तुलनात्मक राजनीति राजनीति विज्ञान की एक शाखा एवं विधि है जो तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है। तुलनात्मक राजनीति में दो या अधिक देशों की राजनीति की तुलना की जाती है या एक ही देश की अलग-अलग समय की राजनीति की तुलना की जाती है और देखा जाता है कि इनमें समानता क्या है और अन्तर क्या है।
एडवर्ड फ्रीमैन के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं एवं सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन एवं विश्लेषण है।
रॉल्फ ब्राइबन्टी के अनुसार "तुलनात्मक राजनीति सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था में उन तत्वों की व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों एवं उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करते हैं।"
एस कर्टिस के शब्दों में, राजनीतिक संस्थाओं और राजनीतिक व्यवहार की कार्यप्रणाली मे महत्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्ध है।
तुलनात्मक राजनीति की विशेषताएँ:~
राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक अध्ययन क्रान्तिकारी और नया नहीं है। राजनीति में प्रारम्भ से ही तुलनात्मक अध्ययन का प्रयोग किया जाता रहा है। इसीलिए ब्लौंडेल ने कहा है कि "तुलनात्मक सरकारों का अध्ययन प्राचीनतम, अत्यन्त कठिन और अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा शुरू से ही मनुष्य के ध्यान के आकर्षण का केन्द्र रहा है।" किन्तु तुलनात्मक राजनीतिक के व्यवस्थित अध्ययन का श्रेय अरस्तू को है। अरस्तू ने ही सबसे पहले तत्कालीन राजनीतिक की व्यवस्थाओं में उपस्थित निरंकुश तंत्रों, श्रेणी तंत्रों और प्रजातंत्र की विशेषताओं और अन्तरों का तुलनात्मक दृष्टि से विशद् विवेचन किया था। अरस्तू से लेकर आधुनिक राजनीतिशास्त्र के विद्वानों तक ने राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन, विश्लेषण और वर्गीकरण किया है और नये–नये शोध उपकरणो के माध्यम से नये दृष्टिकोणों की व्याख्या की है।
राजनीति और शासन के तुलनात्मक अध्ययन की परम्परा हम अरस्तू और उसके पहले भी पाते हैं। बाद में मेकियावेली, मान्टेस्क्यू, ब्राइस, लास्की, फाइनर आदि विचारकों ने इस पद्धति को अपनाया। दूसरे महायुद्ध के पहले तक इसका विकास छोटे स्तर पर ही होता रहा। लेकिन, उसके बाद तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में क्रान्तिकारी विकास हुए और इसे एक नये अनुशासन के रूप में विकसित किया जाने लगा। आज सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से राजनीतिशास्त्र का यह एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है और इसके अन्तर्गत अनेकों सिद्धांतों व अवधारणाओं को जन्म दिया गया है।
पुराने विचारों मे अरस्तू पहला राजनीतिक दार्शनिक था जिसने राजनीति को विज्ञान का दर्जा देना चाहा। उसने इस प्रकार की समस्याओं का चिन्तन तथा ऐसी विधियों का प्रयोग किया जो आज भी राजनीतिक के अध्ययन के क्षेत्र में बहुत कुछ मान्य है। उसने 158 संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन कर वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया। अरस्तू ने ही पहली बार राजनीतिशास्त्र में आगमनात्मक पद्धति को अपनाया।
