खतना

पुरूषों का खतना उनके शिश्न की अग्र-त्वचा(खाल) को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटा देने की प्रक्रिया है। “खतना (circumcision) लैटिन भाषा का शब्द है circum (अर्थात “आस-पास”) और cædere (अर्थात “काटना”).

खतने के प्रारंभिक चित्रण गुफा चित्रों और प्राचीन मिस्र की कब्रों में मिलते हैं, हालांकि कुछ चित्रों की व्याख्या स्पष्ट नहीं है। यहूदी संप्रदाय में पुरूषों का धार्मिक खतना ईश्वर का आदेश माना जाता है। इस्लाम में, हालांकि क़ुरान में इसकी चर्चा नहीं की गई है, लेकिन यह व्यापक रूप से प्रचलित है और अक्सर इसे सुन्नाह (sunnah) कहा जाता है। यह अफ्रीका में कुछ ईसाई चर्चों में भी प्रचलित है, जिनमें कुछ ओरिएण्टल ऑर्थोडॉक्स चर्च भी शामिल हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुसार, वैश्विक आकलन यह सूचित करते हैं कि 30% पुरूषों का खतना हुआ है, जिनमें से 68% मुसलमान हैं। खतने का प्रचलन अधिकांशतः धार्मिक संबंध और कभी-कभी संस्कृति, के साथ बदलता है। अधिकांशतः खतना सांस्कृतिक या धार्मिक कारणों से किशोरावस्था में किया जाता है; कुछ देशों में इसे शैशवावस्था में किया जाना ज्यादा आम है।

खतना
मध्य एशिया (तुर्कमेनिस्तान की अधिकांश सम्भावना) में खतना किया जा रहा है, लगभग1865-1872.अंडे की सफ़ेदी के निशान को बहाल रखा गया।
खतना
खतना
खतना
खतना

खतने को लेकर विवाद है। खतने के समर्थन में दिये जाने वाले तर्कों में ये तर्क शामिल हैं कि ये महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ देता है, जो खतरों से अधिक महत्वपूर्ण है, यौन-क्रियाओं पर इसके कोई बड़े प्रभाव नहीं होते, किसी अनुभवी चिकित्सक द्वारा किये जाने पर इसमें जटिलता की दर कम होती है और इसे नवजात काल में सर्वश्रेष्ठ रूप से किया जाता है। खतने के विरोध में उठने वाले तर्कों में ये तर्क शामिल हैं कि ये पुरूषों के जननांग संबंधी कार्यों और यौन आनंद पर बुरा प्रभाव डालता है, इसे चिकित्सीय मिथकों के आधार पर तर्कसंगत ठहराया गया है, यह अत्यधिक दर्दनाक है और यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है हर्षित खान भरगवा रिस्ट्रा।

द अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन (The American Medical Association report) की 1999 की रिपोर्ट, जो "…खतने की उन घटनाओं, जो कर्मकाण्डी या धार्मिक उद्देश्यों से न की गईं हों, तक सीमित” थी के अनुसार "वास्तव में विशेषता समितियों और चिकित्सीय संस्थाओं के सभी वर्तमान नीति दस्तावेज नियमित नवजात खतने की अनुशंसा नहीं करते और अभिभावकों को अचूक व पक्षपातरहित जानकारी प्रदान किये जाने का समर्थन करते हैं, ताकि वे अपने चयन की सूचना दे सकें."

विश्व स्वास्थ्य संगठन (The World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ; 2007) (WHO; 2007), एचआईवी/एड्स पर जॉइन्ट यूनाईटेड नेशन्स प्रोग्राम, (Joint संयुक्त राष्ट्र Programme on HIV/AIDS) (यूएनएड्स; 2007) (UNAIDS; 2007) और सेंटर्स फॉर डिसीज़ कण्ट्रोल एण्ड प्रीवेंशन (Centers for Disease Control and Prevention) (सीडीसी; 2008) (CDC; 2008) कहते हैं कि प्रमाण इस बात की ओर संकेत करते हैं कि पुरूषों में खतना करना शिश्न-योनि यौन संबंध के दौरान पुरूषों द्वारा एचआईवी (HIV) अभिग्रहण के खतरे को लक्षणीय रूप से कम कर देता है, लेकिन यह भी कहते हैं कि खतना केवल आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और इसे एचआईवी (HIV) के प्रसार को रोकने के लिये प्रयुक्त अन्य अवरोधों के विकल्प के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये।

इतिहास

खतना 
प्रेसिंक्ट ऑफ मुट, लक्सर, मिस्र में स्थित टेंपल ऑफ खॉन्स्पेखॉर्ड की आंतरिक उत्तरी दीवार से प्राप्त प्राचीन मिस्र में उकेरा गया खतने का दृश्य.अठारहवां वंश, आमेन्होटेप III, लगभग 1360 ई.पू.

यह विविध रूप में प्रस्तावित किया गया है कि खतने की शुरुआत एक धार्मिक रिवाज, उपजाऊपन को सुनिश्चित करने हेतु एक भेंट, एक जनजातीय प्रतीक, स्वीकृति की एक रस्म, मर्दानगी पर ज़ोर देने के एक प्रयास, शत्रुओं और गुलामों को प्रताड़ित करने के माध्यम अथवा एक स्वास्थ्य उपाय के रूप में हुई। डार्बी (Darby) इन सिद्धांतों का वर्णन “टकरावपूर्ण (conflicting)" के रूप में करते हैं और कहते हैं कि "विभिन्न सिद्धांतों के प्रतिपादकों के बीच केवल एक बिंदु पर सहमति है कि अच्छे स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करने से इसका कोई संबंध नहीं था।" इमरमैन व अन्य (Immerman et al.) कहते हैं कि खतने के कारण तरुण पुरूषों में यौनेच्छा कम हो जाती है और उनका अनुमान है कि यह खतने की प्रथा का पालन करने वाली जनजातियों के लिये एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ था, जिसके इसका विस्तार हुआ। विल्सन (Wilson) का मानना है कि खतना एक समूह के प्रति व्यक्ति की प्रतिबद्धता के संकेत का प्रतिनिधित्व करता है और यह विवाहेतर यौन-संबंधों की घटनाओं को कम करके विकासपरक उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।

खतने से संबंधित सर्वाधिक प्राचीन दस्तावेजी प्रमाण प्राचीन मिस्र से मिलता है। सामी (semitic) लोगों में खतना आमतौर पर प्रचलित था, हालांकि यह सर्वव्यापी नहीं था। हालांकि सिकंदर महान की विजय के बाद, खतने के प्रति ग्रीक लोगों की अरुचि (वे पुरुष को केवल तभी पूर्णतः “नग्न” मानते थे, जब उसकी खलड़ी को निकाल दिया गया हो) के चलते इसका पालन करने वाले लोगों में से अनेकों के बीच इसकी घटनाओं में एक कमी आई।

उप-विषुवतीय अफ्रीका में अनेक नस्लीय समूह में खतने की जड़ें प्राचीन काल से मौजूद हैं और योद्धा अवस्था या वयस्कता में प्रवेश के संकेत के रूप में अभी भी इसका प्रयोग किशोरों पर किया जाता है।

अंग्रेज़ी-भाषी विश्व में गैर-धार्मिक खतना

शिशुओं का खतना संयुक्त राज्य अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूज़ीलैण्ड के अंग्रेज़ी-भाषी क्षेत्रों और कम व्यापक रूप से यूनाइटेड किंगडम में अपनाया गया था। इस बात की व्याख्या करने वाले अनेक अनुमान हैं कि सन 1900 के आसपास संयुक्त राज्य अमरीका में शिशुओं के खतने को क्यों स्वीकार किया गया। बीमारियों के जीवाणु सिद्धांत ने मानव शरीर का चित्रण अनेक खतरनाक जीवाणुओं के लिये वाहन के रूप में किया, जिससे लोग “जीवाणुओं के प्रति भयभीत (germ phobic)” और धूल-मिट्टी तथा शरीर से निकलने वाले पदार्थों के प्रति आशंकित हो गये। शिश्न से जुड़े कार्यों के कारण इसे “मलिन” माना जाने लगा और इसी प्रस्तावना के आधार पर खतना करने को एक ऐसी निरोधक चिकित्सा के रूप में देखा गया, जिसे वैश्विक स्तर पर अपनाया जाना चाहिये था। उस समय इसका पालन करने वाले अनेक लोगों की दृष्टि में, खतना हस्त-मैथुन का उपचार करने व इसे रोकने की एक विधि थी। एग्लेटन (Aggleton) ने लिखा कि जॉन हार्वे केलॉग (John Harvey Kellogg) ने पुरूषों के खतने को इसी रूप में देखा और साथ ही “बिना किसी संकोच के एक दण्डात्मक पद्धति का समर्थन किया।" यह भी कहा गया कि खतना सिफिलिस (syphilis), फिमॉसिस (phimosis), पैराफिमॉसिस (paraphimosis), बैलानाइटिस (balanitis) और "अत्यधिक वेनेरी (excessive venery)" (जिसे लकवे का एक कारण माना जाता था) के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। गोलाहेर (Gollaher) का कथन है कि उन्नीसवीं सदी के अंतिम दौर में खतने का समर्थन करने वाले चिकित्सक जनता के संदेहवाद की उम्मीद रखते थे और उन्होंने इनसे उबरने के लिये उनके तर्कों को परिष्कृत किया।

हालांकि खतने की ऐतिहासिक दरों का निर्धारण कर पाना कठिन है, लेकिन संयुक्त राज्य अमरीका में शिशुओं के खतने की दरों से संबंधित एक आकलन के अनुसार 1933 में 32% नवजात अमरीकी लड़कों का खतना किया जा रहा था। लौमैन व अन्य (Laumann et al.) के अनुसार अमरीका में जन्मे पुरूषों के बीच खतने का प्रचलन 1945, 1955, 1965 व 1975 में जन्मे लोगों के लिये क्रमशः 70%, 80%, 85% और 77% था। ज़ू व अन्य (Xu et al.) के अनुसार 1970 के दशक में अमरीका में जन्मे पुरूषों के बीच खतने का प्रचलन 91% तथा 1980 के दशक में जन्मे पुरूषों में 84% था। 1981 और 1999 के बीच नैशनल सेंटर फॉर हेल्थ स्टैटिस्टिक्स (National Center for Health Statistics) के नैशनल हॉस्पिटल डिस्चार्ज सर्वे (National Hospital Discharge Survey) डाटा ने यह प्रदर्शित किया कि शिशु खतने की दर 60% की सीमा के भीतर रहते हुए अपेक्षाकृत स्थिर बनी रही, जिसका न्यूनतम प्रतिशत 1988 में 60.7% व अधिकतम प्रतिशत 1995 में 67.8% था। 1987 में किये गये एक अध्ययन से पता चला कि अमरीकी अभिभावकों द्वारा खतने को चुने जाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण “भविष्य में उनके बेटे के स्वयं के मनोभावों और उसके मित्रों के दृष्टिकोण के प्रति चिंता” था, न कि कोई चिकित्सीय चिंताएं। हालांकि, बाद में किये गये एक अध्ययन ने यह दर्शाया कि नवजात खतने के संभावित लाभों की समझ में हुई वृद्धि 1988 से 2000 के बीच अमरीका में देखी गई वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार हो सकती है। एजेंसी फॉर हेल्थकेयर रिसर्च एण्ड क्वालिटी (Agency for Healthcare Research and Quality) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 में खतने की राष्ट्रीय दर 56% थी।

