महजिद भा मस्जिद मुसलमान लोग के प्रार्थना के जगह हवे।
सुन्नी इस्लाम में बहुत कड़ेर बिधान बाटे कि कौनों जगह भा भवन के महजिद होखे खातिर कवन-कवन चीज जरूरी बा, अगर एह पैमाना पर ऊ जगह सही ना उतरे तब अइसन प्राथना-अस्थान के मुसल्ला कहल जाला। अगर कवनो भवन भा जगह के महजिद के रूप में मान लिहल गइल होखे तब ओकरे इस्तेमाल खातिर भी साफ-साफ नियम बा आ शरीआ के मोताबिक जेकरा के एक बेर महजिद मान लिहल गइल होखे, दुनिया के अंत (कयामत) ले ऊ जगह महजिदे रही।
बहुत सारा महजिद में बिसाल आ सुघर गुंबज आ मिनारा होखे लें आ भब्य भवन रचना होला, हालाँकि कुछ महजिद बहुत सहज रचना वाली भी बाड़ी। अरबी प्रायदीप में महजिद बने के सुरुआत भइल आ अब ई दुनिया के जयादातर आबाद हिस्सा में अस्थापित बाड़ी सऽ। महजिद के मुख्य मकसद इस्लाम में बर्णित प्रार्थना सलात (नमाज) खातिर ह, एकरे अलावा आम सामूहिक जानकारी, शिक्षा आ बिबाद निपटारा के जगह के रूप में भी एकर इस्तमाल हो सके ला। प्रार्थना खातिर एकट्ठा लोग के नमाज पढ़ावे के काम करे वाला अगुआ के इमाम कहल जाला।
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