अशोक के अभिलेख

मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, शिलाओं (चट्टानों) और गुफाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बांग्लादेश, भारत, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।

अशोक के अभिलेख
अशोक के अभिलेख
अशोक के शिलालेख ,अभिलेख व गुफालेख
सामग्रीचट्टानें, खंभे, पत्थर की पटिया
कृतिदूसरी शताब्दी ईसा पूर्व
अवस्थितिनेपाल, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश

इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मागधी में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।

शाहनाज गढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं। तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं। इसके अतिरिक्‍त अशोक के समस्त शिलालेख, लघुशिला स्तम्भ लेख एवं लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है।

अशोक के अभिलेख
अशोक द्वारा उपयोग किए गए चार लिपियाँ उनके अभिलेखों में: ब्राह्मी लिपि (ऊपर बाएं), खरोष्ठी लिपि (ऊपर दाएं), यूनानी (नीचे बाएं) और आरामाइक (नीचे दाएं)।

अभी तक अशोक के ४० अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। सर्वप्रथम १८३७ ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफलता हासिल की थी।

अशोक के नाम और उपाधियाँ
अशोक के अभिलेख
"देवानम्पियस अशोक",मास्की ,अशोक के अभिलेख में।
अशोक के अभिलेख
नाम "अशोक" (𑀅𑀲𑁄𑀓 A-so-ka) मास्की, लघु शिला अभिलेख में।
अशोक के अभिलेख
अशोक का उपाधि "देवनंपियेन पियदसी" (𑀤𑁂𑀯𑀸𑀦𑀁𑀧𑀺𑀬𑁂𑀦 𑀧𑀺𑀬𑀤𑀲𑀺) लुम्बिनी, लघु स्तंभ अभिलेख में।
अशोक के अभिलेख
गुजर्रा अभिलेख में पूर्ण उपाधि देवनंपियस पियदसिनो असोकराजा (𑀤𑁂𑀯𑀸𑀦𑀁𑀧𑀺𑀬𑀲 𑀧𑀺𑀬𑀤𑀲𑀺𑀦𑁄 𑀅𑀲𑁄𑀓𑀭𑀸𑀚)।

अभिलेखों में वर्णित विषय

बौद्ध धर्म को अपनाने का वर्णन

अशोक के अभिलेख 
सम्राट अशोक का साम्राज्य , 260 ईशापूर्व

सम्राट बताते हैं कि कलिंग को 261 ईसापूर्व में पराजित करने के बाद उन्होंने पछतावे में बौद्ध धर्म अपनाया:

    देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंगों को पराजित किया। डेढ़ लाख लोगों को बंदी बनाया, एक लाख लोग मारे गए और अन्य कारणों से और बहुत से मारे गए। कलिंगों को अधीन करके देवों-के-प्रिय को धर्म की ओर खिचाव हुआ, धर्म और धर्म-शिक्षा से प्रेम हुआ। अब देवों-के-प्रिय को कलिंगों को परास्त करने का गहरा पछतावा है। (शिलालेख संख्या १३)

बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक ने भारत-भर में बौद्ध धार्मिक स्थलों की यात्रा की और उन स्थानों पर अक्सर शिलालेख वाले स्तम्भ लगवाए:

    अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद, देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान पर आए और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। उन्होने एक पत्थर की मूर्ति और एक स्तम्भ स्थापित करवाया और, क्योंकि यह भगवन का जन्मस्थान है, लुम्बिनी के गाँव को लगान से छूट दी गई और फसल का केवल आठवाँ हिस्सा देना पड़ा। (छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या १)

प्रसिद्ध भारतविद ए एल बाशम का मत है कि अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म अपना लिया और बौद्घ धर्म का उन्होने प्रचार-प्रसार किया। उनके संरक्षण के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का उनके साम्राज्य में तथा अन्य राज्यों में खूब प्रसार हुआ।

धम्म विजय

अशोक के अभिलेख 
सम्राट अशोक के प्रमुख शिलालेख संख्या-13 (260–218 ई.पू.) के अनुसार जीते गए क्षेत्र
महलके हि विजिते बहु च लिखिते लिखपेशमि चेव
—सम्राट अशोक , प्रमुख शिलालेख संख्या 14
अनुवाद : मेरा साम्राज्य बहुत बड़ा है, बहुत लिखा गया है, और बहुत नित्य लिखवाऊंगा।

एषे च मुखमुते विजये देवन प्रियस यो ध्रमविजयों [।] सो चन पुन लधो देवनं प्रियस इह च अंतेषु अषपु पि योजन शतेषु यत्र अंतियोको नम योरज परं च तेन अंतियोकेत चतुरे रजनि तुरमये नम अंतिकिनि नम मक नम अलिकसुदरो नम निज चोड पण्ड अब तम्बपंनिय [।]

    अनुवाद : अब धम्म विजय को ही देवों-के-प्रिय सबसे उत्तम जीत मानते हैं और इसी के द्वारा देवताओं के प्रिय ने यहाँ सीमाओं पर जीता है 600 योजन दूर तक, जहाँ यूनानी नरेश अम्तियोको (अन्तियोकस) का राज है और उस से आगे जहाँ चार तुरामाये (टॉलमी), अम्तिकिनी (अन्तिगोनस), माका (मागस) और अलिकसुदारो (ऐलॅक्सैन्डर) नामक राजा शासन करते हैं और उसी तरह दक्षिण में चोल, पांड्य और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक।
—सम्राट अशोक , प्रमुख शिलालेख संख्या 13