1949 में, यूनाइटेड किंगडम की नवगठित नैशनल हेल्थ सर्विसेज़ (National Health Service) ने इसके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं की सूची में से शिशु खतने को हटा दिया और इसके बाद से ही खतने का खर्च अपनी जेब से किया जाने वाला खर्च बन गया है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के आकलनों के अनुसार उन पुरूषों (15 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले), जो यहूदी या मुसलमान नहीं है, में यूके (UK) में खतने का सकल प्रचार 6% है। जब “अश्वेत कैरीबियाई, अफ्रीकी, भारतीय और पाकिस्तानी समूहों (नैटसेल (Natsal) नस्लीय अल्पसंख्यक प्रचार) पर लक्ष्यित सर्वेक्षण से प्राप्त डेटा को मुख्य [नैटसेल II (Natsal II)] सर्वेक्षण डेटा के साथ संयोजित किया गया”, तो यह पता चला कि यूके (UK) में खतने का प्रचलन आयु-आधारित है, जिसके अंतर्गत 16-19 आयु-वर्ग के 11.7% और 40-44 आयु-वर्ग के 19.6% लोगों का खतना किया गया है। इसमें एक स्पष्ट नस्लीय विभाजन है: "अश्वेत कैरिबियाई लोगों के अपवाद के अलावा, सभी नस्लीय अल्पसंख्यक पृष्ठभूमियों वाले पुरूषों का खतना किये जाने की संभावना उन लोगों से बहुत अधिक [(3.02 गुना)] थी, जिन्होंने स्वयं को श्वेत नस्ल का बताया था”. ये विशिष्ट निष्कर्ष “इस बात की पुष्टि करते हैं, कि पुरूषों के खतने का प्रचलन ब्रिटिश पुरूषों की बीच घट रहा है। ऐसा ब्रिटिश जनसंख्या में उन लोगों की संख्या में वृद्धि के बावजूद है, जो स्वयं को गैर-श्वेत नस्ल का मानते हैं”; वस्तुतः, इंग्लैंड और वेल्स में खतना किये जाने वाले नवजात शिशुओं की संख्या एक प्रतिशत से भी नीचे गिर गई है।

1970 के दशक के बाद से ऑस्ट्रेलिया में खतने की दर में तीक्ष्ण गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप इसके प्रचलन में एक आयु-आधारित गिरावट भी हुई है और 2000-01 में हुए एक सर्वेक्षण में यह पता चला कि 16-19 आयु-वर्ग के 32% लोगों, 20-29 आयु-वर्ग के 50% लोगों और 30-39 आयु-वर्ग के 64% लोगों का खतना हुआ है। SANT कनाडा में, ऑन्टैरियो स्वास्थ्य सेवाओं ने 1994 में खतने को अपनी सूची से हटा दिया।

संस्कृति व धर्म

खतना 
परिवार खतने की सामग्री और पेटी, सीए. (Ca.) अठारहवीं सदी गाय के चमड़े से मढ़ा हुआ लकड़ी का बक्सा, जिसमें चांदी के सामान जड़े हुए हैं: चांदी के ट्रे, क्लिप, पॉइंटर, चांदी की बोतल, मसालों का बर्तन.
खतना 
यहूदी आनुष्ठानिक खतना
खतना 
सुल्तान अहमद तृतीय के तीन बेटों के खतना समारोह का सचित्र वर्णन.
      ब्रिट मिलाह (Brit milah), खतने से जुड़े विवाद (Circumcision controversies), पुरूषों का धार्मिक खतना (Religious male circumcision), खितान (खतना) (Khitan (circumcision)) भी देखें

कुछ संस्कृतियों में पुरूषों का खतना पारगमन की रस्म के एक भाग के रूप में जन्म के कुछ ही समय बाद, बचपन में, या किशोरावस्था के आस-पास किया जाना अनिवार्य होता है। आमतौर पर यहूदी और इस्लामिक अनुयायियों में खतने का प्रचलन है।

यहूदी कानून के अनुसार खतना एक मित्ज़्वा असेह (mitzva aseh) (कोई कार्य करने का "सकारात्मक आदेश") है और यह यहूदी के रूप में जन्म लेने वाले पुरूषों और यहूदी धर्म में धर्मांतरित होने वाले उन पुरूषों के लिये अनिवार्य है, जिनका खतना न हुआ हो. इसे केवल तभी टालने योग्य या निराकरणीय होता है, जब इससे बच्चे के जीवन या स्वास्थ्य पर कोई खतरा हो। सामान्यतः यह कार्य एक मोहेल (mohel) द्वारा जन्म के आठवें दिन ब्रित मिलाह (Brit milah) (या बोलचाल की सरल भाषा में ब्रिस मिलाह (Bris milah)) नामक एक आयोजन में किया जाता है, जिसका हिब्रू अर्थ “खतने का रिवाज़” है। इसे कुछ रूढ़िवादी संप्रदायों में इतना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है कि यदि किसी ऐसे यहूदी पुरूष की मृत्यु हो जाए, जिसका खतना न हुआ हो, तो कभी-कभी उसे दफनाने से पहले उसका खतना किया जाता है। हालांकि, उन्नीसवीं सदी के सुधारवादी नेताओं ने इसका वर्णन “बर्बर” के रूप में किया है, लेकिन फिर भी खतने की प्रथा “एक केंद्रीय रस्म” बनी हुई है और 1984 से यूनियन फॉर रिफॉर्म ज्यूडाइज़्म (Union for Reform Judaism) ने अपने “बेरित मिला प्रोग्राम (Berit Mila Program)” के अंतर्गत 300 से अधिक मोहेल पेशेवरों को प्रशिक्षित व प्रमाणित किया है। मानववादी यहूदी धर्म का तर्क है कि “यहूदी पहचान के लिये खतना आवश्यक नहीं है"

इस्लाम में, कुछ हदीस में खतने का उल्लेख हुआ है (इसका उल्लेख खितान के रूप में किया गया है), लेकिन कुरान में नहीं। कुछ फ़िक़ विद्वानों का कथन है कि खतना अनुशंसित है (सुन्नाह); अन्य कहते हैं कि यह अनिवार्य है। कुछ लोग हदीथ को उद्धृत करके यह तर्क देते हैं कि खतने की आवश्यकता अब्राहम को दिये गये वचन पर आधारित है। पुरूषों के लिये खतना का प्रचार करते समय, इस्लामिक विद्वानों ने इस बात का उल्लेख किया है कि इस्लाम में धर्मांतरित होने के लिये इसकी आवश्यकता नहीं है।

कैथलिक चर्च ने खतने की प्रथा को एक घातक पाप कहकर इसकी निंदा की और 1442 में एक्युमेनिकल काउंसिल ऑफ बैसेल-फ्लोरेंस (Ecumenical Council of Basel-Florence) में इसके विरोध का आदेश दिया।

खतने की प्रथा कॉप्टिक, इथियोपियाई और एरिट्रियाई रूढ़िवादी चर्चों में और कुछ अफ्रीकी चर्चों में भी, प्रचलित है। कुछ दक्षिण अफ्रीकी चर्च खतने को एक गैर-ईसाई रस्म मानकर इसका विरोध करते हैं, जबकि अन्य, केन्या के नोमिया चर्च सहित, की सदस्यता के लिये खतना आवश्यक होता है। कुछ अन्य चर्च ईसा के खतने का उत्सव मनाते हैं। ईसाइयों का बड़ा बहुमत एक धार्मिक आवश्यकता के रूप में खतने का पालन नहीं करता.

दक्षिण कोरिया में खतने का एक बड़ा कारण कोरियाई युद्ध के बाद अमरीका का सांस्कृतिक और सैन्य प्रभाव है। पश्चिमी अफ्रीका में पारगमन के एक रिवाज के रूप में या किसी अन्य कारण से नवजात शिशुओं के खतने का कबीलाई प्रभाव भूतकाल में रहा होगा; वर्तमान में कुछ गैर-मुस्लिम नाइजेरियाई समाजों में इसका चिकित्सीकरण कर दिया गया है और यह केवल एक सांस्कृतिक मानदण्ड है। कुछ अफ्रीकी, पैसिफिक द्वीपीय तथा आर्नहेम लैण्ड जैसे क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी परंपराओं, जहां यह परंपरा इंडिनेशियाई द्वीपसमूह में स्थित सुलावेसी के मकसान व्यापारियों द्वारा शुरू की गई, में खतना दीक्षा-संस्कार का एक भाग है। खतने के कुछ आस्ट्रेलियाई आदिवासी समाजों में प्रचलित आयोजनों को उनके दर्दनाक स्वरूप के लिये जाना जाता है: पश्चिमी रेगिस्तान में रहनेवाले कुछ आदिवासियों में चीरा लगाने (Subincision) की प्रथा का प्रचलन है।

प्रशांत क्षेत्र में, खतना या चीरा फिजी के मेलानेशियाई और वनुआतु लोगों में सर्वव्यापी है, जबकि पेंटेकोस्ट द्वीप पर होने वाली पारंपरिक भूमि-कूद (Land-Diving) में सहभागिता केवल उन लोगों के लिये आरक्षित है, जिनका खतना हो चुका हो। खतना या चीरा समोआ, टॉन्गो, नियू और टिकोपिया के पॉलिनेशायाई द्वीपों में भी आमतौर पर प्रचलित है, जहां इस प्रथा को एक पूर्व-ईसाई/उपनिवेशी प्रथा माना जाता है। समोआ में इसके साथ एक उत्सव भी मनाया जाता है।

कुछ पश्चिम अफ्रीकी समूहों, जैसे डोगॉन और डोवायो में, खतने को पुरूष के “जनाना” पहलू को हटाए जाने का प्रतिक माना जाता है, जिससे लड़के पूर्णतः मर्दाना पुरूषों में रूपांतरित हो जाते हैं। दक्षिणी नाइजेरिया के उर्होबो लोगों में यह एक लड़के के पुरुषत्व में प्रवेश का प्रतीक है। रस्मी अभिव्यक्ति, ऑमो ते ऑशारे (Omo te Oshare) ("यह लड़का अब पुरुष है”), एक आयु-वर्ग से दूसरे में पारगमन की रस्म से मिलकर बनती है। नीलनदीय लोगों, जैसे कलेंजिन और मसाई, के लिये खतना पारगमन का एक संस्कार है, जो अनेक लड़कों द्वारा एकत्रित रूप से कुछ वर्षों में एक बार मनाया जाता है और जिन लड़कों का खतना एक साथ किया गया हो, उन्हें एक एकल आयु-वर्ग के सदस्य माना जाता है।

प्रचलन

खतना 
संयुक्त राष्ट्र संघ (डब्ल्यूएचओ (WHO)/ यूएनएड्स (UNAIDS)) द्वारा प्रकाशित मानचित्र, जो देशों के स्तरों पर, खतना किये हुए पुरुषों का प्रतिशत दर्शाता है। डेटा को मेज़र डीएचएस (MEASURE DHS) [116] और अन्य स्रोतों द्वारा उपलब्ध कराया गया।[117]

जिन पुरुषों का खतना हुआ है, वैश्विक रूप से उनके अनुपात का आकलन में छठे भाग से लेकर एक-तिहाई तक का अंतर है। डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि 15 वर्ष और इससे अधिक आयु के 664,500,000 पुरुषों (वैश्विक प्रचलन का 30%) का खतना हो चुका है, जिनमें से लगभग 70% मुसलमान हैं। मुस्लिम विश्व, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमरीका, फिलीपीन्स, इसरायल और दक्षिण कोरिया में खतने का प्रचलन सबसे ज़्यादा है। यूरोप, लैटिन अमरीका, दक्षिणी अफ्रीका के भागों और अधिकांश एशिया व महासागरीय द्वीपों में यह अपेक्षाकृत दुर्लभ है। मध्य-पूर्व और मध्य एशिया में इसका प्रचलन लगभग सर्वव्यापी है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के अनुसार "एशिया में सामान्यतः खतने की बहुत थोड़ी घटनाएं ही गैर-धार्मिक हैं, कोरियाई गणराज्य व फिलीपीन्स इसके अपवाद हैं। डब्लूएचओ (WHO) ने अनुमानित प्रचलन का एक मानचित्र, जिसमें इसका स्तर पूरे यूरोप में सामान्यतः निम्न (< 20%) है, और क्लाव्स व अन्य (Klavs et al.) की रिपोर्ट का निष्कर्ष प्रस्तुत किया है जो "इस धारणा का समर्थन करता है कि यूरोप में खतने का प्रचलन कम है "। लैटिन अमरीका में, इसका प्रचलन सार्वभौमिक रूप से कम है। एकल देशों के अनुमानों में स्पेन, कोलम्बिया और डेनमार्क 2% से कम, फिनलैंड और ब्राज़ील 7%, ताइवान 9%, थाईलैंड 13% और ऑस्ट्रेलिया 58.7% शामिल हैं।