तुलनात्मक राजनीति के विकास का दूसरा चिन्ह मैकयावली और पुनर्जागरण के युग में मिलता है। राज्य की उत्पत्ति, राजनीतिक व्यवस्था शासन कला के विषय में निगमनात्मक पद्धति का परित्याग कर दिया गया तथा मैकयावली जैसे विचारकों ने वैज्ञानिक तटस्थता की नीति को अपनाते हुए उन दिनों की परिस्थितियों का गंभीरता से अध्ययन किया। अपने युग की समस्याओं को समझा और फिर निष्कर्ष पर पहुंचे। इस तरह उन्होंने अपनी अध्ययन पद्धति मे अनुभववाद और इतिहास वाद का समन्वय किया। उसने राजनीति के अध्ययन में इतिहास और तर्क का सहारा लिया। मॉण्टेस्क्यू और इतिहासवादी युग के कुछ लेखकों में हम राजनीति के तुलनात्मक अध्ययन का उदय होते देखते है। हेरी एक्सटीन का तो निष्कर्ष है कि आधुनिक तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्धित कोई भी पाठक सरलता से अनुमान लगा सकता है कि माण्टेस्क्यू द्वारा विचार किये गये विषय उसके अध्ययन क्षेत्र में आते है। मॉण्टेस्क्यू के विचारों में राजनीतिशास्त्र का सम्पूर्ण मानवीय संबधों के साथ अध्ययन किया जाना चाहिए जिसमें धर्मशास्त्र, भूगोल, इतिहास, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र आदि सभी विषय का अध्ययन शामिल है।
इतिहासवादी विचारकों के कई प्रमुख उदाहरण हमारे सामने हैं, जैसे विवेक और प्रजातन्त्र के साथ–साथ विकास में विश्वास करने वाला काण्ट, विवेक और स्वतन्त्रता को बुनियादी मानते वाला हीगेल, वैज्ञानिक प्रवृति को बुनियादी मानने वाला काम्टे और वर्ग–संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता की प्राप्ति में विश्वास करने वाला मार्क्स। इन इतिहासवादियों की सबसे बडी देन यह थी कि उन्होंने सामाजिक गतिशीलता में, खास कर विकासवादी सिद्धान्त में, राजनीतिक इतिहासकारों की रूचि जाग्रत की, जिसके कारण राजनीति के विस्तृत सिद्धान्तों का जन्म हुआ। उन्होंने उन समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया जो राजनीति और आर्थिक विकास, राजनीति और शिक्षा, सामाजिक संस्कृति और राजनीति के बीच सम्बंध जैसी समस्याओं से सम्बन्धित है।
दूसरे महायुद्ध के बाद तुलनात्मक राजनीतिक के क्षेत्र में सही दिशा का विकास हु आ। पहले तो मंथर गति से विकास हुआ, फिर तेजी से नयी प्रवृतियाँ उभरने लगीं। पहले तुलनात्मक अध्ययन के महत्व को समझते हुए नये तकनीक की खोज की, फिर नई अवधारणाओं जैसे राजनीतिक विश्लेषण, राजनीतिक समाजशास्त्र आदि का विकास हुआ। पिछले दो दशकों में राजनीति के क्षेत्र में तुलनात्मक अध्ययन का विकास विशेष रूप से और बडी तेजी से हुआ। ईस्टन. आमंड, कार्ल डॉ॰ एच., कोलमन आदि ने व्यवस्था सिद्धान्त के अन्तर्गत तुलनात्मक विश्लेषण को नयी दिशा दी। व्यवस्था के सिद्धान्त बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध हुए। सिद्धान्त के द्वारा राज्य और राज्य से परे सभी प्रकार की सामाजिक व्यवस्थाओं की तुलना संभव हुई। लगभग सभी विद्वानों ने अपनी–अपनी विशेष शब्दावली और भाषा का विकास किया। 'इनपुट', 'आउटपुट', 'फीडबैक', 'साईबरनेटिक्स', आदि इसका उदाहरण है। तुलनात्मक राजनीति के शोध के लिए कई नयी पद्धतियाँ अपनायी गयीं, जैसे 'बोटिंग स्टडी', 'स्केलिंग टेकनीक', 'कन्टेन्ट एनालायसिस’ आदि। तुलनात्मक राजनीति के विकास में हाल के वर्षों में डेल, एप्टर रोस्टो, लुसियन पाई, सिडनी वर्बा, मायरन विनर आदि के योगदान अपना विशेष महत्व रखते हैं। उन्होंने केवल पश्चिमी देशों का ही अध्ययन नहीं किया, बल्कि नवोदित राष्ट्रों और तीसरे विश्व के अध्ययन को ही विशेष महत्व दिया।
दूसरे महायुद्ध के बाद तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में जिन नयी प्रवृत्तियों का समावेश हुआ वे निम्नलिखित हैं :
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र विवादपूर्ण रहा है। इसका मुख्य कारण है कि इसके परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोण मेल नहीं खाते हैं। पुराने राजनीतिक विचारक अपने अध्ययन क्षेत्र को केवल शासन तथा सरकार के ढाँचे तक सीमित रखते थे जबकि आधुनिक विद्वान इसके क्षेत्र को बहुत ही व्यापक बना देते हैं।
तुलनात्मक राजनीति का विषय–क्षेत्र इस प्रकार है :–
