भारत में नमक पर कर आरंभिक काल से ही लगाया जाता रहा है। परंतु मुगल सम्राटों की अपेक्षा इस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में इसमें अत्यधिक वृद्धि कर दी गई। 1835 में इस पर ब्रटिस नमक व्यापारियों के हितों के लिए कर लगा दिया गया। जिससे भारत में नमक का आयात होने लगा और इस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों को बहुत फायदा हुआ। 1858 के सत्ता परिवर्तन के बाद भी कर लगा रहा। भारतीयों द्वारा इसकी आरंभ से ही निंदा की गई। 1885 के कांग्रेस के पहले सम्मेलन में एस ए स्वामीनाथन अय्यर ने यह मुद्दा उठाया। बाद में गांधीजी ने 1930 में इसे व्यापक मुद्दा बना दिया। दांडी मार्च के बाद गांधी की गिरफ्तारी के पश्चात सरोजनी के नेतृत्व में धरसाना में नमक सत्याग्रह हुआ। राजगोपालाचारी ने मद्रास के वेदमरण्यम में उसी वर्ष नमक कानून तोड़ा। दांडी मार्च को अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियाँ मिली। मगर नमक कानून 1946 तक चलता रहा जबतक कि जवाहरलाल नेहरु अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री बनकर इसे निरस्त नहीं किया।
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नमक का कराधान- जर्मन विद्वान एम जे स्लेडन ने अपनी पुस्तक साल्ज में लिखा कि नमक कर और तानासाही में सीधा संबंध है। इसका प्रमाण इतिहास देता है कि सर्वाधिक निरंकुश सभ्यताएं वे हैं जिन्होंने कि नमक और उसके व्यापार पर कर लगाया है। नमक कर सबसे पहले चीन में लगाया गया। 300 इ. पु. में लिखी गई पुस्तक ग्वांजी में नमक कर लगाने की अनुशंशा की गई है जो आगे चीन की सरकारी और इसके लिए विभिन्न तरिकों का प्रयोग किया गया। यह प्रसिद्ध है कि ग्वांजी की अनुसंशाएं जल्दी ही चीनी सरकारों की नमक नीति बन गई। एक समय नमक कर चीन की राजस्व का आधा था और उसने चीन की दीवार के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चंद्रगुप्त काल में नमक का चौथाई हिस्सा कर के रूप में लिया जाता था। मुगलों के समय मुसलमानों से केवल 2.5% नमक कर और हिंदुओं से दुगना अर्थात 05 % नमक कर लिया जाता था। 1759 में ब्रिटिशों ने जमीन की लगान दुगनी कर दी और नमक के परिवहन पर भी कर लगा दिया। 1767 को तंबाकु और नारियल के बाद 7 अक्टूबर 1768 को नमक पर भी कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने नमक कर को फिर से कंपनी के अंतर्गत कर दिया। उसने इसके लिए एजेंट बनाए। कंपनी सर्वाधिक बोली लगाने वालों को पट्टों पर जमीन देती थी। इसने मजदूरों के शोषण को जन्म दिया। 1788 में नमक थोक विक्रेताओं को निलामी लगाकर दी जाने लगी। इसने नमक के दाम को 01 रुप्ए से बढ़ाकर 04 रूप्ए कर दिया। यह अत्यधिक दर्दनाक स्थिति थी जिसमें केवल कुछ लोग ही नमक के साथ भोजन करने में समर्थथ थे।शेष लोगो को बिना नमक के भोजन करना पड़ता था । 1802 में उड़िसा के विजय के बाद अंग्रेजों ने नमक के उत्पादन पर कर बढ़ा दिया और मलंगी कर्ज में डूबकर दास बनते गए। 19वीं सदी के आरंभ में नमक कर को अधिक लाभदायक बनाने के लिए और उसकी तस्करी को रोकने के लिए इस्ट इंडिया कंपनी ने जाँच केंद्र बनाए। जी एच स्मिथ ने एक सीमा खिंची जिसके पार नमक के परिवहन पर अधइक कर देना पड़ता था। 1869 तक यह सीमा पूरे भारत में फैल गई। 2300 मील तक सिंधु से मद्रास तक फैले क्षेत्र में लगभग 12 हजार लोग तैनात किए गए थे। यह कांटेदार झाड़ियों पत्थरों, पहाड़ों से बनी सीमा थी जिसके पार बिना जाँच के नहीं जाया जा सकता था। 1923 में लॉर्ड रीडिंग के समय नमक कर को दुगुना करने का विधेयक पास किया गया। 1927 में पुनः विधेयक लाया गया जिसपर विटो लग गया। 1835 के नमक कर आयोग ने अनुसंशा की कि नमक के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए नमक पर कर लगाया जाना चाहिए। बाद में नमक के उत्पादन को अपराध बनाया गया। 1882 में बने भारतीय नमक कानून ने सरकार को पुनः एकाधिकार स्थापित करा दिया। 12 मार्च 1930 को 79 अनुयायियों के साथ गांधी साबरमती से दांडी चले। और 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ दिया। और ब्रिटिश शासन के अंत की घोषणा की।
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