आयरिश (अंग्रेज़ी: Irish) (मूल नाम: Gaeilge, teanga na Gaeilge, Ghaelacha) भारोपीय परिवार की एक गोइदेलिक भाषा है, जिसका उद्भव आयरलैंड में हुआ और आयरिश लोगों द्वारा बोली जाती है। आज आयरिश भले ही केवल आयरिश जनसंख्या के एक छोटे समुदाय द्वारा बोली जाती हो, लेकिन यह आयरिश राज्य के निवासियों के जीवन में एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक भूमिका अदा करता है, जिसका इस्तेमाल देश भर में मीडिया, निजी संदर्भों और सामाजिक स्थितियों में किया जाता है। इसे आयरलैंड गणतंत्र की राष्ट्रीय और पहली आधिकारिक भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, इसके अलावा इसे यूरोपीय संघ के एक आधिकारिक भाषा के रूप में दर्जा प्राप्त है। आयरिश को उत्तरी आयरलैंड में भी आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा प्राप्त है।
आयरिश आयरलैंड की भाषा तथा साहित्य को 'आयरिश' नाम से जाना जाता है। आयरलैंड में अंग्रेजों के प्रभुत्वकाल में तो अंग्रेजी की ही प्रधानता रही, पर देश की स्वाधीनता के बाद वहाँ की अपनी भाषा आयरिश (गैली) को फिर से महत्त्व दिया गया। गैली का साहित्य पाँचवी शताब्दी ई॰ तक का मिलता है। आयरिश भारत यूरोपीय कुल की केल्टिक शाखा के गोइडेली वर्ग से संबद्ध नहीं मानी जाती है।
विकास की दृष्टि से आयरिश भाषा के इतिहास को तीन कालों में विभक्त किया जाता है-
राष्ट्रीय पुनर्जागरण के फलस्वरूप आयरिश को देश में फिर से स्थापित तो किया गया, परंतु आधुनिक आयरिश का कोई एक स्थिरीकृत रूप नहीं बन सका है। आयरिश की कई बोलियाँ अब भी महत्त्व की स्थिति लिए हुए हैं।
प्रारंभिक आयरिश साहित्य में शौर्यगाथाओं की प्रधानता रही है जो गद्य तथा पद्य के मिले जुले रूप में लिखी गई थीं। ऐसे गाथाचक्रों में 'अलस्टर' का नाम विशेष महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त आदिकालीन आयरिश कविता में गीत तत्त्व की भी प्रधानता थी। ऐसा काव्य प्रमुखत: धार्मिक तथा प्रकृति सम्बंधी प्रेरणाओं की पृठभूमि में लिखा गया था। इन धार्मिक गीतों में सेंट पैट्रिक का गीत तथा उल्टान का सेंट ब्रिजिट के प्रति गीत विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। नवीं तथा १०वीं सदी के आसपास ऐतिहासिक आभास देनेवाले साहित्य का सर्जन हुआ। धार्मिक साहित्य के अंतर्गत उपदेश, संतों के चरित्र तथा इलहाम आदि आते हैं। इस वर्ग के लेखकों में माइकेल ओ' क्लेरे (१७वीं सदी) का नाम महत्वपूर्ण है। फिर इस युग में ऐतिहासिक रचनाएँ भी लिखी गईं।
प्रारंभिक आधुनिक आयरिश साहित्य को क्लैसिकल युग कहकर भी अभिहित किया जाता है। १३वीं से १७वीं शताब्दी के बीच प्रमुखत: दरबारों में लिखा गया काव्य ऐसे कवियों द्वारा प्रस्तुत किया गया जिन्हें पेशेवर कहा जा सकता है। इन कवियों ने अपनी कुछ रचनाएँ गद्य में भी लिखीं। १७वीं सदी के अंत तक यह चारणकाव्य समाप्त हो जाता है। नए काव्यसंप्रदाय में स्वराघात पर आधारित छंदयोजना प्रचलित हुई। इस युग के प्रमुख कवि थे ईगन ओ' राहिली (१८वीं सदी का पूर्व) तथा धार्मिक कवि ताग गैले ओ' सुइलयाँ। रिवाइवलिस्ट आंदोलन के प्रमुख लेखकों में हैं-थॉमस ओ' क्रिओमथाँ (मृत्यु-१९३७), थॉमस ओ' सुइलयाँ, पैप्लेट ओ' कोनर तथा माहरे।
आयरिश पुनर्जागरण का एक सशक्त रूप अंग्रेजी साहित्य में भी व्यक्ति हुआ है जहाँ आयरलैंड के अंग्रेजी लेखकों ने अपनी रचनाओं में आयरिश लोकतत्व, शब्दविधान तथा प्रतीकयोजना के अत्यंत सफल प्रयोग किए हैं। इस आंदोलन को आयरिश या केल्टिक पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है।
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