राजनीतिक समाजीकरण तुलनात्मक राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्ययन विषय है। राजनीतिक समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक मूल्यों तथा दृष्टिकोणों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। राजनीतिक समाजीकरण एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। यह व्यक्ति के जीवन से प्रारम्भ होकर उसकी मृत्यु तक चलती रहती है। व्यक्ति अपने बचपन से ही विभिन्न राजनीतिक विषयों में रूचि ले ने लगता है और जीवन पर्यन्त वह इससे जुड़ा रहता है। राजनीतिक समाजीकरण को तुलनात्मक राजनीति मे इसलिए शामिल किया जाता है क्योंकि राजनीतिक समाजीकरण पर ही किसी राजनीतिक प्रणाली की सफलता या असफलता निर्भर करती है। प्राय: विकसित देशों में राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया तीव्र होती है। इसके विपरीत पिछड़े व विकासशील देशों में यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है।
राजनीतिक संकृति से अभिप्राय एक राजनीतिक व्यवस्था के नागरिकों के उस व्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण, विश्वास, भावनाओं तथा मूल्यों से है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की अपनी विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति होती है। राजनीतिक संस्कृति ही यह स्पष्ट करती है कि लोग राजनीतिक व्यवस्था को कितना महत्व देते हैं। वास्तव में किसी राजनीतिक व्यवस्था की सफलता या असफलता राजनीतिक संस्कृति पर ही निर्भर करती है। अत: तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों में राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन किया जाता है।
तुलनात्मक राजनीति के परम्परागत विद्वानों ने विधान मंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा नौकरशाही को ही राजनीतिक विषय क्षेत्र माना। यद्यपि आजकल संस्थाओं के स्थान पर कार्य–पद्धति और व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है, तथापि राजनीतिक सरंचना को बिल्कुल छोड़ा नहीं जा सकता। साधारणतया यह माना जाता है कि अन्तिम निर्णय लेने की संसद की शक्ति दिन–प्रतिदिन कम होती जा रही है और यह शक्ति कार्यपालिका के हाथों में आ गई है। इस सरकार के निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए यह आवश्यक है कि हम अधिक से अधिक देशों की कार्यपालिका और विधानमंडलों का अध्ययन करें।
तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् इस बात का भी अध्ययन करते हैं कि वे व्यक्ति जो राजसत्ता का प्रयोग करते हैं, समाज के किन वर्गों से सम्बन्धित हैं और उनकी सत्ता का क्या आधार है। प्रत्येक राज्य मे शासन की शक्ति कुछ विशिष्ट लोगों या एक विशिष्ट वर्ग के हाथों में होती है। जिन देशों मे स्वस्थ दलीय प्रणाली है, वही शासकों की भर्ती का मुख्य स्रोत राजनीतिक दल होते हैं। आर्थिक असमानता और राजनीतिक शासकों की भर्ती के ढ़ंग का राजनीतिक हिंसा और आन्तरिक कलह से गहरा सम्बन्ध है। क्रीसिस तथा वार्ड के शब्दों में, "जिन देशों में यत्नपूर्वक समाज में किन्ही विशेष वर्गों को 'राजनीतिक सत्ता' से वंचित रखा जाता है, वहाँ ये वर्ग हिंसक साधनों से सत्ता हथियाने का प्रयास करते हैं।"
तुलनात्मक राजनीति में आनुभाविक अध्ययन पर अधिक बल दिया गया है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक संस्थाओं, उनकी संरचनाओ की अपेक्षा इसके क्रियाशील कार्यकर्त्ताओं अथवा तत्वों के व्यवहार का अध्ययन होता है।
