कड़ी शीर्षक
कोशिकीय व आण्विक जीवविज्ञान केंद्र Centre for Cellular and Molecular Biology | |
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CCMB hyderabad india.jpg | |
आदर्श वाक्य: | राष्ट्र को समर्पित |
स्थापित | 1977 |
प्रकार: | Autonomous, Govt, CSIR |
निदेशक: | Rakesh K. Mishra |
अवस्थिति: | हैदराबाद, तेलंगण, भारत |
परिसर: | Urban, 6 एकड़ (24,000 मी2) |
जालपृष्ठ: | ccmb.res.in |
कोशिकीय व आण्विक जीवविज्ञान केंद्र (सी.सी.एम.बी.), भारत भर में फैली सी एस आई आर की विविध प्रयोगशालाओं में से एक है। यह आन्ध्र प्रदेश की राजधानी, हैदराबाद में स्थित है और जीवविज्ञान के आधुनिक और महत्वपूर्ण क्षेत्रों को समर्पित प्रयोगशाला है। वर्ष 1987 में, 26 नवम्बर के दिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित की गई थी।
इसे सी.एस.आई.आर की एक पूर्ण विकसित राष्ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में वर्ष 1982 में ही मान्यता प्राप्त हो गयी थी, लेकिन अपने आरंभ के कुछ वर्षों में यह आई.आई.सी.टी, (पूर्व नाम आर.आर.एल.) प्रयोगशाला परिसर से काम करती रही। उसी समय, आई.आई.सी.टी के निकट, उसी प्रयोगशाला के परिसर में, इस केन्द्र के अपने भवनों का निर्माण आरंभ हुआ। वर्ष 1987 तक आते-आते अनेक लोगों के अथक और अद्भुत प्रयासों की सहायता से यह केन्द्र अपने लिए सभी सुविधाओं से युक्त एक सुन्दर परिसर को जुटा सका। आज इस केन्द्र को जीव विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है।
प्रमुखत: यह केन्द्र आज जीव विज्ञान के नवीनतम क्षेत्रों के शोधकार्य एवं उनके अनुप्रयोग को ढूँढने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसके क्रिया-कलापों में आधारभूत शोध कार्य से लेकर समाज-उपयोगी तथा चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े शोधकार्य तक सम्मिलित हैं।
सी.सी.एम.बी. के प्रमुख उद्देश्यों को सी.सी.एम.बी. चार्टर के नाम से जाना जाता है जिसके अंतर्गत निम्न बातों पर जोर दिया गया है।
इस समय सी.सी.एम.बी. में जो शोध-कार्य चल रहा है उसे मुख्यत: छ: प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है। वे हैं :
केन्द्र की कुछ प्रमुख और महत्वपूर्ण उपलब्धियों का उल्लेख किया जाता है :
डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग तकनीक फोरेन्सिक विज्ञान के लिए यह एक अद्भुत देन है। वर्ष 1985 में इंग्लैंड के प्रो॰ एलेक जेफरीज ने इस तकनीक का विकास किया था। वर्ष 1988 में सी.सी.एम.बी. ने इस तकनीक के लिए आवश्यक प्रोब का पूर्णत: स्वदेशी रूप विकसित किया था। इस तरह भारत पूरे विश्व में इस तकनीक के प्रयोग करने वाले देशों में तीसरा देश बना। वर्ष 1989 में भारत के न्यायालयों ने आपराधिक मामलों में इस तकनीक को प्रमाण के रूप में मान्यता प्रदान की। आज आपराधिक मामलों के अलावा इस तकनीक को पैतृक पहचान में, रेशम कीड़ों के उद्योग में, बीजों की गुणवत्ता की पहचान करने में, चिकित्सा के क्षेत्र में तथा पशु संरक्षण के लिए व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जा रहा है।
केन्द्र ने अपने अनुसंधानों का फायदा उद्योगों तक पहुँचाने के लिए भी प्रयास जारी रखे हैं।
अपनी स्थापना के समय से लेकर अब तक सीसीएमबी से करीब 1200 शोध-पत्र विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं। इम्पैक्ट फैक्टर (यह इस बात का सूचक है कि अन्य शोधकर्त्ताओं ने इस प्रकाशन का कितनी बार संदर्भ के लिए उपयोग किया है।) की दृष्टि से सीसीएमबी को भारत के तीन सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में शामिल होने का गौरव प्राप्त है।