डब्ल्यूएचओ (WHO) का अनुमान है कि संयुक्त राज्य अमरीका और कनाडा में खतने का प्रचलन क्रमशः 75% और 30% है। अफ्रीका में इसके प्रचलन में अंतर है, जिसके अनुसार कुछ दक्षिणी अफ्रीकी देशों में यह 20% से कम है, जबकि पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में सर्वव्यापी है।

खतने की आधुनिक पद्धतियां

यदि असंवेदनता (anesthesia) का प्रयोग किया जाना है, तो इसके अनेक विकल्प हैं: स्थानीय असंवेदनता क्रीम (एम्ला (EMLA) क्रीम) को इस विधि के 60-90 मिनटों पूर्व शिश्न के छोर पर लगाया जा सकता है; शिश्न की पृष्ठ-शिरा (dorsal penile nerve) को बाधित करने के लिये शिश्न के मूल में स्थानीय असंवेदक का इंजेक्शन लगाया जा सकता है; शिश्न के मध्यम में स्थित एक घेरा, जिसे प्रत्युपयाजक घेरे का क्षेत्र (subcutaneous ring block) कहते हैं, में भी स्थानीय असंवेदक का इंजेक्शन लगाया जा सकता है।

नवजात शिशुओं के खतने के लिये, आमतौर पर अवरोधक उपकरणों के साथ गॉम्को कीलक (Gomco clamp), प्लास्टिबेल (Plastibell) और मॉगेन कीलक (Mogen clamp) जैसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

इन सभी उपकरणों के साथ एक ही बुनियादी विधि का पालन किया जाता है। सबसे पहले अग्र-त्वचा की उस मात्रा का आकलन किया जाता है, जिसे निकाला जाना है। इसके बाद खलड़ी के विवर (preputial orifice) के माध्यम से अग्र-त्वचा को खोलकर इसके नीचे स्थित शिश्न-मुण्ड को उजागर किया जाता है और सुनिश्चित किया जाता है कि यह सामान्य है। इसके बाद अग्र-त्वचा की आंतरिक परत (खलड़ी की उपकला (preputial epithelium)) को शिश्न-मुण्ड पर इसके जोड़ से रुखाई से अलग कर दिया जाता है। इसके बाद यह उपकरण रखा जाता है (कभी-कभी इसके लिये एक पृष्ठ-चीरा (dorsal slit) लगाना पड़ता है) और यह तब तक वहां रहता है, जब तक कि रक्त का प्रवाह बंद न हो जाए। अंततः अग्र-त्वचा का उच्छेदन कर दिया जाता है। कभी-कभी, फ्रेनुलम (frenulum) बैण्ड को तोड़ने या कुचलने और मूत्रमार्ग के पास स्थित परिमण्डल से काटने की आवश्यकता भी हो सकती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शिश्न-मुण्ड मुक्त रूप से और पूरी तरह उजागर हो रहा है।

खतना 
ऑपरेशन के बाद प्लास्टिबेल सर्कम्सिश़न का चौथा दिन
  • प्लास्टिबेल (Plastibell) के साथ, जब एक बार शिश्न-मुण्ड मुक्त कर दिया जाता है, तो प्लास्टिबेल शिश्न-मुण्ड के पर रखी जाती है और अग्र-त्वचा को प्लास्टिबेल पर रखा जाता है। इसके बाद हेमोस्टैसिस (hemostasis) प्राप्त करने के लिये अग्र-त्वचा पर एक मज़बूत बन्ध लगाया जाता है और इसे प्लास्टिबेल के खांचे में बांध दिया जाता है। पट्टी से सर्वाधिक अंतर पर स्थित अग्र-त्वचा को पूर्ण रूप से काट कर फेंक दिया जाता है और हैंडल को प्लास्टिबेल उपकरण से तोड़कर हटा दिया जाता है। घाव भर जाने पर, विशिष्ट रूप से चार से छः दिनों में, प्लास्टिबेल शिश्न से नीचे गिर जाता है।
  • एक गॉम्को कीलक (Gomco clamp) के साथ, त्वचा के एक भाग को एक हेमोस्टैट (hemostat) के साथ पृष्ठीय रूप से कुचला जाता है और फिर इसे कैंची से चीरते हैं। अग्र-त्वचा को कीलक के घंटी जैसे आकार वाले भाग के ऊपर लाया जाता है और कीलक की तली में स्थित एक छिद्र के माध्यम से प्रविष्ट किया जाता है। “अग्र-त्वचा को घंटी और आधार-प्लेट के बीच कुचलकर” कीलक को बांध दिया जाता है। कुचली हुई रक्त शिरायें हेमोस्टौसिस (hemostasis) प्रदान करती हैं। घंटी की चमकीली तली आधार-प्लेट के छिद्र में सख्ती से समा जाता है, ताकि आधार-प्लेट के ऊपर से अग्र-त्वचा को एक छुरी से काटा जा सके।
  • एक मॉगेन कीलक (Mogen clamp) के साथ, अग्र-त्वचा को एक सीधे हेमोस्टैट (hemostat) के साथ पृष्ठीय रूप से खींचा और फिर उठाया जाता है। इसके बाद मोगेन कीलक को शिश्न-मुण्ड और हेमोस्टैत के बीच, परिमण्डल के कोण का पालन करते हुए, सरकाया जाता है, ताकि गॉम्को या प्लास्टिबेल खतने की तुलना में “एक बेहतर कॉस्मेटिक परिणाम प्राप्त किया जा सके और पेट की ओर से अत्यधिक त्वचा को हटाने से बचा जा सके”। कीलक को बंद किया जाता है और कीलक के सपाट (ऊपरी) छोर से त्वचा को काटने के लिये एक छुरी का प्रयोग किया जाता है।

वयस्कों का खतना अक्सर कीलकों के बिना किया जाता है और ऑपरेशन के बाद 4-6 हफ्तों तक हस्तमैथुन या संभोग से परहेज करना आवश्यक होता है, ताकि घाव पूरी तरह ठीक हो जाए। कुछ अफ्रीकी देशों में पुरुषों का खतना अक्सर गैर-चिकित्सीय लोगों द्वारा जीवाणु-युक्त स्थितियों में किया जाता है। अस्पताल में हुए खतने के बाद, अग्र-त्वचा का प्रयोग जैव-चिकित्सीय अनुसंधान, उपभोक्ता त्वचा-संरक्षण (skin-care) उत्पादों, त्वचा पैबन्द, या β-इंटरफेरॉन-आधारित दवाइयों (β-interferon-based drugs) में किया जा सकता है। अफ्रीका के कुछ भागों में, अग्र-त्वचा ब्राण्डी में डुबोकर मरीज़ द्वारा व खतना करने वाले व्यक्ति द्वारा खाई जा सकती है या पशुओं को खिलाई जा सकती है। यहूदी कानून के अनुसार, ब्रिट मिलाह (Brit milah) के बाद अग्र-त्वचा को दफना दिया जाना चाहिये।

नैतिक, मनोवैज्ञानिक और कानूनी विचार

नैतिक मुद्दे

किसी अवयस्क व्यक्ति के शरीर से स्वस्थ, कार्यात्मक जननांग ऊतक हटाने को लेकर नैतिक प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। खतने के विरोधियों का तर्क है कि नवजात शिशुओं का खतना व्यक्तिगत स्वायत्तता .को भंग करता है और यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। हर्षित उल्ला नवाजुद्दी (भार्गव रिस्ट्राउंट लखनऊ) वाले ने हाल में ही खतना करवाया रेनी व अन्य (Rennie et al.) के अनुसार यह विवादास्पद है कि अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में स्थित उच्च प्रचलन व निम्न आय वाले देशों में खतना एचआईवी (HIV) की रोकथाम का एक तरीका है, लेकिन उनका तर्क है कि “इस महामारी के 25-वर्षों के इतिहास में एचआईवी (HIV) की रोकथाम की सर्वाधिक आशाजनक […] नई विधियों में से एक पर गंभीरतापूर्वक विचार न किया जाना अनैतिक होगा "।

सहमति

इस बारे में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं कि क्या किसी शिशु का खतने की देख-रेख करने वालों के लिये कोई सीमा निर्धारित की जानी चाहिये.

कुछ चिकित्सीय संगठनों की राय यह है कि ये बात अभिभावकों को तय करनी चाहिये कि नवजात बच्चे या शिशु के लिये क्या सबसे हितकर है, लेकिन रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ फिजिशियन्स (Royal Australasian College of Physicians) (आरएसीपी) (RACP) और ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन (British Medical Association) (बीएमए) (BMA) ने पाया है कि इस मुद्दे को लेकर विवाद है। बीएमए (BMA) के अनुसार सामान्यतः, "यह अभिभावकों को निर्धारित करना चाहिये कि उनकी संतान के हितों को किस तरह सर्वश्रेष्ठ रूप से प्रोत्साहित करना है और इस बात का निर्णय समाज को करना चाहिये कि अभिभावकों के चयन पर कौन-सी सीमाएं लादी जाएं." उनके अनुसार चूंकि कभी-कभी अभिभावकों के हित व बच्चों के हित भिन्न होते हैं, अतः “अभिभावकों के चयन के अधिकार पर कुछ सीमाएं हैं और अभिभावक ऐसी चिकित्सीय विधियों की माँग नहीं कर सकते, जो उनके शिशु के सर्वश्रेष्ठ हित के विपरीत हो." उनके अनुसार सक्षम बच्चे अपना निर्णय स्वयं ले सकते हैं। यूएनएड्स (UNAIDS) के अनुसार "[पु]रुष खतना एक स्वैच्छिक शल्य-चिकित्सीय पद्धति है और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अनिवार्य रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पुरुषों व युवकों को वह सारी आवश्यक जानकारी दी गई है, जो उन्हें खतने के समर्थन या विरोध का विकल्प चुनने के लिये एक मुक्त और जानकारीपूर्ण चयन कर पाने में सक्षम बनाए."

