कृष्णा भारत में बहनेवाली एक है। यह पश्चिमी घाट के पर्वत महाबलेश्वर से निकलती है। इसकी लम्बाई प्रायः 1400 किलोमीटर है। यह दक्षिण-पुर्व राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। कृष्णा नदी की उपनदियों में प्रमुख हैं: कुडाळी, वेण्णा,कोयना,पंचगंगा,दूधगंगा,तुंगभद्रा, घटप्रभा,मलप्रभा, मूसी और भीमा। कृष्णा नदी के किनारे विजयवाड़ा एंव मूसी नदी के किनारे हैदराबाद स्थित है। इसके मुहाने पर बहुत बड़ा डेल्टा है। इसका डेल्टा भारत के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है। यह मिट्टी का कटाव करने के कारण पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुचांती है। कावेरी नदी जल विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच जल विवाद चल रहा है। कृष्णा नदी का संगम बंगाल की खाड़ी है। इस नदी पर दो जलप्रपात बने हुए हैं।
कृष्णा नदी जल विवाद न्यायाधिकरण 1969 तीन राज्यों में इसका विवाद चल रहा है महाराष्ट्र कर्नाटक और आंध्र प्रदेश कृष्णा नदी जलप्रपात पर जितने भी क्षेत्र आते हैं उसे क्षेत्र का उपयोग करके एक बांध का निर्माण किया गया है उसे बांध के निर्माण में बहुत सारे जल ऊर्जा संयंत्र लगाने का कार्य किया जा रहा है जिससे उसे क्षेत्र पर रहने वाले रहवासियों को बिजली की सुविधा मिल सके यह योजना सरकार की जल्द से पूर्ण करने की योजना में शामिल है इस नदी के माध्यम से लगे उस क्षेत्र में कृषि ,पेयजल,मछली पालन, पशुपालन, कारखाने उद्योगों एवं अनेक प्रकार के निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। दार्शनिक स्थल के आधार पर वहां पर अनेक को मंदिर का निर्माण किया गया जो पूर्वकालो से सुप्रसिद्ध है। जहां पर लोग अपने आस्था के आधार पर उन देवियों एवं बांध या बैराज का तीर्थ स्थल में दर्शन हेतु जाते हैं। पर्यावरण की अद्वितीय नजारे देखने को मिलता है। जो लोगों को अपनी और आकर्षित करता है और बार बार आने को मजबूर करता है अपनी सुंदरता कि अद्वितीय नजारे को जो कि वह वर्षा ऋतु में ही देखने को मिलता है।
अधिक जानकारी के लिए (https://web.archive.org/web/20101227125944/http://www.rainwaterharvesting.org/crisis/river-krishna.htm नदी कृष्णा]
कृष्णा नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम महाराष्ट्र राज्य में महाबलेश्वर के समीप पश्चिमी घाट श्रृंखला से होता है, जो भारत के पश्चिमी समुद्र तट से अधिक दूर नहीं है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है और फिर सामान्यत: दक्षिण-पूर्वी दिशा में सांगली से होते हुए कर्नाटकराज्य सीमा की ओर बहती है। यहाँ पहुँचकर यह नदी पूर्व की ओर मुड़ जाती है और अनियमित गति से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्य से होकर बहती है। अब यह दक्षिण-पूर्व व फिर पूर्वोत्तर दिशा में घूम जाती है और इसके बाद पूर्व में विजयवाड़ा में अपने डेल्टा शीर्ष की ओर बहती है। यहाँ से लगभग 1,400 किमी की दूरी तय करके यह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कृष्णा के पास बड़ा और बहुत उपजाऊ डेल्टा है, जो पूर्वोत्तर में गोदावरी नदी क्षेत्र की ओर आगे बढ़ता जाता है।
यह नौकाचालान योग्य नहीं है, लेकिन कृष्णा से सिंचाई के लिए पानी तो मिलता ही है; विजयवाड़ा स्थित एक बांध डेल्टा में एक नहर प्रणाली की सहायता से पानी के बहाव को नियंत्रित करता है। मॉनसूनी वर्षा के द्वारा पानी मिलने के कारण नदी के जलस्तर में वर्ष भर काफ़ी उतार-चढ़ाव आता रहता है, जिससे सिंचाई के लिए इसकी उपयोगिता सीमित ही है।
