फागुन: हिंदू महीना

फागुन (फाल्गुन) हिंदू कलेंडर के एक ठो महीना बा। माघ के बाद आ चइत से पहिले आवे ला। छेत्र बिसेस के अनुसार एकरा के इगारहवाँ भा बारहवाँ महीना मानल जाला। बसंत रितु के ई पहिला महीना हवे।

फागुन
फागुन: नाँव, संस्कृति में, साहित्य में
"राधा आ कृष्ण के बसंत उत्सव", 18वीं-सदी के मिनियेचर; गुइमेट म्यूजियम (Guimet Museum), पैरिस.
मूल नाँवफाल्गुन  (संस्कृत)
कलेंडरहिंदू कलेंडर
महीना के गिनती12
सीजनबसंत
अंग्रेजी कलेंडर मेंफरवरी-मार्च
महत्व के दिन

काशी क्षेत्र में प्रचलन में बिक्रम संवत के अनुसार फागुन साल के बारहवाँ आ आखिरी महीना होला। हालाँकि साल के सुरुआत चइत के अँजोरिया से सुरू होखे के कारन चइत के पहिला पाख जे अन्हार के होला साल के सभसे अंत में पड़े ला। अंग्रेजी (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के हिसाब से एह महीना के सुरुआत कौनों फिक्स डेट के ना पड़ेला बलुक खसकत रहेला। आमतौर पर ई फरवरी/मार्च के महीना में पड़े ला।

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग, जेवन सुरुज आधारित होला, में फागुन बारहवाँ महीना हवे आ ग्रेगोरियन कैलेंडर के 20 फरवरी से एकर सुरुआत होले। नेपाल में प्रयुक्त कैलेंडर के हिसाब से ई साल के इगारहवाँ महीना हवे। बंगाली कैलेंडर में भी ई इगारहवाँ महीना होला।

नाँव

फागुन शब्द संस्कृत के फाल्गुन के बदलल रूप हवे। हिंदू महीना सभ के बाकी नाँव नियर एह महीना के नाँव भी ओह नछत्र के नाँव पर रखाइल हवे जेवना नक्षत्र में पुर्नवासी के दिने सुरुज उगे ला। एह महीना के नाँव फाल्गुनी नक्षत्र के आधार पर परल हवे। मने की आकास में सुरुज के चक्कर लगावत पृथ्वी के स्थिति अइसन होला कि सुरुज आकास में ओही दिसा में देखलाई पड़े ला जेहर पूर्वा फाल्गुनी भा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होखे लीं।

संस्कृति में

फागुन: नाँव, संस्कृति में, साहित्य में 
पलाश के फूल। एही महीना में ई लाल फूल फुलालें आ होली खाती इनहने से परंपरागत रंग बनावल जाय।

फागुन के लोक संस्कृति में उछाह आ उल्लास के महीना मानल जाला। ई बसंत रितु के महीना हवे। माघ के जाड़ा बीते के बाद फागुन में मौसम गरम होखे सुरू होला। पतझर आ ओकरे बाद नाया पत्ता निकले सुरू होला। ई सीजन किसान लोग खाती भी महत्व के होला, गोहूँ-जौ के बालि लउके लागे लीं जे किसान लोग में उछाह के कारन बने ला।

फागुन में हवा के जोर बढ़े ला आ एह हवा के फगुनहट कहल जाला।

फसल पाके के खुसी आ बसंत के आगमन एह महीना के आनंद आ फूहर गीत (कबीरा आ जोगीरा) के महीना बना देला। एह महीना में होली के तिहुआर खास बिसेसता हवे हालाँकि, पूरा महीना भर अइसन गीत गावल जालें। एह गीत सभ के फगुआ कहल जाला। हिंदी के साहित्यकार रामविलास शर्मा एह महीना में मनावल जाए वाला एह आनंद के रोमन तिहुआर "सैटर्नेलिया" से तुलना करे लें।

