किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (directive principles of state policy) जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सबसे पहले ये आयरलैंड (Ireland) के संविधान मे लागू किये गये थे। ये वे तत्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए है। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की स्थापना करना है।
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (सितंबर 2019) स्रोत खोजें: "निदेशक तत्त्व" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व शामिल किए गये हैं। भारतीय संविधान के भाग 3 तथा 4 मिलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते है इन तत्वों में संविधान तथा सामाजिक न्याय के दर्शन का वास्तविक तत्व निहित हैं। निदेशक तत्व कार्यपालिका और विधायिका के वे तत्व हैं, जिनके अनुसार इन्हे अपने अधिकारों का प्रयोग करना होता है।
अनु 37 के अनुसार ये तत्व किसी न्यायालय मे लागू नही करवाये जा सकते यह तत्व वैधानिक न होकर राजनैतिक स्वरूप रखते है तथा मात्र नैतिक अधिकार रखते है। वे न तो कोई वैधानिक बाध्यता ही राज्य पे लागू करते है न जनता हेतु अधिकार कर्तव्य। वे मात्र राज्य के लिये ऐसे सामान्य निर्देश है कि राज्य कुछ ऐसे कार्य करे जो राज्य की जनता के लिये लाभदायक हो। इन निर्देशों का पालन कार्यपालिका की नीति तथा विधायिका की विधियाँ से हो सकता है। इसमें अभी तक 4 बार संशोधन हो चुका है 42,44,86 और 97। DPSP के कार्यान्वयन के लिए उठाए गए कदम - 1- पंचवर्षीय योजनाओं का आगाज 2- कारखाना अधिनियम 3- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 4- विशाखा गाइडलाइन 5- बैंको का राष्ट्रीयकरण 6- जमीदारी उन्मूलन( भूमि सुधार कानून) 7- हदबंदी कानून 8- निर्भया कोष 9- पिंक बस (लखनऊ से प्रयागराज)
अनुच्छेद | विवरण | |||
---|---|---|---|---|
36 | राज्य की परिभाषा का वर्णन किया गया है | |||
Article 37 | इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना अनिवार्य है ये न्यायालय द्वारा अप्रवर्तनीय है। | |||
Article 38 | राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा | |||
Article 39 | राज्य भौतिक और अभौतिक साधनों के सकेन्द्रण को रोकेगा। राज्य महिलाओं व बालकों और पुरूषों की सभी अवस्था ध्यान रखेगा। समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था रखी गई है। | |||
39क | समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता | |||
40 | ग्राम पंचायतों का संगठन | |||
41 | कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार,राज्य आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछडे वर्गों का विशेष ध्यान रखेगा। | |||
42 | काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध | |||
43 | कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि | |||
43क | सहकारी समितियों की स्थापना ,97 वां संविधान संशोधन, 2011 | |||
44 | सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून व्यवस्था।समान नागरिक संहिता | |||
45 | बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध | |||
46 | अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि | |||
47 | पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करने का राज्य का कर्तव्य | |||
48 | कृषि और पशुपालन का संगठन | |||
48क | पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा | |||
49 | राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण देना | |||
50 | कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण | |||
51 | अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि |
