मौर्य साम्राज्य प्राचीन काल के लोहा जुग में, लगभग 322 ईसा पूर्व से 187 ईसा पूर्व के दौर में, भारतीय उपमहादीप में एक ठो बिसाल राज रहल। एकर संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य रहलें आ अशोक के समय में ई अपना चरम बिस्तार पर पहुँचल। अपना चरम काल में ई एह भूगोलीय क्षेत्र में अब तक ले भइल सभसे ढेर बिस्तार वाला राज्य हवे।
भारतीय मैदानी इलाका के वर्तमान बिहार राज्य में, ओह जमाना में मगध राजघराना के स्थापना से सुरू भइल ई साम्राज्य के राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) रहल।
पूरबी भारत में, चउथी सदी ईसा पूर्व में नंद बंस के शासन रहल। कहानी कहल जाला कि राजा घनानंद भरल सभा में विष्णुगुप्त चाणक्य के अपमान क दिहलें जेकरा से नराज हो के चाणक्य परतिज्ञा क लिहलें की नंद बंस के बिनास क दिहें। एही चाणक्य के मदद से चंद्रगुप्त द्वारा मौर्य राज के स्थापना तक्षशिला में भइल जे बाद में बिसाल साम्राज्य के रूप में स्थापित भइल।
एह समय से ठीक पहिले, बिजेता सिकंदर के सेना ब्यास नदी के पूरुब बढ़े से मना क दिहले रहल आ सिकंदर बेबीलोन लवट गइल रहलें। सिकंदर के मौत के बाद उनके राज के अधीन पच्छिमी भारत के हिस्सा पर यूनानी लोग कंट्रोल पोढ़ ना रहि गइल सिकंदर के मौत के पाँचे बरिस के बाद पुरु (पोरस) के भुला दिहल गइल। एकरा बाद चंद्रगुप्त मेसीडोनियाई लोग के हरा के आपन राज पंजाव में स्थापित कइलेन, चाणक्य के मदद से मजबूत सेना बनवलें आ एकरे बाद मगध पर आक्रमण क के उहाँ के सम्राट बनलें। हालाँकि, चंद्रगुप्त के शक्ति के उदय के बारे में बहुत बिबाद बाटे आ इतिहासकार लोग बहुत सारा बात पर एकमत ना बा लोग।
चाणक्य बिद्वान आ कुशल नीति निर्माता रहलें, कूटनीति के ज्ञाता रहलें, रणनीति बनावे आ गुप्तचर ब्यवस्था करे में उनके महारथ रहल। ऊ चंद्रगुप्त के मंत्री के रूप में मगध के शत्रु लोग से मेल करे आ सहजोगी जुटावे के काम कइलें, मगध में आपन गुप्तचर भेजलें।
सभसे पहिले चाणक्य अपना एगो शिष्य आ तत्काल में पोरस के प्रतिनिधि राजा के रूप में कैकेय पर राज करे वाला मलायकेतु के साथे मिलवलें। विशाखदत्त के मुद्राराक्षसम् में आ जैन ग्रंथ परिशिष्टपर्व सभ में चंद्रगुप्त के "पर्वतिक" राजा के साथ अलायंस बनावे के बिबरन मिले ला, जिनके पोरस के रूप में इतिहासकार लोग चिन्हित करे ला। एह हिमालयी एलायंस में यवन (यूनानी), कंबोज, शक (सीथीयाई), किरात (नेपाली), पारसीक (ईरानी), आ बाह्लीक (बैक्ट्रियाई) लोग सामिल हो के एक साथ मगध पर हमला कइल आ राजधानी पाटलिपुत्र, जेकरा के कुसुमपुर भी कहल जाय, बिजय स्थापित कइल।