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है और लोकतंत्र में दलों का अनिवार्य है। प्राय: सभी दे शों में राजनीतिक दल पाये जाते हैं। अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया व जर्मनी में द्वि–दलीय प्रणाली पायी जाती है, जबकि फ्रांस, इटली, नार्वे, भारत इत्यादि देशो में बहुदलीय पद्धति पायी जाती है। साम्यवादी चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया, वियतनाम आदि मे एकदलीय पद्धति विद्यमान है। तुलनात्मक राजनीति का विद्यार्थी राजनीतिक दलों के संगठन, कार्यक्रम तथा कार्यों का अध्ययन करता है। राजनीति दल ही नहीं, बल्कि हित–समूह भी राजनीतिक सक्रियता के महत्वपूर्ण पहलू हैं। हित–समूह (इन्टरेस्ट ग्रुप्स) दलों और सरकार की नीतियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मजदूर संघ, रेलवे यूनियनों, व्यापारियों के संघ, व्यावसायिक संघ इत्यादि सभी दबाव गुटों की श्रेणी में आते हैं अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, इत्यादि लोकतंत्रीय राज्यों में दबाव समूह सरकारी निर्णयो को काफी प्रभावित करते हैं, जबकि चीन, इत्यादि साम्यवादी देशों में इनका महत्व बहुत कम है।
तुलनात्मक राजनीति के विद्वान इन प्रश्नों पर भी विचार करते हैं कि – शिक्षा के प्रसार का नागरिकों के राजनीतिक आचरण और उनकी राजनीतिक संस्थाओं पर क्या प्रभाव पडता है ', एक ही समाज के अन्तर्गत रहने वालो विभिन्न जातियों और धार्मिक निष्ठाओं में क्या परिवर्तन आ जातें हैं? क्या आर्थिक विकास द्वारा यह संभव है कि एशिया और अफ्रीका के नागरिकों को अपने परिवार, कुल, गांव, कबीले, धर्म और जाति के प्रति जो निष्ठाऐ हैं, धीरे–धीरे समाप्त हो जाएँ ओर उनके स्थान पर उनमें राष्ट्रीयता की भावना विकसित हो सके?
तुलनात्मक राजनीति में न केवल विकसित पश्चिमी देशों की शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है, बल्कि इसमें एशिया और अफ्रीका के पिछड़े और विकासशील देशों की शासन प्रणालियों का भी अध्ययन किया जाता है।
राजनीतिक सहभागिता से अभिप्राय नागरिकों की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से है। सभी राजनीतिक प्रणालियों में राजनीतिक सहभागिता का स्तर एक समान नहीं होता। उदार लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नागरिक राजनीतिक गतिविधियों में अधिक भाग लेते हैं जबकि पिछड़ी हुई तथा सर्वसत्तावादी राजनीतिक व्यवस्था को राजनीतिक भागीदारी के अधिक अवसर नहीं मिलते। वास्तव में राजनीतिक भागीदारी ही किसी व्यवस्था के औचित्य की कसौटी मानी जाती है। तुलनात्मक राजनीति में भागीदारी का महत्व है।
प्रत्येक राजनीति प्रणाली में अनेक राजनीतिक प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में निर्णय निर्माण की प्रक्रिया, न्यायिक प्रक्रिया इत्यादि अनेक प्रक्रियाएँ अनवरत रूप में चलती रहती हैं। इन राजनीतिक प्रक्रियाओं का राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
तुलनात्मक राजनीति मे 'युद्ध और शान्ति' तथा शक्ति सन्तुलन की समस्याओं पर विचार किया जाता है। इससे सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं।
नौकरशाही की प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विशेषतया वर्तमान राजनीतिक व्यवस्थाओं में नौकरशाही सरकार या प्रशासन की रीढ़ की हड्डी बन गई है। यदि आधुनिक युग को नौकरशाही का युग कहा जाए तो गलत न होगा। कल्याणकारी राज्य की धारणा के साथ–साथ नौकरशाही की भूमिका भी बढती चली गई। यहीं कारण है कि आज चाहे नीति का निर्माण करना हो या क्रियान्वयन करना हो, नौकरशाही सदैव प्रथम रहती है। नौकरशाही को सामाजिक–आर्थिक परिवर्तन में एक यंत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है इसलिए तुलनात्मक राजनीति में नौकरशाही का अध्ययन किया जाता है।
