प्राचीन हिन्दू धार्मिक और पौराणिक वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः मूल सनातन हिन्दू धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)।
इसके साथ साथ ही हिन्दू वैदिक ग्रन्थों मॆं लम्बाई-क्षेत्र-भार मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं।यह सभी योग में भी प्रयोग में हैं।
हिन्दू समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं।:
(श्लोक 11) वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ विनाड़ियों से एक नाड़ी बनती है।
(12) और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है।
(13) एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं। एक वर्ष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं।
(14) देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं। उनके छः गुणा साठ देवताओं के (दिव्य) वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं।
(15) बारह सहस्र (हज़ार) दिव्य वर्षों को एक चतुर्युग कहते हैं। यह तैंतालीस लाख बीस हज़ार सौर वर्षों का होता है।
(16) चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं। कॄतयुग या सतयुग और अन्य युगों का अन्तर, जैसे मापा जाता है, वह इस प्रकार है, जो कि चरणों में होता है:
(17) एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है।
(18) इकहत्तर चतुर्युगी एक मन्वन्तर या एक मनु की आयु होती हैं। इसके अन्त पर संध्या होती है, जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है और यह प्रलय होती है।
(19) एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं, अपनी संध्याओं के साथ; प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या/उषा होती है। यह भी सतयुग के बराबर ही होती है।
(20) एक कल्प में, एक हज़ार चतुर्युगी होते हैं और फ़िर एक प्रलय होती है। यह ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है।
(21) इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है; उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
(22) इस कल्प में, छः मनु अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) की सत्ताईसवीं चतुर्युगी बीत चुकी है।
(23) वर्तमान में, अट्ठाईसवीं चतुर्युगी का द्वापर युग बीत चुका है तथा भगवान कृष्ण के अवतार समाप्ति से ५१२३वाँ वर्ष (ईस्वी सन् २०२१ में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से) प्रगतिशील है। कलियुग की कुल अवधि ४,३२,००० वर्ष है।
हिन्दू समय मापन, (काल व्यवहार) का सार निम्न लिखित है:
शतपथ ब्राह्मण के आधार पर वैदिक कालमानम् -शतपथ.१२|३|२|५ इस प्रकार है -
समय का मापन प्रारम्भ एक सूर्योदयसे और अहोरात्र का मापन का समापन अपर सूर्योदय से होता है ।अर्धरात्री से नहीं होता है| जैसा कि कहा है-
विष्णु पुराण में दी गई एक अन्य वैकल्पिक पद्धति समय मापन पद्धति अनुभाग, विष्णु पुराण, भाग-१, अध्याय तॄतीय निम्न है:
वेदांग ज्योतिष के आधार पर पंचवर्षात्मक युग माना जाता है | प्रत्येक ६० वर्ष में १२ युग व्यतीत हो जाते हैं। १२ युगों के नाम आगे बताया जा चुके हैं। शुक्लयजुर्वेदसंहिता के मन्त्रों २७|४५,३०|१५ ,२२|२८,२७|४५ ,२२|३१ मे पंचसंवत्सरात्मक युग का वर्णन है | ब्रह्माण्डपुराण १|२४|१३९-१४३ , लिंगपुराण १|६१|५०-५४, वायुपुराण १|५३|१११-११५ म.भारत.आश्वमेधिक पर्व४४|२,४४|१८ कौटलीय अर्थशास्त्र २|२० सुश्रुतसंहिता सूत्रस्थान-६|३-९ पूर्वोक्त ग्रन्थ वेदांग ज्योतिष के अनुगामी है |
विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार:
ब्रह्मा का एक दिवस (दिन+रात) दो कल्प के बराबर होता है. ब्रह्मा का एक दिवस, एक दिन(=1कल्प) और एक रात (=1कल्प) मिलकर बनाते हैं.
ब्रह्मा का एक दिन अथवा एक रात जितनी अवधि को कल्प कहते हैं जो 4,32,00,00,000 मानव वर्ष की होती है. जो 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं: एक चरण 4,32,000 साल का होता है.
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) | सत युग |
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) | त्रेता युग |
2 चरण (864,000 सौर वर्ष) | द्वापर युग |
1 चरण (432,000 सौर वर्ष) | कलि युग |
[4] Archived 2015-06-25 at the वेबैक मशीन
यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिन में 1000 महायुग हो जाते हैं और ब्रह्मा की रात्रि में 1000 महायुग हो जाते हैं. इस प्रकार, ब्रह्मा के एक दिवस (दिन+रात) में 2000 महायुग/ चतुर्युगी हो जाते हैं.
दो कल्प के बराबर ब्रह्मा का एक दिवस(दिन+रात) होता है.