मेसिडोनियाई लोग के खिलाफ चंद्रगुप्त तब आक्रमण कइलें जब सेल्यूकस I (निकेटर) द्वारा भारत के उत्तरपच्छिमी भाग सभ के, जिनहन के सिकंदर के समय में जीतल गइल रहे, दोबारा जीते के कोसिस कइल गइल लगभग 305 ईसा पूर्व में। एह लड़ाई के बारे में यूनानी इतिहासकार लोग कुछ नइखे लिखले मानल जाला कि एह लड़ाई में सेल्यूकस के भागे के पड़ल, बाद में चंद्रगुप्त आ सेल्यूकस के बीच समझौता भइल जेह में एक ठो औपचारिक जुद्ध-संधि लिखल गइल। एकरे अनुसार, यूनानी लोग आपन राजकुमारी के बियाह चंद्रगुप्त से कइल। चंद्रगुप्त द्वारा कंबोज, गांधार, कंधाहार, आ बलूचिस्तान के इलाका पर काबिज हो गइलेन आ बदला में सेल्यूकस के 500 हाथी मिललें जे उनके पच्छिमी सीमा पर जारी हेलेनिस्टिक जुद्ध सभ के बहुत मददगार साबित भइलेन। दुनों राज के बीच में राजदूत के रूप में भी संपर्क बढ़ल आ मेगस्थनीज नियर इतिहासकार लोग के मौर्य दरबार में स्थान मिलल।
मौर्य साम्राज्य के पहिला शासक, चंद्रगुप्त मौर्य आ उनके पत्नी दुर्धरा के बेटा बिंदुसार (298 - 272 ईसा पूर्व) , उनके बाद राजा बनलें। ओह समय बिंदुसार के उमिर मात्र 22 बरिस रहल। बिंदुसार के बारे में ओतना इतिहासी जानकारी ना मौजूद बा जेतना उनके पिता चंद्रगुप्त भा उनके बेटा अशोक के बारे में मिले ला, तबो कुछ जानकारी इनहूँ के राजकाज के बारे में जरूर मौजूद बा।
यूनानी इतिहासकार लोग इनके "अमित्रचेत्स" के नाँव से बोलवले बा, जेकर संस्कृत रूप "अमित्रघात" होखे के अनुमान लगावल जाला। मध्यकालीन तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ के लिखित बौद्ध धर्म के इतिहास में ई बिबरन मिले ला कि बिंदुसार ओह समय के सोरह गो राजा लोग के दमन कइलेन आ साम्राज्य के बिस्तार पच्छिमी समुंद्र से ले के पूरबी समुंद्र ले कइलें। कुछ लोग एकरा के दक्कन बिजय माने ला, काहें कि उनहन लोग के अनुसार पूरबी समुंद्र (बंगाल के कुछ इलाका छोड़ के) से ले के पच्छिमी समुंद्र (सौराष्ट्र के अलावा) पहिलहीं, चंद्रगुप्त के काल में, मौर्य साम्राज्य के हिस्सा बन चुकल रहल। कुछ इतिहासकार लोग एकरा के नया बिजय ना माने ला बलुक बिद्रोह के दमन भर माने ला। अशोक के शिलालेख-13 के हवाले से ई बतावल जाला कि मैसूर ले के इलाका अशोक के पैतृक राज के रूप में मिलल रहल। एही कारन ई बितर्क कइल जाला कि दक्षिण के बिजय या टेम्पलेट चंद्रगुप्त के काल में भइल या बिंदुसार के समय में।
दिव्यावदान नाँव के ग्रंथ से तक्षशिला में बिद्रोह के बिबरन मिले ला जेकरा के रोके खातिर बिंदुसार अशोक के भेजलें। अशोक के पहुँचे पर पता चलल कि उहाँ के लोग ना त राजकुमार के बिरुद्ध बा न राजा बिंदुसार के बाकिर दुष्ट आमात्य (मंत्री) लोग उनहन लो के अपमान करे ला।
बिंदुसार पच्छिम के यूनानी शासक लोग से दोस्ती के संबंध रखलें। स्ट्रेबो के हवाला से ई बतावल जाला कि ग्रीक शासक एंटियोकस, जे सेल्यूकस के उत्तराधिकारी रहलें, बिंदुसार के दरबार में डायमेकस नाँव के दूत भेजलें। प्लिनी के हवाला से बतावल जाला कि फिलाडेल्फस द्वारा एगो दूत डायोनीसस के भेजल गइल रहे।
