जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट, भारत में रहल एक हिन्दू धार्मिक संत बा।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य | |
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जनम | गिरिधर मिश्र 14 जनवरी 1950 जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत |
पदवी/उपाधि/सम्मान | धर्मचक्रवर्ती, महामहोपाध्याय, श्रीचित्रकूटतुलसीपीठाधीश्वर, जगद्गुरु रामानन्दाचार्य, महाकवि, प्रस्थानत्रयीभाष्यकार, वगैरह |
गुरु | पण्डित ईश्वरदास महाराज |
दर्शन | विशिष्टाद्वैत वेदान्त |
रचना | प्रस्थानत्रयी पर राघवकृपाभाष्य, श्रीभार्गवराघवीयम्, भृंगदूतम्, गीतरामायणम्, श्रीसीतारामसुप्रभातम्, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, अष्टावक्र, वगैरह |
कोटेशन | मानवता ही मेरा मन्दिर मैं हूँ इसका एक पुजारी ॥ हैं विकलांग महेश्वर मेरे मैं हूँ इनका कृपाभिखारी ॥ |
जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य के जनम सरयूपारीण ब्राह्मण कुल के वशिष्ठ गोत्र मे होइल रहे। 14 जनवरी 1950, माघ महिना के कृष्णपक्ष एकादशी के मकर संकरान्ति के शुभ अवसर पे अनुराधा नक्षत्र मे, प्रातः काल के 10.34 मे महाराजश्री शरीर धारण कैयले। जौनपुर के अंतर्गत शाण्डिखुर्द नामक स्थान में ब्राह्मण दम्पति पंडित राजदेव मिश्र और शची मैया के इनकर माता-पिता बनले के सौभाग्य प्राप्त भइल। आचार्यजी के पूज्य बाबा पंडित सूर्यबली मिश्रजी के बहिन गिरधरलाल के प्रेमी भक्त रहली त एही कारण उनकर नाम भी "गिरिधर" नाम रखल गइल।
मार्च 1950 मे गिरिधर के नेत्र ज्योति चलि गइल।जब उनकाके ट्रकोम के बिमारी भइल त गाँवमें कौनों इलाज नाही रहल। ट्रकोम के गाठ हटावे खातिर गाँवके एक महिला उनके आँखि में एक गर्म दवा डारी दिहलि जेकरा कारण आँखिनसे रक्तस्राव होखे लागल। परिवारिक जन गिरिधर के आयुर्वेदिक, होमेओपथिक, एलोपैथिक दवा हेतु सीतापुर, लखनउ औरि मुम्बई लै गैले, पर कौनों लाभ नाही भइल। एहि कारण गिरिधर कबों ब्रैल के माध्यम से नाही पढ़ले बल्कि श्रवण से सुनकर सीखले औरि बोलिकें लिपिकारन से आपन रचना लिखवले।
बालक गिरिधरके पिता मुम्बई में कार्यरत रहलै, त एहि कारण उनकर प्रारम्भिक अध्ययन घर पर पितामह की देख-रेख में भइल। दोपहर में उनकर पितामह उनके रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास आदि काव्य के पद सुनाय देत रहलै।तीन बरिस के आयुमें गिरिधर अवधी में आपन प्रथम रचना कईके आपन पितामहकें सुनवले। एहि कवितामें मैया जसोदा से एकठो गोपी लड़े खातिर उलाहना देत बाटी -
मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी ॥ तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी ॥ सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी ॥ तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी ॥ गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आँचर ओट करी ॥
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