राहीबाई सोमा पोपेरे जो सीड मदर के नामसे भी जानी जाती है, एक भारतीय महिला किसान और संरक्षणवादी है। ये 2020 मे राष्ट्रपती के हातो पद्मश्रीसे नवाजी गई है। यह अहमदनगर जिल्हेके कोंभाळणे, ता.अकोले तालुक यहांकी रहेनेवाली है। ‘बायस’ संस्थानने इन्हे साथ दी और कुछ बचतगटकी महिलांओको लेकर कळसूबाई बीजसंवर्धन समिती स्थापन की इसकी संस्थापक खुद राहीबाई बनी।
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भारतीय किसान, कृषिविशेषज्ञ और संरक्षणवादी | |
जन्म तिथि | 1964 अकोले (अहमदनगर जिला, भारत) |
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पुरस्कार प्राप्त |
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राहीबाई आदीवासी गरीब महीला जो पढी लिखी नहीं है क्रषी वैज्ञानिकभी उनके खेतीबाडीके ज्ञानका सम्मान करतेहै जैविक खेतीके लिए उन्हे सन्मानित किया गयाहै.
राहीबाई पुराणी पद्धतीकी तकनीकीको ध्यानमे रखकर जैविक खेतीको एक नया आयामदे रहीहै इन्होने 50 एकडसेभी ज्यादा भूसंरक्षणकी उसमें कई तरहकी सब्जीयाँ और धान ऊगानेका काम कियाहै राहीबाईका एक सीड बँकभीहै जिसमे वह पके हुए बीजोंको सुरक्षित रखतीहै यह बींज किसानोको कम सींचाईमें अच्छी फसल देतेहै.
आदिवासी परिवारकी महिलाजो अपनी खेतीसे पूरे देशका ध्यान अपनी ओर खिंचती हुई इन्होने अपने बेमिसाल हौसंलेके बुनियाद पर अपनेही गाँवके 3500 महिलाओंको खेतीसे जोडकर अपने पैरो पर खडा रहेनेकी ताकददी अपने दुखदर्द भूलकर जिंदगीके इमारतकी नींव रची.
राहीबाई कहेतीहैकी आजकलकी महिलांओकी कम्बर दुखतीहै तीन चार महिने शिशुमाताएँ घरके बाहर नहीं निकलती हम शिशुमाता होते हुए घरके सभी काम करतेथे. घरके चक्कीमें आटा पिसना, चावल छडना, खेतोमें जाना, घरके सामनेके तालाबसे सरपे पानी लाना लेकिन उन्हे कभी थकान महेसूस नहीं हुई क्योंकी वह गावरान चावल,गावरान सब्जीयाँ, वारली, वरई, कालेचावल, सावा, धानवाली भगर यह सारी चीजे खानेसे वह शाम तक दणदण काम करतीथी. उन्हेतो यादही नहींकी वह कभी बिमार पडी होगी. वो कहेतीहै गावरान अनाज खानेसे शरीरमें शक्ती बनी रहेतीहै हायब्रीड खानेसे शरीरमें शक्ती कम होतीहै और बिमारीयाँ बडतीहै. इसकी मिसाल अपनेही खेतसेदी.
राहीबाईने अपनेही खेतमें एकतरफ गावरान चावलके धान लगाएतो दुसरी तरफ हायब्रीड चावलके धान लगाए. हायब्रीड बींजको अलगसे खातपाणी नहीं डाला बल्की दोनोभी धानको एकसा पाणी और गोबर व केचवा खात डाला लेकीन हायब्रीड चावलके फसलको एकभी ओबीं नहीं लगीतो दुसरी ओर गावरान चावलके फसलको बहोत ओंब्या लगेथे. गावरान बींजके खुदके ताकतपर उसमें दाने लगेथे यही फर्क राहीबाईने लोगोको बताया यही गावरान वानकी खासीयत लोगोको लुभाने लगी.
‘बायस’ संस्थाने इन्हे मदतका हात दिया अकेली वह ज्यादे वान इकट्ठा नहीं करपा रहीथी तब आजुबाजूके गाँवके किसानभी इनसे जुडे उन्होने 52 प्रकारके जंगलकी सब्जीयाँ, सेकडो असली गावरान फसलोके बींजभी इसमे शामीलथे.
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