आधुनिक युग में तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र केवल मात्र राजनीति शास्त्र के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक राजनीतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन होने के कारण इसके विषय क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। इसी कारण तुलनात्मक राजनीति एक अन्तःअनुशासनात्मक दृष्टिकोण बन गया है। अब तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक शास्त्र के अलावा अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे कि समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, विज्ञान, रसायन विज्ञान इत्यादि का भी अध्ययन किया जाता है। आधुनिक विद्वानों की मान्यता है कि राजनीतिक व्यवस्थाओं की जटिलताओं को सामाजिक और आर्थिक संदर्भों में ही भली प्रकार से समझा जा सकता है।
राजनीति का सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था के आदर्शात्मक स्वरूप की अपेक्षा उसके व्यावहारिक व वास्तविक स्वरूप से अधिक है। इसीलिए तुलनात्मक राजनीति में मूल्य-साक्षेप राजनीतिक सिद्धान्तों का स्थान मूल्य-निरपेक्ष राजनीतिक सिद्धान्तों ने ले लिया है।
इस प्रकार तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र बहुत कुछ स्पष्ट, सुनिश्चित और निर्धारित हो गया है। जी. के . रॉबटर्स का कथन सही लगता है कि, इस प्रकार यह बात कि तुलनात्मक राजनीति 'कुछ भी नहीं है ' गलत साबित हो गया है और इसका प्रतिपक्षी दावा कि यह 'सब कुछ है ' संशोधित हो गया है। अर्थात् तुलनात्मक राजनीति का अपना स्वयं का विषय क्षेत्र बन गया है। परन्तु इसका अभिप्राय नही है कि तुलनात्मक राजनीति का एक ऐसा स्वतन्त्र शास्त्र बन गया है जिसका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है।
पुराने राजनीतिक विचारकों द्वारा तुलनात्मक अध्ययन में अपनाये गये तरीको को परम्परागत दृष्टिकोण कहा जाता है।
तुलनात्मक राजनीति के परम्परागत दृष्टिकोण की पांच मुख्य विशेषताएँ बतलायी जाती है :–
राजनीति के क्षेत्र में नये विश्लेषणों और अध्ययनों की आवश्यकता पड़ी। इसलिए नयी पद्धतियों और दृष्टिकोण की खोज होने लगी। विश्लेषण और परीक्षण की नयी पद्धति और नये दृष्टिकोणों का विकास हुआ। यों लार्ड ब्राइस, फ्रेडरिक जैसे विद्वानों ने तुलनात्मक राजनीति को नयी दिशा देने की कोशिश की, लेकिन इसके साहित्य का विकास हाल के वर्षों में ही हुआ। आमण्ड लुसियन पाई, सिडनी वर्बा, डेविड ई. ऐप्टर आदि आधुनिक विद्वानों ने तुलनात्मक राजनीतिक को आधुनिक रूप दिया। तुलना के लिए समान सिद्धान्तों व मूल्यों कों काम में लाया जाता है। तुलनात्मक राजनीति का आधुनिक दृष्टिकोण अधिक परीक्षण करने वाला, अधिक खोजबीन करने वाला और अधिक व्यवस्थित है। यह अध्ययन राजनीतिक संस्थाओं के मूल में जाने का प्रयास करता है। आधुनिक दृष्टिकोण में हित समूहों, दबाव समूहों, राजनीतिक दलों के विचारधारा से प्रभावित व्यवहारों का विशेष अध्ययन किया जाता है। यह दृष्टिकोण राजनीतिक और अन्य व्यवहारों के बीच वास्तविक सम्बन्धों की खोज करता है।
(अ) आज विश्व में 190 से अधिक प्रभुता प्राप्त देश हैं। नये (स्वतन्त्र) राष्ट्रों की जनता अब उपनिवेशों के प्रजाजनों की भांति सीधी व नम्र नहीं रही है। आज के समुदाय पूर्व की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिकृत है।
(ब) सभी देशों में जनसाधारण की राजनीतिक सहभागिता बढ रही है।
(स) विकसित देशों के नागरिक भी पूर्व की अपेक्षा अधिक राजनीतिकृत हो गये हैं, और वे अपनी सरकारों से विभिन्न समस्याओं का वृद्धि–पूर्ण मात्रा में निराकरण चाहने लगे हैं।
(द) वर्तमान शती में संचार के क्षेत्र में भी एक क्रान्ति हुई है। जनसाधारण तक पहुँचने के संचार माध्यमों ने जनसाधारण में राजनीतिक जागृति को बहुत बढ़ाया है। तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करती है और उसे समझने व समझाने में बडी सहायक है। इसके द्वारा राजनीति के अध्ययन को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया गया है तथा राजनीति में व्यवहारिक सामान्य नियमों अथवा सिद्धान्तो का निर्माण किया गया है।