हर योजन लगभग सात मील होता है, इसलिए 600 योजन का अर्थ लगभग 4200 मील है जो इस समय के लगभग समान है , जो भारत के केंद्र से लगभग यूनान के केंद्र की दूरी है। जिन शासकों का यहाँ वर्णन हैं, वह इस प्रकार हैं:

  • अम्तियोको सीरिया के अन्तियोकस द्वितीय थेओस (Antiochus II Theos, Αντίοχος Β' Θεός, शासनकाल: २६१-२४६ ईसापूर्व)
  • तुरामाये मिस्र के टॉलमी द्वितीय फ़िलादॅल्फ़ोस (Ptolemy II Philadelphos, Πτολεμαῖος Φιλάδελφος, शासनकाल: २८५-२४७ ईसापूर्व)
  • अम्तिकिनी मासेदोन (यूनान) के अन्तिगोनस द्वितीय गोनातस (Antigonus II Gonatas, Αντίγονος B΄ Γονατᾶς, शासनकाल: २७८-२३९ ईसापूर्व)
  • माका सएरीन (लीबिया) के मागस (Magas of Cyrene, शासनकाल: २७६-२५० ईसापूर्व)
  • अलिकसुदारो इपायरस (यूनान और अल्बानिया के बीच का एक क्षेत्र) के ऐलॅक्सैन्डर द्वितीय (Alexander II of Epirus, शासनकाल: २७२-२५८ ईसापूर्व)

यूनानी स्रोतों से साफ़ ज्ञात नहीं होता की यह दूत इन राजाओं से वास्तव में मिले भी की नहीं और यूनानी क्षेत्र में इनका क्या प्रभाव हुआ। फिर भी, कुछ विद्वानों ने यूनानी क्षेत्रों में बौद्ध समुदाय की मौजूदगी (विशेषकर आधुनिक मिस्र में स्थित अल-इस्कंदरिया में) को अशोक के धर्म-दूतों की कुछ मात्रा में सफलता का संकेत माना है। सिकंदरिया के क्लॅमॅन्त (Clement of Alexandria, अनुमानित १५० ई॰ - २१५ ई॰) ने अपनी लेखनी में इनका ज़िक्र किया। अल-इस्कंदरिया में टॉलमी काल की बौद्ध समाधियों पर धर्मचक्र-धारी शिलाएँ मिली हैं।

बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अशोक ने भारत के सभी लोगों में और यूनानी राजाओं को भूमध्य सागर तक दूत भेजे। उनके स्तम्भों पर यूनान से उत्तर अफ़्रीका तक के बहुत से समकालीन यूनानी शासकों के सही नाम लिखें हैं, जिससे ज्ञात होता है कि वे भारत से हज़ारों मील दूर की राजनैतिक परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थे:

अशोक के अभिलेख 
सम्राट अशोक का धम्म प्रचार

स्वदेश में धर्मप्रचार का वर्णन

अपनी शिलालेखों में सम्राट ने कई समुदायों का ज़िक्र भी किया जो उनके राज्य की सीमाओं के अन्दर रहते थे:

9. हिदा लाजविशवषि योनकंबोजेषु नाभकनाभपंतिषु भोजपितिनिक्येषु

10. अधपालदेषु षवता देवानंपियषा धंमानुषथि अनुवतंति यत पि दुता

— सम्राट अशोक का प्रमुख शिलालेख 13, कालसी चट्टान, दक्षिणी भाग[1]

अनुवाद : यहाँ राजा (अशोक) के क्षेत्र में, यवन और कम्बोज में, नभक और नभपांकित में, भोज और पितिनिक में, आंध्र और पुलिंद में, (साम्राज्य में) हर जगह (लोग) देवताओं-के-प्रिय (अशोक) के बताएं नैतिकता में निर्देशों का पालन कर रहे हैं।

यूनानी समुदाय

बहुत से यूनानी मूल के और यूनानी संस्कृति से प्रभावित लोग मौर्य राज्य के उत्तरपश्चिमी इलाक़े में बसे हुए थे, जिसमें आधुनिक पाकिस्तान का ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत और दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान आते हैं। इनकी कुछ रीति-रिवाजों पर भी शिलालेख में टिप्पणी मिलती है:

    कोई देश ऐसा नहीं है, यूनानी को छोड़कर, जिनमें श्रमण (सन्यासी,जैन,बौद्ध भिक्षु) दोनों ही न मिलते हों, न ही ऐसा कोई देश है जहाँ लोग एक या दूसरे धर्म के अनुयायी न हों। (शिलालेख संख्या १३)

अशोक के दो आदेश अफ़्ग़ानिस्तान में मिले हैं, जिनमें यूनानी भाषा में लिखा हुआ है और जिनमें से एक यूनानी और अरामाई में द्विभाषीय है। कंदहार में मिला यह द्विभाषीय शिलालेख "धर्म" शब्द का अनुवाद यूनानी के "युसेबेइया" (εὐσέβεια, Eusebeia) शब्द में करता है, जिसका अर्थ "निष्ठा" भी निकलता है:

