एवरेस्ट पर्वत

एवरेस्ट पर्वत (नेपाली: सगरमाथा, संस्कृत: देवगिरि) तथा चीनी लोग इसे क्यूमोलंगमा कहते है। यह दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है, जिसकी ऊँचाई 8,848.86 मीटर है। यह हिमालय का हिस्सा है। पहले इसे XV के नाम से जाना जाता था। माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई उस समय 29,002 फीट या 8,840 मीटर मापी गई थी। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 से॰मी॰ के हिसाब से बढ़ रही है। नेपाल में इसे स्थानीय लोग सगरमाथा (अर्थात स्वर्ग का शीर्ष) नाम से जानते हैं, जो नाम नेपाल के इतिहासविद बाबुराम आचार्य ने सन् 1930 के दशक में रखा था - सगरमाथा। तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलंगमा अर्थात पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता है।

एवरेस्ट पर्वत
चोटी-15, गौरीशंकर, सगरमाथा
ཇོ་མོ་གླང་མ (चोमो लुंगमा)
एवरेस्ट पर्वत
तिब्बत के पठार से एवरेस्ट के उत्तरी पार्श्व का दृश्य
उच्चतम बिंदु
ऊँचाई8,848.86 मी॰ (29,031.7 फीट) Edit this on Wikidata
रैंक 1
उदग्रता8,848.86 मी॰ (29,031.7 फीट) Edit this on Wikidata
Ranked 1st
(Notice special definition for Everest)
एकाकी अवस्थिति40,008 कि॰मी॰ (131,260,000 फीट) Edit this on Wikidata
सूचीयनसात शिखर
आठ हजारी चोटियाँ
अल्ट्रा
निर्देशांक27°59′17″N 86°55′31″E / 27.98806°N 86.92528°E / 27.98806; 86.92528 86°55′31″E / 27.98806°N 86.92528°E / 27.98806; 86.92528
भूगोल
माउंट एवरेस्ट is located in प्रदेश संख्या १
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट
नेपाल-चीन सीमा पर अवस्थिति
माउंट एवरेस्ट is located in नेपाल
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट (नेपाल)
माउंट एवरेस्ट is located in तिब्बत
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट (तिब्बत)
माउंट एवरेस्ट is located in चीन
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट (चीन)
माउंट एवरेस्ट is located in एशिया
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट (एशिया)
स्थानसोलुखुंबु जिला, प्रदेश संख्या १, नेपाल;
तिन्ग्री काउंटी, श्याग्ज़े, तिब्बत, चीन
देशनेपाल and चीन
मातृ श्रेणीमहालंगुर हिमाल, हिमालय
आरोहण
प्रथम आरोहण29 मई 1953
एडमंड हिलेरी और तेन्जिंग नॉरगे
(पहला शीतकालीन आरोहण 17 फरवरी 1980 Krzysztof Wielicki, Leszek Cichy)
आम मार्गदक्षिणी कॉल (नेपाल)

सर्वे ऑफ नेपाल द्वारा प्रकाशित, (1:50,000 के स्केल पर 57 मैप सेट में से 50वां मैप) “फर्स्ट जॉईन्ट इन्सपेक्सन सर्वे सन् 1979-80, नेपाल-चीन सीमा के मुख्य पाठ्य के साथ अटैच” पृष्ठ पर ऊपर की ओर बीच में, लिखा है, सीमा रेखा, की पहचान की गई है जो चीन और नेपाल को अलग करते हैं, जो ठीक शिखर से होकर गुजरता है। यह यहाँ सीमा का काम करता है और चीन-नेपाल सीमा पर मुख्य हिमालयी जलसंभर विभाजित होकर दोनो तरफ बहता है।

सर्वोच्च शिखर की पहचान

विश्व के सर्वोच्च पर्वतों को निर्धारित करने के लिए सन् 1808 में ब्रिटिशों ने भारत का महान त्रिकोणमितीय सर्वे को शुरु किया। दक्षिणी भारत से शुरु कर, सर्वे टीम उत्तर की ओर बढ़ा, जो विशाल 500 कि॰ग्रा॰ (1,100 lb) का विकोणमान (थियोडोलाइट)(एक को उठाकर ले जाने के लिए 12 आदमी लगते थें) का इस्तेमाल करते थे जिससे सम्भवत: सही माप लिया जा सके। सन् 1830 में वे हिमालय के नजदीक पहाड़ो के पास पहुँचे, पर नेपाल अंग्रेजों को देश में घुसने देने के प्रति अनिच्छुक था क्योंकि नेपाल को राजनैतिक और सम्भावित आक्रमण का डर था। सर्वेयर द्वारा कई अनुरोध किये गये पर नेपाल ने सारे अनुरोध ठुकरा दिये। ब्रिटिशों को तराई से अवलोकन जारी रखने के लिए मजबूर किया गया, नेपाल के दक्षिण में एक क्षेत्र है जो हिमालय के समानान्तर में है।

