अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (freedom of expression) या वाक स्वतंत्रता (freedom of speech) किसी व्यक्ति या समुदाय द्वारा अपने मत और विचार को बिना प्रतिशोध, अभिवेचन या दंड के डर के प्रकट कर पाने की स्थिति होती है। इस स्वतंत्रता को सरकारें, जनसंचार कम्पनियाँ, और अन्य संस्थाएँ बाधित कर सकती हैं। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त 'अभिव्यक्ति' शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। विचारों का स्वतन्त्र प्रसारण ही इस स्वतन्त्रता का मुख्य उद्देश्य है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित(Communicate) कर सके। इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
द सेटेनिक वर्सेज़ की फारसी भाषा प्रति। यह पुस्तक ईरान, भारत और अन्य देशों में वर्जित करी गई और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बाधाओं का एक प्रसिद्ध उदाहरण बनी थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
सन् 1974 में लंदन के स्पीकर्ज़ कॉर्नर में भाषण देता एक व्यक्ति

भारतीय संविधान वाक-स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य की प्रत्याभूति देता है। किंतु इस स्वतंत्रता पर राज्य द्वारा युक्तियुक्त निर्बन्धन इन बातों के संबंध में लगाए जा सकते हैं (क) मानहानि, (ख) न्यायालय-अवमान, (ग) शिष्टाचार या सदाचार, (घ) राज्य की सुरक्षा, (ङ) विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, (च) अपराध-उद्दीपन, (छ) लोक व्यवस्था, (ज) भारत की प्रभुता और अखंडता(16वां संविधान संशोधन 1963 से जोड़ा गया)।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत राष्ट्रीय ध्वज फहराना

भारत संघ बनाम नवीन जिन्दल! के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अपने मकान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रत्येक नागरिक का अनुच्छेद19(1)(a) के अधीन एक मूल अधिकार है। किन्तु यह अधिकार आत्यन्तिक(absolute) नहीं है और इस पर अनुच्छेद19(1)(a) के खण्ड (2) के अन्तर्गत युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। इस मामले में प्रत्यर्थी नवीन जिंदल ने अपने कारखाने के परिसर में स्थित आफिस पर राष्ट्रीय ध्वज लगाया था इसे सरकार ने इसलिए रोक दिया था क्योंकि यह भारत के फ्लैग कोड के अन्तर्गत वर्जित था। न्यायालय ने निर्णय दिया कि अपने मकान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराना अनुच्छेद19(1)(a) के अधीन मूल अधिकार है क्योंकि इसके माध्यम से वह राष्ट्र के प्रति अपनी भावनाओं और वफादारी के भाव का प्रकटीकरण करता है किन्तु यह अधिकार आत्यन्तिक नहीं है और इस पर युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। फ्लैग कोड यद्यपि अनुच्छेद13(3)(a) के अधीन "विधि" नहीं है किन्तु इसमें विहित मार्गदर्शक सिद्धान्त जो राष्ट्रीय ध्वज के आदर और गरिमा को संजोये (preserve) रखने के लिए उपबन्धित है को मानना आवश्यक है। राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य है। इसके लिए कानून बनाने की न्यायालय ने कोई सिफारिश नहीं की। दी इम्बलसस एण्ड नेम्स (प्रिवेन्सन ऑफ इन्प्रापर यूज) एक्ट, 1956 और दी प्रिवेन्सन ऑफ इनसल्ट्स टू नेशनल आनर एक्ट, 1971 राष्ट्रीय ध्वज के प्रयोग को विनियमित करते हैं।

अभिव्यक्ति की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है और इस पर समय-समय पर युक्ति-नियुक्ति निर्बंधन लगाए जा सकते हैं। राष्‍ट्र-राज्‍य के पास यह अधिकार सुरक्षित होता है कि वह संविधान और कानूनों के तहत अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता को किस हद तक जाकर बाधित करने का अधिकार रखता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे- वाह्य या आंतरिक आपातकाल या राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वंतत्रता सीमित हो जाती है। संयुक्‍त राष्‍ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकारों के घोषणा पत्र में मानवाधिकारों को परिभाषित किया गया है। इसके अनुच्‍छेद 19 में कहा गया है कि किसी भी व्‍यक्ति के पास अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का अधिकार होगा जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्‍वतंत्र होगा।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

Tags:

अभिवेचनमानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा

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