कामसूत्र: प्राचीन भारतीय यौन ग्रन्थ

कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन द्वारा रचित भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र ) ग्रन्थ है। यह विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान कामसूत्र का है।

कामसूत्र  
कामसूत्र: कामसूत्र-प्रणयन का प्रयोजन, कामसूत्र के बारे में भ्रांतियाँ, संरचना
लेखक वात्स्यायन
मूल शीर्षक कामसूत्र
अनुवादक बहुत
देश भारत
भाषा संस्कृत
विषय अच्छी तरह से जीने की कला, प्रेम की प्रकृति, एक जीवन साथी की खोज, एक के प्रेम जीवन को बनाए रखना, और अन्य पहलुओं को मानव जीवन के आनन्द-उन्मुख संकायों से सम्बन्धित है।
प्रकार सूत्र
अंग्रेजी में
प्रकाशित हुई
1883

अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि वात्स्यायन का काल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी। तदनुसार विगत सत्रह शताब्दियों से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है और आज भी कायम है। संसार की हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है[तथ्य वांछित]। इसके अनेक भाष्य एवं संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं, वैसे इस ग्रन्थ के जयमंगला भाष्य को ही प्रामाणिक माना गया है। कोई दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद सर रिचर्ड एफ़ बर्टन (Sir Richard F. Burton) ने जब ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया तो चारों ओर तहलका मच गया[तथ्य वांछित] और इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी[तथ्य वांछित]। अरब के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ (Perfumed Garden) पर भी इस ग्रन्थ की अमिट छाप है[तथ्य वांछित]

महर्षि के कामसूत्र ने न केवल दाम्पत्य जीवन का शृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी सम्पदित किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा खजुराहो, कोणार्क आदि की जीवन्त शिल्पकला भी कामसूत्र से अनुप्राणित है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं तो गीत गोविन्द के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है[तथ्य वांछित]

रचना की दृष्टि से कामसूत्र कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' के समान है—चुस्त, गम्भीर, अल्पकाय होने justभी विपुल अर्थ से मण्डित। दोनों की शैली समान ही है— सूत्रात्मक। रचना के काल में भले ही अन्तर है, अर्थशास्त्र मौर्यकाल का और कामूसूत्र गुप्तकाल का है।

कामसूत्र-प्रणयन का प्रयोजन

वात्स्यायन ने कामसूत्र में मुख्यतया धर्म, अर्थ और काम की व्याख्या की है। उन्होने धर्म-अर्थ-काम को नमस्कार करते हुए ग्रन्थारम्भ किया है। धर्म, अर्थ और काम को 'त्रयी' कहा जाता है। वात्स्यायन का कहना है कि धर्म परमार्थ का सम्पादन करता है, इसलिए धर्म का बोध कराने वाले शास्त्र का होना आवश्यक है। अर्थसिद्धि के लिए तरह-तरह के उपाय करने पड़ते हैं इसलिए उन उपायों को बताने वाले अर्थशास्त्र की आवश्यकता पड़ती है और सम्भोग के पराधीन होने के कारण स्त्री और पुरुष को उस पराधीनता से बचने के लिए कामशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है।

वात्स्यायन का दावा है कि यह शास्त्र पति-पत्नी के धार्मिक, सामाजिक नियमों का शिक्षक है। जो दम्पति इस शास्त्र के अनुसार दाम्पत्य जीवन व्यतीत करेंगे उनका जीवन काम-दृष्टि से सदा-सर्वदा सुखी रहेगा। पति-पत्नी आजीवन एक दूसरे से सन्तुष्ट रहेंगे। उनके जीवन में एकपत्नीव्रत या पातिव्रत को भंग करने की चेष्टा या भावना कभी पैदा नहीं हो सकती। आचार्य का कहना है कि जिस प्रकार धर्म और अर्थ के लिए शास्त्र की आवश्यकता होती है उसी प्रकार काम के लिए भी शास्त्र की आवश्यकता होने से कामसूत्र की रचना की गई है।

