ऑङ्कोसर्कायसिस

आंकोसर्कायसिस (उच्चारण:ऑङ्कोसर्कायसिस) जिसे रिवर ब्लाइंडनेस और रॉब्लेस व्याधि, के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रकार के परजीवी कृमि परजीवी कृमि आंकोसेरा वाल्वलस के संक्रमण से होने वाली बीमारी है.

लक्षणों में गंभीर खुजली, त्वचा के नीचे बम्प्स तथा अंधापन शामिल हैं. ट्रैकोमा के पश्चात यह संक्रमण के कारण अंधेपन का दूसरा सबसे आम कारण है.

ऑङ्कोसर्कायसिस
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
ऑङ्कोसर्कायसिस
अपने एंटेना से बाहर आते हुए परजीवियों "ऑंकोसेरा वाल्वलस" के साथ एक वयस्क ब्लैक फ्लाई, 100x आवर्धन पर
आईसीडी-१० B73.
आईसीडी- 125.3
डिज़ीज़-डीबी 9218
ईमेडिसिन med/1667  oph/709
एम.ईएसएच D009855

कारण और निदान

यह बीमारी सिम्युलियम प्रजाति की ब्लैक फ्लाई के काटने से परजीवी कृमि के फैलने के कारण होती है. आमतौर पर संक्रमण होने के लिए कई बार काटा जाना आवश्यक होता है. ये मक्खियां नदियों की आसपास रहती हैं, इसीलिए इस बीमारी का ये नाम पड़ा है. जब किसी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात ये कृमि लार्वा उत्पन्न करते हैं, तो इस प्रकार से वे त्वचा में प्रवेश कर पाते हैं. ऐसा करके वे उस व्यक्ति को काटने वाली अगली ब्लैक फ्लाई को भी संक्रमित कर देते हैं. निदान के लिए कई प्रकार के साधन हैं, जिनमें शामिल हैं: त्वचा की बायोप्सी को सामान्य सलाइन में रखना और लार्वा के बाहर निकलने पर नज़र रखना, लार्वा की उपस्थिति के लिए आँखों की जांच करना और त्वचा के नीचे बम्प्स में वयस्क कृमियों की उपस्थिति की जांच करना.

बचाव और उपचार

इस बीमारी के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है. बचाव के लिए मक्खियों द्वारा काटे जाने से बचना आवश्यक है. इसके लिए कीट निवारक तथा उचित रूप से वस्त्र पहनना आवश्यक हो सकता है. किये जा सकने वाले अन्य प्रयासों में कीटनाशक के छिड़काव द्वारा मक्खियों की जनसँख्या को सीमित करना शामिल है. इस बीमारी के सम्पूर्ण विनाश के लिए विश्व के कई भागों में सम्पूर्ण जनसँख्या समूहों की साल में दो बार जांच की जा रही है. जो लोग संक्रमित पाए जाते हैं, उनको आईवरमेक्टिन दवा छः से बारह महीनों के बीच दी जाती है. इस इलाज से लार्वा मरते हैं परन्तु व्यस्त कृमि नहीं मर पाते हैं. दवा डॉक्सीसाइक्लाइन, जो कि एक एंडोसिंबीयॉन्ट|सम्बंधित बैक्टीरिया जिसे वोल्बाकिया कहा जाता है, के लिए प्रयोग की जाती है, कृमियों को कमज़ोर करती है और कुछ लोग इसके प्रयोग की संस्तुति की जाती है. त्वचा के नीचे गांठों को शल्यक्रिया के द्वारा भी निकलवाया जा सकता है.

महामारी-विज्ञान और इतिहास

लगभग 17 से 25 मिलियन व्यक्ति रिवर ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 0.8 मिलियन व्यक्तियों की दृष्टि में कुछ कमी आई है. अधिकांश संक्रमण उप-सहारा अफ्रीका में होते हैं, हालाँकि कुछ मामले यमन तथा मध्य और दक्षिणी अमरीका के पृथक क्षेत्रों में भी सामने आये हैं. 1915 में चिकित्सक रोडोल्फो रॉब्लेस ने पहली बार कृमियों का आखों की बीमारियों से संबंध सिद्ध किया. इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

सन्दर्भ

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