वैज्ञानिक विधि

विज्ञान, प्रकृति का विशेष ज्ञान है। यद्यपि मनुष्य प्राचीन समय से ही प्रकृति सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता रहा है, फिर भी विज्ञान अर्वाचीन काल की ही देन है। इसी युग में इसका आरम्भ हुआ और थोड़े समय के भीतर ही इसने बड़ी उन्नति कर ली है। इस प्रकार संसार में एक बहुत बड़ी क्रांति हुई और एक नई सभ्यता का, जो विज्ञान पर आधारित है, निर्माण हुआ।

वैज्ञानिक विधि
वैज्ञानिक विधि (चित्र में टेक्स्ट फ्रेंच भाषा में है)। इसमें वैज्ञानिक विधि के मुख्य चार चरण बताए गए हैं- प्रयोग (सबसे नीचे), प्रेक्षण (बाएँ), सिद्धान्तीकरण (ऊपर), पूर्वकथन या प्रागुक्ति (दाएँ)
वैज्ञानिक विधि
वैज्ञानिक विधि - मन में कोई प्रशन उठना या कोई विशेष प्रेक्षण (सबसे ऊपर) ; अनुसन्धान का विषय ; परिकल्पना ; प्रयोग एवं परीक्षण (सबसे नीचे) ; आंकड़ों का विश्लेषण ; निषकर्ष को प्रस्तुत करना।

ब्रह्माण्ड में होने वाली परिघटनाओं के परीक्षण का सम्यक् तरीका भी धीरे-धीरे विकसित हुआ। किसी भी चीज के बारे में यों ही कुछ बोलने व तर्क-वितर्क करने के बजाय बेहतर है कि उस पर कुछ प्रयोग किये जायें और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय। इस विधि के परिणाम इस अर्थ में सार्वत्रिक (युनिवर्सल) हैं कि कोई भी उन प्रयोगों को पुनः दोहरा कर प्राप्त आंकड़ों की जांच कर सकता है।

सत्य को असत्य व भ्रम से अलग करने के लिये अब तक आविष्कृत तरीकों में वैज्ञानिक विधि सर्वश्रेष्ठ है। संक्षेप में वैज्ञानिक विधि निम्न प्रकार से कार्य करती है:

  • (१) ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण करिए,
  • (२) एक संभावित परिकल्पना (hypothesis) सुझाइए जो प्राप्त आकड़ों से मेल खाती हो,
  • (३) इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणी (prediction) करिये,
  • (४) अब प्रयोग करके भी देखिये कि उक्त भविष्यवाणियाँ प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों से सत्य सिद्ध होती हैं या नहीं। यदि आंकड़े और प्राक्कथन में कुछ असहमति (discrepancy) दिखती है तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित करिये,
  • (५) उपर्युक्त चरण (३) व (४) को तब तक दोहराइये जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आंकड़ों में पूरी सहमति (consistency) न हो जाए ।

तार्किक प्रत्यक्षवादियों का विचार था कि किसी सिद्धान्त के 'वैज्ञानिक' होने की कसौटी यह है कि उसे (कभी भी, किसी के द्वारा) जाँचा जा सके। लेकिन कार्ल पॉपर का विचार था कि यह सोच गलत है। कॉर्ल पॉपर का कहना था कि कोई सिद्धान्त तब तक 'वैज्ञानिक सिद्धान्त' नहीं है, जब तक उस सिद्धान्त को किसी भी एक तरीके से गलत सिद्ध किया जा सके।

किसी वैज्ञानिक सिद्धान्त या वैज्ञानिक परिकल्पना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसे असत्य सिद्ध करने की गुंजाइश (scope) होनी चाहिये। जबकि मजहबी मान्यताएं ऐसी होती हैं जिन्हे असत्य सिद्ध करने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उदाहरण के लिये 'जो जीसस के बताये मार्ग पर चलेंगे, केवल वे ही स्वर्ग जायेंगे' - इसकी सत्यता की जांच नहीं की जा सकती।

इतिहास

प्रश्न यह है कि विज्ञान की द्रुत गति से जो उन्नति हुई, उसका श्रेय किसे है? क्या प्राचीन काल के मनुष्य इन अर्वाचीन वैज्ञानिकों की अपेक्षा बुद्धि कम रखते थे? यदि ऐसी बात है, तो दर्शन, साहित्य एवं ललित कलाओं की उन्नति प्राचीन समय में इतनी अधिक क्यों हुई? संभवतः इसका रहस्य उन वैज्ञानिक विधियों में निहित है, जिनका प्रश्रय पाकर विज्ञान इतनी उन्नति कर सका है।

