महर्षि पाणिनि (6वीं सदी ईपू से 4थी सदी ईसापूर्ब के बीच) एगो प्राचीन भारतीय भाषाशास्त्री, वैयाकरण आ बिद्वान रहलें। इनके जनम अस्थान भारतीय उपमहादीप के उत्तरी पच्छिमी हिस्सा में, महाजनपद काल में गांधार के मानल जाला जे वर्तमान में पाकिस्तान देस में बा। पाणिनि के भाषा बिज्ञान के पिता के उपाधि दिहल जाला आ इनके परसिद्धि के कारण इनके ग्रंथ अष्टाध्यायी हवे।
पाणिनि के अष्टाध्यायी सूत्र-शैली में लिखल संस्कृत व्याकरण के ग्रंथ हवे। एह में आठ अध्याय में 3,959 सूत्र बाड़ें जिनहन में व्याकरण आ भाषा बिज्ञान के नियम बतावल गइल बाड़ें। एह ग्रंथ पर बाद के बिद्वान लोग भाष्य लिखल जेह में पतंजलि के महाभाष्य सभसे प्रमुख हवे। अष्टाध्यायी वेदांग के हिस्सा व्याकरण के आधार ग्रंथ हवे आ बाद के सगरी संस्कृत व्याकरण एकरा के आधार मान के चलेला। पाणिनि के भाषा संबंधी व्यवस्था से शाइत परभावित हो के भरत मुनि नाट्य-नृत्य वगैरह के आपन ग्रंथ लिखलें आ पाणिनि के ग्रंथ पर बौद्ध बिद्वान लोग भी बिचार कइल आ ग्रंथ लिखल।
पाणिनि के बतावल संधि-समास के नियम सभ के आधुनिक भाषा बिज्ञान में भी आधारभूत दर्जा हासिल बा आ ई संस्कृत के ध्वनीशास्त्र के समझे के आधार के रूप में इस्तेमाल होखे लें।
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