शून्य: पूरे नंबरों की पहली संख्या

शून्य (०) एक अंक है जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आजकी सभी स्थानीय मान पद्धतियों का अपरिहार्य प्रतीक है। इसके अलावा यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव है।

शून्य
शून्य: गुण, आविष्कार, गणितीय गुण
ईपीआई-ओल्मेक स्क्रिप्ट।

ग्वालियर दुर्ग में स्थित एक छोटे से मन्दिर - 'चतुर्भुज मंदिर' की दीवार पर शून्य (०) उकेरा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है। यह शून्य आज से लगभग १५०० वर्ष पहले उकेरा गया था।

गुण

  • किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से गुणा करने से

Dry u शून्य प्राप्त होता है। (x × 0 = 0)

  • किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से जोड़ने या घटाने पर वापस वही संख्या प्राप्त होती है लेकिन घटाने पर (0-x) चिह्न परिवर्तन हो जाता है जहां x धनात्मक संख्या है (x + 0 = x ; x - 0 = x)

आविष्कार

प्राचीन बक्षाली पाण्डुलिपि में, जिसका कि सही काल अब तक निश्चित नहीं हो पाया है परन्तु निश्चित रूप से उसका काल आर्यभट्ट के काल से प्राचीन है, शून्य का प्रयोग किया गया है और उसके लिये उसमें संकेत भी निश्चित है। २०१७ में, इस पाण्डुलिपि से ३ नमूने लेकर उनका रेडियोकार्बन विश्लेषण किया गया। इससे मिले परिणाम इस अर्थ में आश्चर्यजनक हैं कि इन तीन नमूनों की रचना तीन अलग-अलग शताब्दियों में हुई थी- पहली की २२५ ई॰ – ३८३ ई॰, दूसरी की ६८०–७७९ ई॰, तथा तीसरी की ८८५–९९३ ई॰। इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा है कि विभिन्न शताब्दियों में रचित पन्ने एक साथ जोड़े जा सके।

गणितीय गुण

शून्य, पहली प्राकृतिक पूर्णांक संख्या है। यह अन्य सभी संख्याओं से विभाजित हो जाता है। यदि शून्य: गुण, आविष्कार, गणितीय गुण  कोई वास्तविक या समिश्र संख्या हो तो:

  • a + 0 = 0 + a = a (0 योग का तत्समक अवयव है)
  • a × 0 = 0 × a = 0'
  • यदि a ≠ 0 तो a0 = 1 ;
  • 00 को कभी-कभी 1 के बराबर माना जाता है (बीजगणित तथा समुच्चय सिद्धान्त में ), और सीमा आदि की गणना करते समय अपरिभाषित मानते हैं।
  • 0 का फैक्टोरियल बराबर होता है 1 ;
  • a + (–a) = 0 ;
  • a/0 परिभाषित नहीं है।
  • 0/0 भी अपरिभाषित है।
  • कोई पूर्णांक संख्या n> 0 हो तो, 0 का nवाँ मूल भी शून्य होता है।
  • केवल शून्य ही एकमात्र संख्या है जो वास्तविक भी है, धनात्मक भी, ऋणात्मक भी, और पूर्णतः काल्पनिक भी।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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