ख़्वारेज़्म, ख़्वारज़्म या ख़्वारिज़्म (फ़ारसी: خوارزم, अंग्रेजी: Khwarezm) मध्य एशिया में आमू दरिया के नदीमुख (डेल्टा) में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र है। इसके उत्तर में अरल सागर, पूर्व में किज़िल कुम रेगिस्तान, दक्षिण में काराकुम रेगिस्तान और पश्चिम में उस्तयुर्त पठार है। ख़्वारेज़्म प्राचीनकाल में बहुत सी ख़्वारेज़्मी संस्कृतियों का केंद्र रहा है जिनकी राजधानियाँ इस इलाक़े में कोनये-उरगेंच और ख़ीवा जैसे शहरों में रहीं हैं। आधुनिक काल में ख़्वारेज़्म का क्षेत्र उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रों के बीच बंटा हुआ है। ऐतिहासिक दृष्टि से मुस्लिम काल तक भारत के साथ इसका घना संबंध था।
ख़्वारेज़्म मध्य एशिया में स्थित ख़ीवा का प्राचीन नाम है। ख़ीवा एक युग में महान राज्य था जो विभिन्न कालों में 'कोरस्मिया', 'ख्वारेज्म' और 'जुर्जानिया' (जुर्गेज, उरगेन्च) के नाम से पुकारा जाता रहा है। उन दिनों वक्षु (आमू दरिया) मध्य एशिया और यूरोप के बीच कास्पियन सागर के राह से जलमार्ग का काम देती थी। कोरेस्मिया का उल्लेख हेरोदोतस के इतिहास में पाया जाता है। उन दिनों यह ईरानी साम्राज्य का एक अंग था। दारा ने वहाँ एक क्षत्रप नियुक्त कर रखा था। किंतु ६८० ई. से पूर्व का उसका विशेष इतिहास ज्ञात नहीं है। जब यह अरबों के अधिकार में आया और ख़लीफ़ा की शक्ति का ह्रास हुआ तो प्रांतीय शासक स्वतंत्र हो गए। इतिहास में प्रथम ज्ञात शासक ९९५ ई. में मामून-इब्न-मुहम्मद हुआ। १०१७ ई. में महमूद गज़नवी ने उसपर अधिकार किया। पश्चात् वह सलजूक़ तुर्कों के हाथ आया। १०९९ ई. में प्रांतीय शासक कुतुबुद्दीन ने राज्याधिकार हस्तगत कर लिया। पश्चात् उसके वंशज अलाउद्दीन मुहम्मद ने इराक़ तक अपना अधिकर किया। १२१९ ई. में चंगेज ख़ान का उत्थान आरंभ हुआ उन दिनों यह मध्य एशिया का सबसे बड़ा नरेश था। १३७९ में तैमूर ने इस भू भाग पर अधिकार किया और १५१२ ई. में वह उज़बेकों के हाथ लगा।
१७वीं शती में ख़ीवा रूसियों के संपर्क में आया। येक (उराल नदी का प्राचीन नाम) के काँठे में रहनेवाले कज़ाख़ लोगों को कास्पियन सागरीय प्रदेश में धावा मारने के प्रसंग में जब इस धनिक प्रदेश की बात ज्ञात हुई तो उन्होंने इसके मुख्य नगर उरगेंच को लूटने के लिये अनेक धावे किए। १७१७ ई. में रूस सम्राट् पीतर महान् का जब वक्षु (आमू) नदी में लौह मिश्रित बालू की बात ज्ञात हुई तो कुछ इस कारण और कुछ तूरान के रास्ते भारत से व्यापारिक संपर्क स्थापित करने के उद्देश्य से खीव के खान हार गए। किंतु शीघ्र ही ख़ीवावासियों ने छल करके रूसी सेना को नष्ट कर दिया।
खीव की ओर रूस का ध्यान १९वीं शती के तिसरे दशक में पुन: गया। १८३९ में जनरल पेरोवस्की ने उसपर अधिकार करने का प्रयास किया। इस बार भी रूसियों को मुँह की खानी पड़ी और विनाश का सामना करना पड़ा। १८४७ ई० में रूसियों ने सीर दरिया के मुहाने पर एक दुर्ग खड़ा किया। फलस्वरूप खीव के लोगों को अपना न केवल भू भाग खोना पड़ा वरन् उनके हाथ से कर देने वोले खिरगिजी भी निकल गए और रूसियों को आगे के अभियान के लिये एक आधार प्राप्त हुआ। १८६९ में कास्पियन सागर के पूर्वी तट पर क्रस्नोवोदक नगर की स्थापना हुई और १८७१-७२ में खीव जाने वाले भू भाग की रूसी तुर्किस्तान के विभिन्न भागों से काफी जाँच पड़ताल करने के बाद १८७३ मे खीव के विरुद्ध बड़े पैमाने पर सैनिक अभियान आरंभ हुआ और १० हजार सैनिक लेकर जनरल काफमैन मीन ओर से क्रस्नोवोदस्क, ओरेनबुर्ग और ताशकंद से खीव की ओर बढ़े और बिना अधिक श्रम किए वक्षु नदी के दाहिने किनारे स्थिति ३५,७०० वर्ग मील भूमि को रूस में सम्मिलित कर लिया। खान को भारी कर देने पर बाध्य किया।
१९१९ में सोवियत सरकार ने खीव के खान को निष्कासित कर खीव को अपने पूर्णअधिकार में ले लिया। अब रूसी, तुर्किस्तान, खीव, बुखारा तथा कास्पियन तटवर्ती प्रदेशों को मिला कर दो सोवियत समाजवादी गणराज्य-उजबेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान बन गए। अक्टूबर, १६२४ में ये दो गणराज्य सोवियत संघ में सम्मिलित हो गए।
वर्तमान समय में ख़्वारेज़्म का क्षेत्र उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रों के बीच बंटा हुआ है।
'ख़्वारेज़्म' शब्द में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है।
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