पंचायती राज व्यवस्था, ग्रामीण भारत की स्थानीय स्वशासन की प्रणाली है। जिस तरह से नगरपालिकाओं तथा उपनगरपालिकाओं के द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन चलता है, उसी प्रकार पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन चलता है। पंचायती राज संस्थाएँ तीन हैं-
(1) ग्राम के स्तर पर ग्राम पंचायत
(2) ब्लॉक (तालुका) स्तर पर पंचायत समिति
(3) जिला स्तर पर जिला परिषद
इन संस्थाओ का काम आर्थिक विकास करना, सामाजिक न्याय को मजबूत करना तथा राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की योजनाओं को लागू करना है, जिसमें ११वीं अनुसूची में उल्लिखित 29 विषय भी हैं।
भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था आस्तित्व में रही हैं। आधुनिक भारत में प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले के बगधरी गांव में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई।
भारत में ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है। वर्ष 1882 में उन्होंने स्थानीय स्वशासन सम्बंधी प्रस्ताव दिया।
1919 के भारत शासन अधिनियम के तहत प्रान्तों में दोहरे शासन की व्यवस्था की गई तथा स्थानीय स्वशासन को हस्तान्तरित विषयों की सूची में रखा गया।
स्वतंत्रता के पश्चात् वर्ष 1957 में योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम (वर्ष 1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम (वर्ष 1953) के अध्ययन के लिये ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन किया गया। नवंबर 1957 में समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था- ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर एवं ज़िला स्तर लागू करने का सुझाव दिया।
वर्ष 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद ने बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशें स्वीकार की तथा 2 अक्तूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश की पहली त्रि-स्तरीय पंचायत का उद्घाटन किया गया।
वर्ष 1993 में 73वें व 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायत (ग्राम स्तर पर), पंचायत समिति (मध्यवर्ती स्तर पर) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर) शामिल हैं।
पंचायती राज से संबंधित विभिन्न समितियाँ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। 1993 में संविधान में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गयी है।
24 अप्रैल 1993 भारत में पंचायती राज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था क्योंकि इसी दिन संविधान (73वाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और इस तरह महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया गया था।
73वें संशोधन अधिनियम, 1992 में निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं:
1) संविधान की गयारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना और उनका निष्पादन करना।
2) कर, ड्यूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार।
3) राज्यों द्वारा एकत्र करों, ड्यूटियों, टॉल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण।
== ग्राम पंचायत == सभा किसी एक गाँव या पंचायत का चुनाव करने वाले गाँवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 में उल्लिखित प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभा को शक्तियाँ प्रदान करें।
गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर देश भर में ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए पंचायती राज कानून में अनिवार्य प्रावधान शामिल करना।
पंचायती राज अधिनियम में ऐसा अनिवार्य प्रावधान जोड़ना, जो विशेषकर ग्राम सभा की बैठकों के कोरम, सामान्य बैठकों और विशेष बैठकों तथा कोरम पूरा न हो पाने के कारण फिर से बैठक के आयोजन के संबंध में हो।
ग्राम सभा के सदस्यों को उनके अधिकारों और शक्तियों से अवगत कराना ताकि जन भागीदारी सुनिश्चित हो और विशेषकर महिलाओं तथा अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों जैसे सीमांतीकृत समूह भाग ले सकें।
ग्राम सभा के लिए ऐसी कार्य-प्रक्रियाएँ बनाना जिनके द्वारा वह ग्राम विकास मंत्रालय के लाभार्थी-उन्मुख विकास कार्यक्रमों का असरकारी ढंग़ से सामाजिक ऑडिट सुनिश्चित कर सके तथा वित्तीय कुप्रबंधन के लिए वसूली या सजा देने के कानूनी अधिकार उसे प्राप्त हो सकें।
ग्राम सभा बैठकों के संबंध में व्यापक प्रसार के लिए कार्य-योजना बनाना।
ग्राम सभा की बैठकों के आयोजन के लिए मार्ग-निर्देश/कार्य-प्रक्रियाएँ तैयार करना।
प्राकृतिक संसाधनों, भूमि रिकार्डों पर नियंत्रण और समस्या-समाधान के संबंध में ग्राम सभा के अधिकारों को लेकर जागरूकता पैदा करना।
73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम ग्राम स्तर पर स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में ऐसी सशक्त पंचायतों की परिकल्पना करता है जो निम्न कार्य करने में सक्षम हो:
ग्राम स्तर पर जन विकास कार्यों और उनके रख-रखाव की योजना बनाना और उन्हें पूरा करना।
ग्राम स्तर पर लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना, इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, समुदाय भाईचारा, विशेषकर जेंडर और जाति-आधारित भेदभाव के संबंध में सामाजिक न्याय, झगड़ों का निबटारा, बच्चों का विशेषकर बालिकाओं का कल्याण जैसे मुद्दे होंगे।
73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो।
ग्राम सभा 1993 की धारा 6(1) के अनुसार राज्यपाल द्वारा अनुसूचित किया गया की एक ग्राम सभा होगी। धारा 8 पचायतो का गठन और धारा 9 द्वारा पंचायत अवधि का प्रावधान किया गया !
उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए,
महिलाओ को 33% पंचायत में सीट उपलब्ध करानी चाहिए।
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