पुराण सभ के मोताबिक बिंदुसार 24 साल राज कइलें, जबकि महावंश के अनुसार 27 साल, इतिहासकार राधाकुमुद मुखर्जी के हवाला दे के बिंदुसार के निधन के तिथि 272 ईसा पूर्व बतावल जाला। बिंदुसार के बाद इनके बेटा अशोक उत्तराधिकारी बनलें जे बिंदुसार के जीवन में उज्जयिनी के शासन ब्यवस्था के देखरेख करें।
नौजवान राजकुमार के रूप में अशोक (शा॰ 272 – 232 BCE) जबरदस्त आ बेहतरीन कमांडर रहलें आ उज्जैन आ तक्षशिला में भइल बिद्रोह के सफलता के साथ दमन कइलें। राजा के रूप अशोक महत्वाकांक्षी आ उग्र सुभाव वाला रहलें जे साम्राज्य के ताकत के पच्छिमी भारत आ दक्खिनी भारत में दोहरा के पोढ़ कइलें हालाँकि, ई इलाका उनके राज्य के हिस्सा चंद्रगुप्त भा बिंदुसार के जमाना से रहबे कइल। ई त कलिंग (262–261 BCE) के बिजय अभियान आ एकरे दौरान भइल लड़ाई रहल जे उनके जिनगी में सभसे जबरदस्त मोड़ साबित भइल। भले अशोक के सेना कलिंग के हरा के अपना राज्य में सामिल करे में सफल भइल, एह भयानक लड़ाई में लगभग 1,00,000 सैनिक आ नागरिक मारल गइलें जेह में 10,000 खुद अशोके के आदमी रहलें। सैकड़ों हजार लोग एह जुद्ध के कारन बरबादी के शिकार भइल। जब अशोक ई बरबादी आ कष्ट खुद देखलें तब उनके पछितावा होखे लागल। एही पछितावा में ऊ शांति के खोज में बौद्ध धर्म अपना लिहलें, हालाँकि कलिंग उनके राज्य के हिस्सा बन गइल। एकरे बाद ऊ लड़ाई आ हिंसा के रास्ता छोड़ दिहलें आ नैतिक आ धार्मिक बिचार के बढ़ावा देवे में लाग गइलेन। राज्य में पशु बध बंद करवा दिहलें, सभका के कानून के नजर में बराबर घोषित कइलें आ अपना आदेशलेखन में धर्म आ नीति के बात लिखवा के धर्म के परचार कइलें, अन्य देसन में धर्म प्रचारक लोग के भेजलें।
पत्थर पर खोदवावल अशोक के आदेसलेख पूरा भारतीय उपमहादीप में मिलल बाने। सुदूर उत्तर-पच्छिम में अफगानिस्तान से ले के दक्खिन में आंध्र प्रदेश के नेल्लोर तक ले ई आदेसलेख मिलल बाने। एह आदेसलेख सभ में अशोक के नीति आ आदर्श के बिबरन मिले ला। एह में से ज्यादातर लेख ब्राह्मी लिपि में बाने जबकि एक ठो लेख ग्रीक (यूनानी भा यवन) भाषा में आ यूनानी आ अरमाई लिखाई में लिखल बा। एह आदेसलेखवन में यवन, गांधार लोग के बारे में लिखल बा आ ओह लोग के राज्य के पच्छिमी सीमा पर मौजूद खेतीबारी करे वाला लोग के रूप में बतावल गइल बा। ग्रीक (यवन) राज्य के सीमा भूमध्यसागरीय इलाका तक ले बतावल गइल बा आ इनहन में अम्तियोक (दूसरा एंटियोकस), तुलामय (टालेमी), अम्तिकिनी (एंटीगोनोस), मक (मग) आ अलिकसुंद्र (एपिरस के दूसरा अलेक्जेंडर) वगैरह के बिबरन बाटे। एह आदेस लेख सभ में राज्य के सटीक सीमा 600 योजन के दूरी पर बतावल गइल बा (लगभग 4,000 मील दूर)।
