15 जून 2005 को इसे अधिनियमित किया गया और पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को, अपने कार्य को और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।
इस लेख में अनेक समस्याएँ हैं। कृपया इसे सुधारने में मदद करें या वार्ता पृष्ठ पर इन समस्याओं पर चर्चा करें।
|
लोकतंत्र में देश की जनता अपनी चुनी हुए व्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करती है और यह अपेक्षा करती है कि सरकार पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने दायित्वों का पालन करेगी। लेकिन कालान्तर में अधिकांश राष्ट्रों में भ्रष्टाचार बढ़ता गया। भ्रष्टाचार करने के लिए जनविरोधी और अलोकतांत्रिक तरीको को अपनाया गया। लोकतंत्र में मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है, कि जो सरकार उनकी सेवा में है, वह क्या कर रही है।
इसके लिए यह जरूरी है कि सूचना को जनता के समक्ष रखने एवं जनता को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया जाए, जो एक कानून द्वारा ही सम्भव है। सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।
अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी।
सन् 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, लेकिन संविधान निर्माताओ ने संविधान में इसका कोई भी वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेज़ो का बनाया हुआ शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 का संशोधन किया। आने वाली सरकारे गोपनीयता अधिनियम 1923 की धारा 5 व 6 के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता से सूचनाओं को छुपाती रही।
सूचना के अधिकार के प्रति कुछ सजगता वर्ष 1975 के शुरूआत में “उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण” से हुई।
मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई, जिसमें न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यो का व्यौरा जनता को प्रदान करने का व्यवस्था किया। इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया।
वर्ष 1982 में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 की विवादस्पद धारा 5 को निरस्त करने की सिफारिश की थी, क्योंकि इसमें कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया था कि ’गुप्त’ क्या है और ’शासकीय गुप्त बात’ क्या है ? इसलिए परिभाषा के अभाव में यह सरकार के निर्णय पर निर्भर था, कि कौन सी बात को गोपनीय माना जाए और किस बात को सार्वजनिक किया जाए।
बाद के वर्षो में साल 2006 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित ’द्वितीय प्रशासनिक आयोग’ ने इस कानून को निरस्त करने का सिफारिश किया।
सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से प्रारम्भ हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन(एम.के.एस.एस.) द्वारा अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम के रूप में हुई।
1989 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई, जिसने सूचना का अधिकार कानून बनाने का वायदा किया। 3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की। किन्तु बीपी ंिसह की सरकार तमाम कोशिसे करने के बावजूद भी इसे लागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी ज्यादा दिन तक न टिक सकी।
वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार ने एच.डी शौरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके मई 1997 में सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया, किन्तु शौरी कमेटी के इस प्रारूप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा।
वर्ष 2002 में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रता विधेयक(फ्रिडम आॅफ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यू.पी.ए.) की सरकार ने न्युनतम साझा कार्यक्रम में किए गए अपने वायदो[उद्धरण चाहिए] तािा पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए 12 मई 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 संसद में पारित किया, जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002 को निरस्त कर दिया गया।[उद्धरण चाहिए]
इस कानून के राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पूर्व नौ राज्यों ने पहले से लागू कर रखा था, जिनमें तमिलनाडु और गोवा ने 1997, कर्नाटक ने 2000, दिल्ली 2001, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र ने 2002, तथा जम्मू-कश्मीर ने 2004 में लागू कर चुके थे। सूचना का तात्पर्यः
रिकार्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ईःमेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लांग पुस्तिका, ठेके सहित कोई भी उपलब्ध सामग्री, निजी निकायो से सम्बन्धित तथा किसी लोक प्राधिकरण द्वारा उस समय के प्रचलित कानून के अन्तर्गत प्राप्त किया जा सकता है।