कुछ लोग तर्क देते हैं कि जिन चिकित्सीय समस्याओं के जोखिम को खतने के द्वारा कम किया जा सकता है, वे पहले ही दुर्लभ हैं, उनसे बचा जा सकता है और, यदि वे उत्पन्न हो जाएं, तो सामान्यतः खतने की तुलना में कम आक्रामक विधियों के द्वारा उनका उपचार किया जा सकता है। समरविल (Somerville) का कथन है कि किसी अवयस्क व्यक्ति के शरीर से स्वस्थ जननांग ऊतकों को हटाना अभिभावकों के विवेक पर आधारित नहीं होना चाहिये और जो चिकित्सक यह कार्य करते हैं, उनका आचरण मरीज़ के प्रति अपने नैतिक कर्तव्य के अनुरूप नहीं है। डेन्निस्टन (Denniston) कहते हैं कि खतना हानिकारक है और उनका दावा है कि व्यक्ति की सहमति के बिना, गैर-चिकित्सीय शिशु खतना चिकित्सा-क्षेत्र का संचालन करने वाले अनेक नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

अन्य लोगों का विश्वास है कि नवजात शिशुओं का खतना करने की अनुमति केवल तभी दी जा सकती है, यदि अभिभावक यह विकल्प चुनें। वीन्स (Viens) का तर्क है कि, सांस्कृतिक या धार्मिक संदर्भ में, खतने का महत्व पर्याप्त रूप से इतना लक्षणीय है कि अभिभावकों की सहमति इसके लिये पर्याप्त है और वर्तमान नीति में बदलाव का समर्थन करने के लिये “पर्याप्त प्रमाण या दृढ़ तर्कों का अभाव” है। बेनेटार व बेनेटार (Benatar and Benatar) का तर्क है कि अन्यथा अपनी सहमति दे पाने में सक्षम हो सकने से पूर्व खतना किसी पुरुष के लिये लाभदायक हो सकता है और यह कि “यह बात स्वाभाविकता से बहुत दूर है कि खतना यौन-आनंद को कम करता है,” और यह कि “यह बात स्पष्टता से बहुत दूर है कि गैर-खतना प्रत्येक क्षेत्र में एक भावी व्यक्ति के सभी विकल्प खुले रखता है।"

दर्द की स्वीकृति

विलियम्स (Williams) (2003) ने सुअरों की पूंछ काटे जाने पर उन्हें होने वाले दर्द और “खतना किये जाने के दौरान नर नवजात मानवों द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति हमारी सांस्कृतिक उदासीनता” के बीच एक साम्यानुमान विकसित करते हुए यह तर्क दिया कि संभवतः पशुओं (मनुष्यों सहित) द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति मानव दृष्टिकोण प्रजातिवाद (speciesism) पर आधारित नही होता।

मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक परिणाम

ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन (British Medical Association) (2006) के अनुसार "अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जा चुक है, बीएमए (BMA) द्वारा भी, कि इस शल्य-चिकित्सीय पद्धति में चिकित्सीय व मनोवैज्ञानिक खतरे हैं।" माइलोस (Milos) व मैक्रिस (Macris) (1992) का तर्क है कि खतना जन्मजात मस्तिष्क को कूटबद्ध करता है और नकारात्मकता नवजात शिशु व माता के बीच संबंध और विश्वास को प्रभावित करती है। गोल्डमैन (Goldman) (1999) ने बच्चों और अभिभावकों पर खतने के कारण होने वाले संभावित आघात, खतने के बाद वाली अवस्था को लेकर होने वाली चिंताओं, आघात को दोहराने की प्रवृत्ति आदि पर चर्चा की और इस बात की आवश्यकता का सुझाव दिया कि जिन चिकित्सकों का खतना हो चुका है, वे इस पद्धति के लिये चिकित्सीय समर्थन की खोज करें। इसके अतिरिक्त, इस बात की खबरें भी हैं कि पुरुषों ने अग्र-त्वचा की पुनर्प्राप्ति की पद्धति के प्रयोग द्वारा खतने के प्रभावों को रद्द करने का प्रयास भी किया है। हालांकि मोज़ेज़ व अन्य (Moses et al.) (1998) एक देशांतरीय अध्ययन, जिसमें कोई भी विकासात्मक या व्यवहारात्मक सूचकांक प्राप्त नहीं हुए, का उल्लेख करते हुए कहा कि मनोवैज्ञानिक तथा भावनात्मक नुकसान की पुष्टि करनेवाला “वैज्ञानिक प्रमाण अनुपलब्ध” है। गेरहार्ज़ तथा हारमैन (Gerharz and Haarmann) (2000) द्वारा की गई एक साहित्यिक समीक्षा भी इसी प्रकार के नतीजे पर पहुंची। बॉयल व अन्य (Boyle et al.) (2002) ने फिलिपीनो लड़कों में रस्मी या चिकित्सीय खतने के बाद पीटीएसडी (PTSD) की उच्च दरों की खबर देने वाले एक अध्ययन का उल्लेख करते हुए कहा कि खतने के मनोवैज्ञानिक नुकसान हो सकते हैं, जिसमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (post-traumatic stress disorder) (पीटीएसडी) (PTSD) शामिल है। हिर्जी व अन्य (Hirji et al.) (2005) के अनुसार “मनोवैज्ञानिक आघात की खबरें […] अध्ययनों ने जन्म नहीं दिया, लेकिन वे चिंता का एक उपाख्यानात्मक कारण बनी हुई हैं।"

कानूनी मुद्दे

2001 में, स्वीडन ने एक कानून पारित किया, जो केवल नैशनल बोर्ड ऑफ हेल्थ (National Board of Health) द्वारा प्रमाणित व्यक्तियों को ही नवजात शिशुओं का खतना करने की अनुमति देता है, खतना करने वाले व्यक्ति के साथ एक चिकित्सा विशेषज्ञ अथवा असंवेदनता परिचारिका का होना तथा खतना करने से पूर्व असंवेदक का प्रयोग करना आवश्यक बनाता है। स्वीडन में रहने वाले यहूदियों व मुसलमानों मे इस कानून पर अपनी आपत्ति दर्ज की, और 2001 में, वर्ल्ड ज्यूइश कांग्रेस (World Jewish Congress) ने कहा कि “यह नाज़ी युग के बाद यूरोप में यहूदी धार्मिक विधियों पर पहला कानूनी प्रतिबंध” था। 2005 में, स्वीडन के नैशनल बोर्ड ऑफ हेल्थ एण्ड वेलफेयर (National Board of Health and Welfare) ने इस कानून की समीक्षा की और इसे जारी रखने की अनुशंसा की। 2006 में, स्वीडन के बारे में अमरीकी स्टेट डिपार्टमेंट (U.S. State Department) की रिपोर्ट ने कहा कि इस कानून के अंतर्गत अधिकांश यहूदी मोहेल प्रमाणित किये गये थे और 3000 मुस्लिम व 40-50 यहूदी लड़कों का खतना प्रतिवर्ष किया जाता था।

2006 में, फिनलैंड की एक अदालत ने पाया कि अपने चार वर्ष आयु के पुत्र का खतना करवाने का एक अभिभावक द्वारा किया गया कार्य गैरकानूनी था। हालांकि, अदालत ने कोई सज़ा नहीं सुनाई और 2008 में फिनलैंड के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उस कार्य के लिये इस मां पर कोई आपराधिक प्रकरण नहीं बनता और धार्मिक कारणों के किसी बच्चे का किया गया खतना, यदि ठीक ढंग से किया जाए तो, कोई अपराध नहीं है। 2008 में, बताया गया कि फिनलैंड की सरकार एक नए कानून पर विचार कर रही थी, जिसके द्वारा यदि खतना किसी चिकित्सक द्वारा, “अभिभावकों की इच्छा और बच्चे की सहमति से” किया गया हो, तो इसे कानूनी मान्यता प्राप्त हो, जैसा कि बताया गया।

2007 तक, विक्टोरिया, न्यू साउथ वेल्स, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और तस्मानिया के ऑस्ट्रेलियाई राज्यों ने सभी सार्वजनिक चिकित्सालयों में गैर-चिकित्सीय खतने का प्रचलन रोक दिया था।

चिकित्सीय पहलू

खतने के चिकित्सीय लागत-लाभ विश्लेषण विविधतापूर्ण रहे हैं। कुछ में खतने का थोड़ा शुद्ध लाभ पाया गया है, कुछ में थोड़ी गिरावट देखी गई और एक ने पाया कि इसके लाभों और खतरों ने एक दूसरे को संतुलित कर दिया और सुझाव दिया कि निर्णय “सर्वाधिक तर्कपूर्ण रूप से गैरचिकित्सीय कारकों के आधार पर लिया जा सकता है”।

दर्द और दर्द निवारण

खतना 
10 बजे और 2 बजे 1 प्रतिशन लिग्नोकेन का इंजेक्शन

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियैट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) के 1999 के खतना नीति वक्तव्य (Circumcision Policy Statement) के अनुसार, "इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि जिन नवजात शिशुओं का खतना पीड़ाशून्यता के बिना किया जाता है, वे दर्द और शारीरिक तनाव का अनुभव करते हैं।" अतः खतने के लिये दर्द निवारक के प्रयोग की अनुशंसा की गई है। सहायक अध्ययनों में से एक, टैडियो 1997 (Taddio 1997), ने खतने और महीनों बाद होने वाले टीकाकरण के बीच दर्द के प्रति प्रतिक्रिया में एक संबंध की खोज की। यह स्वीकार करते हुए कि खतने के अतिरिक्त ऐसे “अन्य कारक” भी हो सकते हैं, जो दर्द के प्रति प्रतिक्रिया के बिभिन्न स्तरों का कारण बनते हैं, उन्होंने कहा कि उन्हें इनका कोई प्रमाण नहीं मिला. उनका निष्कर्ष है कि “इन परिणामों के आधार पर नवजात शिशुओं को खतने के दौरान होने वाले दर्द का पूर्वोपचार और कार्योत्तर प्रबंधन की अनुशंसा की गई है।" अन्य चिकित्सा संगठन भी ऐसे प्रमाण का उल्लेख करते हैं कि असंवेदक के बिना किया गया खतना दर्दनाक होता है।

स्टैंग (Stang), 1998, ने पाया कि खतना करने वाले चिकित्सकों में से 45% ने एक सर्वेक्षण के दौरान बताया कि नवजात शिशुओं का खतना करते समय वे असंवेदनता- सबसे आम तौर पर एक पृष्ठीय जननांग शिरा अवरोध– का प्रयोग करते हैं। इस सर्वेक्षण में प्रयुक्त प्रसूति-विज्ञानियों द्वारा असंवेदनता के प्रयोग का प्रतिशत (25%) पारिवारिक चिकित्सकों (56%) या शिशु-रोग विशेषज्ञों (71%) की तुलना में कम था। हॉवर्ड व अन्य (Howard et al.) (1998) ने अमरीकी चिकित्सा विशेषज्ञों के निवासी कार्यक्रमों व निदेशकों का सर्वेक्षण किया और पाया कि खतने की पद्धति का प्रशिक्षण देने वाले कार्यक्रमों में से 26% “इस विधि के लिये असंवेदक/पीड़ाशून्यता के निर्देश प्रदान करने में विफल रहे थे” और यह अनुशंसा की कि “नवजात शिशुओं के खतने के निवासी प्रशिक्षण में दर्द निवारक तकनीकों के निर्देश शामिल किये जाने चाहिये"। 2006 में किये गये एक अनुवर्ती अध्ययन से यह उजागर हुआ कि खतने का प्रशिक्षण देने वाले ऐसे संस्थानों, जो सामयिक तथा स्थानीय असंवेदक के प्रशासन का प्रशिक्षण भी देते थे, की संख्या बढ़कर 97% हो गई थी। हालांकि, इस अनुवर्ती अध्ययन के लेखकों ने यह भी लिखा है कि इन कार्यक्रमों में से 84% असंवेदक का प्रयोग “अक्सर या हमेशा” इस विधि के दौरान करते थे।

ग्लास (Glass), 1999, के अनुसार यहूदी रस्मी खतना इतना शीघ्र होता है कि “अधिकांश मोहेलिम नियमित रूप से किसी भी असंवेदक का प्रयोग नहीं करते क्योंकि वे महसूस करते हैं कि नवजात शिशुओं में संभवतः इसकी कोई आवश्यकता ही नहीं है।" ग्लास (Glass) ने आगे कहा, "हालांकि यहूदी विधि संग्रह में कोई आपत्ति नहीं है और यदि अभिभावक स्थानीय असंवेदक क्रीम लगाए जाने की इच्छा रखते हों, तो ऐसा न किए जाने का कोई कारण नहीं है।" ग्लास (Glass) ने यह भी कहा कि बड़ी आयु के बच्चों और वयस्कों के लिये, एक जननांग अवरोध का प्रयोग किया जाता है। 2001 में स्वीडिश सरकार ने एक कानून पारित किया, जिसके अनुसार एक ब्रिस (bris) करवा रहे सभी लड़कों को किसी पेशेवर चिकित्सिक की देखरेख में असंवेदक दिया जाना आवश्यक था।