कृष्णा नदी घाटी परियोजना (महाराष्ट्र) से यह आशा की जाती है कि इससे राज्य को सिंचाई के लिए अधिक पानी मिल सकेगा। कृष्णा नदी को दो सबसे बड़ी सहायक नदियां, भीमा (उत्तर) और तुंगभद्रा (दक्षिण) हैं। भीमा नदी (महाराष्ट्र) पर उजैनी बांध और तुंगभद्रा नदी पर हौसपेट में बने एक अन्य बांध से सिंचाई के पानी में वृद्धि हुई है। हौसपेट से विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति भी होती है।
श्रीमद्भागवत[1]में इसका उल्लेख है—'…कावेरी वेणी पयस्विनी शर्करावती तुंगभद्रा कृष्णा वेण्या भीमरथी…' कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्नम के निकट गिरती है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
महाभारत सभापर्व[2]में कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख है जिससे इसकी वास्तविक स्थिति का बोध होता है- 'गोदावरी कृष्णवेणा कावेरी च सरिद्वारा'।परियोजना के विशिष्ट उद्देश्य हैं:
कृष्णा बेसिन के भीतर तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों (मुसी, मालाप्रभा और ऊपरी भीमा) में मौजूदा हाइड्रोलॉजिकल प्रवाह व्यवस्था (पानी की उपलब्धता और उपयोग सहित) और कृषि जल उत्पादकता की विशेषता।
तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों में जल आवंटन नीतियों का विश्लेषण करने के लिए एक उपयुक्त विस्तृत नेटवर्क मॉडल का विकास, जो कृषि, घरेलू और पर्यावरणीय उपयोगों के लिए पानी के आवंटन में परिवर्तन का अनुकरण करने और इन उपयोगों के बीच व्यापार का आकलन करने में सक्षम होगा जिससे पानी में सुधार हो सकता है। उत्पादकता.
सिंचाई जल की उत्पादकता और पर्यावरणीय परिणामों में सुधार पर विशेष जोर देने के साथ वैकल्पिक आवंटन नीतियों के क्षेत्रीय और क्षेत्रीय प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए एक आर्थिक मॉडल के साथ एक आवंटन मॉडल का एकीकरण।
प्रत्येक राज्य के भीतर प्रतिस्पर्धी उपयोगों से जल आपूर्ति और मांग का विश्लेषण करने के लिए WEAP मॉडल का उपयोग करके आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के लिए एक राज्यव्यापी जल संतुलन मॉडलिंग ढांचे का विकास।
तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों और राज्यों में प्रमुख जल संसाधन प्रबंधकों और योजनाकारों के सहयोग से वैकल्पिक जल आवंटन परिदृश्यों के विकास के माध्यम से कृषि में पानी के उपयोग की उत्पादकता बढ़ाने के अवसरों की पहचान।
https://web.archive.org/web/20101227125944/http://www.rainwaterharvesting.org/crisis/river-krishna.htm नदी कृष्णा]
कृष्णा नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम महाराष्ट्र राज्य में महाबलेश्वर के समीप पश्चिमी घाट श्रृंखला से होता है, जो भारत के पश्चिमी समुद्र तट से अधिक दूर नहीं है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है और फिर सामान्यत: दक्षिण-पूर्वी दिशा में सांगली से होते हुए कर्नाटकराज्य सीमा की ओर बहती है। यहाँ पहुँचकर यह नदी पूर्व की ओर मुड़ जाती है और अनियमित गति से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्य से होकर बहती है। अब यह दक्षिण-पूर्व व फिर पूर्वोत्तर दिशा में घूम जाती है और इसके बाद पूर्व में विजयवाड़ा में अपने डेल्टा शीर्ष की ओर बहती है। यहाँ से लगभग 1,400 किमी की दूरी तय करके यह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। कृष्णा के पास बड़ा और बहुत उपजाऊ डेल्टा है, जो पूर्वोत्तर में गोदावरी नदी क्षेत्र की ओर आगे बढ़ता जाता है।
यह नौकाचालान योग्य नहीं है, लेकिन कृष्णा से सिंचाई के लिए पानी तो मिलता ही है; विजयवाड़ा स्थित एक बांध डेल्टा में एक नहर प्रणाली की सहायता से पानी के बहाव को नियंत्रित करता है। मॉनसूनी वर्षा के द्वारा पानी मिलने के कारण नदी के जलस्तर में वर्ष भर काफ़ी उतार-चढ़ाव आता रहता है, जिससे सिंचाई के लिए इसकी उपयोगिता सीमित ही है।