अशोक के बाद अउरी 50 साल ले एह बंस के राज चलल। अशोक के उत्तराधिकारी लोग के रूप में कुणाल, जलौक, दशरथ आ संप्रति के नाँव मिले ला। पुराणन में वर्णन अनुसार शालिशुक आ बृहद्रथ अंतिम मौर्य राजा रहल लोग। शालिशुक के कमजोर शासन के समय में पाटलिपुत्र पर यवन लोग के हमला भइल आ बृहद्रथ के उनके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा 185 ईसा पूर्व में एगो सैनिक परेड के दौरान हत्या क दिहल गइल। एकरे बाद मौर्य साम्राज्य के अंत हो गइल आ शुंग बंस के शासन स्थापित हो गइल।
बौद्ध ग्रंथ, उदाहरण खातिर "अशोकवंदना" में बिबरन बा कि बृहद्रथ के हत्या के बाद ब्राह्मण शुंग लोग के राज में बौद्ध धरम के लोगन के प्रताड़ना भइल आ, आ हिंदू धर्म के दोबारा उठान सुरू भइल। जान मार्शल के अनुसार, पुष्यमित्र एह धार्मिक प्रताड़ना के सभसे बरियार समर्थक आ कलाकार रहलें जबकि बाद के शुंगबंसी राज लोग बौद्ध धरम के ओर कुछ सपोर्ट भी करे वाला रहल। अन्य इतिहासकार, जइसे कि एटिनी लामोटी आ रोमिला थापर, के मत बा कि अइसन बरियार प्रताड़ना आ हमला के पुरातात्विक सबूत कहीं से नइखे मिलल आ बौद्ध ग्रंथन में लिखल ई बात बढ़ा-चढ़ा के कहल गइल हवे। राधाकुमुद मुखर्जी ई माने लें कि पुष्यमित्र कट्टर ब्राह्मण आ बौद्ध धर्म के पक्का दुश्मन रहलें आ बौद्ध विहारन पर बहुत प्रहार कइलेन, बाकी इहो लिखे लें कि विदिशा के लगे भरहुत में उनके दान से बौद्ध स्तूप के निर्माण भी भइल।
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद खैबर दर्रा से सुरक्षा हट गइल आ ई रस्ता बाहरी हमलावर लोग खातिर फिर से खुल गइल। एह तरह से यवन शासनकाल में सुरू हो गइल रहे। एकर मूल जगह बक्त्र (बैक्ट्रिया) रहल जेकरा के दूसरा दायोदोतस (डायोडोटस II) सीरिया के साम्राज्य से आजाद करा लिहलें आ उनके उत्तराधिकारी लोग राज के बिस्तार के आगे बढ़ावल। दिमेत्रियस द्वारा लगभग 180 ईपू में अफगानिस्तान आ उत्तर-पच्छिम भारत के इलाका जीत लिहल गइल आ सिंधुपार के इलाका में हिंद-ग्रीक राज के स्थापना हो गइल। एह लोग में सभसे परसिद्ध राजा मिलिंद (मिनांडर) रहलें जे सागल (सियालकोट) के आपन नई राजधानी बनवलें। पाली भाषा में मौजूद बौद्ध ग्रन्थ मिलिंद-पन्हों के बिबरन अनुसार नागसेन के परभाव से मिनांडर बौद्ध हो गइलें। उनके भारतीयकरण अतना हो गइल कि अपना कई गो अनुयायी लोग के नाँव यूनानी से बदल के भारतीय क दिहले रहलें। इनका काल में बौद्ध धर्म के परतिष्ठा बढ़ल। इनहन लोग के राज्य के वास्तविक बिस्तार कहाँ तक ले रहल एह बारे में कई अर्ह के मत बा। सबूत एह बात के मिले ला कि ई हिंद-यूनानी लोग ईसवी सदी के सुरुआत ले शासन कइल। शुंग, सातवाहन आ कलिंग राज के खिलाफ एह लोग के केतना सफलता मिलल ई बिबाद के बिसय बा। ई बात जरूर साफ बा कि लगभग 70 ईसापूर्व के बाद से शुंग राज के ऊपर यूरेशियाई स्टेपी के इलाका के सीथियाई लोग (जिनके एगो शाखा इंडो-सीथियन या फ़ारसी आ संस्कृत में सक भा शक कहल गइल बा) के हमला भइल आ हिंद-यूनानी राज के पतन हो गइल आ मथुरा आ उज्जयिनी तक के इलाका पर शक लोग के राज हो गइल आ 175-160 ईसापूर्व तक शक राज रहल जबले कि कुषाण लोग के आगमन ना हो गइल।