लैंडर व अन्य (Lander et al.) ने प्रदर्शित किया कि जिन शिशुओं का खतना असंवेदक के बिना किया गया हो उन्होंने दर्द और कष्ट के व्यवहारात्मक व शारीरिक लक्षण दर्शाये। दर्द नियंत्रण की पृष्ठीय जननांग शिरा अवरोध और एम्ला (EMLA) (लाइडोकैन (lidocaine)/प्राइलोकैन (prilocaine) सामयिक क्रीम के बीच तुलना से यह उजागर हुआ कि जबकि दोनों विधियां सुरक्षित हैं, सामयिक उपचारों की तुलना में पृष्ठीय शिरा अवरोध अधिक प्रभावी रूप से दर्द को नियंत्रित करता है, लेकिन दोनों ही विधियां दर्द को पूरी तरह नहीं मिटातीं। राज़मस व अन्य (Razmus et al.) के अनुसार उन नवजात शिशुओं को सबसे कम दर्द हुआ, जिनका खतना पृष्ठीय अवरोध (dorsal block) व चक्रीय अवरोध (ring block) तथा सान्द्र मौखिक सुक्रोज़ के संयोजन के साथ हुआ था। एनजी व अन्य (Ng et al.) ने पाया कि एम्ला (EMLA) क्रीम, स्थानीय असंवेदक के साथ, सुई चुभोने पर होने वाले तीक्ष्ण दर्द को प्रभावी रूप से कम करती है।

यौन प्रभाव

खतने के यौन प्रभाव बहुत अधिक विवाद का कारण रहे हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) का निष्कर्ष यह है कि खतना-युक्त एक वयस्क पुरुष की स्वतः-रिपोर्ट में संवेदनशीलता और यौन संतुष्टि के संदर्भ में संदिग्ध प्रमाणों के साथ कम यौन दुष्क्रिया और अधिक विविधतापूर्ण यौन पद्धतियां थीं। इसके विपरीत 2002 में बॉयल व अन्य (Boyle et al.) द्वारा की गई एक समीक्षा के अनुसार “जननेंद्रिय के संदर्भ में अविकल पुरुष के शरीर में हज़ारों सूक्ष्म स्पर्श अभिग्राहक तथा अन्य अत्यधिक कामोत्तेजक शिराओं के छोर होते हैं-जिनमें से अनेक खतने के कारण नष्ट हो जाते हैं, जिसके कारण खतना-युक्त पुरुष द्वारा अनुभव किये जाने वाली यौन संवेदना में एक अपरिहार्य कमी आती है।" उनका निष्कर्ष है कि, "प्रमाण ने यह संग्रहित करना भी शुरु कर दिया है कि पुरुष खतने का परिणाम जीवन भर के लिये शारीरिक, यौन तथा कभी-कभी मनोवैज्ञानिक हानि के रूप में भी मिल सकता है।" जनवरी 2007 में, द अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमिली फिज़िशियन्स (The American Academy of Family Physicians) (एएएफपी) (AAFP) ने कहा कि "जननेंद्रिय की संवेदना या यौन संतुष्टि पर खतने का प्रभाव अज्ञात है। ऐसा इसलिये क्योंकि खतना-युक्त शिश्न-मुण्ड की उपकला बन जाती है और चूंकि कुछ लोगों को लगता है कि नसों की अति-उत्तेजना के कारण संवेदना में कमी आती है, अतः बहुत से लोगों का विश्वास है कि खतना-युक्त शिश्न का शिश्न-मुण्ड कम संवेदनशील होता है। [...] हालांकि, अभी तक प्राप्त कोई भी वैध प्रमाण इस धारणा का समर्थन नहीं करता कि खतना करवाने से यौन संवेदना या संतुष्टि प्रभावित होती है।" पायने व अन्य (Payne et al.) ने बताया कि यौन उत्तेजना के दौरान दण्ड व शिश्न-मुण्ड में जननेंद्रिय की संवेदनशीलता का प्रत्यक्ष मापन खतने की अवस्था से जुड़े काल्पनिक संवेदना अंतरों का समर्थन कर पाने में विफल रहा। 2007 के एक अध्ययन में, सॉरेल्स व अन्य (Sorrells et al.) ने, एकल-तन्तु स्पर्ष-परीक्षण मानचित्रण (monofilament touch-test mapping) का प्रयोग करके, यह पाया कि अग्रत्वचा में शिश्न के सर्वाधिक संवेदनशील भाग होते हैं और इस बात का उल्लेख किया कि खतने के कारण ये भाग नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने यह भी पाया कि "खतना किये हुए शिश्न का शिश्न-मुण्ड खतना न किये हुए शिश्न के शिश्न-मुण्ड की तुलना में सूक्ष्म-स्पर्श के प्रति असंवेदनशील होता है।" 2008 के एक अध्ययन में, क्रीगर व अन्य (Krieger et al.) ने कहा कि "वयस्क पुरुष खतने का यौन दुष्क्रिया से संबंध नहीं था। खतना किये हुए पुरुषों ने जननांग की बढ़ी हुई संवेदनशीलता तथा चरम बिंदु पर पहुंचने की सरलता में वृद्धि की जानकारी दी."

उत्थानक्षमता-संबंधी दुष्क्रिया पर खतने के प्रभाव का वर्णन करने वाली रिपोर्ट मिश्रित रही है। अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि खतना किये हुए पुरुषों में खतने का परिणाम एक उत्थानक्षमता-संबंधी दुष्क्रिया में एक लक्षणीय बढ़त, या गिरावट, के रूप में मिल सकता है, जबकि अन्य अध्ययनों ने दर्शाया है कि ये प्रभाव बहुत कम होता है या बिल्कुल भी नहीं होता।

जटिलताएं

0.06% से 55% की जटिलता दरों का उल्लेख किया गया है; अधिक विशिष्ट आकलनों में 2-10% और 0.2-0.6% शामिल किये गये हैं।

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) (एएमए) (AMA) के अनुसार, रक्त की हानि और संक्रमण सबसे आम जटिलताएं हैं, लेकिन अधिकतर रक्त-स्राव बहुत कम होता है और इसे दबाव के द्वारा रोका जा सकता है। 1983 में कैप्लान (Kaplan) द्वारा खतने की जटिलताओं पर किये गये एक सर्वेक्षण से यह उजागर हुआ कि रक्त-स्राव संबंधी जटिलताओं की दर 0.1% और 35% के बीच थी। 1999 में नाइजीरिया में किये गये 48 लड़कों, जिनमें पारंपरिक पुरुष खतने संबंधी जटिलताएं थीं, के अध्ययन में यह पाया गया कि इनमें से 52% लड़कों में रक्त-स्राव हुआ, 21% में संक्रमण हुआ और एक बच्चे का शिश्न काट दिया गया।

खतना 
खतनायुक्त शिश्न.

वॉशिंगटन स्टेट में 1987-1996 के बीच जन्मे 354,297 शिशुओं पर किये गये एक अध्ययन ने यह पाया कि जन्म के तुरंत बाद उत्पन्न होने वाली जटिलताओं की दर खतना किये गये शिशुओं में 0.2% और खतना न किये गये शिशुओं में 0.01% थी। लेखकों ने यह निर्णय दिया कि यह एक रूढ़िवादी आकलन था क्योंकि इसने खतने से जुड़ी अत्यंत दुर्लभ लेकिन गंभीर विलंबित जटिलताओं (उदा. नेक्रोटाइज़िंग फैसिटिस (necrotizing fasciitis), सेल्युलिटिस (cellulites) तथा कम गंभीर लेकिन अधिक आम जटिलताओं जैसे खतने से होने वाले दाग़ या आदर्श से कम कॉस्मेटिक परिणाम को ग्रहण नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा कि खतने से उत्पन्न होने वाले जोखिम “अधिक अनुभवी चिकित्सक के हाथों कम हो जाते हैं "।

मीटल स्टेनॉसिस (Meatal stenosis) (मूत्रमार्ग का संकीर्ण हो जाना) खतने के कारण उत्पन्न होने वाली एक लंबी अवधि की जटिलता हो सकती है। ऐसा विश्वास है कि चूंकि अब अग्र-त्वचा शिश्न-नलिका की रक्षा नहीं करती, अतः बच्चों की गीली लंगोट में मूत्र से निर्मित अमोनिया के कारण मूत्रमार्ग के खुले द्वार में जलन और उत्तेजना होती है। मीटल स्टेनॉसिस (Meatal stenosis) के परिणामस्वरूप मूत्रत्याग में असुविधा, असंयम, मूत्रत्याग के बाद रक्त-स्राव और मूत्र-तंत्र में संक्रमण हो सकते हैं।

खतने के द्वारा बहुत अधिक या बहुत कम त्वचा को हटा दी जाना संभव है। यदि अपर्याप्त त्वचा हटाई गई है, तो इसके बावजूद भी शिशु भावी जीवन में फिमॉसिस (phimosis) विकसित कर सकता है। वैन होवे (Van Howe) के अनुसार “जब किसी शिशु के शिश्न पर कार्य किया जा रहा हो, तो शल्य-चिकित्सक हटाए जाने वाले ऊतकों की मात्रा का पर्याप्त रूप से निर्धारण नहीं कर सकता क्योंकि बच्चे की आयु बढ़ने पर उसके शिश्न में इतने लक्षणीय परिवर्तन आएंगे कि शल्य-चिकित्सा के दौरान एक छोटा-सा अंतर खतना-युक्त वयस्क शिश्न में एक बड़े अंतर में रूपांतरित हो जाएगा. अभी तक (1997), ऐसे कोई अध्ययन प्रकाशित नहीं हुए हैं, जो खतना करने वाले किसी व्यक्ति की इस बात का पूर्वानुमान लगा पाने की क्षमता को दर्शाते हों कि शिश्न भविष्य में कैसा दिखाई देगा."

कैथकार्ट व अन्य (Cathcart et al.) के अनुसार 0.5% लड़कों का दोबारा खतना करने की आवश्यकता पड़ी।

अन्य जटिलताओं में छिपा हुआ शिश्न, मूत्रीय फिस्ट्युलस (urinary fistulas), कॉर्डी (chordee), पुटी, लिम्फेडेमा (lymphedema), शिश्न-मुण्ड पर फोड़े, पूरे शिश्न या इसके किसी भाग में ऊतकक्षय, हाइपोस्पेडियास (hypospadias), एपिस्पेडियास (epispadias) व नपुंसकता शामिल हैं। कैप्लान ने कहा कि "वास्तव में इनमें से सभी जटिलताओं की रोकथाम बहुत थोड़ी सतर्कता के द्वारा भी कर पाना संभव है " और "ऐसी अधिकांश जटिलताएं अनुभवहीन प्रचालकों के हाथों होती हैं, जो न तो मूत्र-विज्ञानी होते हैं और न ही शल्य-चिकित्सक."