अर्वाचीन विज्ञान का आरंभ लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व हुआ। जैसा ऊपर कहा गया है, प्राचीन काल में भी विज्ञान की कुछ उन्नति हुई, किन्तु उसका क्रम आगे न बढ़ पाया। इसलिए कुछ बात इसके पीछे अवश्य रही होगी। वस्तुत: प्राचीन काल के मनीषियों ने जो भी ज्ञान अर्जित किया, उसे बुद्धिवादी कहना ठीक होगा। अपनी बुद्धि और तर्क के बल पर ज्ञान की उच्च कोटि की बातें उन्होंने बताईं, किंतु उनके प्रकार और वर्धन की व्यवस्था नहीं थी और संसार भर में उनका व्यापक प्रचार और प्रसारण नहीं हो पाया अर्वाचीन विज्ञान इसके विपरीत प्रायोगिक ज्ञान है, जिसका आरंभ में बड़ा विरोध हुआ। इसी के फलस्वरूप गैलिलियो जैसे अग्रगामी वैज्ञानिकों को कड़ी यातनाएँ सहनी पड़ीं। फिर भी प्रयोग द्वारा सत्यापन विधि के भीतर ही प्रसारण का बीज भी छिपा हुआ था। इस प्रकार जो ज्ञान मिलता गया, वह एक शृंखला में आबद्ध हो चला, जिसका क्रम आगे भी जारी रहा। इस ज्ञान से शक्ति के नए नए स्रोतों का पता चला और परिणामस्वरूप न केवल इसका विरोध कम होता गया अपितु एक बहुत बड़ी क्रांति समाज में हुई। मशीन युग का सूत्रपात हुआ और संसार में आशा की एक नई किरण सामने आई। किंतु जिस प्रकार सभी वस्तुओं के साथ अच्छाई और बुराई दोनों के पहलू जुड़े हुए हैं, विज्ञान भी मानव के लिए केवल वरदान ही न रहा, उसका पैशाचिक रूप हिरोशिमा में ऐटम बम के रूप में विश्व ने देखा, जिसके विस्फोट के कारण संसार के विनाश तथा प्रलय की लीला का दृश्य उपस्थित हो गया। इस प्रकार संसार के सामने "सत्य को केवल सत्य के लिए" खोज न करने की आवश्यकता जान पड़ी और "सत्यं शिवं सुंदरम्" के अदर्श को विज्ञान जगत् में भी अपनाना ही श्रेयस्कर मालूम हुआ। विज्ञान इस प्रकार नियंत्रित होकर ही मानव कल्याण में योगदान कर सकता है। इसी नियंत्रण के फलस्वरूप परमाण्वीय भट्ठियाँ बनीं, जो एक प्रकार से नियंत्रित ऐटम बम मात्र हैं, किंतु जिनसे अपार सुविधाएँ मिल सकती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि अल्प काल में ही विज्ञान ने बड़ी उन्नति की और इसका सब श्रेय प्रयोगविधि को है, जिसका उपयोग प्राचीन समय में नहीं किया गया था। इस प्रयोगविधि में प्रयोग का महत्त्व सर्वोपरि है, फिर भी अन्य और विधियों का उपयोग भी एक विशेष ढंग और क्रम से किया जाता है, जिन्हें हम वैज्ञानिक विधियाँ कह सकते हैं।"(वैज्ञानिक विधि ज्ञान प्राप्त करने का एक अनुभवजन्य तरीका है जो कम से कम 17 वीं शताब्दी के बाद से विज्ञान के विकास की विशेषता है। इसमें सावधानीपूर्वक अवलोकन शामिल है, जो कि मनाया जाता है, इसके बारे में कठोर संदेह को लागू करना, यह देखते हुए कि संज्ञानात्मक मान्यताएं एक को कैसे व्याख्या करती हैं, इसमें शामिल हैं, इसमें प्रेरणों के माध्यम से, प्रेरणों के माध्यम से, अवधारणाओं से उत्पन्न कटौती के माध्यम से; संवेदनाओं से उत्पन्न कटौती के प्रयोगात्मक और माप-आधारित परीक्षण; और प्रायोगिक निष्कर्षों के आधार पर अवधारणाओं (परिमाण), ये वैज्ञानिक पद्धति के सिद्धांत हैं, जैसा कि सभी वैज्ञानिक उद्यमों के लिए लागू की निश्चित सीमा से अलग है। "वैज्ञानिक अनुसंधान" यहां रीडायरेक्ट है। प्रकाशक के लिए, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रकाशन देखें।)"