कामसूत्र के बारे में भ्रांतियाँ

  • (1) कामसूत्र में केवल विभिन्न प्रकार के यौन-आसन (सेक्स पोजिशन्स) का वर्णन है।
      कामसूत्र 7 भागों में विभक्त है जिसमें से यौन-मिलन से सम्बन्धित भाग 'संप्रयोगिकम्' एक है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ का केवल 20 प्रतिशत ही है जिसमें 69 यौन आसनों का वर्णन है। इस ग्रन्थ का अधिकांश भाग काम के दर्शन के बारे में है, काम की उत्पत्ति कैसे होती है, कामेच्छा कैसे जागृत रहती है, काम क्यों और कैसे अच्छा या बुरा हो सकता है।
  • (2) कामसूत्र एक सेक्स-मैनुअल है।
      'काम' एक विस्तृत अवधारणा है, न केवल यौन-आनन्द। काम के अन्तर्गत सभी इन्द्रियों और भावनाओं से अनुभव किया जाने वाला आनन्द निहित है। गुलाब का इत्र, अच्छी तरह से बनाया गया खाना, त्वचा पर रेशम का स्पर्श, संगीत, किसी महान गायक की वाणी, वसन्त का आनन्द - सभी काम के अन्तर्गत आते हैं। वात्स्यायन का उद्देश्य स्त्री और पुरुष के बीच के 'सम्पूर्ण' सम्बन्ध की व्याख्या करना था। ऐसा करते हुए वे हमारे सामने गुप्तकाल की दैनन्दिन जीवन के मन्त्रमुग्ध करने वाले प्रसंग, संस्कृति एवं सभ्यता का दर्शन कराते हैं। कामसूत्र के सात भागों में से केवल एक में, और उसके भी दस अध्यायों में से केवल एक अध्याय में, यौन-सम्बन्ध बनाने से सम्बन्धित वर्नन है। (अर्थात 36 अध्यायों में से केवल 1 अध्याय में)
  • (3) कामसूत्र प्रचलन से बाहर (outdated) हो चुका है।
      यद्यपि कामसूत्र दो-ढाई हजार वर्ष पहले रचा गया था, किन्तु इसमें निहित ज्ञान आज भी उतना ही उपयोगी है। इसका कारण यह है कि भले ही प्रौद्योगिकि ने बहुत उन्नति कर ली है किन्तु मनुष्य अब भी एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, विवाह करते हैं, तथा मनुष्य के यौन व्यहार अब भी वही हैं जो हजारों वर्ष पहले थे।

संरचना

यह ग्रन्थ सूत्रात्मक है। यह सात अधिकरणों, 36 अध्यायों तथा 64 प्रकरणों में विभक्त है। इसमें चित्रित भारतीय सभ्यता के ऊपर गुप्त युग की गहरी छाप है, उस युग का शिष्टसभ्य व्यक्ति 'नागरिक' के नाम से यहाँ दिया गया है। ग्रन्थ के प्रणयन का उद्देश्य लोकयात्रा का निर्वाह है, न कि राग की अभिवद्धि। इस तात्पर्य की सिद्धि के लिए वात्स्यायन ने उग्र समाधि तथा ब्रह्मचर्य का पालन कर इस ग्रन्थ की रचना की—

    तदेतद् ब्रह्मचर्येण परेण च समाधिना।
    विहितं लोकयावर्थं न रागार्थोंऽस्य संविधि:।। (कामसूत्र, सप्तम अधिकरण, श्लोक ५७)

ग्रंथ सात अधिकरणों में विभक्त है जिनमें कुल 36 अध्याय तथा 1250 श्लोक हैं। इसके सात अधिकरणों के नाम हैं-

  • 1. साधारणम् (भूमिका)
  • 2. संप्रयोगिकम् (यौन मिलन)
  • 3. कन्यासम्प्रयुक्तकम् (पत्नीलाभ)
  • 4. भार्याधिकारिकम् (पत्नी से सम्पर्क)
  • 5. पारदारिकम् (अन्यान्य पत्नी संक्रान्त)
  • 6. वैशिकम् (रक्षिता)
  • 7. औपनिषदिकम् (वशीकरण)

प्रथम अधिकरण (साधारण) में शास्त्र का समुद्देश तथा नागरिक की जीवनयात्रा का रोचक वर्णन है।

द्वितीय अधिकरण (साम्प्रयोगिक) रतिशास्त्र का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। पूरे ग्रन्थ में यह सर्वाधिक महत्वशाली खण्ड है जिसके दस अध्यायों में रतिक्रीड़ा, आलिंगन, चुम्बन आदि कामक्रियाओं का व्यापक और विस्तृत प्रतिपादन हे।

