कामाख्या, देवी या शक्ति के प्रधान नामों में से एक नाम है। यह तांत्रिक देवी हैं और काली तथा 'त्रिपुर सुन्दरी' के साथ इनका निकट समबन्ध है। इनकी कथा का उल्लेख कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में विस्तृत रूप से हुआ है। समूचे असम और पूर्वोत्तर बंगाल में शक्ति अथवा कामाक्षी की पूजा का बड़ा महात्म्य है। असम के कामरूप में कामाख्या का प्रसिद्ध मन्दिर अवस्थित है।
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कामाख्या माता | |
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Member of शक्ति पीठ | |
जगजन्नी जगदम्बा स्वरूपा भगवती कामाख्या | |
अन्य नाम | सती, काली, कामाख्या, कामेश्वरी, नीलांचलवासिनी, योनिमुद्राधारीनी, तंत्रेश्वरी, जगतमाता, भगवती |
संबंध | सती, महादेवी, भगवती, शक्ति पीठ, जगजन्नी |
निवासस्थान | नीलांचल, कामाख्या धाम, मणिद्वीप, कैलाश |
मंत्र | ॐ कामाख्ये वरदे देवी नीलपर्वत वासिनी त्वं देवि जगतमाता योनि मुद्रे नमोस्तुते । |
अस्त्र | त्रिशूल, चक्र, गदा, शंख, डमरू, खड्ग, तलवार, धनुष-बाण, ढाल और कमल |
जीवनसाथी | कामेश्वर (शिव का रूप) |
त्यौहार | कामाख्या पूजा, काली पूजा, नवरात्री, सती पूजा |
पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में पति शिव का अपमान होने के कारण सती हवनकुंड में ही कूद पड़ी थीं जिसके शरीर को शिव कंधे पर दीर्घकाल तक डाले फिरते रहे। सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बन गए तथा वो शक्तिपीठ एक देवी के रूप मे परिवर्तित हो गया। शाक्त तथा शैव भक्तों के परम तीर्थ हुए। इन्हीं पीठों में से एक—कामरूप असम में स्थापित हुआ, जो आज की गौहाटी के सामने 'नीलांचल पर्वत' नामक पहाड़ी पर स्थित है। तथा इस शक्तिपीठ से जो देवी प्रकट हुई उन्हे "कामाख्या देवी" के नाम से जाना जाता है।
पश्चिमी भारत में जो कामारूप की नारी शक्ति के अनेक अलौकिक चमत्कारों की बात लोकसाहित्य में कही गई है, उसका आधार इस कामाक्षी का महत्व ही है। 'कामरूप' का अर्थ ही है 'इच्छानुसार रूप धारण कर लेना' और विश्वास है कि असम की नारियाँ चाहे जिसको अपनी इच्छा के अनुकूल रूप में बदल देती थीं।विश्व के सबसे प्राचीनतम तंत्र आगम मठ के अनुसार कामाख्या मे आज भी तंत्र की ऐसी शाखायें है जिनके अनुसार कुछ भी पाया जा सकता है परंतु बहुत ही कठिन है
असम के पूर्वी भाग में अत्यंत प्राचीन काल से नारी की शक्ति की अर्चना हुई है। महाभारत में उस दिशा के स्त्रीराज्य का उल्लेख हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि मातृसत्तात्मक परंपरा का कोई न कोई रूप वहाँ था जो वहाँ की नागा आदि जातियों में आज भी बना है। ऐसे वातावरण में देवी का महत्व चिरस्थायी होना स्वाभाविक ही था और जब उसे शिव की पत्नी मान लिया गया तब शक्ति संप्रदाय को सहज ही शैव शक्ति की पृष्ठभूमि और मर्यादा प्राप्त हो गई। फिर जब वज्रयानी प्रज्ञापारमिता और शक्ति एक कर दी गईं तब तो शक्ति गौरव का और भी प्रसार हो गया। उस शक्ति विश्वास का केंद्र गोहाटी की कामाख्या पहाड़ी का यह कामाक्षी पीठ है।
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