आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूलनिवासी होता है। 2011 जनगणना के अनुसार भारत में आदिवासी भारत की जनसंख्या का 8.6% हैं। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में गोंड, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, नायक,
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भील, सहरिया, संथाल, भूमिज, हो, उरांव, बिरहोर, पारधी, असुर, भिलाला, मीणा, आदि हैं।
भारत में आदिवासियों को प्रायः 'जनजातीय लोग' के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड, अंडमान-निकोबार, सिक्किम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, नागालैंड और असम में आदिवासी बहुसंख्यक व गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक हैं। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में "अनुसूचित जनजाति" के रूप में मान्यता दी है।
चंदा समिति ने सन् 1960 में अनुसूचति जातियों के अंर्तगत किसी भी जाति को शामिल करने के लिये 5 मानक निर्धारित किया:
बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे हैं।
भारत में सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषाएं है। भाषाविज्ञानियों ने भारत के सभी आदिवासी भाषाओं को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में रखा है-गोंडी, द्रविड़, आस्ट्रिक और लेकिन कुछ आदिवासी भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भी आती हैं। आदिवासी भाषाओं में ‘भीली’ बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर ‘गोंडी’ भाषा और तीसरे स्थान पर ‘संताली’ भाषा है। चौथे स्थान पर कोरकू भाषा है । भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही 5 आदिवासी भाषाओं - संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया - को 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्रदान किया गया।
भारत की 114 मुख्य भाषाओं में से 22 को ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें हाल में शामिल की गयी संताली और बोड़ो ही मात्र आदिवासी भाषाएं हैं। अनुसूची में शामिल संताली (0.62), सिंधी, नेपाली, बोड़ो (सभी 0.25), मिताइ (0.15), डोगरी और संस्कृत भाषाएं एक प्रतिशत से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं। जबकि भीली (0.67), गोंडी (0.25), टुलु (0.19) और कुड़ुख 0.17 प्रतिशत लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाने के बाद भी आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं की गयी हैं। (जनगणना 2001)
आदिवासियों का अपना धर्म भी है। ये प्रकृति-पूजक हैं और वन, पर्वत, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिन्दूकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परन्तु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड (सरना कोड या आदिवासी धर्म कोड) की मांग कर रहे हैं।
भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे एबओरिजिन्स, एबोरिजिनल, एनिमिस्ट, ट्राइबल रिलिजन या ट्राइब्स इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है। हालांकि 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को अलग से गिनना बन्द कर दिया गया है।
भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति।
विश्वदृष्टि है कि जीववाद गैर-मानव संस्थाओं (जानवरों, पौधों, और निर्जीव वस्तुओं या घटनाओं) में एक आध्यात्मिक सार है। धर्म और समाज के विश्वकोश का अनुमान है कि भारत की आबादी का 1-5% जीववाद है। भारत सरकार मानती है कि भारत के स्वदेशी पूर्व-हिंदू जीववाद-आधारित धर्मों की सदस्यता लेते हैं।
कुछ स्वदेशी आदिवासी लोगों की विश्वास प्रणाली के लिए एक शब्द के रूप में धर्म के नृविज्ञान में जीववाद का उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से संगठित धर्म के विकास से पहले। हालांकि प्रत्येक संस्कृति की अपनी अलग-अलग पौराणिक कथाएं और अनुष्ठान हैं, "जीववाद" को स्वदेशी लोगों के "आध्यात्मिक" या "अलौकिक" दृष्टिकोण के सबसे आम, मूलभूत सूत्र का वर्णन करने के लिए कहा जाता है। शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण इतना मौलिक, सांसारिक, रोज़मर्रा का और मान लिया गया है कि अधिकांश शत्रुतापूर्ण स्वदेशी लोगों के पास अपनी भाषाओं में एक शब्द भी नहीं है जो "जीववाद" (या "धर्म") से मेल खाता हो; यह शब्द एक मानवशास्त्रीय रचना है।
सरनावाद या सरना (स्थानीय भाषा: सरना धोरोम, जिसका अर्थ है "पवित्र जंगल का धर्म") मध्य-पूर्व भारत के राज्यों की आदिवासी आबादी, जैसे मुंडा, हो, संथाल, भूमिज, उरांव और अन्य के स्वदेशी धर्मों को परिभाषित करता है। मुंडा, हो, संथाल, भूमिज और उरांव जनजाति ने सरना धर्म का पालन करते हैं, जहां सरना एक पवित्र धार्मिक स्थल है। उनका धर्म पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही जो मौखिक परंपराओं पर आधारित है। इसमें प्रकृति, जंगल, पहाड़ (बुरु), ग्राम देवता, सूर्य और चंद्रमा की पूजा शामिल है।
डोनी-पोलो पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश से तानी के स्वदेशी धर्मों, एनिमिस्टिक और शैमैनिक प्रकार के लिए दिया गया पदनाम है। "डोनी-पोलो" का अर्थ "सूर्य-चंद्रमा" है।
भारत में 461 जनजातियां हैं, जिसमें से 424 जनजातियों भारत के सात क्षेत्रों में बंटी हुई हैं:
जातियाँ: लेपचा, भूटिया, थारू, बुक्सा, जॉन सारी, खाम्पटी, कनोटा।
इन सब में मंगोल जाति के लक्षण मिलते हैं। जैसे:- तिरछी छोटी आंखे (चाइनीज, तिब्बती), पीला रंग, सीधे बाल, चेहरा चौड़ा, चपटा नाक।
तराई जिलों में थारु, बोक्सा, भूटिया, राजी, जौनसारी,केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में गोंड़, धुरिया, ओझा, पठारी, राजगोड़, तथा देवरिया बलिया, वाराणसी, सोनभद्र में खरवार, व ललितपुर में सहरिया,सोनभद्र में बैगा, पनिका,पहडिया, पंखा, अगरिया, पतरी, चेरो भूइया।
असुर, अगरिया, बैगा, बनजारा, बैठुडी, बेदिया, खरवार, भूमिज, संथाल आदि।
नागा, मिजो, गारो, खासी, जयंतिया, आदि, न्याशी, अंगामी, भूटिया, कुकी, रेंगमा, बोडो और देवरी वगैरा जनजाति हैं।
संथाल:- भारत की सबसे बड़ी जनजाति। संथाली भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हैं।
पहचान : रंग काला, चॉकलेटी कलर, लंबा सिर, चौड़ी छोटी व चपटी नाक, हल्के घुंघराले बाल। यह सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।
गोंड,कोरकू , कोल, परधान, बैगा, मारिया, अबूझमाडिया, धनवार/धनुहार, धुलिया, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, हल्बा,कंवर।
ये सभी प्रजातियां छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पूर्वी आंध्र-प्रदेश में निवास करते हैं। ये सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।
यह जातियां नीग्रिये प्रजाति से संबधित हैं। ये लुप्त होने के कगार पर हैं।
आदिवासियों में प्रचलित प्रमुख झण्डा निम्न हैं:
केरल के वायंड की एक आदिवासी कालोनी का वीडियो
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