तृतीय अधिकरण (कान्यासम्प्रयुक्तक) में कन्या का वरण प्रधान विषय है जिससे संबद्ध विवाह का भी उपादेय वर्णन यहाँ किया गया है।

चतुर्थ अधिकरण (भार्याधिकारिक) में भार्या का कर्तव्य, सपत्नी के साथ उसका व्यवहार तथा राजाओं के अन्त:पुर के विशिष्ट व्यवहार क्रमश: वर्णित हैं।

पंचम अधिकरण (पारदारिक) परदारा को वश में लाने का विशद वर्णन करता है जिसमें दूती के कार्यों का एक सर्वांगपूर्ण चित्र हमें यहाँ उपलब्ध होता है।

षष्ठ अधिकतरण (वैशिक) में वेश्याओं, के आचरण, क्रियाकलाप, धनिकों को वश में करने के हथकण्डे आदि वर्णित हैं।

सप्तम अधिकरण (औपनिषदिक) का विषय वैद्यक शास्त्र से संबद्ध है। यहाँ उन औषधों का वर्णन है जिनका प्रयोग और सेवन करने से शरीर के दोनों वस्तुओं की, शोभा और शक्ति की, विशेष अभिवृद्धि होती है। इस उपायों के वैद्यक शास्त्र में 'बृष्ययोग' कहा गया है।

  • (1) साधारणम्
    • 1.1 शास्त्रसंग्रहः
    • 1.2 त्रिवर्गप्रतिपत्तिः
    • 1.3 विद्यासमुद्देशः
    • 1.4 नागरकवृत्तम्
    • 1.5 नायकसहायदूतीकर्मविमर्शः
  • (2) सांप्रयोगिकम्
    • 2.1 प्रमाणकालभावेभ्यो रतअवस्थापनम्
    • 2.2 आलिंगनविचार
    • 2.3 चुम्बनविकल्पाः
    • 2.4 नखरदनजातयः
    • 2.5 दशनच्छेद्यविहयो
    • 2.6 संवेशनप्रकाराश्चित्ररतानि
    • 2.7 प्रहणनप्रयोगास् तद्युक्ताश् च सीत्कृतक्रमाः
    • 2.8 पुरुषोपसृप्तानि पुरुषायितं
    • 2.9 औपरिष्टकं नवमो
    • 2.10 रतअरम्भअवसानिकं रतविशेषाः प्रणयकलहश् च
  • (3) कन्यासंप्रयुक्तकम्
    • 3.1 वरणसंविधानम् संबन्धनिश्चयः च
    • 3.2 कन्याविस्रम्भणम्
    • 3.3 बालायाम् उपक्रमाः इंगिताकारसूचनम् च
    • 3.4 एकपुरुषाभियोगा
    • 3.5 विवाहयोग
  • (4) भार्याधिकारिकम्
    • 4.1 एकचारिणीवृत्तं प्रवासचर्या च
    • 4.2 ज्येष्ठादिवृत्त
  • (5) पारदारिकम्
    • 5.1 स्त्रीपुरुषशीलवस्थापनं व्यावर्तनकारणाणि स्त्रीषु सिद्धाः पुरुषा अयत्नसाध्या योषितः
    • 5.2 परिचयकारणान्य् अभियोगा छेच्केद्
    • 5.3 भावपरीक्षा
    • 5.4 दूतीकर्माणि
    • 5.5 ईश्वरकामितं
    • 5.6 आन्तःपुरिकं दाररक्षितकं
  • (6) वैशिकम्
    • 6.1 सहायगम्यागम्यचिन्ता गमनकारणं गम्योपावर्तनं
    • 6.2 कान्तानुवृत्तं
    • 6.3 अर्थागमोपाया विरक्तलिंगानि विरक्तप्रतिपत्तिर् निष्कासनक्रमास्
    • 6.4 विशीर्णप्रतिसंधानं
    • 6.5 लाभविशेषाः
    • 6.6 अर्थानर्थनुबन्धसंशयविचारा वेश्याविशेषाश् च
  • (7) औपनिषदिकम्
    • 7.1 सुभगंकरणं वशीकरणं वृष्याश् च योगाः
    • 7.2 नष्टरागप्रत्यानयनं वृद्धिविधयश् चित्राश् च योगा