सीसीएमबी द्वारा सन् 1979 से पेटेंट दर्ज किए जाने का सिलसिला चल रहा है तथा अब तक 14 राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पेटेंट दर्ज किए जा चुके हैं।
अनुसंधान क्रियाकलापों को सुचारु ढंग से चलाने के लिए कुछ अत्याधुनिक सुविधाओं को इस केन्द्र में जुटाया गया है। इनमें कॉनफोकल माइक्रोस्कोपी, एन.एम.आर. स्पेक्ट्रोस्कोपी, ऑटोमेटेड डी.एन.ए. सीक्वेंसिंग, डिजिटल इमेजिंग, माइक्रोअरे, प्रोटियोमिक्स, एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी, एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी ट्रान्सजनिक, एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोपी तथा नॉक आउट सुविधा एवं चित्र विश्लेषण सुविधा आदि सम्मिलित हैं।
सी.सी.एम.बी. एक अनुसंधान संस्थान के रूप में ही नहीं बल्कि उच्चस्तरीय शिक्षण केन्द्र के रूप में भी अपना दायित्व निभा रहा है। इस केन्द्र द्वारा दिल्ली के जवहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, सी.एस.आई.आर, डी.बी.टी तथा भारत सरकार के डी.एस.टी की विविध परियोजनाओं के अंतर्गत पोस्ट डॉक्टरल फेलो तथा शोध छात्रों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। सी.सी.एम.बी. में किसी भी समय औसतन 100 से अधिक शोध छात्र एवं अन्य संस्थाओं से आए अतिथि शोधकर्ता कार्यरत रहते हैं। समय समय पर विविध क्षेत्रों में राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय संगोष्ठियाँ और कार्यशालाएं भी चलाई जाती हैं। इसी कड़ी में सी.सी.एम.बी. द्वारा विकसित डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग तकनीक के बारे में विविध न्यायाधीश, पुलिस, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फोरेन्सिक विशेषज्ञों को नियमित रूप से प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम भी विकसित किया गया है
आधुनिक जैविकी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सीसीएमबी को यूनेस्को के ग्लोबल नेटवर्क फॉर मॉलिक्यूलर एण्ड सेल बायोलॉजी रूप में चुना गया है। सीसीएमबी को थर्ड र्वल्ड एकादमी ऑफ साईंसेज (TWAS) इटली द्वारा शोध एवं प्रशिक्षण के लिए उत्कृष्ट दक्षिणी केन्द्र का दर्जा प्रदान किया गया है। साथ ही सीसीएमबी को कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। जिसमें सीएसआईआर का प्रौद्योगिकी पुरस्कार (दो बार) तथा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए फिक्की (FICCI) अवार्ड सम्मिलित हैं। इसी प्रकार इटली के थर्ड र्वल्ड एकेडमी ऑफ साईंसेस पुरस्कार प्राप्त होने के साथ इस केन्द्र को साऊथ सेन्टर फॉर एक्सीलेंस इन रीसर्च एण्ड ट्रेनिंग का खिताब दिया गया है।
सी.सी.एम.बी. में प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्शक आते हैं। यही नहीं देश के कई प्रांतों से विश्वविद्यालयों के छात्र शैक्षिक भ्रमण पर आते रहते हैं। हर वर्ष 26 सितम्बर को केन्द्र 'सार्वजनिक दिवस' के रूप में मनाता है। इस अवसर पर हजारों लोग सी.सी.एम.बी. के संदर्शन के लिए आते हैं।
यह बात सी.सी.एम.बी. के लगातार विकास की पुष्टि करती है कि इस 10-12 वर्ष की अल्प अवधि में ही इस केन्द्र को दो और संस्थाओं को जन्म देने का श्रेय प्राप्त हुआ है। डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग तकनीक के लिए सी.डी.एफ.डी नाम से एक अलग प्रयोगशाला तथा वन्यप्राणी संरक्षण के शोधकार्य के लिए LACONES यानी Laboratory for Conservation of Endangered Species की स्थापना में सी.सी.एम.बी. का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
