वराह मिहिर: भारतीय गणितग्न

वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। यह चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे।

वराह मिहिर
जन्म 499C E उज्जैन
मौत 587 उज्जैन

उज्जैन में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वरःमिहिर का मुख्य उद्देश्य गणित एवं विज्ञान को जनहित से जोड़ना था। वस्तुतः ऋग्वेद काल से ही भारत की यह परम्परा रही है। वरःमिहिर ने पूर्णतः इसका परिपालन किया है।

जीवनी

वराहमिहिरa का जन्म सन् 505 ई. में एक ज्योतिषी परिवार में हुआ। यह परिवार उज्जैन में शिप्रा नदी के निकट कपित्थ (कायथा) नामक गांव का निवासी था। उनके पिता आदित्यदास सूर्य भगवान के भक्त थे। उन्हीं ने मिहिर को ज्योतिष विद्या सिखाई। कुसुमपुर (पटना) जाने पर युवा मिहिर महान खगोलज्ञ और गणितज्ञ आर्यभट्ट से मिले। इससे उसे इतनी प्रेरणा मिली कि उसने ज्योतिष विद्या और खगोल ज्ञान को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। उस समय उज्जैन विद्या का केंद्र था। गुप्त शासन के अन्तर्गत वहां पर कला, विज्ञान और संस्कृति के अनेक केंद्र पनप रहे थे। वराह मिहिर इस शहर में रहने के लिये आ गये क्योंकि अन्य स्थानों के विद्वान भी यहां एकत्र होते रहते थे। समय आने पर उनके ज्योतिष ज्ञान का पता विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त द्वितीय को लगा। राजा ने उन्हें अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया। मिहिर ने सुदूर देशों की यात्रा की, यहां तक कि वह यूनान तक भी गये। सन् 587 में महान गणितज्ञ वराहमिहिर की मृत्यु हो गई।

रचनाएं

550 ई. के लगभग इन्होंने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें बृहज्जातक, बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका, लिखीं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं, जो वराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं।

पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है। ये सिद्धांत हैं : पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत। वराहमिहिर ने इन पूर्वप्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। इन्होंने फलित ज्योतिष के लघुजातक, बृहज्जातक तथा बृहत्संहिता नामक तीन ग्रंथ भी लिखे हैं। बृहत्संहिता में वास्तुविद्या, भवन-निर्माण-कला, वायुमंडल की प्रकृति, वृक्षायुर्वेद आदि विषय सम्मिलित हैं।

अपनी पुस्तक के बारे में वराहमिहिर कहते है:

    ज्योतिष विद्या एक अथाह सागर है और हर कोई इसे आसानी से पार नहीं कर सकता। मेरी पुस्तक एक सुरक्षित नाव है, जो इसे पढ़ेगा वह उसे पार ले जायेगी।

यह कोरी शेखी नहीं थी। इस पुस्तक को अब भी ग्रन्थरत्न समझा जाता है।

    कृतियों की सूची
  • पंचसिद्धान्तिका,
  • बृहज्जातकम्,
  • लघुजातक,
  • बृहत्संहिता
  • टिकनिकयात्रा
  • बृहद्यात्रा या महायात्रा
  • योगयात्रा या स्वल्पयात्रा
  • वृहत् विवाहपटल
  • लघु विवाहपटल
  • कुतूहलमंजरी
  • दैवज्ञवल्लभ
  • लग्नवाराहि

वैज्ञानिक विचार तथा योगदान

बराहमिहिर वेदों के ज्ञाता थे मगर वह अलौकिक में आंखे बंद करके विश्वास नहीं करते थे। उनकी भावना और मनोवृत्ति एक वैज्ञानिक की थी। अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिक आर्यभट्ट की तरह उन्होंने भी कहा कि पृथ्वी गोल है। विज्ञान के इतिहास में वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि कोई शक्ति ऐसी है जो चीजों को जमीन के साथ चिपकाये रखती है। आज इसी शक्ति को गुरुत्वाकर्षण कहते है। लेकिन उन्होंने एक बड़ी गलती भी की। उन्हें विश्वास था कि पृथ्वी गतिमान नहीं है।

    अगर यह घूम रही होती तो पक्षी पृथ्वी की गति की विपरीत दिशा में (पश्चिम की ओर) कर अपने घोसले में उसी समय वापस पहुंच जाते।

वराहमिहिर ने पर्यावरण विज्ञान (इकालोजी), जल विज्ञान (हाइड्रोलोजी), भूविज्ञान (जिआलोजी) के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की। उनका कहना था कि पौधे और दीमक जमीन के नीचे के पानी को इंगित करते हैं। आज वैज्ञानिक जगत द्वारा उस पर ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने लिखा भी बहुत था। संस्कृत व्याकरण में दक्षता और छंद पर अधिकार के कारण उन्होंने स्वयं को एक अनोखी शैली में व्यक्त किया था। अपने विशद ज्ञान और सरस प्रस्तुति के कारण उन्होंने खगोल जैसे शुष्क विषयों को भी रोचक बना दिया है जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। उनकी पुस्तक पंचसिद्धान्तिका (पांच सिद्धांत), बृहत्संहिता, बृहज्जात्क (ज्योतिष) ने उन्हें फलित ज्योतिष में वही स्थान दिलाया है जो राजनीति दर्शन में कौटिल्य का, व्याकरण में पाणिनि का है।