मौर्य साम्राज्य के प्रशासन में सभके केंद्र में सम्राट रहल। इलाकाई बिस्तार के हिसाब से देखल जाय त पूरा साम्राज्य के चार गो प्रांत नियर इकाई में बाँटल गइल रहल। इनहन के राजधानी तोसली (पूरुब में), उज्जैन (पच्छिम में), सुवर्णगिरि (दक्खिन में) आ तक्षशिला (उत्तर-पच्छिम में) रहल। एह प्रांतीय इकाई सभ के प्रशासन के जिम्मेदारी राजा के प्रतिनिधि के रूप में "कुमार" लोग करे।
बिसय बिभाजन के हिसाब से देखल जाय त मौर्य साम्राज्य एगो उच्चस्तर के केंद्रीय राजतंत्र रहल। प्रशासन के कामकाज के बिसय अनुसार अठारह हिस्सा में बाँटल गइल रहे। एह बिभाग सभ में कुछ प्रमुख के मुखिया रहलें समाहर्ता (टैक्स वसूली), सन्निधाता (खजाना), सेनापति, युवराज, मंत्री, प्रदेष्टा, दौवारिक वगैरह। एकरे अलावा अधिकारी लोग के भी अलग अलग बिभाजन रहल आ हर बिभाग के मुखिया अधिकारी के "अध्यक्ष" कहल जाय। अइसन कुल बाईस गो अध्यक्ष लोग या फिर सताइस होखे जेह में कुछ प्रमुख रहलें: सीताध्यक्ष (खेती), पण्याध्यक्ष (बानिज), संस्थाध्यक्ष (ब्यापार के मार्ग), वित्ताध्यक्ष (चरागाह) आ लक्षणाध्यक्ष (छपाई) वगैरह। पण्याध्यक्ष (पौतव) के काम नापजोख के बटखरा सभ के जाँच कइल भी रहे जवना से प्रशासन के जटिलता आ सूक्ष्मता के अंजाद लगावल जा सके ला।
सेना बहुत बिसाल रहल आ मेगास्थनीज के हवाला से 6,00,000 पैदल (इन्फैंट्री), 30,000 घोड़ासवार, 8,000 रथ आ 9,000 हाथी रहलें जेकरे पाछे चले वाला आ भृत्य लोग भी रहे। बड़ा पैमाना पर गुप्तचर ब्यवस्था भी मौर्य साम्राज्य के बिसेसता हवे।
कुल मिला के मौर्य काल के प्रशासन बढ़निहार प्रक्रिया रहल आ समय के अनुसार जइसन परिस्थिति होखे एह में सुधार भी होखे। आमतौर पर चाणक्य के लिखल ग्रंथ अर्थशास्त्रम् में बर्णित प्रशासन के चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के अंतिम समय में लागू प्रशासनिक ब्यवस्था के बिबरन के रूप में देखल जाला, एकरे निर्माण में खुद चाणक्य के भी कम जोगदान ना रहे। हालाँकि ई किताब में आदर्श ब्यवस्था बतावल गइल बा आ जरूरी नइखे कि ओह समय के चलन के एकदम सटीक बिबरन होखे।
रोमिला थापर नियर इतिहासकार लोग के मानल बा कि मौर्य साम्राज्य के प्रशासन में एगो मूलभूत कमी रहल कि ऊ बेहवारिक रूप से सुसंगठित होखले के बावजूद जरूरत से ज्यादा नौकरशाही केंद्रित रहल। गुप्त लोग से इनहन लोग के कर ब्यवस्था बढ़ियाँ रहल जबकि तनखाह के मामिला में ऊँच वर्ग आ निचला अधिकारी लोग के बीच बहुत असमानता रहल, सभसे अधिक तनखाह 48 हजार पण आ सभसे कम 60 पण रहे।
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