    दस साल का राज पूर्ण होने पर, सम्राट पियोदासॅस (Πιοδάσσης, Piodasses, प्रियदर्शी का यूनानी रूपांतरण) ने पुरुषों को युसेबेइया (εὐσέβεια, धर्म/निष्ठा) का ज्ञान दिया और इस क्षण से पुरुषों को अधिक धार्मिक बनाया और पूरे संसार में समृद्धि है। सम्राट जीवित प्राणियों को मारने से स्वयं को रोकता है और अन्य पुरुष को सम्राट के शिकारी और मछुआरे हैं वह भी शिकार नहीं करते। अगर कुछ पुरुष असंयम हैं तो वह यथाशक्ति अपने असंयम को रोकते हैं और अपने माता-पिता और बड़ों की प्रति आज्ञाकारी हैं, जो भविष्य में भी होगा और जो भूतकाल से विपरीत है और जैसा हर समय करने से वे बेहतर और अधिक सुखी जीवन जियेंगे।

अन्य समुदाय

  • कम्बोज या कम्बोह एक मध्य एशिया से आया समुदाय था जो पहले तो दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान और फिर सिंध, पंजाब और गुजरात के क्षेत्रों में आ बसे। आधुनिक युग में इस समुदाय के लोग पंजाबियों में मिला करते हैं और इस्लाम, हिन्दू धर्म और सिख धर्म के अनुयायियों में बंटे हुए हैं।
  • नाभक, नाभ्पंकित, भोज, पितिनिक, आंध्र और पुलिंद अशोक के राज्य में बसी हुई अन्य जातियाँ थीं।

साम्राज्य की सीमा

अशोक के अभिलेख 
अशोक महान के सासाराम लघु शिलालेख में "भारत" के लिए प्राकृत नाम जंबूदीपसी (संस्कृत "जंबूद्वीप"), लगभग 250 ईसा पूर्व।सम्राट अशोक ने अपने अभिलेखों को जहां जहां भी अपने राज्य छेत्र की बात की है वहां उन्होंने जंबूद्वीप नाम के छेत्रीय ईकाई की बात की है।महत्वपूर्ण बात यह है कि अशोक के अभिलेखों में इस जंबूद्वीप क्षेत्र को एक विजित क्षेत्र (जीता गया अधिकार छेत्र) में नामित किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथ में जहां जम्बूद्वीप का उपयोग है मौर्य साम्राज्य विस्तार के लिए वही हिंदु पौराणिक ग्रंथों में पृथ्वी शब्द का उपयोग मौर्य साम्राज्य का विस्तार बताने के लिए किया गया है।

जम्बूद्वीप एक ऐसा नाम है जिसका उपयोग अक्सर प्राचीन भारतीय स्रोतों में वृहत भारत के क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को चार बार विभिन्न शिलालेखों में परिभाषित किया एक जैसी पंक्ति के साथ , लेकिन उन्होंने कभी भी अपने साम्राज्य के अंदर किसी अविजित क्षेत्र का उल्लेख नहीं किया। इससे यह साफ है कि अशोक का साम्राज्य संभागीय था, जिसमें उसकी सीमाओं के अंदर कोई भी अजीत अविजित क्षेत्र नहीं था ।

3. सवरत्र विजिते देवनंप्रियस प्रियदर्शिस ये च अंत यथा चोड पंडिय सतियपुत्र केरडपुत्र तंबपंणी आंतियोको नाम योनराज ये च अंये तस आंतियोकस समंत राजनो

4. सवरत्र देवनंप्रियस प्रियदर्शिस राणो दुवि चिकिसा कृत मानुष-चिकिसा पशु-चिकिसा च

— शाहबाजगढ़ी: द्वितीय शिलालेख [2]


4. सवता विजितसि देवनम्पियस पियदसि लजिने ये च अम्त [अ]थ चोड पम्डिय सतियपुतो केललपुतो तम्बपनि

5. आंतियोगे नाम योन-लाजा ये च आंने तसां आंतियोगसा सामंत लाजनो सवता देवानंपियसा पियदसिसा लाजिने दुवे चिकिसका कटा मानुस-चिकिसा च पशु-चिकिसा च

— कालसी: द्वितीय शिलालेख [3]


6. सवत्र विजितसि देवनप्रियस प्रियद्रसिस राजिने ये च अत अथ चोड पंडिय सतियपुत्र केरलपुत्र तंबपणि आंतियोगे नाम योनराज ये च [अ] स ..... स गस समत रजने सवत्र ...... प्रियस प्रियद्रसिस राजने

7. दुवे चिकिस कट मानुस-चिकिस च पशु चिकिस च

— मानसहेरा: द्वितीय शिलालेख [4]


1. सर्वत विजितम्हि देवानंप्रियस पियदसिनो राणो

2. एवमपि प्रचंतेषुयथा चोडा पाडा सतियपुतो केतलपुतो आ तंब-

3. पंणी अंतियको योनराजा ये वा पि तस अंतियकस सामीपं

4.राजानो सर्वत्र देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो द्वे चिकीछ कता

5. मानुस-चीकिचा च पशु चिकिचा च

— गिरनार: द्वितीय शिलालेख [5]


— जेम्स प्रिंसेप अनुवाद : राजा पियादसी (अशोक) के विजित प्रांत के भीतर हर जगह, जैसे कि चोल, पांड्या, सतियपुत्र, और केरलपुत्र, तंबपंणी (श्रीलंका) और, इसके अतिरिक्त, यूनानी राजा नामक आंतियोकस और उनके पड़ोसी प्रान्तों मे वहां देवप्रिय राजा पियदसि का द्विगुणा चिकित्सा प्रणाली (चिकित्सालय) स्थापित की है— मनुष्यों के लिए चिकित्सा, और पशुओं के लिए चिकित्सा के लिए ।