प्रमुख वैज्ञानिक विधियाँ

विज्ञान के अध्ययन में जिन विधियों का उपयोग सामूहिक रूप से अथवा आंशिक रूप से किया जाता है, उनका नीचे वर्णन किया जा रहा है :

वैज्ञानिक विधि 
विज्ञान की प्रक्रिया

(1) निरीक्षण (observation) - जिस प्राकृतिक वस्तु या घटना का अध्ययन करना हो, सबसे पहले उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण आवश्यक है। यदि कोई घटना क्षणिक हो, तो उसका चित्रण कर लेना आवश्यक है, ताकि बाद में उसका निरीक्षण हो सके, जैसे ग्रहण। निरीक्षण के लिए सूक्ष्मदर्शी या दूरदर्शी का उपयोग किया जा सकता है, ताकि अधिक विस्तार के साथ और ठीक ठीक निरीक्षण हो सके। यदि अन्य लोग भी निरीक्षण का कार्य कर रहे हों, तो उसका स्वागत करना चाहिए कि केवल निरीक्षित वस्तु पर ही ध्यान केंद्रित रहे, जैसे अर्जुन को वाणविद्या के परीक्षण के समय केवल पक्षी की आंख दिखाई पड़ रही थी। कभी-कभी किस वस्तु के विषय में मस्तिष्क में पहले से कुछ धारणा बनी रहती है, जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती है। निरीक्षण के समय इस प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए।

(2) वर्णन (description)- निरीक्षण के साथ ही साथ, या तुरंत बाद, निरीक्षित वस्तु या घटना का वर्णन लिखना चाहिए। इसके लिए नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पढ़नेवाले के सामने निरीक्षित वस्तु का चित्र खिंच जाए। जहाँ कहीं आवश्यकता हो, अनुमान के द्वारा अंकों में वस्तु के गुणविशेष की माप दे देनी चाहिए, किंतु यह तभी करना चाहिए जब वैसा करना बाद में उपयोगी सिद्ध होनेवाला हो। फूलों के रंग का वर्णन करते समय अनुमानित तरंगदैर्घ्य देना व्यर्थ है, किंतु किसी वस्तु की कठोरता की तुलना अन्य वस्तु की अपेक्षा अंकों में देना ही ठीक है। व्यर्थ के ब्यौरे न दिए जाएँ और भाषा सरल तथा सुबोध हो। देश, काल एवं वातावरण का वर्णन दे देना चाहिए ताकि वस्तु किन परिस्थितियों में उपलब्ध हो सकती है, यह ज्ञात हो सके।

(3) कार्य-कारण-विवेचन (cause and effect) - प्रकृति के रहस्योद्घाटन में कार्यकारण का विवेचन महत्वपूर्ण है। वर्षा का होना, बादल की गरज, बिजली की चमक, आँधी और तूफान आदि घटनाएँ साथ हो सकती हैं। इनमें कौन कितना कारण हैं? प्राय: कारण पहले आता है, किंतु केवल क्रम ही कारण का निश्चय नहीं करता। इसलिए इन बातों पर थोड़ा विचार कर लेना चाहिए, ताकि आगे किसी प्रकार का भ्रम न पैदा हो। साथ ही विभिन्न कारणों का तारतम्य भी बाँध रखना चाहिए। ये सब बातें घटना को समझने में सहायक होती हैं।

(4) प्रयोगीकरण (experimentation) - विज्ञान की इस युग में जो भी शीघ्र उन्नति हो पाई, उसका एकमात्र श्रेय इस विधि को ही है, क्योंकि अन्य विधियाँ तो इसी मुख्य विधि के इर्द गिर्द संजोई गई हैं। यह तकनीक इस युग की देन है। प्राचीन समय में इसी के अभाव में विज्ञान की प्रगति नहीं हो पाई थी। अंतरिक्षयात्रा एवं पारमाण्वीय शक्ति का विकास, इसी प्रयोगीकरण के कारण, संभव हो सका है।