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन के साधारण रूप में दो प्रयोजन हैं, जिन्हें हम, संक्षेप, में इस प्रकार रख सकते हैं। प्रथम, यह हमें विदेशों में शासन और राजनीति के क्षेत्र में घटी और संभावित घटनाओं का अच्छी तरह से निर्वाचन करने में सहायता देता है। दूसरे, विभिन्न राज्यों की शासन–पद्धतियाँ उनकी ऐतिहासिक व भौगोलिक दशाओं, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक संस्थाओं तथा विचारों से निर्धारित होती हैं। अधिकतर देशों में शासन पद्धति और विचारधारा का गहरा सम्बन्ध है।
तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए, विभिन्न कारणों से उपयोगी है। किसी भी देश के विद्यार्थियों के लिए, यह एक प्रकार से विदेशों की मार्गदर्शिता के समान है। विद्यार्थी को अन्य देशों के बारे में अनेक प्रकार की उपयोगी व शिक्षाप्रद जानकारी प्राप्त होती है। ऐसे ही, यदि हम हाल ही में स्वतन्त्र हुए कुछ अल्पविकसित दे शों की राजनीतिक पद्धतियों की 20 तुलना करें तो उनमें से प्रत्येक में पुराने विदेशी शासकों द्वारा वही कायम की गयी संस्थाओं और उनकी परम्पराओं का ज्ञान उनके वर्तमान अन्तरों को समझने के लिए प्राप्त करना अति आवश्यक है। इसका ज्ञान हमें तुलनात्मक अध्ययन द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
दूसरे शब्दों में, संरचनात्मक–कार्यात्मक उपागम राजनीतिक पद्धतियों की गहराई में परिष्कृत परिभाषा की ओर जाने का प्रयास करता है। यह प्रत्येक पद्धति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण संस्थाओं को जानने तथा उनके राजनीतिक अन्तरों व समानताओं के वर्गीकरण व स्पष्टीकरण तक पहुंचने का प्रयत्न करता हैं हम इससे राजनीतिक व्यवहार और सरकार के कार्यों के बारे में परिकल्पना का निर्धारण कर सकते हैं और ऐसे शब्दों में जिनकी सहायता से हम विभिन्न राजनीतिक पद्धतियों की तुलना कर सकें।
तुलनात्मक पद्धति अभी 'प्रवाह की स्थिति' में है। यह निर्णायक या अंतिम स्थिति में नहीं पहुंच पाया है। अतएव, इसके रास्ते में अनेक कठिनाइयाँ पायी जाती है। तुलना करने के लिए अनेक बातों की आवश्यकता पड़ती है।
दूसरी समस्या की ओर संकेत करते हुए सरटोरी ने लिखा है कि जब तक वृहत स्तर पर कुछ ऐसे प्रत्ययों का निर्माण नहीं हो जिनके बारे में अधिक से अधिक जानकारी हो और जो तुलनीय हो, तब तक राजनीति में तुलनात्मकता संभव नहीं है। इसके लिए तुलना के विषयों में समानता का कुछ न कुछ अंश आवश्यक है और उनके बारे में अध्ययनकर्ता को पूरी जानकारी होनी चाहिए।
तीसरी समस्या विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों के अध्ययन और विदेशी भाषाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में पैदा होता है। तुलनात्मक अध्ययन के लिए विभिन्न राष्ट्रों की सुकृतियों और विदेशी भाषाओं की जानकारी जरूरी है। किसी भी शोधकर्त्ता के लिए सभी भाषाओं की जानकारी प्राप्त करना संभव नहीं है और ना तो विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में सही और पूरी जानकारी प्राप्त कर लेना ही संभव है।
चौथी कठिनाई आँकडे जमा करने और राजीतिशारत्र में वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग से सम्बधित है। मनुष्य का स्वभाव उसका व्यवहार, उसके क्रियाकलाप और उसकी संस्थाओं की प्रकृति इतनी जटिल, व्यापक परिवर्तनशील है कि उसके बारे में पूरे आँकडे जमा कर लेना आसान नहीं है।
इन कठिनाइयों के बावजूद राजनीतिशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन काफी लोकप्रिय हो गया है। दिन–प्रतिदिन इसकी कमियों को दूर किया जा रहा है और इसे अधिक से अधिक पूर्ण बनाने की कोशिश की जा रही है।
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article तुलनात्मक राजनीति, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.