व्याकरण में संधि दू गो शब्दखंड (morpheme) चाहे शब्द (word) सभ के जोड़ के समय उच्चारण में होखे वाला बदलाव हवे। शब्दखंड चाहे शब्द एक के बाद एक आवे लें तब उनहन के जोड़ के एक-साथे होखे वाला उच्चारण में कुछ बदलाव हो जाला। ई बदलाव भाषा बिज्ञान में ध्वनिबिज्ञान (बिसेस रूप से morphology) के तहत पढ़ल-पढ़ावल जाला आ संस्कृत व्याकरण में संधि के अंतर्गत एकर बिबरन आ ब्याख्या कइल जाले।
संधि मुख्य रूप से संस्कृत भाषा आ अउरी कई भारतीय भाषा सभ के बिसेसता हवे। एकरे अलावा अइसन बदलाव कुछ उत्तरी जर्मनिक भाषा सभ में भी देखे के मिले लें। संस्कृत ब्याकरण में संधि के पाँच प्रकार में बाँटल गइल बा: अच् संधि, प्रकृतिभाव, हल् संधि, विसर्ग संधि अउरी स्वादिसंधि।
संस्कृत व्याकरण संधि शब्द के उत्पत्ती सम् + धि से बतावल जाले। पाणिनि के अष्टाध्यायी में दू तरह के चीज बतावल गइल बा: संहिता आ संयोग। वर्ण सभ के बहुत निकटता के संहिता कहल गइल बा। सूत्र परः संनिकर्षः संहिता (अष्टा. 1। 4। 108) के लघुसिद्धान्तकौमुदी में व्याख्या कइल गइल बा: वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहिता-संज्ञः स्यात्। अतिशय सन्निधि यानी नजदीकी के अरथ बतावल जाला कि दू गो वर्ण सभ के बीच में आधी मात्रा से बेसी के व्यवधान ना होखे तब एकरा के संहिता कहल जाला। संयोग के परिभाषा दिहल जाले कि जब दू गो हल् (व्यंजन वर्ण) के बीच स्वर वर्ण न होखे। एही संहिता आ संयोग से संधि होला।
संहिता कब कइल जाय एकरा खाती बिधान बा कि जब एकही पद होखे, धातु आ उपसर्ग (जोड़े) में आ समास में हमेशा संहिता करे के चाहीं, वाक्य में ई वक्ता (लेखक) के मर्जी पर बा कि ऊ संहिता करे या ना करे।
पाणिनीय व्याकरण में अच् प्रत्याहार के तहत संस्कृत भाषा के वर्णमाला के सगरी स्वर आवे लें। जब दू गो स्वर वर्ण एक दुसरे के साथ मेल करें भा जुड़ाव होखे आ उच्चारण में कुछ बदलाव होखे, अइसन संधि के अच् संधि कहल जाला। एकरा के हिंदी, भोजपुरी आदि में स्वर संधि कहल जाला।
अच् संधि के बिधान करे वाला कुछ सूत्र आ उनहन के उदाहरण नीचे दिहल गइल बा:
सूत्र | अर्थ | उदाहरण |
---|---|---|
इकोयणचि (6। 1। 74) | इक् प्रत्याहार के वर्ण सभ (इ, उ, ऋ, ऌ) के स्थान पर यण् प्रत्याहार के अक्षर (य्, व्, र्, ल्) हो जालें अगर उनहन के बाद अच् यानी कौनों स्वर आवे। | सुधी + उपास्यः = सुद्ध्युपास्यः |
एचोऽयवायावः (6। 1। 75) | एच् (ए, ओ, ऐ, औ) के स्थान पर क्रम से अय्, अव्, आय्, आव् हो जाला अगर उनहन के बाद कौनों स्वर होखे। | हरे + ए = (हर + अय + ए) हरये |
आद् गुणः (6। 1। 84) | अ के बाद कौनों स्वर आवे पर, दुन्नो के स्थान पर गुण (अ, ए, ओ) हो जाला। | उप + इन्द्रः = उपेन्द्रः |
वृद्धिरेचि (6। 1। 85) | अ के बाद एच् (ए, ओ, ऐ, औ) आवे पर, दुन्नो के स्थान पर गुण (आ, ऐ, औ) हो जाला। | कृष्ण + एकत्वम् = कृष्णैकत्वम् |