नवजात शिशुओं में खतने से उत्पन्न होने वाली एक अन्य जटिलता त्वचा-पुल का निर्माण (skin bridge formation) है, जिसके द्वारा अग्रत्वचा का शेष भाग घाव भर जाने पर शिश्न के अन्य भागों (अक्सर शिश्न-मुण्ड) के साथ मिल जाता है। इसके परिणामस्वरूप शिश्न में उत्तेजना के दौरान दर्द हो सकता है और यदि शिश्न-दण्ड की त्वचा को बलपूर्वक खींचा जाए, तो थोड़ा रक्त-स्राव हो सकता है। वैन होवे (Van Howe) की सलाह है कि खतने के बाद चिपचिपे पदार्थों के निर्माण को रोकने के लिये, अभिभावकों को शिश्न-मुण्ड को ढ़ंकने वाली किसी भी त्वचा को पीछे हटाने और साफ करने के निर्देश दिये जाने चाहिये।

हालांकि मृत्यु होने के समाचार भी मिले हैं, लेकिन अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमिली फिज़िशियन्स (American Academy of Family Physicians) कहती है कि मृत्यु की घटनाएं दुर्लभ हैं और इस बात क उल्लेख करती है कि खतने से होने वाली नवजात शिशुओं की मृत्यु-दर 500,000 में से 1 है। 2010 में, बोलिंगर (Bollinger) ने अनुमान लगाया कि संयुक्त राज्य अमरीका में मृत्यु-दर 9.01 प्रति 100,000, अथवा 117 प्रतिवर्ष है। गैर्डनर (Gairdner) द्वारा 1949 में किये गये एक अध्ययन में यह बताया गया कि यूके (UK) में खतने के बाद प्रतिवर्ष लगभग 90,000 में से औसतन 16 बच्चों की मृत्यु हो जाती थी। उन्होंने पाया कि अधिकांश मौतें असंवेदक के अंतर्गत अचानक होती थीं और उनकी अधिक व्याख्या कर पाना संभव नहीं है, लेकिन रक्त-स्राव और संक्रमण भी घातक सिद्ध हुए थे। फिमॉसिस (phimosis) और खतने के कारण हुई मौतों को एक ही समूह में रखा गया था, लेकिन गैर्डनर (Gairdner) ने तर्क दिया कि ऐसी मौतें संभवतः खतने के संचालन के कारण हुईं। विसवेल (Wiswell) और गेश्के (Geschke) ने बताया कि 100,157 खतनों के बाद पहले महीने में कोई मृत्यु नहीं हुई (खतना न किये हुए 35,929 लड़कों में से दो की मृत्यु के विपरीत); उन्होंने यह भी बताया कि अमरीकी सेना में हुए 300,000 लोगों के खतने और टेक्सास में खतना किये हुए 650,000 लड़कों की एक पृथक श्रृंखला में भी किसी की मृत्यु नहीं हुई थी। किंग (King) ने जानकारी दी कि खतना किये हुए 500,000 लोगों में से किसी की मृत्यु नहीं हुई थी। ऐसा अनुमान है कि खतने की 1,000,000 घटनाओं में से 1 व्यक्ति को अपना शिश्न गंवाना पड़ा।

यौन-संबंधों के द्वारा प्रसारित रोग

मानव प्रतिरक्षान्यूनता जीवाणु

खतने और एचआईवी (HIV) संक्रमण के बीच संबंध की खोज करने के लिये चालीस से अधिक अवलोकनात्मक अध्ययन किये जा चुके हैं। इन अध्ययनों के समीक्षक इस बारे में भिन्न-भिन्न निष्कर्षों पर पहुंचे हैं कि क्या खतने का प्रयोग एचआईवी (HIV) की रोकथाम की एक विधि के रूप में किया जा सकता है।

खतने की कमी और एचआईवी (HIV) के बीच एक सामान्य संबंध स्थापित करने के लिये प्रयोगात्मक प्रमाण की आवश्यकता थी, अतः भ्रमित करने वाले किन्हीं कारकों के प्रभाव को कम करने के एक माध्यम के रूप में तीन यादृच्छिक रूप से नियंत्रित परीक्षण किये गये। ये परीक्षण दक्षिण अफीका, केन्या और युगाण्डा में हुए। तीनों परीक्षणों को उनके संचालक मण्डलों द्वारा नैतिक आधारों पर बीच में ही रोक दिया गया क्योंकि खतना किये हुए व्यक्तियों के समूह में शामिल लोगों की एचआईवी (HIV) दर नियंत्रण समूह के लोगों से कम थी। इन परिणामों ने यह दर्शाया कि खतने ने योनि-से-शिश्न में होने वाले एचआईवी (HIV) संक्रमण को क्रमशः 60%, 53% और 51% घटाया। यादृच्छिक रूप से नियंत्रित अफ्रीकी परीक्षणों के एक मेटा-विश्लेषण ने पाया कि खतना किये हुए पुरुषों में संक्रमण का खतरा खतना न किये हुए पुरुषों की तुलना में 0.44 गुना था और यह कि एक एचआईवी (HIV) संक्रमण को रोकने के लिये 72 खतनों की आवश्यकता होगी। लेखकों ने यह भी कहा कि एचआईवी (HIV) संक्रमण के खतरे को कम करने के एक माध्यम के रूप में खतने का प्रयोग करते हुए, एक राष्ट्रीय स्तर पर, लगातार सुरक्षित यौन पद्धतियों की आवश्यकता होगी, ताकि सुरक्षात्मक लाभों को बनाए रखा जा सके।

इन खोजों के परिणामस्वरूप, डब्ल्यूएचओ (WHO) तथा एचआईवी (HIV)/एड्स (AIDS) पर जॉइन्ट यूनाइटेड नेशन्स प्रोग्राम (Joint संयुक्त राष्ट्र Programme) (यूएनएड्स) (UNAIDS) ने कहा कि पुरुषों का खतना एचआईवी (HIV) की रोकथाम का एक प्रभावी माध्यम है, लेकिन यह केवल सुप्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों द्वारा तथा सूचित सहमति के अंतर्गत ही किया जाना चाहिये। डब्ल्यूएचओ (WHO) व सीडीसी (CDC) दोनों ही इस बात की संभावना की ओर सूचित करते हैं कि खतना पुरुषों से महिलाओं में एचआईवी (HIV) के संक्रमण को न रोकता हो और उन पुरुषों की संक्रमण दर के संबंध में जानकारी उपलब्ध नहीं है, जो अपनी महिला साथी के साथ गुदा-मैथुन करते हैं। डब्ल्यूएचओ (WHO)/यूएनएड्स (UNAIDS) की संयुक्त अनुशंसा में यह भी कहा गया है कि खतना एचआईवी (HIV) से केवल आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और एचआईवी (HIV) की रोकथाम की ज्ञात विधियों को कभी भी इसके द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिये। डब्ल्यूएचओ (WHO), यूएनएड्स (UNAIDS), एफएचआई (FHI) तथा एवीएसी (AVAC) द्वारा मेल सर्कमसिशन क्लीयरिंगहाउस (Male Circumcision Clearinghouse) वेबसाइट का निर्माण किया गया था, ताकि जो देश एचआईवी (HIV) की रोकथाम के लिये दी जानी वाली सेवाओं के एक घटक के रूप में पुरुष खतने में वृद्धि करने का निर्णय लें, उनमें सुरक्षित पुरुष खतना सेवाओं की सुपुर्दगी का समर्थन करने के लिये वर्तमान प्रमाणों पर आधारित मार्गदर्शन, जानकारी व संसाधन प्रदान किये जा सकें।

डब्ल्यूएचओ (WHO) ने खतने को जनसंख्या के एक समूह में एचआईवी (HIV) के प्रसार को कम करने की एक लागत-प्रभावी विधि करार दिया है, हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि यह कंडोम से अधिक लागत-प्रभावी हो। कुछ लोगों ने यादृच्छिक रूप से नियंत्रित अफ्रीकी परीक्षणों की वैधता को चुनौती दी है, जिससे अनेक अनुसंधानकर्ता एचआईवी (HIV) की रोकथाम की एक रणनीति के रूप में खतने की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाने को प्रेरित हुए हैं।

महिलाओं-से-पुरुषों में होने वाले संक्रमण के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले इन अध्ययनों के अतिरिक्त, कुछ अध्ययनों ने संक्रमण के अन्य मार्गों पर भी ध्यान दिया है। युगांडा में किये गये एक यादृच्छिक नियंत्रण परीक्षण ने यह पाया कि पुरुष खतना पुरुषों से महिलाओं में होने वाले एचआईवी (HIV) के संक्रमण को कम नहीं करता.लेखक इस बात की संभावना को नकार नहीं सके कि जो पुरुष घाव के पूरी तरह भरने की प्रतीक्षा किये बिना ही यौन-क्रिया में भाग लेने लगते हैं, उनके द्वारा संक्रमण होने का जोखिम अधिक होता है। पुरुषों के साथ यौन-संबंध बनानेवाले पुरुषों के पंद्रह अवलोकनात्मक अध्ययनों के एक मेटा-विश्लेषणों को “इस बात के अपर्याप्त प्रमाण प्राप्त हुए कि पुरुषों का खतना एचआईवी (HIV) संक्रमण या अन्य एसटीआई (STI) के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।"

मानव पैपिलोमा जीवाणु

वैन होवे (Van Howe) तथा बॉश व अन्य (Bosch et al.) द्वारा किया गया अवलोकनात्मक अध्ययनों का मेटा-विश्लेषण इस बारे में भिन्न-भिन्न निष्कर्षों पर पहुंचा कि क्या खतना ह्युमन पैपिलोमा वायरस (human papilloma virus) (एचपीवी) (HPV) के संक्रमण को कम करता है। युगांडा में किये गये एक हालिया प्रत्याशित परीक्षण में 3393 व्यक्तियों को खतने या एक नियंत्रण समूह के रूप में यादृच्छिक रूप से रखा और खतने वाले समूह में एचपीवी (HPV) संक्रमण में एक लक्षणीय कमी देखी गई। 24 माह बाद की गई एक अनुवर्ती जांच में, नियंत्रण समूह में उच्च-जोखिम वाले एचपीवी (HPV) जीनोटाइप का प्रचलन 27.9% था, जबकि खतना समूह में यह केवल 18.0% प्रचलित था (समायोजित उच्च जोखिम अनुपात, 0.65; 95% सीआई (CI), 0.46 से 0.90; पी (P) =0.009). ऑवेर्ट व अन्य (Auvert et al.) द्वारा ऑरेंज फार्म, दक्षिण अफ्रीका में किये गये एक अन्य हालिया अध्ययन में, पुरुषों को खतने या नियंत्रण समूह में यादृच्छिक रूप से रखा गया। 21 माह बाद किये गये निरीक्षण में पाया गया कि बताए गए यौन-व्यवहार में या गोनोरा (gonorrhea) के प्रचलन में किसी भी अंतर की अनुपस्थिति में खतना किये हुए पुरुषों में उच्च-जोखिम एचपीवी (HPV) का प्रचलन खतना न किये हुए मरीजों की तुलना में कम था (क्रमशः 14.8% and 22.3%, 0.66 का प्रचलन दर अनुपात)।

दो अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि खतना किये हुए पुरुषों ने बताया, या यह पाया गया कि उनमें खतना न किये हुए पुरुषों की तुलना में जननांगों पर मस्से का प्रचलन उच्च था; हालांकि, 2009 में अनेक अध्ययनों के मेटा-विश्लेषण ने पाया कि जननांगों पर होने वाले मस्सों और अग्र-त्वचा की उपस्थिति के बीच लक्षणीय संबंध नहीं है।