सूचना अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते हैं।
सूचना का अधिकार अधिनियम की प्रस्तावना कानून के उद्देश्य और दायरे को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि अधिनियम को सरकारी संस्थानों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के साथ-साथ सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा आयोजित जानकारी तक पहुंच प्रदान करके नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। प्रस्तावना सूचना के मुक्त प्रवाह के माध्यम से लोकतंत्र को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार को रोकने के महत्व पर भी जोर देती है। कुल मिलाकर, प्रस्तावना बाकी कानून के लिए लहजा तय करती है और सूचना का अधिकार अधिनियम को रेखांकित करने वाले मूलभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है।
सूचना का अधिकार अधिनियम् 2005 के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं।
द्वितीय अपील के तहत केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के आदेश से संतुष्ट न होने पर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। केन्द्र में उच्चतम न्यायालय और राज्य में उच्च न्यायालय में आदेश के खिलाफ या आदेश के बाद भी केंद्रीय जन सूचना अधिकारी उसे मानने से इंकार करता है तो ऐसी परिस्थितियों में जाया जा सकता है।
विश्व के पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित करने का माध्यम आदि का तुलना सारणी के माध्यम से किया गया है। देश स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको,भारत कानून संविधान कानून द्वारा संविधान संविधान कानून द्वारा लागू वर्ष 1766, 1982, 1978, 2002, 2005 शुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्कनिशुल्क शुल्क द्वारा सूचना देने की समयावधि तत्काल 15 दिन 1 माह 20 दिन 1 माह या (जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टा) अपील/ शिकायत प्राधिकारी न्यायालयसूचना आयुक्त संवैधानिक अधिकारी द नेशन कमीशन आॅफ ऐक्सेस टू पब्लिक इन्फाॅरर्मेशन विभागीय स्तर पर प्रथम अपीलीय अधिकारी अथवा सूचना आयुक्त/मुख्य सूचना आयुक्त केन्द्रीय या राज्य स्तर पर।
जारी करने का माध्यमकोई भी किसी भी रूप में इलेक्ट्रानिक रूप में सार्वजनिक ऑफलाइन एवं आनलाईन प्रतिबन्धित सूचना गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002 सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003 डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978ऐसी सूचना जिससे देश का राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 से सम्बन्धित सूचनाएँ।
विश्व में पांच देश स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको और भारत के सूचना का अधिकार कानून का तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत है-
विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू किया, जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया।
हाल ही में लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 [Right to Information (Amendment) Bill, 2019] पारित किया। इस विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।
अन्य देशों ने जहाँ सूचना देने के लिए समयसीमा निर्धारित कर रखी है, वहीं स्वीडन ने सूचना तत्काल और निशुल्क दिए जाने की पैरवी की है। मैक्सिको ने जहां खुद ही अपने नगारिको को सूचना लेने और सरकार को सूचना स्वतः प्रकाशित करने का निर्देश दिया है, जिसने लोगो का आज़ादी का एक नया पंख लगा दिया है। स्वतः सूचना जारी करने का निर्देश तो भारत की सरकार ने भी दिया है, लेकिन किसी भी राज्य और केन्द्र के विभाग ने इसकी कोई पहल नही की।
1.जैसवाल श्रीचन्द, मीडिया(केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की त्रिमासिक मासिक पत्रिका), प्रकाशकः केन्द्री हिन्दी संस्थान, दिल्ली, प्रवेशांक/अपै्रल-जून 2006
2.भसीन अनीश, जानिए मानवाधिकारों को, प्रकाशकः प्रभात प्रकाशन, 2011
3.फाडि़या डा0 बी0एल0, लोक प्रशासन, साहित्य भवन पब्लिकेशन, 2013
4.सिंह जेपी, समाजशास्त्रः अवधारणा एवं सिद्धान्त, पीएचआई लर्निंग प्राइवेट लिमिटेड, 2013
5.सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 (http://societykarma.in/why-rti-amendment-bill-controversial/ Archived 2020-01-11 at the वेबैक मशीन Archived 2020-01-11 at the वेबैक मशीन)(https://web.archive.org/web/20190403125141/https://www.drishtiias.com/ f2f security Scooty Malik Malik Ne kaam kya hua paisa sahi se data naked kutte Jab Mein bolate Hain To bolata Hai Ki Naukari Chhod Chale jao kya Karega iska karyvahi jald se jald kijiye)
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.