प्रयोग और साधारण निरीक्षण में क्या अंतर है? प्रयोग में भी तो निरीक्षण का कार्य होता है। वास्तव में साधारण निरीक्षण में प्रकृति के साथ किसी प्रकार का दखल नहीं दिया जाता, किंतु प्रयोग में दखल दिया जाता है। फलस्वरूप ऐसी संभावनाएँ एवं परिस्थितियाँ निकल आती हैं जिनसे प्रयोग के समय का निरीक्षण रहस्योद्घाटन में बड़ा सहायक होता है।

प्रयोग सत्य जानने के लिए किए जाते हैं, किंतु निरंतर वैज्ञानिक प्रयोगों के फलस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि केवल सत्य के ही नाम पर प्रयोग करना श्रेयस्कर नहीं, यदि वह सत्य मंगलकारी न हो। उस सत्य से क्या लाभ जिसके फलस्वरूप सारे संसार का विनाश निश्चितप्राय हो। इसलिए अच्छा ही है कि इस समय सारे संसार में परमाण्वीय परीक्षण का विरोध हो रहा है। सत्य की खोज के वास्ते ही यह परीक्षण कुछ राष्ट्रों के द्वारा होते रहते हैं, किंतु उसके परिणामस्वरूप रेडियो ऐक्टिवता बढ़ती जा रही है और हो सकता है, भविष्य में उसके कारण जनजीवन के लिए भारी खतरा पैदा हो जाए।

प्रयोग करते समय सच्चाई और ईमानदारी बरतनी पड़ती है। शुद्धि और त्रुटियों का ध्यान रखना पड़ता है। अनेक विभिन्नताओं के अध्ययन के पश्चात् कोई परिणाम निकाला जाता है। यदि कोई असंगत बात दिखलाई पड़े, तो उसे छोड़ नहीं दिया जाता, बल्कि ध्यानपूर्वक उसपर विचार किया जाता है। कभी-कभी इसी क्रम में बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं। निरीक्षण को कई बार दुहराया जाता है और मध्यमान परिणाम पर ही बल दिया जाता है। तकनीकी भाषा में विधि, निरीक्षण एवं परिणाम का वर्णन किया जाता है।

(5) परिकल्पना (hypothesis) - प्रयोग करने का एक मात्र उद्देश्य प्रकृति के किसी रहस्य का उद्घाटन होता है। कोई घटना क्यों और कैसे घटित होती है, इसको समझना पड़ता है। वर्षा क्यों होती है? इंद्रधनुष कैसे बनता है? इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए एक परिकल्पना की आवश्यकता पड़ती है। यदि परिकल्पना ठीक है, तो वह जाँच में ठीक बैठेगी। परिकल्पना की जाँच के लिए विभिन्न प्रयोग किए जा सकते हैं। आगे चलकर ऐसे तथ्य भी प्रकाश में आते हैं जो उस परिकल्पना की पुष्टि कर सकते हैं। यदि ऐसी बातें हैं, तो उसी परिकल्पना को सिद्धांत या नियम की संज्ञा दी जाती है, अन्यथा उसका संशोधन करना पड़ता है, या उसे छोड़ देना पड़ता है। न्यूटन के गति के नियम और आइन्स्टान का सापेक्षवाद का सिद्धांत इसके उदाहरण हैं।

वैज्ञानिक विधि 
आगमन (इण्डक्शन) तथा 'विशेष' से 'सामान्य' का प्रकट होना

(6) आगमन (induction) - जब किसी वर्ग के कुछ सदस्यों के गुण ज्ञात हों, तो उनके आधार पर उस वर्गविशेष के गुणों के बारे में अनुमान लगाना उपपादन कहलाता है। उदाहरण के लिए, अ, ब, स आदि। मनुष्य मरणशील प्राणी हैं; इसके आधार पर कहा जाता है कि सब मनुष्य मरणशील प्राणी है। इस प्रकार के सामान्यीकरण (generalisation) के लिए यह आवश्यक है कि जो नमूने इकट्ठे किए जाएँ, वे अनियत तरीके से किए जाएँ, नहीं तो जो परिणाम निकाला जाएगा वह ठीक नहीं होगा। कभी कभी कुछ राशियों का मध्यमान निकाला जाता है, किंतु यह तभी करना ठीक होगा जब ऐसा करना तर्कसंगत हो। उदाहरणार्थ, "लेखा जोखा थाहे, लड़का डूबा काहे" से पता चलता है कि नदी की औसत गहराई किसी लड़के की ऊँचाई से कम होते हुए भी लड़का डूब सकता है।