संक्षिप्त परिचय

कामसूत्र का प्रणयन अधिकरण, अध्याय और प्रकरणबद्ध किया गया है। इसमें 7 अधिकरण, 36 अध्याय, 64 प्रकरण और 1250 सूत्र ( श्लोक ) हैं। ग्रन्थकार ने ग्रन्थ लिखने से पूर्व जो विषयसूची तैयार की थी उसका नाम उसने 'शास्त्रसंग्रह' रखा है अर्थात् वह संग्रह जिससे यह विषय (कामसूत्र ) शासित हुआ है।

कामसूत्र के प्रथम अधिकरण का नाम साधारण है। शास्त्रसंग्रह, प्रथम अधिकरण के प्रथम अध्याय का प्रथम प्रकरण है। इस अघिकरण में ग्रन्थगत सामान्य विषयों का परिचय है। इस अधिकरण में पाँच अध्याय और प्रकरण हैं। विषय-विवेचन के आधार पर अध्यायों और प्रकरणों के नामकरण किए गए हैं। प्रथम अधिकरण का मुख्य प्रतिपाद्य विषय यही है कि धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति कैसे की जा सकती है। मनुष्य को श्रुति, स्मृति, अर्थविद्या आदि के अध्ययन के साथ कामशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। कामसूत्रकार ने सुझाव दिया है कि व्यक्ति को पहले विद्या पढ़नी चाहिए, फिर अर्थोपार्जन करना चाहिए। इसके बाद विवाह करके गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश कर नागरकवृत्त का आचरण करना चाहिए। विवाह से पूर्व किसी दूती या दूत की सहायता से किसी योग्य नायिका से परिचय प्राप्त कर प्रेम सम्बन्ध बढ़ाना चाहिए और फिर उसी से विवाह करना चाहिए। ऐसा करने पर गार्हस्थ्य जीवन, नागरिक जीवन सदैव सुखी और शान्त बना रहता है।

द्वितीय अधिकरण का नाम साम्प्रयोगिक है। 'सम्प्रयोग' को अर्थ सम्भोग होता है। इस अधिकरण में स्त्री-पुरुष के सम्भोग विषय की ही व्याख्या विभिन्न रूप से की गई है, इसलिए इसका नाम 'साम्प्रयोगिक' रखा गया है। इस अधिकरण में दस अध्याय और सत्रह प्रकरण हैं। कामसूत्रकार ने बताया है कि पुरुष अर्थ, धर्म और काम इन तीनों वर्गों को प्राप्त करने के लिए स्त्री को अवश्य प्राप्त करे किन्तु जब तक सम्भोग कला का सम्यक् ज्ञान नहीं होता है तब तक त्रिवर्ग की प्राप्ति समुचित रूप से नहीं हो सकती है और न आनन्द का उपभोग ही किया जा सकता है।

तीसरे अधिकरण का नाम कन्यासम्प्रयुक्तक है । इसमें बताया गया है कि नायक को कैसी कन्या से विवाह करना चाहिए। उससे प्रथम किस प्रकार परिचय प्राप्त कर प्रेम-सम्बन्ध स्थापित किया जाए? किन उपायों से उसे आकृष्ट कर अपनी विश्वासपात्री प्रेमिका बनाया जाए और फिर उससे विवाह किया जाए। इस अधिकरण में पाँच अध्याय और नौ प्रकरण हैं। उल्लिखित नौ प्रकरणों को सुखी दाम्पत्य जीवन की कुञ्जी ही समझना चाहिए। कामसूत्रकार विवाह को धार्मिक बन्धन मानते हुए दो हृदयों का मिलन स्वीकार करते हैं। पहले दो हृदय परस्पर प्रेम और विश्वास प्राप्त कर एकाकार हो जाएँ तब विवाह बन्धन में बँधना चाहिए, यही इस अधिकरण का सारांश है। यह अधिकरण सभी प्रकार की सामाजिक, धार्मिक मर्यादाओं के अन्तर्गत रहते हुए व्यक्ति की स्वतन्त्रता का समर्थन करता है।

