एर्न्स्ट हाइनरिख हेकेल, (Ernst Heinrich Haeckel, १६ फ़रवरी १८३४ - ९ अगस्त १९१९), जर्मन प्राणिविज्ञानी, प्राध्यापक, कलाकर तथा दार्शनिक थे। इन्होने हजारों जीवजन्तुओं को खोजा, उनका वर्न किया एवं उनका नामकरण किया। हेक्केल ने डार्विन के सिद्धान्तों को जर्मनी में प्रचारित-प्रसारित किया।
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एर्न्स्ट हाइनरिख हेकेल | |
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जन्म | 16 फ़रवरी 1834 |
मृत्यु | अगस्त 9, 1919 | (उम्र 85)
राष्ट्रीयता | जर्मन |
एर्न्स्ट हेक्केल का जन्म प्रशिया के पॉट्सडैम नगर में हुआ था। इन्होंने बर्लिन, वर्ट् सबुर्ख (Wurzburg) तथा विएना में फ़िख़ों (Virchone), कलिकर (Kolliker) तथा जोहैनीज़ मुलर (Johannes Muller) के अधीन अध्ययन कर चिकित्साशास्त्र के स्नातक की उपाधि सन् 1857 में प्राप्त की।
कुछ समय तक चिकित्सक का काम करने के पश्चात् आप जेना विश्वविद्यालय में प्राणिविज्ञान के प्रवक्ता तथा सन् 1865 में प्रोफेसर नियुक्त हुए।
डार्विन के सिद्धांत से बहुत प्रभावित होकर आपने "सामान्य आकारिक" पर महत्वपूर्ण ग्रंथ सन् 1866 में, दो वर्ष बाद "सृजन का प्रकृतिविज्ञान" तथा सन् 1874 में "मानवोद्भवविज्ञान" शीर्षक ग्रंथ लिखे। प्राणियों के विकास में पुनरावर्ती क्रमों का इन्होंने प्रतिपादन किया तथा जंतुओं के आपसी सबंधों का दिग्दर्शन कराने के लिए एक आनुवंशिक सारणी तैयार की। रेडियोलेरिया, गहन सागरीय मेड्युसाओं तथा सेराटोसाओं और साइफॉनोफोराओं पर अत्युत्तम प्रबंध लिखने के अतिरिक्त हेकेल ने व्यवस्थित जातिवृक्ष नामक एक बड़ा ग्रंथ भी लिखा। इनके कुछ अन्य वैज्ञानिक ग्रंथ बड़े लोकप्रिय हुए।
विकास सिद्धांत (Evolution theory) के दार्शनिक पहलू का भी अपने गंभीर अध्ययन किया तथा धर्म के स्थान पर एक वैज्ञानिक अद्वैतवाद का प्रचार किया। हेकेल के अद्वैतवाद में प्रकृति का कोई उद्देश्य या अभिकल्पना, नैतिक व्यवस्था, मानवीय स्वतंत्रता अथवा वैयक्तिक ईश्वर को कोई स्थान नहीं है। हेकेल ने अपने समय के बुद्धिजीवियों में स्वतंत्र विचार करने की एक लहर उत्पन्न कर दी तथा प्रायोगिक जीवविज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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