— ई. हल्ट्स्च अनुवाद: देवानम्प्रिय प्रियदर्शन के साम्राज्य और उनके सीमाकारों में, जैसे कि चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्र, केरलपुत्र, तम्रपर्णी, ग्रीक राजा नामक आंतियोक, और इस आंतियोक के पड़ोसी अन्य राजाओं में, राजा देवानम्प्रिय प्रियदर्शन द्वारा दो प्रकार के चिकित्सा का स्थापन किया गया है , मनुष्यों के लिए चिकित्सा और पशुओं के लिए चिकित्सा।

अशोक के अभिलेख 
सम्राट अशोक के सीमावर्ती राज्य

धम्म नीतियों को लागू करना

अभिलेख सुझाव देते हैं कि अशोक के लिए, धर्म का अर्थ "सक्रिय सामाजिक चिंतन की नैतिक शासन पद्धति, धार्मिक सहिष्णुता, पारिस्थितिक जागरूकता, सामान्य नैतिक सिद्धांतों का पालन, और युद्ध का त्याग" था। उदाहरण के लिए:

अशोक के कार्य अधिसूचना संदर्भ
मौत की सजा को समाप्त करना। स्तंभ अभिलेख 4
बरगद और आम के बगीचे लगाना, और प्रत्येक 800 मीटर (12 मील) के रास्ते पर बारामदों और कुएं का निर्माण। स्तंभ अभिलेख 7
राजशाही रसोई में पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध लगाना; खुद शाकाहारी बनना और प्रजा से शाकाहार अपनाने की विनती करना। प्रमुख शिलालेख 1,
मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान तथा औषधीय पौधों को हर जगह प्रांतों में लगवाना , जो पौधे मौजूद नहीं उन्हे अन्य देशों से मंगवाना। प्रमुख शिलालेख 2
माता-पिता के प्रति आज्ञाकारी होने, ब्राह्मणों और श्रमणों के प्रति उदारता, और अनावश्यक खर्च न करने का प्रोत्साहन। प्रमुख शिलालेख 3
गरीब और वृद्ध के कल्याण और खुशहाली के लिए अधिकारियों को काम करने का निर्देश देना। प्रमुख शिलालेख 5
सभी प्राणियों के कल्याण को बढ़ावा देना ताकि उनके साथ उनका कर्ज चुका सकें और इस जीवन और अगले जीवन में उनकी खुशी के लिए काम कर सकें। प्रमुख शिलालेख 6

लोक कल्याण

सम्राट् अशोक की वाणी-

    कटिवय मते हि सवलोक हित
    अनुवाद: सर्वकल्याण ही मेरा कत्तव्य है।
    य च किमीचि पराक्रमामि अहं किमति भूतानां .. सुखयामी च सवर्ग आराधयतु
    अनुवाद: मैं जो कुछ पराक्रम करता हूँ वह प्राणियों को ऐहिक परलौकिक सुख पहुँचाने के लिये ही है ।

जिसे सम्राट् ने २ हज़ार वर्ष पूर्व कही थी आज भी भारतीय भावनाओं एवं विश्व के हृदय को रुला जाती है। स्नेह और कल्यांण ही अब उनके जीवन का उद्देश्य था उन्होंने अपने मानसेरा के अभिलेख में कहा, वे शब्द पावन थे-

    नास्ति हि क्रमतर सत्रलोक हितेन
    अनुवाद: "सर्वलोक कल्याण से बढ़कर और कोई कार्य नहीं"।

१. सर्वत विजितम्हि देवानंप्रियस पियदसिनो राणो
२. एवमपि प्रचंतेषुयथा चोडा पाडा सतियपुतो केतलपुतो आ तंब-
३. पंणी अंतियको योनराजा ये वा पि तस अंतियकस सामीपं
४. राजानो सर्वत्र देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो द्वे चिकीछ कता
५. मानुस-चीकिचा च पसु चिकिचा च ओसुढानि च यानि मनुसोपगानि च
६. पसोपगानि च यत नास्ति सर्वत्र हारापितानि च रोपापितानि च
७. मूलानि च फलानि च यत यत नास्ति सर्वत्र हारापितानि च रोपापितानि च
८. पंथेसू कूपा च खानापिता व्रछा च रोपापितपरिभोगाय पसु-मनुसानं

— द्वितीय प्रमुख शिलालेख

अनुवाद: देवताओं के प्रिय राजा प्रियदर्शी ( अशोक ) के राज्य में सब स्थानों पर इस प्रकार प्रत्यन्तों में भी – चोल, पाण्ड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र और ताम्रपर्णि; यवनराज अन्तियोक एवं उसके पड़ोसियों के राज्य में भी सब स्थानों पर देवताओं के प्रिय ने दो प्रकार के चिकित्सा की व्यवस्था किया है — मानव चिकित्सा एवं पशु चिकित्सा। मनुष्यों और पशुओं के लिए उपयोगी औषधियाँ; जहाँ नहीं हैं वहाँ मंगाकर लगवायी गयी हैं। जहाँ-जहाँ फल व मूल नहीं होते थे वहाँ उन्हें भी मंगवाकर रोपित करवाया गया है। मार्गों में मनुष्यों एवं पशुओं के उपभोग के लिए कुएँ खुदवाये गये और वृक्षारोपण करवाये गये हैं।