तेज वर्षा और मलेरिया के कारण तराई में स्थिति बहुत कठिन थी: तीन सर्वे अधिकारी मलेरिया के कारण मारे गये जबकि खराब स्वास्थ्य के कारण दो को अवकाश मिल गया। फिर भी, सन् 1847 में, ब्रिटिश मजबूर हुए और अवलोकन स्टेशन से लेकर 240 किलोमीटर (150 mi) दूर तक से हिमालय कि शिखरों कि विस्तार से अवलोकन करने लगे। मौसम ने साल के अन्त में काम को तीन महिने तक रोके रखा। सन् 1847 के नवम्बर में, भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जेनरल एन्ड्रयु वॉग ने सवाईपुर स्टेशन जो हिमालय के पुर्वी छोर पर स्थित है से कई सारे अवलोकन तैयार किये। उस समय कंचनजंघा विश्व कि सबसे ऊँची चोटी मानी गई और उसने रुचीपुर्वक नोट किया कि, इस के पीछे भी लगभग 230 किमी (140 mi) दूर एक चोटी है। जौन आर्मस्ट्रांग, जो वॉग के सह अधिकारी थें ने भी एक जगह से दूर पश्चिम में इस चोटी को देखा जिसे उन्होने नाम दिया चोटी ‘बी’(peak b)। वॉग ने बाद में लिखा कि अवलोकन दर्शाता है कि चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था, लेकिन अवलोकन बहुत दूर से हुआ था, सत्यापन के लिए नजदीक से अवलोकन करना जरुरी है। आने वाले साल में वॉग ने एक सर्वे अधिकारी को तराई में चोटी ‘बी’ को नजदिक से अवलोकन करने के लिए भेजा पर बादलों ने सारे प्रयास को रोक दिया। सन् 1849 में वॉग ने वह क्षेत्र जेम्स निकोलसन को सौंप दिया। निकोलसन ने 190 (120 mi) कि॰मी॰ दूर जिरोल से दो अवलोकन तैयार किये। निकोलसन तब अपने साथ बड़ा विकोणमान लाया और पूरब की ओर घुमा दिया, पाँच अलग स्थानों से निकोलसन ने चोटी के सबसे नजदीक 174 कि॰मी॰ (108 mi) दूर से 30 से भी अधिक अवलोकन प्राप्त किये।

अपने अवलोकनों पर आधारित कुछ हिसाब-किताब करने के लिए निकोलसन वापस पटना, गंगा नदी के पास गया। पटना में उसके कच्चे हिसाब ने चोटी ‘बी’ कि औसत ऊँचाई 9,200 मी॰ (30,200 ft) दिया, लेकिन यह प्रकाश अपवर्तन नहीं समझा जाता है, जो ऊँचाई को गलत बयान करता है। संख्या साफ दर्शाया गया, यद्यपि वह चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था। यद्यपि, निकोलसन को मलेरिया हो गया और उसे घर लौट जाने के लिए विवश किया गया, हिसाब-किताब खत्म नहीं हो पाया। माईकल हेनेसी, वॉग का एक सहायक रोमन संख्या के आधार पर चोटीयों को निर्दिष्ट करना शुरु कर दिया, उसने कंचनजंघा को IX नाम दिया और चोटि ‘बी’ को XV नाम दिया।

सन् 1852 मई सर्वे का केन्द्र देहरादून में लाया गया, एक भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर और बंगाल के सर्वेक्षक ने निकोलसन के नाप पर आधारित त्रिकोणमितीय हिसाब-किताब का प्रयोग कर पहली बार विश्व के सबसे ऊँची चोटी का नाम एक पूर्व प्रमुख के नाम पर एवरेस्ट दिया, सत्यापन करने के लिए बार-बार हिसाब-किताब होता रहा और इसका कार्यालयी उदघोष, कि XV सबसे ऊँचा है, कई सालों तक लेट हो गया।

वॉग ने निकोलस के डाटा पर सन् 1854 में काम शुरु कर दिया और हिसाब-किताब, प्रकाश अपवर्तन के लेन-देन, वायु-दाब, अवलोकन के विशाल दूरी के तापमान पर अपने कर्मचारियों के साथ लगभग दो साल काम किया। सन् 1856 के मार्च में उसने पत्र के माध्यम से कलकत्ता में अपने प्रतिनिधी को अपनी खोज का पूरी तरह से उदघोष कर दिया। कंचनजंघा की ऊँचाई साफ तौर पर 28,156 फीट (8,582 मी॰) बताया गया, जबकि XV कि ऊँचाई (8,850 मी॰) बताई गई। वॉग ने XV के बारे में निष्कर्ष निकाला कि “अधिक सम्भव है कि यह विश्व में सबसे ऊँचा है”। चोटी XV (फिट में) का हिसाब-किताब लगाया गया कि यह पुरी तरह से 29,000 फिट (8,839.2 मी॰) ऊँचा है, पर इसे सार्वजनिक रूप में 29,002 फीट (8,839.8 मी॰) बताया गया। 29,000 को अनुमान लगाकर 'राउंड' किया गया है इस अवधारणा से बचने के लिए 2 फीट अधिक जोड़ा दिया गया था।

