डॉ धीरेन्द्र वर्मा (१८९७ - १९७३), हिन्दी तथा ब्रजभाषा के कवि एवं इतिहासकार थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम हिन्दी विभागाध्यक्ष थे। धर्मवीर भारती ने उनके ही मार्गदर्शन में अपना शोधकार्य किया। जो कार्य हिन्दी समीक्षा के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया, वही कार्य हिन्दी शोध के क्षेत्र में डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा ने किया था। धीरेन्द्र वर्मा जहाँ एक तरफ़ हिन्दी विभाग के उत्कृष्ट व्यवस्थापक रहे, वहीं दूसरी ओर एक आदर्श प्राध्यापक भी थे। डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा सोरों को तुलसीदास की जन्मभूमि मानने के प्रबल पक्षधर थे। भारतीय भाषाओं से सम्बद्ध समस्त शोध कार्य के आधार पर उन्होंने 1933 ई.
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में हिन्दी भाषा का प्रथम वैज्ञानिक इतिहास लिखा था। फ्रेंच भाषा में उनका ब्रजभाषा पर शोध प्रबन्ध है, जिसका अब हिन्दी अनुवाद हो चुका है। मार्च, सन् 1959 में डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा हिंदी विश्वकोश के प्रधान संपादक नियुक्त हुए। विश्वकोश का प्रथम खंड लगभग डेढ़ वर्षों की अल्पावधि में ही सन् 1960 में प्रकाशित हुआ।
धीरेन्द्र वर्मा का जन्म 17 मई, 1897 को बरेली (उत्तर प्रदेश) के भूड़ मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम खानचंद था। खानचंद एक जमींदार पिता के पुत्र होते हुए भी भारतीय संस्कृति से प्रेम रखते थे। वे आर्य समाज के प्रभाव में आये थे। धीरेन्द्र वर्मा पर बचपन से ही पिता के इन गुणों का और इस वातावरण का प्रभाव पड़ चुका था।
प्रारम्भ में धीरेन्द्र वर्मा का नामांकन सन 1908 में डी.ए.वी. कॉलेज, देहरादून में हुआ, किंतु कुछ ही दिनों बाद वे अपने पिता के पास चले आये और क्वींस कॉलेज, लखनऊ में दाखिला लिया। इसी स्कूल से सन 1914 ई. में प्रथम श्रेणी में 'स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट परीक्षा' उत्तिर्ण की और हिन्दी में विशेष योग्यता प्राप्त की। तदन्तर इन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में प्रवेश किया। सन 1921 ई. में इसी कॉलेज से इन्होंने संस्कृत से एम॰ए॰ किया। उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की थी।
आचार्य धीरेन्द्र वर्मा ने ‘हिंदी साहित्य कोश’ का निर्माण 1958 से 1965 के बीच किया था। लगभग पचास वर्ष पुराना हो चुके इस कोश का पुनर्प्रकाशन २९१९ में वाणी प्रकाशन द्वारा शम्भूनाथ के मुख्य सम्पादकत्व में किया गया। वाणी प्रकाशन और भारतीय भाषा परिषद् के तत्वावधान में निर्मित सात खण्डों का ‘हिंदी साहित्य ज्ञान कोश’ हिंदी साहित्य, दर्शन, इतिहास, आलोचना आदि सभी विषयों को समाहित किए हुए है। कोलकाता के सन्मार्ग ने इसे मुद्रित किया है।
हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश में 2660 प्रविष्टियाँ हैं। यह 7 खण्डों में 4560 पृष्ठों का ग्रन्थ है। इसमें हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित इतिहास, साहित्य सिद्धान्त आदि के अलावा समाज विज्ञान, धर्म, भारतीय संस्कृति, मानवाधिकार, पौराणिक चरित्र, पर्यावरण, पश्चिमी सिद्धान्तकार, अनुवाद सिद्धान्त, नवजागरण, वैश्वीकरण, उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श आदि कुल 32 विषय हैं। इसमें हिंदी क्षेत्र की 48 लोक भाषाओं और कला-संस्कृति पर सामग्री है। शंभुनाथ के अनुसार पिछले पचास सालों में दुनिया में ज्ञान के जो नये विस्फोट हुए हैं, उनकी रोशनी में एक तरह से भारतीय भाषाओं में हिंदी में बना यह पहला ज्ञानकोश है। यह विद्यार्थियों और आम हिंदी पाठकों के बौद्धिक क्षितिज के बहुतरफा विस्तार में सहायक हो सकता है। देश भर के लगभग 275 लेखकों ने मेहनत से प्रविष्टियाँ लिखीं और उनके ऐतिहासिक सहयोग किया।
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