१३. देवानंपिये पियदसि लाजा हेवं आहा मगेसु पि मे निगोहानि लोपापितानि छायोपगानि होसन्ति पसुमुनिसानं अम्बा-वडिक्या लोपापिता अढकोसिक्यानि पि मे उदुपानानि
१४. खानापापितानि निंसिढया च कालापिता आपानानि में बहुकानि तत तत कालापितानि पटी भोगाये पसु मुनिसानं ल हुके सु एक पटीभोगे नाम ।

— सातवाँ स्तम्भ लेख

अनुवाद: देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा ने ऐसा कहा। मार्गों में मेरे द्वारा बरगद के पेड़ लगाए गये, पशुओं तथा मनुष्यों के छाया के लिए आम्रवाटिकायें (आम के बगीचे) लगवाये गये हैं। प्रत्येक आधे-आधे कोस पर कुएँ भी खुदवाये गये, विश्राम गृह स्थापित किए गये पशुओं और मनुष्यों के उपयोग के लिए यहाँ वहाँ बहुत से प्याऊ मेरे द्वारा बनवाए गये । किन्तु मेरा यह उपकार कुछ भी नहीं है।

अशोक के शिलालेख

अशोक के अभिलेखों में केवल तीन भाषाओं का उपयोग किया गया था – प्राकृत, अरामी और ग्रीक। अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं। उपमहाद्वीप के उत्तर पश्चिम में अशोक के शिलालेख ग्रीक और अरामी में थे। अधिकांश प्राकृत शिलालेख ब्राह्मी लिपि में थे और कुछ उत्तर पश्चिम में खरोष्ठी लिपि में थे। अफगानिस्तान में शिलालेख ग्रीक और अरामी लिपि में लिखे गए थे। कंधार का शिलालेख द्विभाषी है, जो ग्रीक और अरामी दोनों भाषाओं में लिखा गया है।

अशोक के अभिलेख 
अशोक के अभिलेख 
अशोक के अभिलेख 
दश्त-ए नवार में खोजा गया अभिलेख
अशोक के अभिलेख 
कंधार द्विभाषिक शिलालेख
वर्तमान में अफगानिस्तान में दो शिलालेख स्थलों का स्थान।

१४ दीर्घ शिलालेख

अशोक के १४ दीर्घ शिलालेख (या बृहद शिलालेख) विभिन्‍न लेखों का समूह है जो आठ भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-

(१) धौली- यह ओडिशा के [भुवनेश्वर]|खोरधा जिला]] में है।

(२) शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है।

(३) मान सेहरा- यह पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है।

(४) कालसी- यह वर्तमान उत्तराखण्ड (देहरादून) में है।

(५) जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।

(६) सोपारा- यह महाराष्ट्र के पालघर जिले में है।

(७) एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।

(८) गिरनार- यह काठियावाड़ में जूनागढ़ के पास है।

(१०) कांधार या कंदहार अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर है।।

