फज्र की नमाज़ (इंग्लिश:Fajr Prayer) इस्लाम की पांच अनिवार्य दैनिक प्रार्थनाओं (नमाज़ों) में पहली' सुबह में पढ़ी जाने वाली नमाज़ है।
निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है (क़ुरआन 4:103)
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है (क़ुरआन 11:114)
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है (क़ुरआन 17:78)
और सुब्ह (फज्र) की नमाज़ का वक़्त फज़्र के उगने से लेकर सूर्य के उगने तक रहता है, जब सूर्य उग जाये तो नमाज़ से रूक जाओ क्योंकि यह शैतान की दो सींगों के बीच उगता है।" इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है (हदीस संख्या : 612)
अर्थात:
भोर से शुरू होता है और सूरज की रोशनी आने तक रहता है। तैयारी के लिए
अज़ान लगभग एक घंटे पहले दी जाती है।
फज्र (फजर) की प्रार्थना में चार रकात होती हैं।
*2 रकात सुन्नत ( मौक़ीदा )
*2 रकात फ़र्ज़
सुन्नत मौकीदा : इस्लामिक शरीयत में, सुन्नत वह प्रथा है जो पैगंबर या पैगंबर के साथियों ने आम तौर पर और अक्सर की और उसके करने को मना न किया हो। इस का परित्याग का कारण पाप है और परित्याग की आदत अवज्ञा है।
और पढ़ें namaz e fazar ki fazilat
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