श्रीहर्ष (12वीं-सदी ईस्वी) संस्कृत भाषा के एगो भारतीय कवी, बिद्वान आ दार्शनिक रहलें। इनके खास परसिद्धि इनके लिखल महाकाब्य नैषधीयचरितम् के कारण हवे। कबी के अलावा ई उच्च कोटि के बिद्वान आ दार्शनिक भी रहलें आ एह क्षेत्र में भी लेखन के काम कइलेन। ई गाहड़वार बंस के राजा विजयचंद्र के दरबारी कबी रहलें आ बतावल जाला कि इनके महाकाब्य के परिसिद्धि के बाद इनका के नरभारती के उपाधि दिहल गइल रहे।
श्रीहर्ष | |
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पेशा | कवी |
राष्ट्रियता | भारतीय |
समय | c. 12वीं-सदी ईसवी |
बिधा | संस्कृत काब्य, महाकाब्य |
बिसय | महाभारत के कथा |
प्रमुख रचना | नैषधीयचरितम् |
भारवि आ माघ कवी के परंपरा में, इहो अपना काब्य के बिसय महाभारत के एगो कथा के लिहलें - नल-दमयंती के कहानी आ एकरा ऊपर महाकाब्य लिखलें। एही परंपरा के अनुयाई होखे के कारण ई अपना काब्य में कठिन आ बिद्वान लोग के चमत्कारी बुझाए वाला प्रयोग भी कइलें जेकरा के आज के बिद्वान लोग खाली बिद्वत्ता के देखावा खातिर रचल चीज माने ला।
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