अशोक के अभिलेख 
कांधार में मिला यूनानी और अरामाई का द्विभाषीय शिलालेख

(११) शिशुपालगर- ओडिशा में स्थित है।

१४ दीर्घ शिलालेखों के वर्ण्य-विषय
अधिसूचना संदर्भ अशोक के कार्य
पहला प्रमुख शिलालेख जानवरों की बलि और उत्सव संग्रह की छुट्टियों को निषेधित करता है।
दूसरा प्रमुख शिलालेख सामाजिक कल्याण के उपायों से संबंधित है। इसमें मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सा, सड़कों और उनके पास कुएं का निर्माण और सड़कों के किनारे छायादार पेड़ लगाने का उल्लेख है।
तीसरा प्रमुख शिलालेख यह घोषित करता है कि ब्राह्मणों और श्रमणों के प्रति उदारता एक गुण है, और माता-पिता का सम्मान करना एक अच्छी गुणवत्ता है।
चौथा प्रमुख शिलालेख धम्म की नीति के कारण समाज मे फैली नैतिकता की कमी और श्रमणों और ब्राह्मणों के प्रति अनादर, हिंसा, मित्रों, रिश्तेदारों और अन्यों के प्रति अशोभनीय व्यवहार, और इस प्रकार की बुराइयाँ रोकी गई हैं। ज्यादातर पशुओं की हत्या भी रोक दी गई।
पांचवां प्रमुख शिलालेख पहली बार अपने राज के बारहवें वर्ष में धम्म-महामत्ता की नियुक्ति का उल्लेख करता है। इन विशेष अधिकारियों को राजा द्वारा सभी सम्प्रदायों और धर्मों के हित का ध्यान रखने और धम्म का संदेश प्रसारित करने के लिए नियुक्त किया गया था।
छठा प्रमुख शिलालेख धम्म-महामत्ताओं के लिए एक निर्देश है। उन्हें बताया गया है कि वे किसी भी समय राजा के पास कुछ भी प्रशासनिक सुझाव ला सकते हैं। शिलालेख का दूसरा हिस्सा अच्छे प्रशासन और सहज व्यवहार के लेन-देन से संबंधित है।
सातवां प्रमुख शिलालेख सभी सम्प्रदायों के बीच सहिष्णुता के लिए एक अपील है। शिलालेख से प्रतीत होता है कि सम्प्रदायों के बीच तनाव था, जो धम्म नीतियों के चलते खत्म किया गया । यह अपील एकता बनाए रखने के लिए समग्र रणनीति का हिस्सा है।
आठवां प्रमुख शिलालेख धम्म यात्राओं का आयोजन सम्राट द्वारा किया जाएगा। राज्याभिषेक के दसवें वर्ष अशोक ने सम्बोधि (बोधगया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारम्भ किया। ब्राह्मणों व श्रमणों के प्रति उचित वर्ताव करने का उपदेश दिया गया है । धम्म यात्राएँ सम्राट को साम्राज्य में विभिन्न वर्गों के लोगों से संपर्क करने की संभावना देती थी।
नौवां प्रमुख शिलालेख दास तथा सेवकों के प्रति शिष्टाचार का अनुपालन करें, जानवरों के प्रति उदारता, ब्राह्मण एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का आदेश दिया गया है ।
दसवां प्रमुख शिलालेख प्रसिद्धि और महिमा का निंदन करता है और धम्म की नीति का पालन करने के गुणों की पुनरावृत्ति करता है।
ग्यारहवां प्रमुख शिलालेख धम्म की नीति की अधिक व्याख्या है।विभिन्न अवसरों पर किए जानें वाले दान की चर्चा की गई हैं। यह बड़ों का सम्मान, जानवरों की हत्या न करने और मित्रों के प्रति उदारता को जोर देता है।
बारहवां प्रमुख शिलालेख सम्प्रदायों के बीच सहिष्णुता के लिए एक और अपील है। यह शिलालेख के अनुसार किसी को भी अकारण अपने धम्म की बड़ाई, दूसरे की धम्म कि निंदा नहीं करनी चाहिए। सभी धर्मों का आदर करना चाहिए।
तेरहवां प्रमुख शिलालेख अशोक की धम्म नीति को समझने में प्रमुख महत्व है। शिलालेख धम्म के द्वारा विजय की अपेक्षा करता है बजाय युद्ध। अशोक के राज्यविषेक के 8वें वर्ष कलिंग विजय का उल्लेख है, सीमावर्ती राज्यों और 5 यूनानी राजाओं का उल्लेख है जिनपर अशोक के अनुसार उसने धम्म-विजय करके जीत लिया है।।
चौदहवां प्रमुख शिलालेख अशोक अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं के ऊपर धम्म लिपिबद्ध कराया, जिसमें धर्म प्रशासन संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का विवरण है । अशोक ने कहा, मेरे विजित राज्य बहुत बड़े हैं, और बहुत कुछ लिखा गया है, और मैं और भी लिखवाऊंगा और कुछ इसमें इसलिए बार-बार कहा गया है क्योंकि कुछ विषयों के आकर्षण और इसलिए कि लोग इस अनुसार कार्य करें।

लघु शिलालेख

अशोक के लघु शिलालेख, चौदह दीर्घ शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है। ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-

(१) रूपनाथ - ईसा पूर्व २३२ का यह मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में है।

(२) गुजर्रा- यह मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है। इसमें अशोक का नाम अशोक लिखा गया है

(३) भाबरू- यह राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर में है। जिसमें अशोक ने बौद्ध धर्म का वर्णन किया है। यह शिलालेख अशोक के बौद्ध धर्म का अनुयायी होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह अशोक के शिलालेखों में से एकमात्र ऐसा शिलालेख है जो बेलनाकार आकृति का है।

(४) मास्की- यह कर्नाटक के रायचूर जिले में स्थित है। इसमें भी अशोक ने अपना नाम अशोक लिखा है इस शिलालेख के माध्यम से सम्राट अशोक के साम्राज्य की दक्षिणी सीमाओं की जानकारी प्राप्त होती है।

(५) सहसराम- यह बिहार के शाहाबाद जिले में है।

(६) महास्थान- यह बांग्लादेश के पुंदरुनगर में स्थित है, इसके माध्यम से सम्राट अशोक के राज्य की पूर्वी सीमाओं की जानकारी मिलती है। साथ ही इससे पूर्वकाल (चन्द्रगुप्त मौर्य के समय आए) मे आए अकाल का वर्णन मिलता है ।

अशोक के अभिलेख 
महास्थान अभिलेख , बांग्लादेश


धम्म को लोकप्रिय बनाने के लिए अशोक ने मानव व पशु जाति के कल्याण हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के लिए अलग चिकित्सा की व्य्वस्था की। अशोक के महान पुण्य का कार्य एवं स्वर्ग प्राप्ति का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक्‍त निकाय में दिया गया है।

अशोक ने दूर-दूर तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा १३वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहाँ दूत भेजे गये थे।

दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्‍य, सतिययुक्‍त केरल पुत्र एवं ताम्रपार्णि बताये गये हैं।

अशोक के स्तम्भ-लेख

अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्‍न स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं। इन स्थानों के नाम हैं-

अशोक के अभिलेख 
सारनाथ के स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख

(१) दिल्ली/ टोपरा- यह स्तम्भ लेख प्रारम्भ में हरियाणा के अंबाला जिले में पाया गया था। यह मध्ययुगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं।

(२) दिल्ली /मेरठ- यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया।

(३) लौरिया अरेराज तथा लौरिया नन्दनगढ़- यह स्तम्भ लेख बिहार राज्य के चम्पारन जिले में है। नन्दनगढ़़ स्तम्भ पर मोर का चित्र बना हैं।