अकः सवर्णे दीर्घः (6। 1। 97) | अक् (अ, इ, उ, ऋ, ऌ) इनहना के सवर्ण आवे पर, दुन्नो के स्थान पर दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ, ॠ, ॡ) हो जाला। | दैत्य + अरिः = दैत्यारिः |
कुछ दशा में अक्षर सभ के जोड़ होखे के बावजूद कौनों बदलाव ना होखे ला। अइसन जोड़ सभ के प्रकृतिभाव कहल गइल बा आ कई पाणिनीय सूत्र सभ द्वारा एह दशा सभ के बतावल गइल बाटे। लघुसिद्धांतकौमुदी नियर आसान ग्रंथ सभ में एकरा के अच्सन्धि में रख दिहल गइल बा हालाँकि, सिद्धांतकौमुदी में एकरा खाती अलग प्रकरण बा आ ई पञ्चसन्धि सभ में गिनल जाला।
प्रकृतिभाव संधि के मुख्य उदाहरण बाटे: प्लुतप्रगृह्या अचि नित्यम् (6। 1। 125), मने कि प्लुत आ प्रगृह्य सभ के बाद स्वर आवे पर हमेशा प्रकृति भाव (जइसे के तइसन) रह जाला। उदाहरण हवे "हरी एतौ"। "प्रगृह्य" एगो संज्ञा (नाँव) हवे जेकर परिभाषा ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम् (1। 1। 11) सूत्र से आवे ले कि ई ऊ ए से समाप्त होखे वाला द्विवचन वाला रूप सभ के प्रगृह्य कहल जाला। अइसहीं अउरी कई किसिम के प्रगृह्य परिभाषित कइल गइल बाड़ें।
इकोऽसवर्णे शाकल्यस्य ह्रस्वश्च (6। 1। 127) पद के अंत में इक होखे आ ओकरे बाद सवर्ण आवे तब प्रकृतिभाव विकल्प से होला; शाकल्य मुनि के मत अनुसार इहाँ लघु रूप (ह्रस्व) भी हो सके ला। एह तरीका से "चक्रि अत्र" आ "चक्र्यत्र" दुनों रूप बने लें।
एही तरह से, ऋत्यकः (6। 1। 128) से "ब्रह्मर्षि" रूप सिद्ध होला। दूराद्धूते च (8। 2। 84) मने कि दूर से बोलावे के समय प्लुत (कौनों स्वर के खींच के लंबा समय तक उच्चारण) होखे के दशा में संधि ना प्रकृति भावहोला। मय उञो वो वा (8। 3। 33) सूत्र से "किमु उक्तम्" (प्रकृतिभाव) चाहे "किम्वुक्तम्" (विकल्प से संधि) रूप सिद्ध होलें।
जब दू गो हल् (व्यंजन वर्ण) आपस में मेल करें आ उनहन के उच्चारण में बदलाव होखे तब हल् संधि (व्यंजन संधि) होला। नीचे पाणिनीय व्याकरण के कुछ प्रमुख सूत्र आ उनहन के उदाहरण दिहल जात बा:
सूत्र | अरथ | उदाहरण |
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स्तोः श्चुना श्चुः | सकार अउरी तवर्ग के बाद अगर शकार चाहे चवर्ग के वर्ण आवें तब उनहन के जगह पर शकार आ चवर्ग हो जाला। | रामस् + शेते = रामश्शेते |
ष्टुना ष्टुः | सकार अउरी तवर्ग के बाद अगर षकार चाहे टवर्ग के वर्ण आवें तब उनहन के जगह पर षकार आ टवर्ग हो जाला। | रामस + षष्ठः = रामष्षष्ठः |
झलां जशोऽन्ते | पड़ के अंत में अगर झल् वर्ण होखे तब उनहन के जगह जश् वर्ण हो जालें। | वाक् + ईशः = वागीशः |
मोऽनुस्वारः | म् से अंत होखे वाला पद के बाद कौनों हल् आवे तब म् के अनुस्वार हो जाला। | हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे |
जब पद के अंत विसर्ग (अः के मात्रा) पर होखे आ ओकरे बाद कवनो दूसर शब्द आवे तब होखे वाला जुड़ाव के विसर्ग संधि कहल जाला। कुछ प्रमुख सूत्र आ उदाहरण नीचे दिहल जात बा:
सूत्र | अरथ | उदाहरण |
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विसर्जनीयस्य सः (8। 3। 34) | अगर विसर्ग के बाद खर् वर्ण होखें, विसर्ग के जगह सकार हो जाला। | विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता |
वा शरि (8। 3। 36) | शर् प्रत्याहार के वर्ण बाद में होखे तब सकार विकल्प से होला | हरिः + शेते = हरिः शेते / हरिश्शेते |
कुप्वोः क पौ च (8। 3। 37) सोऽपदादौ (8। 3। 38) | सकार हो जाला अगर विसर्ग के बाद अइसन पद होखे जे कवर्ग भा पवर्ग के अक्षर से सुरू होखे | पयः + पाशम् = पयस्पाशम् |
इणः षः (8। 3। 39) | इण् प्रत्याहार के बाद में विसर्ग होखे (ओकरे बाद में ऊपर के दशा होखे) तब ष कार हो जाला। | सर्पिः + कल्पम् = सर्पिष्कल्पम् |
आसानी खाती इनहन के लघुकौमुदी नियर किताब सभ में विसर्ग संधि में रख दिहल जाला, हालाँकि एह सूत्र सभ के विसर्ग से कवनों मतलब ना बा। सिद्धांतकौमुदी में इनहन के स्वादि संधि प्रकरण में रखल गइल बाटे। कुछ प्रमुख सूत्र बाड़ें: ससजुषोः रुः (8। 2। 66), अतो रोरप्लुतादप्लुते (6। 1। 113), हशि च (6। 1। 114), रो रि (8। 3। 14), ढ्रलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽणः (6। 3। 111) वगैरह।
भोजपुरी भाषा में संधि के चलन ओइसने नइखे जेङ्ने संस्कृत भा हिंदी भाषा में होला। मूल रूप से ई चीजे संस्कृत के हवे आ हिंदियो में ओहीजे संधि इस्तेमाल होला जहाँ संस्कृत के सामासिक शब्द होखे भा तत्सम शब्द होखे। एह तत्सम शब्द सभ के भोजपुरी में आवे के कारण संधि के नियम भी आ गइल बाड़ें। कुछ बिद्वान लोग के तऽ इहो कहनाम बा कि ई जबरियन नकल मार के ले आइल गइल हवें।
हिंदी भाषा में बहुत सारा चीज संस्कृत से आइल हवे, एह में संधि के चलन आ नियम भी सामिल बाड़ें। संस्कृत संधि-प्रधान भाषा हवे जबकि बाद के प्राकृत-अपभ्रंश वगैरह सभ आ उनहन से निकलल भाषा सभ में संधि के ओतना प्रधानता ना रह गइल। एही से हिंदी में संधि के प्रयोग तत्सम शब्द सभ में देखे के मिले ला जे सीधे संस्कृत से आइल हव्वें आ वाक्य के अलग अलग शब्द सभ में संधि ना होले बलुक समास वाला शब्द सभ में संधि के इस्तेमाल देखे के मिले ला। कुछ बिद्वान लोग के तऽ इहाँ ले कहनाम बा कि संधि हिंदी भोजपुरी नियर भाषा सभ के चीजे ना हवे बलुक जबरियन एकरा के व्याकरण में रख लिहल गइल बा।
हिंदी व्याकरण में संधि के प्रकार भी संस्कृत के पञ्चसंधि के रूप में ना बलुक तीन हिस्सा में बाँटल जाला: स्वर, व्यंजन आ विसर्ग संधि। बहुधा हिंदी व्याकरण में में संधि के नियम वाक्य के रूप में लिखल जालें, संस्कृत के तरे सूत्र के रूप में ना। साथ में उदाहरण दे के मतलब सम्झाव्ल जाला। कई जगह आसानी खातिर चलनसार परिपाटी में सूत्र न होखे के कारण कुछ बदलाव सभ के संस्कृत से अलग किसिम के वर्गीकरण में भी शामिल क लिहल जाला।
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