईट, स्लेट, सेन्हा नमक वगैरह इहाँ पावल जाला। पर्यटन उद्योग आ बहुत गो पर्यटक केन्द्र खातिर आ पनबिजली उत्पादन खातिर भी हिमालय पहाड़ महत्वपूर्ण बाटे।
हिमालय के एक भाग से दुसरा भाग के बीच जिया-जंतु आ बनस्पति में काफी बिबिधता पावल जाले। ई अंतर ऊंचाई, तापमान, बरखा, आ माटी में अंतर के कारण मिले ला। हिमालय के दक्खिनी भाग के मैदान से सटल इलाका उष्णकटिबंधीय जलवायु वाला हवें आ उत्तर के ओर जइसे-जइसे ऊँचाई बढ़े ला तापमान कम होखत जाला आ अंत में बरफ से तोपाइल चोटी मिले लीं। एही तरे पूरुब से पच्छिम ओर बरखा के मात्रा में कमी होले। ई दूनों चीज स्थानीय माटी आ ढाल के अनुसार पूरा हिमालय के बहुत ब्यापक जीवबिबिधता बना देलीं। बहुत ढेर ऊँचाई (आ एकरे चलते कम हवादबाव) आ बहुत नीचा तापमान वाला इलाका सभ में कई तरह के चरमपसंदी जिया-जंतु भी आपन निवास बनवले बाने। जबकि बनस्पति में जैवविविधता खातिर फुलवन के घाटी आ पूरबी नेपाल, भूटान आ अरुणाचल में बिस्तार लिहले पूरबी हिमालय क्षेत्र अपने आप में अजगुत चीज बा। पूरबी हिमालय क्षेत्र के जीवबिबिधता के हॉटस्पॉट घोषित कइल गइल बा आ आज इहाँ कइयन गो प्रजाति खतरा में बाड़ी।
हिमालय के ऊँच पहाड़ी इलाका में मुख्य शिकारी जानवर हिम तेंदुआ हवे। ई पहाड़ी बकरी सभ के आ हिमालयी नीलकी भेड़ सभ के शिकार प्रमुख रूप से करे ला। हिमालयी कस्तूरी मिरगा बहुत ऊँचाई पर पावल जाये वाला एगो दूसर जीव हवे। एकरे ढोंढ़ी में पावल जाये वाली कस्तूरी बहुत कीमती होले आ एकरा चलते एकर अतना शिकार भइल कि अब ई खतम होखे के कगार पर बाने।
हिमालय क्षेत्र के अन्य मूलनिवासी या लगभग मूल निवासी शाकाहारी जिया-जंतु में हिमालयी तहर, ताकिन, भड़ल, घोरल, थारल वगैरह जानवर प्रमुख बाने। हिमालई भूअरा भालू आज भयानक रूप से खतरा में बा आ पूरा हिमालय क्षेत्र में अब कहीं-कहीं पावल जाला, अइसने हाल एशियाई करियवा भालू के भी बा। पहाड़ी इलाका के बाँस के पत्ता खा के रहे वाला लाल पांडा आज खतरा में बा। अन्य प्रजाति में पूरबी हिमालय में सीमित गोल्डेन लंगूर आ पच्छिमी हिमालय के काश्मीरी सलेटी लंगूर दुनों बहुत कम बचल बाने।
ऊँचाई आ बरखा के बदलत मात्रा के साथ बनस्पति के बिस्तार आ प्रकार में भी अंतर साफ़ देखाई पड़े ला। हाल में नोट कइल गइल बा कि गढ़वाल हिमालय इलाका (उत्तराखंड) में अब ओक के जंगल पर पाइन के प्रजाति सभ आपन कब्जा करत जात बाड़ी। बुराँस, सेव, काफल आ अइसने कई फेड़ सभ में अपना सीजन से पहिलहीं फूल आ फर आवे के बात भी नोट कइल गइल बा। हिमालय क्षेत्र में सभसे अधिका ऊँचाई पर पावल जाये वाला फेड़ हवे तिब्बती जूनिपर जे 4,900 मीटर (16,080 फीट) के ऊँचाई तक ले, दक्खिनी तिब्बत के इलाका में पावल जालाल
हिमालय परबत क भूराजनीतिक महत्व हर ओ देस खातिर बा जेह में कुछ न कुछ दूरी तक एह परबत के बिस्तार बाटे। हिमालय के भूराजनीती महत्व चार तरह से बा: सीमा बिबाद के चलते, नदी सभ के पानी पर कंट्रोल आ बँटवारा खातिर, ग्लेशियर सभ पर नियंत्रण खातिर, आ दर्रा आ दर्रा से हो के गुजरे वाला ब्यापारिक रस्ता सभ पर नियंत्रण खातिर।
मुख्य रूप से ई परबत श्रेणी भारत आ चीन के बिच में एगो सीमांत अबरोध (फ्रंटियर बैरियर) के रूप में काम करे ले। एकरे अलावा एह इलाका में भारत-चीन के सीमा पर कई जगह बिबाद बा आ जम्मू काश्मीर के हिस्सा भारत आ पाकिस्तान के बिचा में 1947 के बादे से बिबाद के बिसय रहल बा जे इलाका के रणनीति आ भूराजनीति के हिसाब से महत्वपूर्ण बना दिहले बा।
हिमालय कई गो सदाबाहिनी नद्दी सभ के उद्गम हवे आ एह नदी सभ के पानी बिबिध कारण से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेस आ चीन तीनों खातिर जरूरत के चीज बा आ एक दूसरा के हित के टकराव नदी सभ के पानी खातिर भी होला। कुल मिला के दक्खिन एशिया के भूराजनीति में हिमालय से निकले वाली नदी सभ के पानी एगो केंद्रीय बिसय बाटे। हिमालय के ग्लेशियर सभ के भी भूराजनीति के हिसाब से महत्व बा, उदाहरण खातिर सियाचिन इलाका एक तरह से दुनिया के सभसे ऊँच लड़ाई के मैदान ह जहाँ पछिला कुछ समय से लगातार तनाव के स्थिति रहल बा।
हिमालई दर्रा सभ, जिनहन से रस्ता हो के एह देसन के आपस में जुड़े के मोका देला, बिबिध बिबाद के बिसय रहल बाने आ इनहन पर कंट्रोल इलाका के भूराजनीति खातिर बहुत महत्व के चीज हवे। उदाहरण खातिर कराकोरम दर्रा पर वर्तमान में चीन के कंट्रोल बा जेवना कारण पाकिस्तान के चीन के जिनजियांग से जुड़े में सुबिधा होले जबकि दिफू दर्रा पर भारत के नियंत्रण होखे के कारण चीन के आसाम आ पूर्वोत्तर भारत के बजार से जुड़े में दिक्कत होखे ला।
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