रोगों से बचाव की चुनौती को देखते हुए तथा इसके महत्व को समझते हुए सीसीएमबी ने सीएसआईआर के अनुमोदन के पश्चात संक्रामक रोगों से बचाव एवं उन पर शोधकार्य करने के लिए हैदराबाद में BSL4 सुविधा की स्थापना के प्रयास भी आरंभ कर दिए हैं।
आज का युग कंप्यूटर तथा सूचना क्रांति का युग है। शोधकार्य में सूचना का महत्व और भी अधिक होता है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सी.सी.एम.बी. में वर्ष 1986 में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) की मदद से एक जैव सूचना केन्द्र की स्थापना की गयी थी। इस सुविधा का मुख्य उद्देश्य जीव विज्ञान से संबंधित सूचनाओं को विविध प्रयोजनों के लिए एक जगह उपलब्ध करना है। इसके अलावा सी.सी.एम.बी. ने अपने सहयोगी संस्थान आई.आई.सी.टी. के साथ एक सुव्यवस्थित पुस्तकालय की भी व्यवस्था कर रखी है। जिसमें आधुनिक जीवविज्ञान, रसायन तथा अन्य दुर्लभ पुस्तकों के अलावा विभिन्न प्रकार के करीब 500 जर्नलों की सदस्यता भी उपलब्ध है। यही नहीं सी.सी.एम.बी. में सुप्रसिद्ध जैव वैज्ञानिक प्रो॰ जे. बी. एस. हाल्डेन के कार्यों एवं पुस्तकों का भी एक बहुमूल्य संग्रह उपलब्ध है।
विज्ञान को सामान्य जन तक पहुँचाना सी.सी.एम.बी. का लक्ष्य रहा है। इस दिशा में केन्द्र के वैज्ञानिक देश-विदेश की विविध पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, जर्नलों इत्यादि में अपने लोकप्रिय लेख प्रकाशित करते रहते हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया के विविध विज्ञान संबंधित कार्यक्रमों में भी इस केन्द्र के वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है। सीसीएमबी से प्रतिवर्ष प्रतिवेदन किया जाता है जिसमें वर्ष भर के अनुसंधान क्रिया-कलापों का ब्यौरा सम्मिलित होता है। इस प्रतिवेदन को देश तथा विदेशों में भी भेजा जाता है। देश की अधिकतम जनता तक विज्ञान को पहुँचाने की दृष्टि से हिंदी में एक वार्षिक वैज्ञानिक पत्रिका 'जिज्ञासा' का प्रकाशन किया जा रहा है। इस पत्रिका में सीसीएमबी के वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए लेख प्रकाशित किए जाते हैं। 'जिज्ञासा' पत्रिका को देश भर में सराहना प्राप्त हुई है।
यहाँ सी.सी.एम.बी. की कला विषयक रुचि का उल्लेख करना भी जरूरी है। यह केन्द्र कला एवं विज्ञान के समागम का एक जीवन्त आदर्श प्रस्तुत करता है। सी.सी.एम.बी. में एक स्थाई कलादीर्घा की व्यवस्था है जो केन्द्र के सौंदर्य बोध का परिचय देती है। यहाँ देश के चोटी के कलाकारों की कृतियाँ सजी हुई हैं। यही नहीं समय समय पर यहाँ देश के उभरते कलाकारों की कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ भी लगाकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। कला विषयक रुचि, सौंदर्य बोध एवं प्रकृति के प्रति लगाव इस केन्द्र की खुद अपनी संस्कृति के अभिन्न अंग बन गए हैं।
सी.सी.एम.बी. ने अपने वैज्ञानिकों तथा साथी कर्मचारियों के रहने के लिए एक सुन्दर आवास परिसर भी बनाया है। भारत के सुप्रसिद्ध अर्किटेक्ट श्री चार्ल्स कोरिया ने इसकी संरचना की है। इसी प्रकार हाल ही में छात्रों के रहने के लिए केन्द्र के परिसर में ही 96 कमरों से युक्त 'अभिज्ञान' नाम के एक छात्रावास का निर्माण भी किया गया है।
यह था सी.सी.एम.बी. का संक्षिप्त में परिचय। हमें पूर्ण विश्वास है कि नई शताब्दि में जीनोम क्रांति के आगमन के साथ यह केन्द्र आधुनिक जीव विज्ञान के अग्रणी क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करने के प्रयास जारी रखेगा और देश को जीव विज्ञान के क्षेत्र में उच्च स्थान प्रदान करने में सफल होगा।
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