चतुर्थ अधिकरण का नाम भार्याधिकारिक है। इसमें दो अध्याय और आठ प्रकरण है। विवाह हो जाने के बाद कन्या 'भार्या' कहलाती है। एकचारिणी और सपत्नी (सौत ) दो प्रकार की भार्या होती है। इन दोनों प्रकार की भार्याओं के प्रति पति के तथा पति के प्रति पत्नी के कर्त्तव्य इस अधिकरण में बताए गए हैं। इस अधिकरण में स्त्रीमनोविज्ञान और समाजविज्ञान को सूक्ष्म अध्ययन निहित है।

पाँचवें अधिकरण का नाम पारदारिक है। इसमें छह अध्याय और दस प्रकरण हैं। परस्त्री और परपुरुष का परस्पर प्रेम किन परिस्थितियों में उत्पन्न होता है, बढ़ता है और विच्छिन्न होता है, किस प्रकार परदारेच्छा पूरी की जा सकती है, और व्यभिचारी से स्त्रियों की रक्षा कैसे हो सकती है, यही इस अधिकरण का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है।

छठे अधिकरण का नाम वैशिक है। इसमें छह अध्याय और बारह प्रकरण है। इस अधिकरण में वेश्याओं के चरित्र और उनके समागम उपायों आदि का वर्णन किया गया है। कामसूत्रकार ने वेश्यागमन को एक दुर्व्यसन मानते हुए बताया है कि वेश्यागमन से शरीर और अर्थ दोनों की क्षति होती है।

सातवें अधिकरण को नाम औपनिषदिक है। इसमें दो अध्याय और छह प्रकरण हैं। इस अधिकरण में, नायक-नायिका एक दूसरे को मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, औषधि आदि प्रयोगों से किस प्रकार वशीभूत करें, नष्टरोग को पुनः किस प्रकार उत्पन्न किया जाए, रूप-लावण्य को किस प्रकार बढ़ाया जाए, तथा बाजीकरण प्रयोग आदि मुख्य प्रतिपाद्य विषय है। औपनिषदिक का अर्थ 'टोटका' है।

पाठानुशीलन से प्रतीत होता है कि वर्तमान पुस्तकों में मूल प्रति से भिन्न सूत्रानुक्रम है। अनुमान है कि सबसे पहले नन्दी ने ही ब्रह्मा के प्रवचन से कामशास्त्र को अलग कर उसकी प्रवचन किया। कामशास्त्र के बाद मनुस्मृति और अर्थशास्त्र प्रतिपादित होने का भी अनुमान होता है, क्योंकि मनु और बृहस्पति ने ग्रन्थ का प्रवचन न कर पृथक्करण किया है। इसमें सन्देह नहीं कि इस प्रकार की पृथक्करण-प्रणाली का सूत्रपात प्रवचन काल के बहुत बाद से प्रारम्भ हुआ है। नन्दी द्वारा कहे गए एक हजार अध्यायों के कामशास्त्र को श्वेतकेतु ने संक्षिप्त कर पाँच सौ अध्यायों का संस्करण प्रस्तुत किया। स्पष्ट है कि ब्रह्मा के द्वारा प्रवचन किए गए शास्त्र में से नन्दी ने कामविषयक शास्त्र को एक हजार अध्यायों में विभक्त किया था। उसने अपनी ओर से किसी प्रकार का घटाव-बढ़ाव नहीं किया क्योंकि वह प्रवचन-काल था । प्रवचन-काल की परम्परा थी कि गुरुओं, आचार्यों से जो कुछ पढ़ा या सुना जाता था उसे ज्यों को त्यों शिष्यों

और जिज्ञासुओं के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाता था, अपनी ओर से कोई जोड़-तोड़ नहीं किया जाता था। प्रवचन-काल के अनन्तर शास्त्रों के सम्पादन, संशोधन और संक्षिप्तीकरण का प्रारम्भ होता है। श्वेतकेतु प्रवचन-काल के बाद का प्रतीत होता है क्योंकि उसने नन्दी के कामशास्त्र के एक हजार अध्यायों को संक्षिप्तीकरण और संपादन किया था। बल्कि यह कहना अधिक तर्कसंगत होगा कि श्वेतकेतु के काल से शास्त्र के सम्पादन और संक्षिप्तीकरण की पद्धति प्रचलित हो गई थी और बाभ्रव्य के समय में वह पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी थी।