    लघु स्तम्भ-लेख

अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है, जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-

१. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है।

२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है।

३. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है।

४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है।

५. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है।

६. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है।

७. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है।

८. जतिंग रामेश्‍वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है।

९. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।

१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है।

११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है।

१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।

१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।

१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित है।

१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है।

अशोक के गुहा-लेख

सम्राट अशोक ने दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर में पहाड़ों को कटवाकर तीन गुफाओं का निर्माण किया और उनकी दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं। इन सभी की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी लिपि है। केवल दो अभिलेखों शाहवाजगढ़ी तथा मान सेहरा की लिपि धम्म लिपि न होकर खरोष्ठी है। यह लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती है।

  • पहला बराबर गुहालेख : मूलपाठ

१ – लाजिना पियदसिना दुवाइस बसा भिसितेना

२ – इयं निगोह कुमा दिना आजीविकेहि

हिन्दी अनुवाद :

१ – बारह वर्षों से अभिषिक्त राजा प्रियदर्शी द्वारा

२ – यह नयग्रोथ गुफा आजीवकों को दी गयी।

  • दूसरा बराबर गुहालेख : मूलपाठ

१ – लाजिना पियदसिना दुवा-

२ – डस-वसाभिसितेना इयं

३ – कुभा खलतिक पवतसि

४ – दिना आजीवि केहि

हिन्दी अनुवाद :

१ – राजा प्रियदर्शी द्वारा

२ – बारह वर्ष अभिषिक्त होने पर यह

३ – गुफा खलतिक पर्वत में

४ – आजीविका को दी गयी

  • तीसरा बराबर गुहालेख : मूलपाठ

१ – लाजा पियदसी एकुनवी-

२ – सति वसाभिसिते जलघो

३ – सागमें थातवे इयं कुभा

४ – सुपिये खलतिक पवतसि दि

५ – ना।

हिन्दी अनुवाद:

१ – राजा प्रियदर्शी ने उन्नीस

२ – वर्ष अभिषिक्त होने पर वर्षा काल

३ – के उपयोग के लिए यह सुप्रिया गुफा

४ – सुन्दर खलतिक पर्वत पर आजीविकों को दिया

तक्षशिला से आरमाइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख कन्धार के पास शारे-कुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमाइक द्विभाषीय अभिलेख प्राप्त हुआ है।

प्रमुख अभिलेखों का परिचय

अशोक के शिलालेख १४ विभिन्‍न लेखों का समूह हैं जो आठ भिन्‍न-भिन्‍न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं। मगध साम्राज्य के प्रतापी मौर्यवंशी शासक अशोक ने अपनी लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रजा में प्रसारित करने के लिए 14 स्थलों पर शिलालेख, लघु शिलालेख एवं अन्य अभिलेख उत्कीर्ण करवाया था।

धौली

उड़ीसा के खोर्धा जिला में स्थित इस बृहद शिलालेख में अशोक ने पशु वध और समारोहों पर होने वाले अनावश्यक खर्च की निंदा की है। 2.सभी मनुष्य मेरी संतान की तरह है।

शाहबाज गढ़ी

पेशावर (पाकिस्तान) में स्थित इस दूसरे शिलालेख में प्राणिमात्र (पशुओं सहित) के लिए चिकित्सालय खोलने का उल्लेख है। पेयजल और वृक्षारोपण को विशेष प्राथमिकता दी गयी है।

सम्राट् अशोक के १४ प्रज्ञापनों की पांचवीं प्रतिलिपि पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में शाहबाजगढ़ी गाँव के पास एक चट्टान पर खुदी मिली है। यह पहाड़ी पेशावर से ४० मील उत्तरपूर्व है। मानसेहरा की तरह शाहबाजगढ़ी की प्रतिलिपियाँ खरोष्ठी लिपि में खुदी हैं, जो दाहिनी से बाईं ओर लिखी जाती है, शेष पाँचो स्थानों की प्रतिलिपियाँ ब्राह्मी लिपि में हैं।

इन चौदह प्रज्ञापनों की मुख्य बातें ये हैं -

  • (१) जीवहिंसा का निषेध एवं राजा के रसोईघर में खाय व्यंजनों में जीवहिंसा पर संयम;
  • (2) सम्राट् अशोक के जीते हुए सब स्थानों में एवं विशेषकर सीमांत प्रदेशों में मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध;
  • (3) अधिकारियों का धर्मानुशासन के लिए भी दौरा एवं आचार की सामान्य बातें,
  • (4) धर्माचरण में शील का पालन,
  • (5) लोगों को धर्माचरण की बातें बताने के लिए धर्ममहामात्यों का नियत किया जाना,
  • (6) राजा के कर्तव्यपालन की बातें,
  • (7) संयम, भावशुद्धि एवं विभिन्न धर्मों का आदर,
  • (8) विहार यात्रा की जगह धर्मयात्रा पर सम्राट् का संकल्प,
  • (9) जैन और बौद्ध मत के श्रमणों और वैदिक मत के ब्राह्मणों का आदर करना और उन्हें दान देना;
  • (10) कर्तव्य कार्यों में धर्ममंगल की बातों का समावेश; धर्म के लिए विशेष प्रयत्न की अपेक्षा।

