कृषि विज्ञान वह कल वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत फसलों का उत्पादन एवं पशुपालन मनुष्य अपने आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु करता है।। Prashant Singh
इस क्षेत्र में निम्नलिखित पर अनुसंधान एवं विकास कार्य किए जाते हैं:-
उत्पादन तकनीकें (जैसे कि, सिंचाई प्रबंधन, अनुशंसित नाइट्रोजन इनपुट्स)
गुणवत्ता और मात्रा की दृष्टि से कृषि उत्पादन में सुधार (जैसे कि सूखा झेलने वाली फसलों तथा पशुओं का चयन, नए कीटनाशकों का विकास, खेती-संवेदन प्रौद्योगिकियां, फसल वृद्वि के सिमुलेशन मॉडल, इन-वाइट्रो सैल कल्चर तकनीकें)
प्राथमिक उत्पादों का अंतिम-उपभोक्ता उत्पादों में परिवर्तन (जैसे कि डेरी उत्पादों का उत्पादन, संरक्षण और पैकेजिंग)
विपरीत पर्यावरणीय प्रभावों की रोकथाम तथा सुधार (जैसे कि मृदा निम्नीकरण, कचड़ा प्रबंधन, जैव-पुनः उपचार)
सैद्वान्तिक उत्पादन पारिस्थितिकी,
फसल उत्पादन मॉडलिंग से संबंधित परंपरागत कृषि प्रणालियां - कई बार इसे 'जीविका कृषि' भी कहा जाता है, जो विश्व के सर्वाधिक गरीब लोगों का भरण-पोषण करती है। ये परंपरागत पद्वतियां काफी रुचिकर हैं क्योंकि कई बार ये औद्योगिक कृषि की बजाए ज्यादा प्राकृतिक पारिस्थितिकी व्यवस्था के साथ समाकलन का स्तर कायम रखती हैं जो कि कुछ आधुनिक कृषि प्रणालियों की अपेक्षा ज्यादा दीर्घकालिक होती हैं।
कृषि उत्पादकता को बढ़ाने तथा कायम रखने में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि वैज्ञानिक खेती-फसलों तथा पशुओं पर अध्ययन करते हैं तथा उनकी मात्रा तथा गुणवत्ता में सुधार के लिए मार्ग तैयार करते हैं। वे कम श्रम के साथ फसलों की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार, कीट तथा खरपतवारों पर सुरक्षित और प्रभावी तरीके से नियंत्रण और मृदा तथा जल संरक्षण में सुधार के उपायों के सुझाव देते हैं। वे कच्चे कृषि माल को उपभोक्ताओं के लिए आकर्षक तथा स्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करने की पद्वतियों से जुड़े अनुसंधान कार्य करते हैं।
कृषि विज्ञान का जैविकीय विज्ञान से निकट का संबंध है, तथा कृषि वैज्ञानिक कृषि से जुड़ी समस्याओं को हल करने में जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित और अन्य विज्ञानों के सिद्वान्तों का प्रयोग करते हैं। वे मौलिक जैविकीय अनुसंधानों तथा जैव-प्रौद्योगिकी के जरिए प्राप्त ज्ञान को कृषि की उन्नति के लिए लागू करने के लिए अक्सर जैविक वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कार्य करते हैं।
कई कृषि वैज्ञानिक मौलिक या अनुप्रयुक्त अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में कार्य करते हैं। अन्य अनुसंधान और विकास कार्यों का प्रबंधन तथा संचालन करते हैं अथवा उन कम्पनियों में विपणन या उत्पादन कार्यों का प्रबंधन करते हैं जो खाद्य उत्पादों या कृषि रसायनों के उत्पादन, आपूर्ति तथा मशीनरी से जुड़ी हैं। कुछेक कृषि वैज्ञानिक बिजनेस फर्मों, निजी ग्राहकों या सरकार के परामर्शदाता के तौर पर कार्य करते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के विशेषज्ञता के क्षेत्र के अनुरूप उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों की प्रकृति में भिन्नता रहती है।
खाद्य विज्ञान : खाद्य वैज्ञानिक या प्रौद्योगिकीविद सामान्यतः खाद्य संसाधन उद्योग, विश्वविद्यालयों या संघीय सरकार में नियुक्त किए जाते हैं। वे स्वास्थ्यपरक, सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य उत्पादों की उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने में मदद करते हैं।
पादप विज्ञान : पादप विज्ञान में कृषि विज्ञान, फसल विज्ञान, कीट-विज्ञान तथा पादप प्रजनन को शामिल किया गया है।
मृदा विज्ञान : इसके अंतर्गत काम करने वाले व्यक्ति पौधें या फसल विकास से जुड़ी मिट्टी के रासायनिक, भौतिकीय, जैविकीय तथा खनिजकीय संयोजन का अध्ययन करते हैं। वे उर्वरकों, जुताई के तरीकों और पफसल चक्रक्रम को लेकर विभिन्न प्रकार की मिट्टी के प्रत्युत्तरों का अध्ययन करते हैं।
पशुविज्ञान : पशु वैज्ञानिकों का कार्य है मांस, कुक्कुट, अण्डों तथा दूध के उत्पादन तथा प्रोसेसिंग के बेहतर और अधिक कारगर तरीकों का विकास करना। डेयरी वैज्ञानिक, पशु प्रजनक तथा अन्य संबद्व वैज्ञानिक घरेलू फार्म पशुओं के आनुवंशिकी, पोषण, प्रजनन, विकास तथा उत्पादन से जुड़े अध्ययन करते हैं।
सस्यविज्ञान (Agronomy) : भूमि व फसलों का प्रबंधन का अध्ययन इस शाखा के अंतर्गत किया जाता है।
घास–विज्ञान (Agrostology) : घासों के अध्ययन का विज्ञान।
मधुमक्खीपालन (Apiculture) : व्यापारिक स्तर पर शहद उत्पादन हेतु किया जाने वाला मधुमक्खी या मौन पालन कार्य।
वृक्षोत्पादन विज्ञान (Arboriculture) : विशेष प्रकार के वृक्षों तथा झाड़ियों की कृषि जिसमें उनका संरक्षण और संवर्द्धन भी शामिल है।
वनस्पति विज्ञान (Botany) : पौधों के जीवन से संबंधित प्रत्येक विषय का अध्ययन।
उद्यान कृषि (Horticulture) : फल-फूल, सब्जियों, सजावटी पौधों आदि के उगाने एवं प्रबंधन का अध्ययन।
जल-संवर्धन (Hydroponics) : यह मृदारहित कृषि के अध्ययन का विज्ञान है।
पुरावनस्पति विज्ञान (Palaeobotany) : पौधों के जीवाश्मों (Fossils) के अध्ययन का विज्ञान
फाइटोजेनी (Phytogeny) : पौधों की उत्पत्ति एवं उनके विकास के अध्ययन का विज्ञान।
फलकृषि विज्ञान (Pomology) : इसके अंतर्गत फलों के उत्पादन, श्राद्ध सुरक्षा एवं उनकी नस्ल सुधार का अध्ययन किया जाता है।
रेशमकीट पालन (Sericulture) : व्यापारिक स्तर पर की जाने वाली रेशमकीट पालन की क्रिया जिसमें शहतूत आदि वृक्षों पर रेशन कीट उत्पन्न किये जाते हैं।
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