टीकाएँ

कामसूत्र के ऊपर तीन टीकाएँ प्रसिद्ध हैं-

  • (1) जयमंगला - प्रणेता का नाम यथार्थत: यशोधर है जिन्होंने वीसलदेव (1243-61) के राज्यकाल में इसका निर्माण किया।
  • (2) कन्दर्पचूडामणि - बघेलवंशी राजा रामचन्द्र के पुत्र वीरसिंहदेव रचित पद्यबद्ध टीका (रचनाकाल सं. 1633; 1577 ई.)।
  • (3) कामसूत्रव्याख्या — भास्कर नरसिंह नामक काशीस्थ विद्वान् द्वारा 1788 ई. में निर्मित टीका।
  • (4) कामराज - रतिसार = मेवाड़ के महाराणा कुंभकर्ण सिंह (कुम्भा) ने इस पर टीका रची।

काम-विषयक अन्य प्राचीन ग्रन्थ

  • ज्योतिरीश्वर कृत पंचसायक :- मिथिला नरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहण कर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है।
  • पद्मश्रीज्ञान कृत नागरसर्वस्व :- कलामर्मज्ञ ब्राह्मण विद्वान वासुदेव से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ३१३ श्लोकों एवं ३८ परिच्छेदों में निबद्ध है। यह ग्रन्थ दामोदर गुप्त के "कुट्टनीमत" का निर्देश करता है और "नाटकलक्षणरत्नकोश" एवं "शार्ंगधरपद्धति" में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इसका समय दशम शती का अंत में स्वीकृत है।
  • जयदेव कृत रतिमंजरी :- ६० श्लोकों में निबद्ध अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। यह ग्रन्थ डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
  • कोक्कोक कृत रतिरहस्य :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पारिभद्र के पौत्र तथा तेजोक के पुत्र कोक्कोक द्वारा रचित इस ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक सप्तम से दशम शतक के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
  • कल्याणमल्ल कृत अनंगरंग:- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध कल्याणमल्ल ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

विकिमीडिया कॉमन्स पर कामसूत्र से सम्बन्धित मीडिया है।

Tags:

कामसूत्र -प्रणयन का प्रयोजनकामसूत्र के बारे में भ्रांतियाँकामसूत्र संरचनाकामसूत्र संक्षिप्त परिचयकामसूत्र टीकाएँकामसूत्र काम-विषयक अन्य प्राचीन ग्रन्थकामसूत्र सन्दर्भकामसूत्र इन्हें भी देखेंकामसूत्र बाहरी कड़ियाँकामसूत्रअर्थअर्थशास्त्र (ग्रन्थ)कामशास्त्रचाणक्यभारतवात्स्यायन

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

हनुमान बेनीवालहल्दीघाटी का युद्धभाषाविज्ञानवैष्णो देवी मंदिरजैन धर्मभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीग्रहविटामिन बी१२हिन्दू धर्मभारतीय रिज़र्व बैंककम्प्यूटर नेटवर्करूसउत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2022हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्यसमाज मनोविज्ञानसरस्वती देवीअशोक के अभिलेखछंदद्विवेदी युगआज़ाद हिन्द फ़ौजबौद्ध धर्मप्रतिशतकालीसमावेशी शिक्षाआईसीसी विश्व ट्वेन्टी २०भारतीय संसदप्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साधनमुहम्मद बिन तुग़लक़हरे कृष्ण (मंत्र)राष्ट्रीय जनता दलदशावतारखेलपुराणस्वस्तिवाचनक्रिकबज़शिक्षण विधियाँपाँच ककारसकल घरेलू उत्पादअखिलेश यादवमूल अधिकार (भारत)लोक साहित्यहिंदी साहित्यहेमा मालिनीअमित शाहदक्षिणमानव लिंग का आकारनवदुर्गाविटामिनऔरंगाबाद (बिहार) लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रहिन्दी भाषा का इतिहासछायावादअमिताभ बच्चनहरिद्वार लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रराज कुंद्राजैव विविधताए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलामयूट्यूबमिया खलीफ़ाउधम सिंहखलील अहमदसंख्याक़ुतुब मीनारसाथ निभाना साथियाकोलकाता नाईट राइडर्सभारतएलन मस्कतक्षककोठारी आयोगपानीपत का प्रथम युद्धभारत निर्वाचन आयोगभारतीय संविधान के संशोधनों की सूचीब्रह्मचर्यकम्बोडिया की संस्कृतिचमारमैहरकैटरीना कैफ़सिंधु घाटी सभ्यतायौन संबंध🡆 More