वनस्पति विज्ञान या पादप विज्ञान, पौधों के जीवन का विज्ञान और जीव विज्ञान की एक शाखा है। एक वनस्पति वैज्ञानिक या पादप वैज्ञानिक एक वैज्ञानिक है जो इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है।
सामान्य अर्थ में जीवधारियों को दो प्रमुख वर्गों - प्राणियों और पादपों - में विभक्त किया गया है। दोनों में अनेक समानताएँ हैं। दोनों की शरीर रचनाएँ कोशिकाओं और ऊतकों से बनी हैं। दोनों के जीवनकार्य में बड़ी समानता है। उनका जनन भी सादृश्य है। उनकी श्वसनक्रिया भी लगभग एक सी है।
पादप प्राणियों से कुछ मामलों में भिन्न भी होते हैं। जैसे पादपों में पर्णहरित (chlorophyll) नामक हरा पदार्थ रहता है, जो प्राणियों में नहीं पाया जाता। पादपों की कोशिका भित्तियाँ मुख्यतः सेलुलोज (cellulose) नामक कार्बोहाइड्रेट की बनी होती हैं, जबकि प्राणियों में कोशिका भित्तियाँ सामान्यतः पायी ही नहीं जातीं। अधिकांश पादपों में गमनशीलता नहीं होती, जबकि प्राणी चलने में सक्षम होते हैं।
वनस्पतियाँ धरती पर जीवन के मूलभूत अंश हैं। वनस्पतियाँ आक्सीजन छोड़ती हैं। मानव एवं अन्य जन्तुओं का भोजन उनसे ही मिलता है। वनस्पतियों से रेशे (फाइबर), ईंधन, औषधियाँ प्राप्त होतीं है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे कार्बन डाई आक्साइड सोखते हैं। पेड़ों से ही इमारती लकड़ियाँ एवं अन्य संरचनाओं के निर्माण के लिए लकड़ी मिलती है।
अतः वनस्पतियों के बारे में अच्छी तरह जानकारी होना बहुत जरूरी है क्योंकि-
(विस्तृत जानकारी के लिये पादप विज्ञान की शाखाएँ देखें।पादपविज्ञान के समुचित अध्ययन के लिये इसे अनेक शाखाओं में विभक्त किया गया है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं :
1. पादप आकारिकी (Plant Morphology) - इसके अंतर्गत पादप में आकार, बनावट इत्यादि का अध्ययन होता है। आकारिकी अंतर हो सकती है या बाह्य।
2. कोशिकानुवंशिकी (Cytogenetics) - इसके अंतर्गत कोशिका के अंदर की सभी चीजों का, कोशिका तथा केंद्रक (nucleus) के विभाजन की विधियों का तथा पौधे किस प्रकार अपने जैसे गुणोंवाली नई पीढ़ियों को जन्म देते हैं इत्यादि का, अध्ययन होता है।
3. पादप परिस्थितिकी (Plant Ecology) - इसके अंतर्गत पादपों और उनके वातावरण के आपसी संबंध का अध्ययन होता है। इसमें पौधों के सामाजिक जीवन, भौगोलिक विस्तार तथा अन्य मिलती जुलती चीजों का भी अध्ययन किया जाता है।
4. पादप शरीर-क्रिया-विज्ञान (Plant Physiology) - इसके अंतर्गत जीवनक्रियाओं (life processes) का बृहत् रूप से अध्ययन होता है।
5. भ्रूणविज्ञान (Embryology) - इसके अंतर्गत लैंगिक जनन की विधि में जब से युग्मक बनते हैं और गर्भाधान के पश्चात् भ्रूण का पूरा विस्तार होता है तब तक की दशाओं का अध्ययन किया जाता है।
6. विकास (Evolution) - इसके अंतर्गत पृथ्वी पर नाना प्रकार के प्राणी या पादप किस तरह और कब पहले पहल पैदा हुए होंगे और किन अन्य जीवों से उनकी उत्पत्ति का संबंध है, इसका अध्ययन होता है।
7. आर्थिक पादपविज्ञान - इसके अंतर्गत पौधों की उपयोगिता के संबंध में अध्ययन होता है।
8. पादपाश्मविज्ञान (Palaeobotany) - इसके अंतर्गत हम उन पौधों का अध्ययन करते हैं जो इस पृथ्वी पर हजारों, लाखों या करोड़ों वर्ष पूर्व उगते थे पर अब नहीं उगते। उनके अवशेष ही अब चट्टानों या पृथ्वी स्तरों में दबे यत्र तत्र पाए जाते हैं।
9. वर्गीकरण या वर्गीकरण पादपविज्ञान (Taxonomy or Systematic botany) - इसके अंतर्गत पौधों के वर्गीकरण का अध्ययन करते हैं। पादप संघ, वर्ग, गण, कुल इत्यादि में विभाजित किए जाते हैं।
18वीं या 19वीं शताब्दी से ही अंग्रेज या अन्य यूरोपियन वनस्पतिज्ञ भारत में आने लगे और यहाँ के पौधों का वर्णन किया और उनके नमूने अपने देश ले गए। डाक्टर जे. डी. हूकर ने लगभग 1860 ई. में भारत के बहुत से पौधों का वर्णन अपने आठ भागों में लिखी "फ्लोरा ऑव ब्रिटिश इंडिया" नामक पुस्तक में किया है।
(विस्तृत विवरण के लिये पादप वर्गीकरण देखें।)
डार्विन (Darwin) के विचारों के प्रकाश में आने के पश्चात् यह वर्गीकरण पौधों की उत्पत्ति तथा आपसी संबंधों पर आधारित होने लगा। ऐसे वर्गीकरण को 'प्राकृतिक पद्धति' (Natural System) कहते हैं और जो वर्गीकरण इस दृष्टिकोण को नहीं ध्यान में रखते उसे 'कृत्रिम पद्धति' (Artificial System) कहते हैं।
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