समुच्चय सिद्धान्त (set theory), गणित की एक शाखा है जो समुच्चयों का अध्ययन करती है। वस्तुओं के सुपरिभाषित (well defined) संग्रह (collection) को समुच्चय कहते हैं। यद्यपि समुच्चय के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की वस्तुओं का संग्रह सम्भव है, किन्तु समुच्चय सिद्धान्त मुख्यतः गणित से सम्बन्धित समुच्चयों का ही अध्ययन करता है। स्थूल रूप से अंग्रेजी समुच्चय के पर्याय 'सेट' (set), ऐग्रिगेट (aggregate), क्लास (class), डोमेन (domain) तथा टोटैलिटी (totality) हैं। समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है।
प्रथम श्रेणी के तर्क (first-order logic) से सुव्यवस्थित (formalized) किया हुआ समुच्चय सिद्धान्त आज गणित का सर्वाधिक प्रयुक्त आधारभूत तन्त्र है। समुच्चय सिद्धान्त की भाषा गणित के लगभग सभी वस्तुओं (यथा- फलन) को परिभाषित करने के काम आती है। समुच्चय सिद्धान्त के आरम्भिक कांसेप्ट इतने सरल हैं कि इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी पढाया जा सकता है।
आधुनिक समुच्चय सिद्धान्त का आरम्भ जार्ज कैंटर (Georg Cantor) एवं डेड्काइन्ड (Dedekind) ने सन १८७० में किया।
किसी समुच्चयों के सदस्यों के बारे में निम्नलिखित चार प्रकार से बताते हैं: (१) सभी सदस्यों को लिखना ;
(२) कुछ सदस्यों को लिखने के बाद डॉट-डॉट लगाकर छोड़ देना;
(३) कोई विवरण देना, जैसे
(४) बीजगणित की सहायता से;
(१) परिमित समुच्चय (finite set) : जिसके सदस्यों की संख्या सीमित हो, जैसे {3,7,9}।
(२) अपरिमित समुच्चय (infinite set) : जिसके सदस्यों की संख्या असीमित हो, जैसे A={2,4,6,8,.............}
(३) रिक्त समुच्चय या शून्य समुच्चय (empty set या null set) : जिसमें सदस्यों की संख्या शून्य हो या जिसका कोई सदस्य ही न हो। इसे अथवा { } से निरूपित करते हैं।
यह चिह्न देकर बताते हैं कि कौन समुच्चय का सदस्य है। उदाहरण के लिए, S={2,5,6,7,9} का एक सदस्य 7 है। इसे हम लिख सकते हैं कि इसके विपरीत चिह्न यह बताता है कि अमुक चीज समुच्चय का सदस्य नहीं है। जैसे 3 संख्या पूर्वोक्त समुच्चय S का सदस्य नहीं है; इसे हम लिखते हैं कि । " " इस चिह्न को 'सदस्य है' (belongs to) कहते हैं।
यदि किसी समुच्चय A के सभी सदस्य किसी अन्य समुच्चय B के भी सदस्य हैं तो यह कहा जाता है कि A, B का उपसमुच्चय (subset) है। जैसे, A={p,q,r} एवं B={p,q,r,s} हो तो हम लिखते हैं कि प्रत्येक समुच्चय के दो उपसमुच्चय अवश्य होते हैं; एक तो स्वयं वही समुच्चय अपने आप का उपसमुच्चय होता है, दूसरा शून्य समुच्चय सभी समुच्चयों का उपसमुच्चय है।
समुच्चय {a,b,c} के सभी उपसमुच्चयों को लिखें तो , {a}, {b}, {c}, {a,b}, {a,c}, {b,c} एवं {a,b,c} तथा शून्य समुच्चय। यदि किसी समुच्चय में n सदस्य हों तो उसके सभी उपसमुच्चयों की संख्या होगी। जिस उपसमुच्चय में सदस्यों की संख्या मूल समुच्चय के सदस्यों की संख्या से कम हो उसे 'उचित उपसमुच्चय' (proper subset) कहते हैं।