यौन-संबंधों के द्वारा प्रसारित अन्य संक्रमण

यौन-संबंधों द्वारा प्रसारित अन्य संक्रमणों की घटनाओं पर खतने के प्रभाव का मूल्यांकन करने वाले अध्ययन परस्पर-विरोधी परिणामों पर पहुंचे हैं। छब्बीस अध्ययनों से प्राप्त अवलोकनात्मक डेटा के मेटा-विश्लेषण ने यह पाया कि खतने का संबंध सिफिलिस (syphilis), कैन्क्रॉइड (chancroid) और संभवतः जननांग परिसर्प की निम्न दरों से है। युगांडा में किये गये एक बड़े यादृच्छिक प्रत्याशित परीक्षण ने अध्ययन के खतने वाले भाग में एचएसवी-2 (HSV-2) संक्रमण में एक कमी की खोज की, लेकिन सिफिलिस के संक्रमण में नहीं। इसके विपरीत, कुछ अध्ययन खतने के रोगनिरोधक लाभ ढूंढ पाने में विफल रहे हैं। भारत में किये गये एक प्रत्याशित परीक्षण ने पाया कि खतना हर्पस सिम्प्लेक्स वायरस टाइप 2 (herpes simplex virus type-2), सिफिलिस (syphilis) या गोनोरा (gonorrhea) के खिलाफ कोई रक्षात्मक लाभ प्रदान नहीं करता। युगांडा, ज़िम्बाब्वे और थाईलैंड की 5,925 महिलाओं के एक चिकित्सीय अध्ययन में यह पता चला कि उनके साथी के खतने की अवस्था क्लैमाइडिया (Chlamydia), गोनोरा (gonorrhea) या ट्राइकोमोनियेसिस (trichomoniasis) की घटनाओं को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित नहीं करती। लौमैन व अन्य (Laumann et al.) ने संयुक्त राज्य अमरीका से मिले अवलोकनात्मक डेटा का परीक्षण किया और उन्हें खतना किये हुए व खतना न किये हुए पुरुषों में यौन-जनित रोगों के संकुचन की उनकी संभावना में कोई लक्षणीय अंतर प्राप्त नहीं हुआ।

स्वास्थ्य-विज्ञान, संक्रमण और दीर्घकालीन स्थितियां

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडीयाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) (1999) ने कहा: "मिस्र के राजवंशों के काल से ही शिश्न के स्वास्थ्य-विज्ञान को बनाए रखने की एक प्रभावी विधि के रूप में खतना करने का सुझाव दिया जाता रहा है, लेकिन इस बात के बहुत कम प्रमाण उपलब्ध हैं कि खतने की अवस्था और शिश्न के इष्टतम स्वास्थ्य-विज्ञान के बीच कोई संबंध है।"

शिश्न-मुण्ड और अग्रत्वचा में होने वाली जलन को बैलानोपोस्थाइटिस (balanoposthitis) कहा जाता है; केवल शिश्न-मुण्ड को प्रभावित करने वाली जलन बैलेनाइटिस (balanitis) कहलाती है। सामान्यतः दोनों ही स्थितियों का उपचार सामयिक एंटीबायोटिक (मेट्रोनाइडेज़ोल क्रीम) तथा एंटीफंगल (क्लॉट्राइमेज़ॉल क्रीम) या निम्न-शक्ति वाली स्टेरॉइड क्रीम द्वारा किया जाता है। हालांकि पहले की तरह अब ऐसा आवश्यक नहीं है, लेकिन पुनरावर्ती या प्रतिरोधी मामलों में खतना करने पर विचार किया जा सकता है। एस्काला (Escala) और रिकवुड (Rickwood) बैलेनाइटिस से बचने के लिये नवजात शिशुओं के नियमित खतने की एक नीति के विरुद्ध यह कहते हुए अनुशंसा करते हैं कि यह स्थिति 4% से अधिक लड़कों को प्रभावित नहीं करती, रोगात्मक फिमॉसिस उत्पन्न नहीं करती और अधिकांश मामलों में गंभीर नहीं होती।

फर्ग्युसन (Fergusson) ने 500 लड़कों का अध्ययन किया और पाया कि आठवें वर्ष तक आते-आते, खतना किये हुए बच्चों में 11.1 समस्याएं प्रति 100 बच्चे की दर थी और खतना न किये हुए बच्चों में 18.8 प्रति 100 की दर थी। शैशवास्था के दौरान, खतना किये हुए बच्चों में समस्याओं का जोखिम खतना न किये हुए बच्चों की तुलना में लक्षणीय रूप से उच्च था, लेकिन शैशवास्था के बाद जननांग-संबंधी समस्याओं की दर खतना न किये हुए बच्चों में लक्षणीय रूप से उच्च थी। फर्ग्युसन व अन्य (Fergusson et al.) ने कहा कि जननांग संबंधी समस्याओं का एक बड़ा बहुमत अपेक्षाकृत गौण थी (बैलेनाइटिस, मीटाइटिस सहित जननांग में जलन और खलड़ी में जलन) और अधिकांश (64%) को एक ही चिकित्सीय परामर्श के बाद सुलझा लिया गया। हेर्ज़ोग (Herzog) और एल्वरेज़ (Alverez) ने पाया कि जटिलता की सकल आवृत्ति (बैलेनाइटिस, उत्तेजना, चिपचिपापन, फिमॉसिस और पैराफिमॉसिस सहित) खतना न किये हुए बच्चों में उच्चतर थी; पुनः, अधिकांश समस्याएं गौण थीं। त्वचाविज्ञान के यादृच्छिक रूप से चुने गए 398 विद्यार्थियों के एक अध्ययन में, फाकजियान व अन्य (Fakjian et al.) ने बताया: "खतना किये हुए 2.3% पुरुषों व खतना न किये हुए 12.5% पुरुषों में बैलेनाइटिस पाया गया।" 225 पुरुषों के अध्ययन में, ओ’फारेल व अन्य (O'Farrell et al.) ने कहा: "सकल रूप से खतना न किये हुए पुरुषों की तुलना में खतना किये हुए पुरुषों में एसटीआई (STI)/बैलेनाइटिस की पहचान हो पाने की संभावना कम (51% और 35%, पी (P) = 0.021) थी।" वैन होवे (Van Howe) ने पाया कि खतना किये हुए शिश्नों में जीवन के पहले तीन महीनों में अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता होती है और खतना किये हुए लड़कों में बैलेनाइटिस विकसित होने की संभावना अधिक होती है।

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) के अनुसार खतना, उचित रूप से किया गया, फिमॉसिस के विकास के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। रिकवुड (Rickwood) और अन्य लेखक इस बात पर सहमत नहीं है कि अनेक नवजात शिशुओं का खतना रोगात्मक फिमॉसिस के बजाय खलड़ी को पीछे न खींचे जा सकने की स्थिति के विकास के लिये अनावश्यक रूप से किया जाता है। मेतकाफे व अन्य (Metcalfe et al.) ने कहा कि "गैर्डनर (Gairdner) व ऑस्टर (Oster) ने लड़कों का खतना न किये जाने के लिये एक मज़बूत दावा तैयार करते हुए अग्रत्वचा को शिश्न-मुण्ड से प्राकृतिक रूप से अलग होने का मौका देने और लड़कों को उचित स्वास्थ्य-विज्ञान के निर्देश देने की वकालत की. इससे ‘निवारक’ खतने की आवश्यकता दूर हो जाती है।" फिमॉसिस के लिये सर्वाधिक लागत-प्रभावी उपचार का निर्धारण करने के लिये किये गये एक अध्ययन में, वैन होवे (Van Howe) ने यह निष्कर्ष निकाला कि रोगात्मक फिमॉसिस के उपचार के लिये क्रीम का प्रयोग करना खतने की तुलना में 75% लागत-प्रभावी था।

मूत्र-नलिका में होने वाले संक्रमण

402,908 बच्चों का प्रतिनिधित्व करनेवाले बारह अध्ययनों (एक यादृच्छिक रूप से नियंत्रित परीक्षण, चार सहगण अध्ययनों और सात स्थिति-नियंत्रित अध्ययनों) के एक मेटा-विश्लेषण ने यह निर्धारित किया कि खतने का संबंध मूत्र-नलिका में होने वाले संक्रमण (यूटीआई) (UTI) के जोखिम में लक्षणीय गिरावट से था। हालांकि, लेखकों ने उल्लेख किया कि जिन लड़कों की मूत्र-नलिका सामान्य रूप से अपना कार्य कर रही हो, उनमें से केवल 1% लड़कों को ही यूटीआई (UTI) की समस्या होती है और मूत्र-नलिका के एक संक्रमण को रोकने के लिये उपचार-की-आवश्यकता की संख्या (खतने की आवश्यकता वाले लड़कों की संख्या) 111 थी। चूंकि रक्त-स्राव और संक्रमण खतने की दो सबसे आम जटिलताएं हैं, जिनकी दर लगभग 2% है, एक समान उपयोगिता लाभ व हानियों को मानते हुए, अतः लेखकों का निष्कर्ष है कि खतने का शुद्ध चिकित्सीय लाभ केवल उन्हीं लड़कों को मिलने की संभावना है, जिनमें मूत्र-नलिका के संक्रमण का उच्च जोखिम हो (जैसे वे, जिनमें उच्च श्रेणी की मूत्राशय-मूत्रवाहिनी प्रतिक्रिया (vesicoureteral reflux) या पुनरावर्ती यूटीआई (UTI) का इतिहास रहा हो, जिसमें उपचार की आवश्यकता की संख्या क्रमशः 11 और 4 तक गिर गई)।

अपरिपक्व नवजात शिशुओं, स्वास्थ्य की नाज़ुक स्थिति के कारण जिनका खतना नहीं किया जाता, में यूटीआई (UTI) की उच्च दरों पर विचार करने के लिये कुछ यूटीआई (UTI) अध्ययनों की आलोचना की जाती रही है। एएमए (AMA) ने कहा कि “प्रयुक्त प्रतिमान के आधार पर, 1 यूटीआई (UTI) की रोकथाम के लिये लगभग 100 से 200 खतनों की आवश्यकता होगी," और एक निर्णय विश्लेषण प्रतिमान का उल्लेख किया जिसका निष्कर्ष यह था कि खतने को यूटीआई (UTI) की रोकथाम के एक उपाय के रूप में प्रयोग करना तर्क संगत नहीं है।

शिश्न का कैंसर

अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (American Cancer Society) (2009) ने कहा कि, "अधिकांश विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि शिश्न के कैंसर से बचाव के एकमात्र उपाय के रूप में खतने की अनुशंसा की जानी चाहिये."

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडीयाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) (1999) के अनुसार अध्ययनों से यह पता चला है कि नवजात शिशुओं का खतना शिश्न के कैंसर से थोड़ी सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन एक बड़ी आयु में किया गया खतना भी सुरक्षा का वही स्तर प्रदान करता हुआ प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त, चूंकि शिश्न का कैंसर एक दुर्लभ बीमारी है, अतः खतना न किये हुए किसी पुरुष में शिश्न का कैंसर होने की संभावना, हालांकि खतना किये हुए पुरुष से अधिक होने पर भी, निम्न बनी रहती है।

शिश्न के कैंसर की आयु-समायोजित वार्षिक घटनायें डेनमार्क में 0.82 प्रति 100,000, ब्राज़ील में 2.9-6.8 प्रति 100,000, यूएसए (USA) में 0.9 से 1 प्रति 100,000 और भारत में 2.0-10.5 प्रति 100,000 हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है कि जिन व्यक्तियों का खतना जन्म के समय ही हो चुका हो, उनकी तुलना में उन व्यक्तियों में शिश्न का कैंसर होने का जोखिम अधिक होता है, जिनका खतना कभी न हुआ हो; सापेक्ष जोखिम के अनुमानों में 3 और 22 शामिल हैं।

विभिन्न राष्ट्रीय चिकित्सा संगठनों की नीतियां

ऑस्ट्रेलेशिया

रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज ऑफ फिज़िशियन्स (Royal Australasian College of Physicians) (आरएसीपी (RACP); 2009) ने कहा कि "साहित्य की गहन समीक्षा के बाद [वे] शैशवास्था में नियमित रूप से खतना किये जाने की अनुशंसा नहीं करते, लेकिन [मानते हैं कि] अभिभावकों को अपने चिकित्सकों के साथ यह निर्णय ले पाने में सक्षम होना चाहिये। एक तर्कपूर्ण विकल्प यह है कि खतने को तब तक टाला जाए, जब तक कि पुरुष सोच-समझकर निर्णय ले पाने योग्य बड़े न हो जाएं। उन सभी मामलों, जिनमें अभिभावक अपने बच्चे का खतना करने का निवेदन करें, में चिकित्सीय परिचारक के लिये यह अनिवार्य है कि वह इस विधि से जुड़े जोखिमों और लाभों की सटीक जानकारी प्रदान करे। इसके प्रमाण को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने वाली अद्यतन, पक्षपातरहित लिखित सामग्री अभिभावकों को व्यापक रूप से उपलब्ध करवाई जानी चाहिये। वास्तविक क्षति के प्रमाण की अनुपस्थिति में, अभिभावक के चुनाव का समान किया जाना चाहिये."