त्रिकोणमिति

निम्ननिखित त्रिकोणमितीय सूत्र वाराहमिहिर ने प्रतिपादित किये हैं-।

    वराह मिहिर: जीवनी, रचनाएं, वैज्ञानिक विचार तथा योगदान 
    वराह मिहिर: जीवनी, रचनाएं, वैज्ञानिक विचार तथा योगदान 
    वराह मिहिर: जीवनी, रचनाएं, वैज्ञानिक विचार तथा योगदान 

वाराहमिहिर ने आर्यभट्ट प्रथम द्वारा प्रतिपादित ज्या सारणी को और अधिक परिशुद्धत बनाया।

अंकगणित

वराहमिहिर ने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया।

संख्या सिद्धान्त

वराहमिहिर 'संख्या-सिद्धान्त' नामक एक गणित ग्रन्थ के भी रचयिता हैं जिसके बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस ग्रन्थ के बारे में पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि इसका एक छोटा अंश ही प्राप्त हो पाया है। प्राप्त ग्रन्थ के बारे में पुराविदों का कथन है कि इसमें उन्नत अंकगणित, त्रिकोणमिति के साथ-साथ कुछ अपेक्षाकृत सरल संकल्पनाओं का भी समावेश है।

क्रमचय-संचय

वराहमिहिर ने वर्तमान समय में पास्कल त्रिकोण (Pascal's triangle) के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज की। इनका उपयोग वे द्विपद गुणाकों (binomial coefficients) की गणना के लिये करते थे।

बृहत्संहिता में सांयोजिकी (combinatorics) से सम्बन्धित यह श्लोक विद्यामान है-

    षोडशके द्रव्यगणे चतुर्विकल्पेन भिद्यमानानाम्।
    अष्टादश जायन्ते शतानि सहितानि विंशत्या॥
      (अर्थ: सोलह प्रकार के द्रव्य विद्यमान हों तो उनमें से किसी चार को मिलाकर कुल 1820 प्रकार के इत्र बनाए जा सकते हैं।

आधुनिक गणित की भाषा में कहें तो, 16C4 = (16 × 15 × 14 × 13) / (1 × 2 × 3 × 4) = 1,820

प्रकाशिकी

वराहमिहिर का प्रकाशिकी में भी योगदान है। उन्होने कहा है कि परावर्तन कणों के प्रति-प्रकीर्णन (back-scattering) से होता है। उन्होने अपवर्तन की भी व्याख्या की है।

सन्दर्भ

1. ^ "the Pañca-siddhāntikā ("Five Treatises"), a compendium of Greek, Egyptian, Roman and Indian astronomy. Varāhamihira's knowledge of Western astronomy was thorough. In 5 sections, his monumental work progresses through native Indian astronomy and culminates in 2 treatises on Western astronomy, showing calculations based on Greek and Alexandrian reckoning and even giving complete Ptolemaic mathematical charts and tables. Encyclopædia Britannica (2007) s.v.Varahamihira ^

2. E. C. Sachau, Alberuni's India (1910), vol. I, p. 153

बाहरी कड़ियाँ



Tags:

वराह मिहिर जीवनीवराह मिहिर रचनाएंवराह मिहिर वैज्ञानिक विचार तथा योगदानवराह मिहिर सन्दर्भवराह मिहिर बाहरी कड़ियाँवराह मिहिरअयनांशखगोलिकीचंद्रगुप्त विक्रमादित्यभारतीय गणितज्ञ

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

गेहूँभारतेन्दु युगकैबिनेट मिशनरावणवीर्यब्राह्मणराजीव गांधीसम्प्रभुतादुबईआधुनिक हिंदी गद्य का इतिहासमिथुन चक्रवर्तीसंयुक्त राज्य के राष्ट्रपतियों की सूचीपृथ्वी का वायुमण्डलवैष्णो देवीजाटवबिहार जाति आधारित गणना 2023राज्यभारत का उच्चतम न्यायालयरक्षाबन्धनशेयर बाज़ारमहात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियममध्य प्रदेश के ज़िलेबीएसई सेंसेक्सकर्णभारत में महिलाएँराजस्थान विधान सभाजर्मनी का एकीकरणभारतीय शिक्षा का इतिहासकोणार्क सूर्य मंदिरस्वच्छ भारत अभियानबड़े मियाँ छोटे मियाँविटामिनभारत की संस्कृतिमहावीरनीतीश कुमारछत्तीसगढ़ के जिलेबुध (ग्रह)भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूचीनागार्जुनभारत के राष्ट्रपतिपृथ्वी की आतंरिक संरचनाछत्तीसगढ़द्वादश ज्योतिर्लिंगभारत में इस्लामक्रिकेटरामदेवमहात्मा गांधीदलितभारत की जनगणना २०११गोरखनाथस्वातंत्र्य वीर सावरकर (फिल्म)आशिकी 2बाल वीरहनुमानभगत सिंहसंज्ञा और उसके भेदजनसंचारदिल्ली सल्तनतमुहम्मदमताधिकारमेइजी पुनर्स्थापननेहरू–गांधी परिवारसूचना प्रौद्योगिकीछायावादनाटकबिहारी (साहित्यकार)अलंकारमुलायम सिंह यादवरीमा लागूरामदेव पीरजीवन कौशलअनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातिमनोविज्ञानशनि (ज्योतिष)चम्पारण सत्याग्रहॐ नमः शिवायभैरवराहुल गांधी🡆 More