चंपर दुराई राजन वाद 1951 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि ये तत्व अनिवार्य रूप से मौलिक अधिकारों के अधीनस्थ है उन पर प्रभुता नही रख सकते दोनों मे विवाद पैदा होने पर मौलिक अधिकार वरीयता पायेंगे, किंतु जब राज्य विधायिका ने जमींदारी उन्मूलन प्रांरभ किया ताकि अनु 39 ब 39 स के निदेशक तत्वॉ को प्रभावी कर सके तब सर्वोच्च न्यायालय ने इन तत्वॉ का मह्त्व समझा तथा कामेश्वर सिंह बनाम बिहार वाद 1952 से रीकेरल शिक्षा बिल वाद 1957 तक सुप्रीम कोर्ट ने माना कि नीति निर्देशक तत्व मौलिक अधिकार पे प्रश्रय नही पा सकते, परंतु बाद मे न्यायालय ने हार्मोनी सिद्धांत प्रतिपादित किया तथा सहयोगात्मक विकास का प्रयास किया तथा दोनो को उतना प्रभावी करने का प्रयास किया जितना सभंव था। हार्मोनी सिद्धांत दोनो के मध्य कोई संघर्ष नही मान कर दोनॉ को एक दूसरे का पूरक मानता है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि दो व्याख्यांए संभव है जो कि नीति निर्देशक तत्व को मौलिक अधिकार के साथ संतुलन स्थापित करे वही दूसरी व्याख्या उनमे विवाद बताये तो न्यायालय को दूसरी व्याख्या पर प्रथम व्याख्या की वरीयता देनी चाहिए यदि मात्र एक व्याख्या संभव हो और जो नीति - अधिकारॉ में संघर्ष पैदा करे तो न्यायालय बाध्य है कि नीति निदेशक तत्वॉ पर अधिकारॉ को वरीयता 'द' प्रिवी पर्स उन्मूलन तथा बैंकिग राष्ट्रीयकरण अधिनियम जो कि अनु 39 'ब' तथा 'स' की पालना हेतु लाये गये थे को सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारॉ का उल्लघंन करने के कारण [अनु 14,19,31] असंवैधानिक घोषित कर दिय संसद ने इसके प्रत्युत्तर मे 25 वा संशोधन 1971 पारित कर दिया तथा अनु 31 स को जन्म दिया जो कि कहता है कि यदि कोई विधि पारित की जाती जो कि 39 ब स के नीति निर्देशक तत्वॉ को प्रभावी करती है तथा इस प्रक्रिया मे यदि अनु 14, 19, 31 के अधिकारॉ का उल्लघंन करे तो उसे इस आधार पर असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता
अनुच्छेद 31 स के अनुसार कोई विधि जो अनु 39 ब स को प्रभावी करती है किसी भी न्यायालय मे परीक्षित नही की जा सकेगी। केशवानंद भारती वाद मे इस संशोधन को चुनौती दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने अनु 31 स के प्रथम भाग को वैध मान लिया किंतु दूसरे भाग को इस आधार पर खारिज कर दिया क्योंकि वह न्यायपालिका की पुनरीक्षण शक्ति छीन लेती है जो कि संविधान के मूल ढाँचें का अंग है। इस वाद के निर्णय से प्रीवी पर्स तथा बैंकिग राष्ट्रीयकरण अधिनियम वैध हो गये। 42 वा संविधान संशोधन अधिनियम 1976 31 स को संशोधित करता है इसमें कहा गया है कि संशोधित 31 स के अनुरूप यदि राज्य कोई ऐसी विधि बनाये जो कि किसी भी नीति निदेशक तत्व को प्रभावी करे इस आधार पर असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकते कि वह अनु 14,19,31 का उल्लघंन् करते इसी तरह वह विधि न्यायालय मे चुनौती प्राप्त नही कर सकती। इस संशोधन को मिनर्वा मिल बनाम भारत संघ वाद 1980 मे चुनौती दी गयी जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने अनु 31 स मे किये गये नये संशोधन को गैर संवैधानिक घोषित कर दिया क्यॉकि यह संविधान के भाग 3 तथा 4 के संतुलन को बिगाड़ देता था। 44 वे संशोधन 1978 ने अनु 31 का ही विलोपन कर दिया। वर्तमान स्थिति यह है कि दो निदेशन तत्व 39 ब, स दो मौलिक अधिकरॉ 14, 19 पे वरीयता देकर लागू किए जा सकते है।
संविधान सभा में भाग 4 के महत्व पर प्रश्न किया गया तथा कहा गया कि यह भाग ही व्यर्थ है क्योंकि ये तत्व कोई वैधानिकता नही रखते हैं। वास्तव मे ये वे परीक्षण गुब्बारे है जो कि सत्ता में विद्यमान सरकार की क्षमता का परीक्षण करते हैं। कुछ विधियों की संवैधानिकता का परीक्षण नीति निदेशक तत्वों को ध्यान मे रखकर किया जा सकेगा। इनका शैक्षणिक महत्व है।
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article निदेशक तत्त्व, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.