शेष प्रज्ञापनों में लोगों में समान एवं सम्मानपूर्वक व्यवहार, अपने अपने धर्मों की अच्छी बातों का परिपालन, सत्व की बढ़ती, कलिंगयुद्ध के उपरांत युद्ध के लिए सम्राट् के मन में पश्चाताप एवं जीते हुए प्रदेशों में धर्मानुशासन के कार्य तथा विभिन्न स्थानों में धर्मादेशों के लिखाने की बातें हैं।

मान सेहरा

हजारा जिले में स्थित इस तीसरे शिलालेख में धन को सोच समझकर खर्च करने की नसीहत है। साथ ही बडों के संग आदरपूर्वक, नम्रतापूर्ण व्यवहार करने का सन्देश है।

कालसी/कालकूट

यह वर्तमान उत्तराखंड (देहरादून) में है। यमुना नदी तट पर है

जौगढ़

यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।इसमे कलिंग की प्रजा के साथ पुत्रवत व्यवहार करने का आदेश दिया गया है।

सोपारा

यह महाराष्ट्र के पालघर जिले के नाला सोपारा में स्थित है।

एरागुडि

आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित सातवें शिलालेख में अशोक ने निर्देश दिया है कि सभी सम्प्रदायों के लोग सभी स्थानों पर रह सकते हैं। इसमें सह-अस्तित्व की मीठी सुगंध मिलती है।

गिरनार

यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।

अशोक के अभिलेखों के चित्र

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

अशोक के अभिलेख
(Ruled 269–232 BCE)
अशोक का
शासन काल
अभिलेख का प्रकार
(और अवस्थिति)
भौगोलिक अवस्थिति
वर्ष 8 कलिंग युद्ध का अंत और " धम्म" अपनाना
अशोक के अभिलेख 
अशोक के अभिलेख 
Bahapur
अशोक के अभिलेख 
Saru Maru
अशोक के अभिलेख 
Udegolam
अशोक के अभिलेख 
Nittur
अशोक के अभिलेख 
Brahmagiri
अशोक के अभिलेख 
Jatinga
अशोक के अभिलेख 
Rajula Mandagiri
अशोक के अभिलेख 
Yerragudi
अशोक के अभिलेख 
Sasaram
अशोक के अभिलेख 
Bhabru
अशोक के अभिलेख 
कंधार
अशोक के अभिलेख 
Mahasthan
अशोक के अभिलेख 
Khalsi
अशोक के अभिलेख 
Jaugada
अशोक के अभिलेख 
Mansehra
अशोक के अभिलेख 
अशोक के अभिलेख 
Nigali Sagar
अशोक के अभिलेख 
Nandangarh
अशोक के अभिलेख 
Topra
अशोक के अभिलेख 
Araraj
अशोक के अभिलेख 
Araraj,Rampurva
अशोक के अभिलेख 
Rampurva
अशोक के अभिलेख 
Ai Khanoum
अशोक के अभिलेख  Location of the Minor Rock Edicts (Edicts 1, 2 & 3)
अशोक के अभिलेख  Other inscriptions often classified as Minor Rock Edicts.
अशोक के अभिलेख  Location of the Major Rock Edicts.
अशोक के अभिलेख  Location of the Minor Pillar Edicts.
अशोक के अभिलेख  Original location of the Major Pillar Edicts.
अशोक के अभिलेख  Capital cities
वर्ष 10 Minor Rock Edicts Related events:
Visit to the Bodhi tree in Bodh Gaya
Construction of the Mahabodhi Temple and Diamond throne in Bodh Gaya
Predication throughout India.
Dissenssions in the Sangha
Third Buddhist Council
In Indian language: Sohgaura inscription
Erection of the Pillars of Ashoka
Kandahar Bilingual Rock Inscription
(in Greek and Aramaic, Kandahar)
Minor Rock Edicts in Aramaic:
Laghman Inscription, Taxila inscription
वर्ष 11 और उसके पश्चात् Minor Rock Edicts (n°1, n°2 and n°3)
(Panguraria, Maski, Palkigundu and Gavimath, Bahapur/Srinivaspuri, Bairat, Ahraura, Gujarra, Sasaram, Rajula Mandagiri, Yerragudi, Udegolam, Nittur, Brahmagiri, Siddapur, Jatinga-Rameshwara)
वर्ष 12 और उसके पश्चात् Barabar Caves inscriptions Major Rock Edicts
Minor Pillar Edicts Major Rock Edicts in Greek: Edicts n°12-13 (Kandahar)

Major Rock Edicts in Indian language:
Edicts No.1 ~ No.14
(in Kharoshthi script: Shahbazgarhi, Mansehra Edicts
(in Brahmi script: Kalsi, Girnar, Sopara, Sannati, Yerragudi, Delhi Edicts)
Major Rock Edicts 1-10, 14, Separate Edicts 1&2:
(Dhauli, Jaugada)
Schism Edict, Queen's Edict
(Sarnath Sanchi Allahabad)
Rummindei Edict, Nigali Sagar Edict
वर्ष 26, 27
और उसके पश्चात्
Major Pillar Edicts
In Indian language:
Major Pillar Edicts No.1 ~ No.7
(Allahabad pillar Delhi pillar Topra Kalan Rampurva Lauria Nandangarh Lauriya-Araraj Amaravati)

Derived inscriptions in Aramaic, on rock:
Kandahar, Edict No.7 and Pul-i-Darunteh, Edict No.5 or No.7

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