एवरेस्ट पर्वत का नाम

एवरेस्ट का तिब्बती नाम कोमोलंगमा (ཇོ་མོ་གླང་མ, शाब्दिक अर्थ "पवित्र माता") है। किंग चीन के सम्राट कांग्शी के शासनकाल के दौरान यह नाम पहली बार 1721 कांग्सी एटलस पर एक चीनी प्रतिलेखन के साथ दर्ज किया गया था, और फिर पूर्व मानचित्र के आधार पर फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता डी'एनविल द्वारा पेरिस में प्रकाशित 1733 के नक्शे पर त्चौमोर लैंक्मा के रूप में दिखाई दिया। इसे चोमोलुंगमा और (विली में) जो-मो-ग्लांग-मा के रूप में भी लोकप्रिय रूप से रोमन किया जाता है। आधिकारिक चीनी प्रतिलेखन ( 珠穆朗瑪峰) है, जिसका पिनयिन रूप Zhūmùlǎngmǎ Fēng है। जबकि अन्य चीनी नाम मौजूद हैं, जिनमें शेंगमी फेंग ( 聖母峰, 圣母峰, शाब्दिक अर्थ "पवित्र माँ शिखर") शामिल हैं, इन नामों को बड़े पैमाने पर मई 1952 से समाप्त कर दिया गया क्योंकि चीन के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने 珠穆朗玛峰 (रोमनीकृत: माउंट कोमोलंगमा) इस एकमात्र नाम को अपनाने का एकहुक्मनामा जारी किया था। प्रलेखित स्थानीय नामों में "देवदुंघा" ("पवित्र पर्वत") शामिल है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसका आमतौर पर उपयोग किया जाता है या नहीं।

1849 में, ब्रिटिश सर्वेक्षण यदि संभव हो तो स्थानीय नामों को संरक्षित करना चाहता था (उदाहरण के लिए, कंचनजंगा और धौलागिरी), और भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जनरल एंड्रयू वॉ ने तर्क दिया कि स्थानीय नाम के लिए उनकी खोज के रूप में उन्हें कोई सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला स्थानीय नाम नहीं मिला, क्योकि नेपाल और तिब्बत विदेशियों के बहिष्कार से बाधित था। वॉ ने तर्क दिया कि चूंकि कई स्थानीय नाम थे, इसलिए एक नाम को अन्य सभी नामों पर पसंद करना मुश्किल होगा; उन्होंने फैसला किया कि पीक XV का नाम ब्रिटिश सर्वेक्षक सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा जाना चाहिए, जो उनके पूर्ववर्ती भारत के सर्वेयर जनरल थे। एवरेस्ट ने स्वयं वॉ द्वारा सुझाए गए नाम का विरोध किया और 1857 में रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी को बताया कि "एवरेस्ट" को हिंदी में नहीं लिखा जा सकता है और न ही "भारत के मूल निवासी" द्वारा उच्चारित किया जा सकता है। वॉ का प्रस्तावित नाम आपत्तियों के बावजूद प्रबल रहा, और 1865 में, रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने आधिकारिक तौर पर माउंट एवरेस्ट को दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत के नाम के रूप में अपनाया। एवरेस्ट (/ˈɛvərɪst/) का आधुनिक उच्चारण सर जॉर्ज के उनके उपनाम (/ˈiːvrɪst/ EEV-rist) के उच्चारण से अलग है। 19वीं सदी के अंत में, कई यूरोपीय मानचित्रकारों ने गलत तरीके से माना कि पर्वत का मूल नाम गौरीशंकर था, बलकी जो काठमांडू और एवरेस्ट के बीच का पर्वत है उसका नाम गौरीशंकर था।

1960 के दशक की शुरुआत में, नेपाली सरकार ने नेपाली नाम सागरमाथा (IAST प्रतिलेखन) या सागर-मठ (सागर-मथा, [sʌɡʌrmatʰa], शाब्दिक रूप से "आकाश की देवी") गढ़ा। एवरेस्ट के लिए नेपाली नाम सागरमाथा (सगरमाथा) है जिसका अर्थ है "महान नीले आकाश में सिर" सागर (sagar) का अर्थ है "आकाश" और माथा (māthā) जिसका अर्थ नेपाली भाषा में "सिर" है।

एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक

अधिकतम ऊंचाई: 18,513 फीट

कठिनाई स्तर: मुश्किल

हवाई अड्डा: काठमांडू, नेपाल

आरंभ और अंत बिंदु: ट्रेक काठमांडू से शुरू और समाप्त होता है।

एटीएम: आपके ट्रेक शुरू होने से पहले नामचे बाजार में आखिरी एटीएम बिंदु है।

इन्हें भी देखें

विकिमीडिया कॉमन्स पर एवरेस्ट पर्वत से सम्बन्धित मीडिया है।

सन्दर्भ

Tags:

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