कृष्णा नदी घाटी परियोजना (महाराष्ट्र) से यह आशा की जाती है कि इससे राज्य को सिंचाई के लिए अधिक पानी मिल सकेगा। कृष्णा नदी को दो सबसे बड़ी सहायक नदियां, भीमा (उत्तर) और तुंगभद्रा (दक्षिण) हैं। भीमा नदी (महाराष्ट्र) पर उजैनी बांध और तुंगभद्रा नदी पर हौसपेट में बने एक अन्य बांध से सिंचाई के पानी में वृद्धि हुई है। हौसपेट से विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति भी होती है।
श्रीमद्भागवत[1]में इसका उल्लेख है—'…कावेरी वेणी पयस्विनी शर्करावती तुंगभद्रा कृष्णा वेण्या भीमरथी…' कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्नम के निकट गिरती है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
महाभारत एवं श्रीमद् भागवत गीता में जो ज्ञान लिखा है वह अद्वितीय है उसमें परमात्मा प्राप्ति की बहुत सारी रहस्य में बातें लिखी गई है जो अनेकों नदी तालाबों तीर्थ स्थान के नाम से प्रसिद्ध है उनमें से एक कृष्णा नदी भी है यह साक्षी है कि उसे समय बहुत ही शक्तिशाली भगवानों के द्वारा लीला को यथार्थ चित्रण एवं प्रमाण तो को मिली उसे दृष्टि के अनुसार मिलता है आज वह नदियां इसके जवाब दे रही है वर्तमान में यह नदियां प्रदूषित हो रही है जिसमें बहुत सारे प्रदूषणों के कारण मानव जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है यह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है यथोचित यह भक्ति और उसे साधनाओं से जुड़ी रहस्य को ना समझ कर मन माना आचरण का यह कारण भी एक है मानव शिक्षित है फिर भी कुछ कारण वास वह पूर्व रीति-रिवाज को मानते हुए उसे नहीं रोक पाए एवं उसे करने के लिए बाध्य रहते हैं जो कि वर्तमान युग के अनुसार गलत होती है हमें भविष्य को सोते हुए उन नदियों के एवं उसे प्रदूषित वाले कर्म को जिससे हमारे और हमारे भविष्य में हानि होती है उसे छोड़कर कुछ सच करने की कोशिश करना चाहिए सच करने के लिए हमारे सब ग्रंथ ही प्रमाणित होते हैं जिसमें प्रमाण होता है की कि परमात्मा सद्भक्ति से जो भी हमारे पूरे वातावरण को स्वच्छ एवं सुंदर बनाता है एवं हर मानव को सुखी प्रदान करता कृष्णा नदी इसी का एक जीत जाता उदाहरण है ।कृष्णा नदी आज हमारे भारत की बहुत अद्वितीय नदी है
*तकनीकी जानकारी*
परियोजनाएं कृष्णा नदी
परियोजना के विशिष्ट उद्देश्य हैं:
कृष्णा बेसिन के भीतर तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों (मुसी, मालाप्रभा और ऊपरी भीमा) में मौजूदा हाइड्रोलॉजिकल प्रवाह व्यवस्था (पानी की उपलब्धता और उपयोग सहित) और कृषि जल उत्पादकता की विशेषता।
तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों में जल आवंटन नीतियों का विश्लेषण करने के लिए एक उपयुक्त विस्तृत नेटवर्क मॉडल का विकास, जो कृषि, घरेलू और पर्यावरणीय उपयोगों के लिए पानी के आवंटन में परिवर्तन का अनुकरण करने और इन उपयोगों के बीच व्यापार का आकलन करने में सक्षम होगा जिससे पानी में सुधार हो सकता है। उत्पादकता.
सिंचाई जल की उत्पादकता और पर्यावरणीय परिणामों में सुधार पर विशेष जोर देने के साथ वैकल्पिक आवंटन नीतियों के क्षेत्रीय और क्षेत्रीय प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए एक आर्थिक मॉडल के साथ एक आवंटन मॉडल का एकीकरण।
प्रत्येक राज्य के भीतर प्रतिस्पर्धी उपयोगों से जल आपूर्ति और मांग का विश्लेषण करने के लिए WEAP मॉडल का उपयोग करके आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के लिए एक राज्यव्यापी जल संतुलन मॉडलिंग ढांचे का विकास।
तीन फोकस जलग्रहण क्षेत्रों और राज्यों में प्रमुख जल संसाधन प्रबंधकों और योजनाकारों के सहयोग से वैकल्पिक जल आवंटन परिदृश्यों के विकास के माध्यम से कृषि में पानी के उपयोग की उत्पादकता बढ़ाने के अवसरों की पहचान।
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