(7) निगमन (Deduction) - आगमन में जो कार्य होता है, उसका उल्टा निगमन में होता है। इसमें किसी वर्ग विशेष के गुणों के आधार पर उस वर्ग के किसी सदस्य के गुणों के बारे में अनुमान लगाया जाता है, जैसे मानव मरणशील प्राणी है, इसलिए "क", जो एक मनुष्य है, मरणशील है। निष्कर्ष निकालने की इस विधि को ही निगमन कहते हैं। इसके लिए दो बातें आवश्यक हैं: निगमन व्यवहार्य और तर्कसंगत होना चाहिए।

(8) गणित और प्रतिरूप (mathematics and model) - बहुत सी बातें हमारी समझ से परे हैं, उनके समझने में प्रतिरूप (model) से बड़ी सहायता मिलती हैं। शरीर की आंतरिक रचना, अणुओं का संगठन आदि विषय प्रतिरूप की सहायता से अच्छी तरह बोधगम्य हो जाते हैं। गणित के द्वारा भी विज्ञान के कठिन प्रश्नों को हल करने में बड़ी सहायता मिलती है। बहुत सी ऐसी बातें हैं जो हमारी ज्ञानेंद्रियों द्वारा आत्मसात् नहीं की जा सकतीं, जैसे पदार्थतरंगें, किंतु गणित के सूत्रों के द्वारा उनकी छानबीन संभव हो पाई है और प्रयोगों द्वारा उनकी पुष्टि भी हुई है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आधुनिक विज्ञान की प्रगति में गणित का बहुत बड़ा हाथ है।

(9) वैज्ञानिक दृष्टिकोण (scientific outlook) - अंत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधि रह जाती है। वह है किसी प्रश्न के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अपनाना। खुले दिमाग से खोज की भावना रखकर विचार करना ही सही दृष्टिकोण है अपने व्यक्तित्व को प्रश्न से अलग रखना चाहिए और सच्चाई एवं पक्षपातरहित भाव से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए। जीवन के रोज के प्रश्नों में भी इस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना श्रेयस्कर है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

Tags:

वैज्ञानिक विधि इतिहासवैज्ञानिक विधि प्रमुख याँवैज्ञानिक विधि इन्हें भी देखेंवैज्ञानिक विधि बाहरी कड़ियाँवैज्ञानिक विधि सन्दर्भवैज्ञानिक विधिविज्ञान

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

मानव दाँतहम साथ साथ हैंगुजरातसंज्ञा और उसके भेदपर्यटनपेशवाकिरातार्जुनीयम्गौतम बुद्धभारत के प्रधान मंत्रियों की सूचीमुअनजो-दड़ोशाहरुख़ ख़ानशेयर बाज़ारगर्भावस्थाप्राकृतिक आपदाटिहरी बाँधपरिवारमैथिलीशरण गुप्तलालू प्रसाद यादवजम्मू और कश्मीरसरोजिनी नायडूप्यार किया तो डरना क्या (1998 फ़िल्म)अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूहसंघ सूचीग्रहमोइनुद्दीन चिश्तीनवदुर्गादांडी मार्चप्राथमिक चिकित्साशहतूतलोक सभाहृदयगणेशमुग़ल साम्राज्यश्वसन तंत्रमानव का पाचक तंत्रसी॰पी॰ जोशीमृदाआदिवासी (भारतीय)तंपनसमानतासमावेशी शिक्षाकालिदासलखनऊ समझौतामेवाड़ की शासक वंशावलीबिरसा मुंडागुड़ी पड़वाइंदिरा गांधी की हत्याबुर्ज ख़लीफ़ागुड़हलकिसी का भाई किसी की जानऔद्योगिक क्रांतिमुहम्मद बिन तुग़लक़महामृत्युञ्जय मन्त्रयोगप्रदूषणभारतीय अर्थव्यवस्थासाईबर अपराधबद्रीनाथ मन्दिरक्रिकेटस्वास्थ्य शिक्षाताजमहलपानीपत के युद्धअर्थशास्त्रभारतीय संविधान सभाव्यवसायराधाअली इब्न अबी तालिबसौर ऊर्जाउत्तर प्रदेश के मंडलकंप्यूटरज़ुहर की नमाजरोहित शर्मादेवनागरीराजनीति विज्ञानतेरे नामसूचना का अधिकार अधिनियम, २००५वृन्दावनमानचित्ररमज़ान🡆 More