जहाँ, एक कल्प में, एक हज़ार चतुर्युगी{=43,20,000 ×1000साल} का दिन होता है और फ़िर इस कल्प के बाद उतनी ही अवधि अर्थात एक कल्प की रात्रि आती है.
और ब्रह्मा की यह रात्रि एक कल्प जितना लम्बा प्रलयकाल {=43,20,000 ×1000साल}होता है।
इस प्रकार, ब्रह्मा के एक दिवस (दिन+रात) में 14 मनुवंतरों का एक कल्प और एक पूरा कल्प जितनी रात्रि का लम्बा प्रलयकाल बीत जाता है.
अस्तु , ब्रह्मा का एक दिवस दो कल्प अर्थात 8 अरब 64 करोड़ साल जितनी लम्बी अवधि का होता है.
1 कल्प = 1000 चतुर्युगी 1 कल्प = 14 मनवंतर 1 मनवंतर = 71 चतुर्युगी
1 चतुर्युगी = 1 महायुग 1 महायुग = सतयुग+त्रेतायुग+द्वापरयुग+कलयुग 1 महायुग = कलयुग के 10 चरण 1 चरण = 1 कलयुग 1 कलयुग = 4,32,000 मानव वर्ष 1 द्वापरयुग = 2 चरण कलयुग 1 त्रेता युग = 3 चरण कलयुग 1 सतयुग = 4 चरण कलयुग
अब ब्रह्मा की आयु 100 साल की मानी गई है तो ब्रह्मा की कुल आयु की गणना निम्नवत् की जा सकती है:-
100×360=36000 दिवस ( एक माह=30 दिवस माने गए हैं)
36000×2= 72000 कल्प ( ब्रह्मा का एक दिवस= 2 कल्प)
72000×4,32,00,00,000=
31,10,40,00,00,00,000 मानव वर्ष.
यहाँ, रोचक तथ्य यह है कि ब्रह्मा का एक दिवस, दो कल्प अर्थात 8 अरब 64 करोड़ साल का होता है और वैज्ञानिकों द्वारा लगभग यही आयु , हमारे सूर्य की मानी जाती है.
इस प्रकार 36000 सूर्य की कुल आयु के बराबर है ब्रह्मा की आयु.
'पाल्या' समय की एक इकाई है. यह इकाई, भेड़ की ऊन का एक योजन ऊंचा घन (यदि प्रत्येक सूत्र एक शताब्दी में चढ़ाया गया हो) बनाने में लगे समय के बराबर है। दूसरी परिभाषा अनुसार, यह एक छोटी चिड़िया (यदि वह प्रत्येक रेशे को प्रति सौ वर्ष में उठाती है) द्वारा किसी एक वर्गमील के सूक्ष्म रेशों से भरे कुएं को रिक्त करने में लगे समय के बराबर है.
यह इकाई भगवान आदिनाथ के अवतरण के समय की है। यथार्थ में यह 100,000,000,000,000 पाल्य पहले था।
हम वर्तमान में वर्तमान ब्रह्मा के इक्यावनवें वर्ष में सातवें मनु, वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, अठ्ठाईसवें कलियुग के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम संवत 2080 में हैं। इस प्रकार अबतक १५ नील, ५५ खरब, २१ अरब, ९७ करोड़, १९ लाख, ६१ हज़ार, ६२5 वर्ष इस ब्रह्मा को सॄजित हुए हो गये हैं।
ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान कलियुग दिनाँक 17 फरवरी / 18 फरवरी को 3102 ई० पू० में हुआ था। इस बात को वेदांग ज्योतिष के व्यख्याकार नहीं मानते। उनका कहना है कि यह समय महाभारत के युद्ध का है । इसके ३६ साल बाद यदुवंश का विनाश हुआ और उसी दिन से वास्तविक कलियुग प्रारम्भ हुुआ। इस गणित से आज वि॰ सं॰ २०७३|४|१५ दिनांक को कलिसंवत् ५०८१|८वें मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि चल रही है |
ब्रह्मा जी के एक दिन में १४ इन्द्र मर जाते हैं और इनकी जगह नए देवता इन्द्र का स्थान लेते हैं। इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि होती है। दिन की इस गणना के आधार पर ब्रह्मा की आयु १०० वर्ष होती है फिर ब्रह्मा मर जाते है और दूसरा देवता ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करते हैं। ब्रह्मा की आयु के बराबर विष्णु का एक दिन होता है। इस आधार पर विष्णु जी की आयु १०० वर्ष है। विष्णु जी १०० वर्ष का शंकर जी का एक दिन होता है। इस दिन और रात के अनुसार शंकर जी की आयु १०० वर्ष होती है।
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