किसी समस्या में विद्यमान सभी उपादानों को लेने पर जो समुच्चय बनता है उसे उस समस्या के सापेक्ष सर्वसमावेशी समुच्चय कहते हैं। उदाहरण के लिए, ११ संख्या तक सभी विषम संख्याओं का सर्वसमावेशी समुच्चय होगा (११ संख्या सहित) - ={1,3,5,7,9,11}
वेन आरेख का उपयोग करके समुच्चय सिद्धान्त के बहुत सी समस्याओं का आसानी से समाधान किया जाता है। सर्वसमावेशी समुच्चय को एक आयत द्वारा निरूपित किया जाता है तथा इसके सभी उपसमुच्चयों को वृत्त द्वारा दर्शाया जाता है। इस चित्र में A के पूरक समुच्चय को छायांकित करके दिखाया जाता है, अर्थात् । इसके अलावा वृत्त के भीतर वृत्त बनाकर उपसमुच्चयों को दर्शाते हैं। जैसे
दो समुच्चय A और B हों तो इनका सर्वनिष्ठ समुच्चय वह समुच्चय होगा जिसमें वे सदस्य होंगे जो A और B दोनों में हों। जैसे यदि A={2,4,7} एवं B={2,3,7,8} हो तो A और B का सर्वनिष्ठ समुच्चय {2,7} होगा जिसको हम इस तरह लिखते हैं: ={2,7} चित्र में वेन आरेख में छाया द्वारा जो दिखाया गया है वह है।
दो समुच्चय A और B का संघ (यूनिअन) वह समुच्चय है जिसके सदस्य वे हैं जो A में हैं, या B में हैं या दोनों में हैं। उदाहरणार्थ यदि A={3,4,6} एवं B={2,3,4,5,6,7,8} हो तो इन दोनों समुच्चयों का संघ समुच्चय को हम यों लिखेंगे: ={2,3,4,5,6,7,8}। यदि दो समुच्चयों A और B में कोई भी सदस्य उभयनिष्ठ (कॉमन) नहीं है तो इन दोनों समुच्चयों को असंयुक्त समुच्चय (disjoint set) कहा जाता है। इसे हम ऐसे लिखते हैं: =
समुच्चय में अवयवों का विभिन्न होना आवश्यक है। यदि x समुच्चय A का कोई अवयव है, तो हम लिखते है : x ∈ A। सभी अवयवों का ब्यौरा न देकर, उन्हें नियम द्वारा भी बताया जा सकता है, जैसे विषम संख्याओं का समुच्चय। B को A का उपसमुच्चय (Subset) तब कहते हैं, जब B का प्रत्येक अवयव A का सदस्य हो और इसे इस प्रकार लिखते हैं : B ⊂ A . इसे यों भी पढ़ते हैं : B, A में समाविष्ट है। यदि A में कम से कम एक ऐसा अवयव हो जो B का सदस्य नहीं है और B, A का उपसमुच्चय है, तो B को A का वास्तविक (proper) उपसमुच्चय कहते हैं। ऐसे समुच्चय को, जिसका एक भी अवयव न हो, शून्य (null) समुच्चय कहते हैं और इसे φ से प्रकट करते हैं। शून्य समुच्चय सैद्धांतिक विवेचन में उपयोगी होते हैं।
समुच्चयों पर मूल क्रियाएँ ये हैं : तार्किक (logical) योग, तार्किक गुणन, तार्किक व्यकलन।
तार्किक योग और गुणन सामान्य बीजगणित के साहचर्य (associative), क्रमविनिमेय (commutative) और वितरण (distributive) नियमों का पालन करते हैं।
सम्बन्ध के लिए फलन आंशिक क्रमित हो तो, सभी के लिए, :
समुच्चयों का सर्वनिष्ठ तथा संघ (यूनिअन) क्रमविनिमेय, साहचर्य तथा वितरण नियमों का पालन करता है:
अन्तर के लिए निम्नलिखित नियम लागू होते हैं:
सममित अंतर के लिए निम्नलिखित नियम लागू होते हैं:
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