वास्तु शास्त्र

संस्कृत में कहा गया है कि...

गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना।

वास्तु शास्त्र
वास्तु पुरुष की अवधारणा

वास्तु शास्त्र घर, प्रासाद, भवन अथवा मन्दिर निर्माण करने का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसे आधुनिक समय के विज्ञान आर्किटेक्चर का प्राचीन स्वरुप माना जा सकता है। जीवन में जिन वस्तुओं का हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होता है उन वस्तुओं को किस प्रकार से रखा जाए वह भी वास्तु है वस्तु शब्द से वास्तु का निर्माण हुआ है

डिजाइन दिशात्मक संरेखण के आधार पर कर रहे हैं। यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिये और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि।

दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता है और उत्तर भारत में विश्वकर्मा को जिम्मेदार माना जाता है।

वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं

उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है। वैदिक वास्तुकला के नियमों और निर्देशों का पालन करके, वास्तुकला के कार्यक्रम में आपूर्ति और आयाम की स्थापना की जाती है, जो एक सुखी और समृद्ध आवास का सृजन करते हैं।

वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा

वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए। यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग में भी बाधा आति है।

वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा

पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेय दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है।

वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा

इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा

दक्षिण और पश्चिम के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

Tags:

वास्तु शास्त्र वास्तुशास्त्र एवं दिशाएंवास्तु शास्त्र सन्दर्भवास्तु शास्त्र इन्हें भी देखेंवास्तु शास्त्र बाहरी कड़ियाँवास्तु शास्त्रसंस्कृत भाषा

🔥 Trending searches on Wiki हिन्दी:

भक्ति कालफ़तेहपुर सीकरीगोविंदा नाम मेराइस्लाम का इतिहासभारत के राष्ट्रपतिन्यूनतम मजदूरी अधिनियम, १९४८विधान परिषदकृष्णदेवरायराजीव गांधीराष्ट्रीय सेवा योजनालखनऊ समझौतामनमोहन सिंहअयोध्यास्वेज़ नहरश्रीनिवास रामानुजन्नई दिल्लीअनवीकरणीय संसाधनये रिश्ता क्या कहलाता हैभीमराव आम्बेडकरपृथ्वी सम्मेलनख़िलाफ़त आन्दोलनविटामिनज्वालामुखीसमाजशास्त्रशैवालराज बब्बरइंदिरा गांधी की हत्याबाल वीरसीताब्रह्मामानव दाँतजीवाणुअस्र की नमाज़रामसेतुहिन्दू धर्मग्रन्थमुख्‍तार अंसारीकरणी माता मन्दिर, बीकानेरभारतीय राष्ट्रवादयौन प्रवेशगुप्त राजवंशराजनीतिग्रीनहाउस गैसविश्व बैंकइब्न-बतूतामेटा प्लेटफॉर्म्सस्त्री जननांगरोगों की सूचीकालीमीरा बाईहोलीमुहम्मद बिन तुग़लक़भारत में लैंगिक असमानताकोई मिल गयामराठा साम्राज्यहिन्दू धर्म का इतिहासफूलन देवीहिन्दीबाघअगले भारतीय आम चुनाव, 2024महावीर प्रसाद द्विवेदीसामाजिक स्तरीकरणआदिवासी (भारतीय)प्रयोजनमूलक हिन्दीविवाहसारस (पक्षी)गुर्दासर्वनाममृत सागरविनायक दामोदर सावरकरमानव मस्तिष्कराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघगंधमादन पर्वतमूल अधिकार (भारत)वस्तु एवं सेवा कर (भारत)उधम सिंहकाकोरी काण्डअण्डमान और निकोबार द्वीपसमूहसूचना का अधिकार अधिनियम, २००५टीपू सुल्तान🡆 More