मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर राजस्थान के तहसील सिकराय में स्थित हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मन्दिर है। भारत के कई भागों में हनुमान जी को बालाजी कहते हैं। यह स्थान दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ बहुत आकर्षक दिखाई देता है। यहाँ की शुद्ध जलवायु और पवित्र वातावरण मन को बहुत आनंद प्रदान करती है। यहाँ नगर-जीवन की रचनाएँ भी देखने को मिलेंगी।
मेंहदीपुर बालाजी (हनुमान) मन्दिर | |
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बालाजी मंदिर | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | हनुमानजी |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | मेंहदीपुर, सिकराय (मीनासीमला के निकट) |
ज़िला | दौसा |
राज्य | राजस्थान |
देश | भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 26°56′N 76°47′E / 26.94°N 76.79°E 76°47′E / 26.94°N 76.79°E |
यहाँ तीन देवों की प्रधानता है— श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव कोतवाल। यह तीन देव यहाँ आज से लगभग १००८ वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के तीन महंत इस समय भी विद्यमान हैं। सर्व श्री गणेशपुरी जी महाराज (सर्वप्रथम सेवक) श्री किशोरपुरी जी महाराज (पूर्व सेवक) और श्री नरेशपुरी जी महाराज (वर्तमान सेवक)। यहाँ के उत्थान का युग श्री गणेशपुरी जी महाराज के समय से प्रारम्भ हुआ और अब दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। प्रधान मंदिर का निर्माण इन्हीं के समय में हुआ। सभी धर्मशालाएँ इन्हीं के समय में बनीं। इस प्रकार इनका सेवाकाल श्री बालाजी घाटा मेंहदीपुर के इतिहास का स्वर्ण युग कहलाएगा।
प्रारम्भ में यहाँ घोर बीहड़ जंगल था। घनी झाड़ियों में द्रोर-चीते, बघेरा आदि जंगली जानवर पड़े रहते हैं।
वास्तव में इस मूर्त्ति को अलग से किसी कलाकार ने गढ़ कर नहीं बनाया है, अपितु यह तो पर्वत का ही अंग है और यह समूचा पर्वत ही मानों उसका 'कनक भूधराकार' द्रारीर है। इसी मूर्त्ति के चरणों में एक छोटी-सी कुण्डी थी, जिसका जल कभी बीतता ही नहीं था। रहस्य यह है कि महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती।
इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई। विक्रमी-सम्वत् १९७९ में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों में भरकर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से श्रद्धालु चल दिये। चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे तो रेलवे अधिकारियों ने चोले को सामान समझकर सामान-शुल्क लेने के लिए उस चोले को तौलना चाहा, किन्तु वे तौलने में असमर्थ रहे। चोला तौलने के क्रम में वजन कभी एक मन बढ़ जाता तो कभी एक मन घट जाता; अन्तत: रेलवे अधिकारी ने हार मान लिया और चोले को सम्मान सहित गंगा जी को समर्पित कर दिया गया। उस समय हवन, ब्राह्मण भोजन एवं धर्म ग्रन्थों का पारायण हुआ और नये चोले में एक नयी ज्योति उत्पन्न हुई, जिसने भारत के कोने-कोने में प्रकाश फैला दिया।
बालाजी महाराज के दर्शन हेतु मेंहदीपुर जाने से कम से कम एक सप्ताह पहले आपको मांस , अण्डा , शराब आदि तामसिक चीजों का त्याग करना चाहिए और सर्वप्रथम बालाजी महाराज के दर्शन से पूर्व प्रेतराज सरकार के दर्शन और प्रेतराज चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद बालाजी महाराज के दर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और सबसे अन्त में श्री भैरव कोतवाल के दर्शन करने के बाद भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मंदिर में किसी से कोई भी चीज़ यहां तक कि प्रसाद भी न लें और न ही किसी को कोई भी चीज़ जैसे प्रसाद न दें। आते तथा जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर न देखें। आने और जाने की दरखास्त लगाकर जाएं क्योंकि बाबा की आज्ञा से ही कोई मेंहदीपुर में आ तथा मेहंदीपपुर से जा सकता है।
राजस्थान राज्य के दो जिलों (करौली व दौसा) में विभक्त घाटा मेंहदीपुर स्थान दिल्ली-जयपुर-अजमेर-अहमदाबाद लाइन पर स्थित बाँदीकुई जंक्शन रेलवे स्टेशन से 30 की.मी. की दूरी पर स्थित है जो की मेहंदीपुर बालाजी से सबसे नजदीकी रेल्वे स्टेशन है। बांदीकुई जंक्शन से मेहंदीपुर बालाजी धाम के लिए 24 घंटे बस, जीप, टैक्सी आदि की सुविधा उपलब्ध है। आगरा, मथुरा, वृन्दावन, अलीगढ़ आदि से सीधी बसें जो जयपुर जाती हैं वे सभी मेहंदीपुर बालाजी के मोड़ पर रूकती हैं।
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