ऑस्ट्रेलियन मेडिकल एसोसियेशन (Australian Medical Association) (एएमए)(AMA) के तस्मानियाई अध्यक्ष (Tasmanian President), हेडन वॉल्टर्स (Haydn Walters), ने कहा है कि एएमए (AMA) गैर-चिकित्सीय, गैर-धार्मिक कारणों से होने वाले खतने पर प्रतिबंध लगाने की अपील का समर्थन करेगा।

कनाडा

कैनेडियन पिडीयाट्रिक सोसाइटी (Canadian Paediatric Society) की फीटस एण्ड न्यूबॉर्न कमेटी (Fetus and Newborn Committee) ने 1996 में "निओनैटल सर्कमसिशन रिविज़िटेड (Neonatal circumcision revisited)" और नवंबर 2004 में "सर्कमसिशन: इंफ़ोर्मेशन फॉर पेरेन्ट्स (Circumcision: Information for Parents)" का प्रकाशन किया। 1996 का अवस्था वक्तव्य कहता है कि "नवजात शिशुओं का खतना नियमित रूप से नहीं किया जाना चाहिये" और 2004 में अभिभावकों के लिये लिखी गई सूचना कहती है: 'खतना एक “गैर-उपचारात्मक” विधि है, जिसका अर्थ यह है कि चिकित्सीय रूप से यह आवश्यक नहीं है। जो अभिभावक अपने नवजात शिशुओं का खतना करवाने का निर्णय लेते हैं, वे ऐसा अक्सर धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक कारणों से करते हैं। [...] खतने के पक्ष एवं विपक्ष में प्रस्तुत वैज्ञानिक प्रमाणों की समीक्षा करने के बाद सीपीएस (CPS) नवजात लड़कों के लिये नियमित खतने की अनुशंसा नहीं करती। अनेक शिशु-चिकित्सक अब खतना नहीं करते.'

नीदरलैंड्स

नीदरलैंड्स में, रॉयल डच मेडिकल एसोसिएशन (Royal Dutch Medical Association) (केएनएमजी) (KNMG) ने 2010 में कहा कि पुरुषों का गैर-उपचारात्मक खतना “बच्चे के स्वायत्तता और शारीरिक एकात्मता के अधिकार के साथ टकराव उत्पन्न करता है।" उन्होंने चिकित्सकों को बुलाकर बच्चों की देख-रेख करने वाले उन लोगों को जानकारी प्रदान की, जिन्हें (उनके मूल्यांकन में) चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक जोखिमों तथा संतुष्ट कर पाने वाले चिकित्सीय लाभों की कमी में दखल की आवश्यकता थी। उन्होंने कहा कि महिला जननांग की कांट-छांट पर कानूनी प्रतिबंध की ही तरह पुरुषों के खतने पर भी कानूनी प्रतिबंध लगाये जाने के लिये पर्याप्त कारण मौजूद हैं।

युनाइटेड किंगडम

"ऐसा पुरुष खतना जो कि शारीरिक चिकित्सा आवश्यकताओं के अतिरिक्त किसी भी अन्य कारण से किया जाता है, उसे गैर-उपचारात्मक (या कभी-कभी “रस्मी”) खतना कहते हैं। कुछ लोग धार्मिक कारणों से गैर-उपचारात्मक खतने की मांग करते हैं, कुछ लोग एक बच्चे को अपने समुदाय में सम्मिलित करने के लिये ऐसा करते हैं और कुछ लोग चाहते हैं कि उनके पुत्र भी उनके पिताओं की तरह हों. खतना कुछ धार्मिक विश्वासों की पारिभाषिक विशेषता है"। इन मुद्दों पर एसोसिएशन की कोई नीति नहीं है।

बीएमए (BMA) कहती है कि "पुरुष खतने को सामान्यतः कानूनी माना जाता है, यदि इसे सुयोग्य ढंग से किया गया हो; ऐसा विश्वास है कि यह बच्चे के लिये सर्वाधिक लाभदायक है; और इस पर एक वैध सहमति” अभिभावकों से और यदि संभव हो तो बच्चे से भी, प्राप्त है।

बीएमए (BMA) को उम्मीद है कि "सक्षम बच्चे अपना निर्णय स्वयं ले सकें; बच्चों द्वारा व्यक्त की गईं इच्छाओं पर अनिवार्य रूप से विचार किया जाना चाहिये; यदि अभिभावक असहमत हों, तो गैर-उपचारात्मक खतना अदालत की अनुमति के बिना न किया जाए; सहमति लिखित रूप से ली जानी चाहिये ".

"अतीत में, लड़कों के खतने को चिकित्सीय रूप से या सामाजिक रूप से लाभदायक या कम से कम तटस्थ माना जाता रहा है। सामान्य अवधारणा यह रही है कि बच्चों को बड़ी क्षति नहीं पहुंची है और इसलिये उपयुक्त सहमति के साथ इसे किया जा सकता है। हालांकि, पहले जिन चिकित्सीय लाभों का दावा किया जा रहा था, उन्हें संतोषप्रद रूप से साबित नहीं किया जा सका है और अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जा चुका है, बीएमए (BMA) सहित, कि शल्य-चिकित्सा की इस प्रक्रिया में चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक जोखिम हैं। चिकित्सकों के लिये यह आवश्यक है कि वे पुरुष खतना केवल तभी करें, जब यह देखा जा सकता हो कि ऐसा करना बच्चे के सर्वश्रेष्ठ रूप से हितकर है। यह दर्शाने की ज़िम्मेदारी अभिभावकों की है कि गैर-उपचारात्मक खतना किसी विशिष्ट बच्चे के सर्वश्रेष्ठ रूप से हितकर है। बीएमए (BMA) का विचार है कि गैर-उपचारात्मक खतने से होने वाले स्वास्थ्य लाभों से संबंधित प्रमाण इतने पर्याप्त नहीं हैं कि केवल उनके आधार पर इस कार्य को तर्क पूर्ण ठहराया जा सके."

संयुक्त राज्य अमरीका

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (The American Academy of Pediatrics) (1999) ने कहा: "उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाण नवजात पुरुष खतने के संभावित चिकित्सीय लाभ प्रदर्शित करते हैं; हालांकि, ये डेटा नवजात शिशुओं के नियमित खतने की अनुशंसा करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। यदि खतने में संभावित लाभ और जोखिम हैं, परंतु फिर भी यह विधि बच्चे की वर्तमान सेहत के लिये आवश्यक नहीं है, तो इस स्थिति में अभिभावकों को यह निर्णय लेना चाहिये कि क्या करना उनके बच्चे के सर्वश्रेष्ठ हित में है।" एएपी (AAP) यह अनुशंसा करती है कि यदि अभिभावक खतना करवाने का विकल्प चुनते हैं, तो खतने से जुड़े दर्द को कम करने के लिये पीड़ाशून्यता का प्रयोग किया जाना चाहिये। यह कहती है कि केवल उन नवजात शिशुओं का ही खतना किया जाना चाहिये, जो स्थिर व स्वस्थ हों।

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (American Medical Association) गैर-उपचारात्मक खतने के संदर्भ में एएपी (AAP) के 1999 के खतना नीति वक्तव्य का समर्थन करती है, जिसे वे नवजात पुरुष शिशुओं के गैर-धार्मिक, गैर-रस्मी, चिकित्सीय रूप से अनावश्यक, वैकल्पिक खतने के रूप में परिभाषित करते हैं। वे कहते हैं कि "ऑस्ट्रेलियाई, कनाडाई और अमरीकी शिशु-चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाली पेशेवर समितियां नवजात पुरुष शिशुओं के नियमित खतने की अनुशंसा नहीं करतीं."

अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमिली फिज़िशियन्स (American Academy of Family Physicians) (2007) खतने से जुड़े विवादों पर ध्यान देती है और इस बात की अनुशंसा करती है कि चिकित्सक “खतने की संभावित हानियों और लाभों पर उन सभी अभिभावकों अथवा कानूनी संरक्षकों से चर्चा करें, जो अपने नवजात पुत्र के लिये इस विधि के प्रयोग पर विचार कर रहे हों."

अमेरिकन यूरोलॉजिकल एसोसियेशन (American Urological Association) (2007) ने कहा कि नवजात खतने के संभावित चिकित्सीय लाभ और फायदे तो हैं, लेकिन साथ ही इसकी हानियां और जोखिम भी हैं।

इन्हें भी देखें

आगे पढ़ें

  • बिली रे बॉयड. सर्कम्सिश़न एक्स्पोस्ड: रीथिंकिंग अ मेडिकल एण्ड कल्चरल ट्रेडिशन. स्वतंत्रता, सीए (CA): द क्रॉसिंग प्रेस, 1998. (ISBN 978-0-89594-939-4)
  • ऐनी ब्रिग्स. सर्कम्सिश़न: व्हाट एव्री पेरेंट शुड नो. चार्लोटेस्विल्ले, वीए (VA): जन्म और परेंटिंग प्रकाशन, 1985. (ISBN 978-0-9615484-0-7)
  • रॉबर्ट डर्बी. अ सर्जियल टेम्पटेशन: द डेमोनाइज़ेशन ऑफ़ द फोर्स्कीन एण्ड द राइज़ ऑफ़ सर्कम्सिश़न इन ब्रिटेन . शिकागो: शिकागो प्रेस के विश्वविद्यालय, 2005. (ISBN 978-0-226-13645-5)
  • एरोन जे. फिंक, एम्.डी. सर्कम्सिश़न: अ पेरेंट्स डिसीज़न फॉर लाइफ . कवनाह प्रकाशन कंपनी, इंक., 1988. (ISBN 978-0-9621347-0-8)
  • पॉल एम. फ्लिस, एम.डी. और फ्रेडरिक होजेस, डी. फिल. व्हाट यॉर डॉक्टर मे नॉट टेल यु अबाउट सर्कम्सिश़न . न्यू यॉर्क: वार्नर बुक्स, 2002. (ISBN 978-0-446-67880-3)
  • लियोनार्ड बी. ग्लिक. मार्कड इन यॉर फ्लेश: सर्कम्सिश़न फ्रॉम एन्शियंट जुड़ेया टू मॉडर्न अमेरिका. न्यूयॉर्क: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2005. (ISBN 978-0-19-517674-2)
  • डेविड गोलाहर. सर्कम्सिश़न: अ हिस्ट्री ऑफ़ द वर्ल्ड्स मोस्ट कोंट्रोवरशियल सर्जरी. न्यूयॉर्क: मूल पुस्तकें, 2000. (ISBN 0-465-02653-2)
  • रोनाल्ड गोल्डमैन, पीएच.डी. सर्कम्सिश़न: द हिडेन ट्रामा . बोस्टन: मोहरा, 1996. (ISBN 978-0-9644895-3-0)
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टिप्पणियां और संदर्भ

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