रामदेव जी (बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर,पीरो के पीर)•का जन्म ऊंडु काशमीर (बाड़मेर)के एक राजपूत परिवार में हुआ, ये अजमालजी तंवर की संतान थे। रामदेवजी की माता का नाम मैणादे था। राव मल्लीनाथ (मारवाड़ के राठौड़ राजा) ने रामदेव जी को पोकरण की जागीर प्रदान की थी, हरजी भाटी इनके प्रमुख सहयोगी थे। डाली बाई इनकी अनन्य मेघवाल भक्त थी ।रामदेव जी ने कामड़िया पंथ की स्थापना की । रामदेव जी के मेघवाल जाति के भक्तो को रिखिया कहा जाता है,ये रिखिया जो भजन करते है उन्हे ब्यावले कहा जाता है, रामदेव जी ने भैरव नमक राक्षस का अंत किया था। इनके मंदिर में इनके पगल्ये पूजे जाते हैं,रामदेव जी के पुजारी तंवर जाति के राजपूत होते है। इनका जन्म राजस्थान के एक तंवर राजपुत परिवार में हुआ था जो एक सर्वमान्य तथ्य है । रामदेव जी छुआछूत व भेदभाव मिटाने वाले देवता माने जाते हैं।ये राजस्थान के एक प्रसिद्ध लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल रामदेवरा (जैसलमेर) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया सेे दसमी तक भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं।
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श्री बाबा रामदेव पीर (रामदेवजी तंवर) | |
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रुणिचा के शासक, संत तथा समाज सुधारक, पीरों के पीर, रामसापीर,रूणेचा रा धनी ,सांप्रदायिकता के देवता,कृष्ण के अवतार, | |
पूर्ववर्ती | મેઘવાળ |
जन्म | चैत्र सुदी पंचमी विक्रम संवत 1409 उंडू काश्मीर (बाड़मेर) |
निधन | रामदेवरा |
समाधि | रामदेवरा |
पिता | अजमाल जी तंवर |
माता | मैणादे |
धर्म | हिन्दू |
बाबा रामदेवजी मुस्लिमों के भी आराध्य हैं और वे उन्हें रामसा पीर या रामशाह पीर के नाम से पूजते हैं। रामदेवजी के पास चमत्कारी शक्तियां थी तथा उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली। किंवदंती के अनुसार मक्का से पांच पीर रामदेव की शक्तियों का परीक्षण करने आए। रामदेवजी ने उनका स्वागत किया तथा उनसे भोजन करने का आग्रह किया। पीरों ने मना करते हुए कहा वे सिर्फ अपने निजी बर्तनों में भोजन करते हैं, जो कि इस समय मक्का में हैं। इस पर रामदेव मुस्कुराए और उनसे कहा कि देखिए आपके बर्तन आ रहे हैं और जब पीरों ने देखा तो उनके बर्तन मक्का से उड़ते हुए आ रहे थे। रामदेवजी की क्षमताओं और शक्तियों से संतुष्ट होकर उन्होंने उन्हें प्रणाम किया तथा उन्हें राम सा पीर का नाम दिया। रामदेव की शक्तियों से प्राभावित होकर पांचों पीरों ने उनके साथ रहने का निश्चय किया। उनकी मज़ारें भी रामदेव की समाधि के निकट स्थित हैं।
रामदेव सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करते थे, चाहे वह उच्च या निम्न हो, अमीर या गरीब हो। उन्होंने दलितों को उनकी इच्छानुसार फल देकर उनकी मदद की। उन्हें अक्सर घोड़े पर सवार दर्शाया जाता है। उनके अनुयायी राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, मुंबई, दिल्ली भीलवाडा आटुण गांव के साथ जैसलमेर के सिंध तक फैले हुए हैं। राजस्थान में कई मेले आयोजित किए जाते हैं। उनके मंदिर भारत के भीलवाडा सहित कई जिलो में स्थित हैं। रामदेव जी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा राजपूत दलै सिंह की पुत्री निहालदे के साथ हुआ। रामदेव जी के अन्य मंदिर निम्न है मसूरिया पहाड़ी जोधपुर, बीराटीया, ब्यावर, सुरताखेडा चितोडगढ़ और छोटा रामदेवरा गुजरात।
बाबा रामदेव ने वि.स. १४४२ में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को राजस्थान के रामदेवरा (पोकरण से 10 कि.मी.) में जीवित समाधि ले ली।
रामदेव जयंती, अर्थात् बाबा का जन्मदिवस प्रतिवर्ष उनके भक्तों द्वारा सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह तिथि भाद्र शुक्ल द्वितीया को पड़ती है। रामदेवरा के मंदिर में भादवा सुदी बीज से एकादशी तक एक अंतरप्रांतीय मेले का आयोजन होता है जिसे "भादवा का मेला" कहते हैं। इस मेले में देश के हर कोने से लाखों हिन्दू और मुस्लिम श्रद्धालु यात्रा करते हुए पहुंचते हैं तथा बाबा की समाधि पर नमन करते हैं।
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