साहित्य में

भारतीय साहित्य में रितु बरनन संस्कृत साहित्य से शुरू होला जेह में कालिदास के ऋतुसंहार नाँव के खंडकाब्य सभे से प्रमुख गिनल जाला। बाद में जा के छह रितु सभ के बरनन बारह महीना सभ के बरनन में बदल गइल। एह काब्य सभ के बारहमासा कहल गइल। मालिक मुहम्मद जायसी के बारहमासा परसिद्ध हवे जेह में ऊ रानी नागमती के बिरह के बरनन करे लें। एह में फागुन के बरनन नीचे दिहल जा रहल बा:

फागुन पवन झकोरा बहा। चौगुन सीउ जाइ नहिं सहा॥
तन जस पियर पात भा मोरा। तेहि पर बिरह देइ झकझोरा॥
तरिवर झरहि, झरहिं बन ढाखा। भइ ओनंत फलि फरि साखा॥
करहिं बनसपति हिये हुलासू। मो कहँ भा जग दून उदासू॥
फाग करहिं सब चाँचरि जोरी। मोहिं तन लाइ दीन्ह जस होरी॥
जो पै पीउ जरत अस पावा। जरत मरत मोहिं रोष न आवा॥
राति दिवस सब यह जिउ मोरे। लगौं निहोर कंत अब तोरे॥

यह तन जारों छार कै, कहौं कि 'पवन ! उड़ाव'।
मकु तेहि मारग उड़ि परै, कंत धरै जहँ पाव॥12॥ -- मालिक मुहम्मद जायसी।

आधुनिक कबितई में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के परसिद्ध कबिता अट नहीं रही है" फागुन महीना के बरनन करे ले:

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

पत्‍तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में,
मंद - गंध-पुष्‍प माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है। -- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

परब-तिहुआर

शिवराति

हिंदू देवता शिवपार्वती के बियाह के तिहुआर हवे। ई फागुन महीना (पूर्णिमांत) में अन्हार पाख के तेरस/चतुर्दसी के रात के मनावल जाला। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से फरवरी भा मार्च में पड़े ला। दूसर कथा सभ में अउरी कई कारण बतावल जाला, जइसे कि एही दिन शिव तांडव नाच कइले रहलें, समुंद्र-मंथन से निकसल बिस पियले रहलें, या एही दिन ज्योतिर्लिंग प्रगट भइल रहे। काश्मीरी शैव मत में एकरा के हर-रात्री भा हैरात या हेरात के नाँव से बोलावल जाला। ई तिहुआर लगभग पूरा भारत में, नेपाल में आ अन्य कई देसन में मनावल जाला।

होली

फागुन: नाँव, संस्कृति में, साहित्य में 
होली मनावत राधा आ गोपी लोग, कांगड़ा शैली के पेंटिंग।

बसंत रितु के तिहुआर हवे। ई फागुन महीना (पूर्णिमांत) में पुर्नवासी (पूर्णिमा) के मनावल जाला। हिंदू लोग रात खा होलिका जरावे ला जेकरा के होलिका दहन चाहे सम्मत फूँकल कहल जाला। एकरा अगिला दिने (कुछ इलाकन में जहाँ परुआ रखल जाला, एक दी छोड़ के) लोग एक दुसरे पर रंग आ अबीर डाले ला। पकवान बने ला आ फगुआ गावल जाला। इ प्रमुखता से भारत अउरी नेपाल में मनावल जाला; एकरे अलावा जहाँ कहीं भारतीय नेपाली लोग रहे ला अउरियो देसन में ई तिहुआर मनावे ला।

शिगमो

गोवामहाराष्ट्र के कोंकण इलाका के तिहुआर हवे। इहो बसंत के, चाहे गर्मी के सीजन शुरू होखे के उपलक्ष में मनावल जाये वाला तिहुआर हवे आ होलिये नियन इहो फागुन महीने के पुर्नवासी से जुड़ल बा। पूर्णिमा के पाँच दिन पहिले से ई तिहुआर सुरू हो जाला। नाच-गाना आ खुसी मनावल एह तिहुआर के बिसेस्ता हवें। एकरे नाँव के उत्पत्ती संस्कृत के सुग्रीष्मक से बतावल जाला।

इहो देखल जाय

संदर्भ

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