कलीसिया (लातिनी: Ecclesia, एक्क्लेसिया) अथवा चर्च का अर्थ मसीही संप्रदाय के अन्तर्गत आने वाले संगठन या साम्प्रदाय को कहा जाता है। कलीसिया, का शाब्दिक अर्थ है लोगों का समूह या सभा। कलीसिया मसीही विश्वासियों के समूह, को कहते हैं, जिन्हें ईसाई लोग (अर्थात् स्वर्ग और पृथ्वी को बनानेवाले परमेश्वर का, मनुष्य के रूप में प्रकट होने की बात को सत्य माननेवाले) एकमात्र परमेश्वर में विस्वास करते हैं। विश्वासियों के इस समुदाय के सदस्य इस तरह देश-काल से परे एक सार्वभौमिक कलीसिया के भाग होते हैं। यह सार्वभौमिक कलीसिया एक वैश्विक समुदाय के समान है जिसमें हर विश्वासी एक अंग का कार्य करता है।
यह यूनानी बाइबिल के 'एक्लेसिया' शब्द का विकृत रूप है; बाइबिल में इसका अर्थ है - किसी स्थानविशेष अथवा विश्व भर के ईसाइयों का समुदाय। बाद में यह शब्द गिरजाघर के लिये भी प्रयुक्त होने लगा। यहाँ पर संस्था के अर्थ में चर्च पर विचार किया जायगा।
हालाँकि भारत में, आजकल, "चर्च" नाम प्रचलित है, जिसे लोग सामान्यतः एक धार्मिक भवन समझते हैं, मगर ऐसा नहीं है, वास्तविक रूप में, चर्च, उस विशेष ईसाई समुदाय को अथवा उस लोगों के समूह को कहते हैं, इसके लिए सटीक हिंदी शब्दावली कलीसिया है। अंग्रेजी में, कलिसिया और गिरजाघर, दोनों को "चर्च" ही कहा जाता है। कलीसिया और गिरजाघर में अंतर समझने के लिए आप किसी देश के सांसद और संसद भवन का उदाहरण ले सकते हैं: "संसद", कुछ निर्वाचित सांसदों के समूह को कहा जाता है, जबकि संसद भवन, एक इमारत है, जिसमें संसद की बैठकें आयोजित होती हैं। उसी तरह से कलीसिया, लोगों के समूह को कहा जाता है, जबकि गिरजाघर एक भवन है, जिसमें धार्मिक गतिविधियाँ होती हैं। अंग्रेजी में, कलीसिया और गिरजाघर, दोनों को चर्च ही कहा जाता है, हालाँकि, अधिकांश बार जब "चर्च" शब्द का उल्लेख होता है, तो संकेत, भवन पर नहीं, बल्कि कलीसिया पर होता है। उदाहरण के लिए, "कैथोलिक चर्च" का मतलब किसी कैथोलिक गिरजाघर से नहीं, कैथोलिक कलीसिया से है।
इस बात से सहमत हैं कि ईसा ने केवल एक ही कलीसिया की स्थापना की थी, किंतु अनेक कारणों से ईसाइयों की एकता अक्षुण्ण नहीं रह सकी। फलस्वरूप आजकल ईसाई धर्म के बहुत से कलीसिया अथवा संगठन वर्तमान हैं जो एक दूसरे से पूर्णतया स्वतंत्र हैं। उनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है :
इसका संगठन सबसे सुदृढ़ है एवं विश्व भर के अधिकांश ईसाई इसके सदस्य हैं। रोमन कैथोलिक रोम के पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। ये स्वयं ही एक चर्च है।
पूर्व यूरोप के प्राय: सभी ईसाई जो शताब्दियों पहले रोम से अलग हो गए हैं, अधिकांश आर्थोदोक्स (Orthodox) कहलाते हैं। ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्क को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं। हर राष्ट्र का सामान्यतः अपना अलग ही चर्च होता है।
यह 16वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते और इसके बजाय बाइबिल में पूरी श्रद्धा रखते हैं। इस साम्प्रदाय में कई चर्च आते हैं।
यद्यपि प्रारंभ ही से ऐंग्लिकन चर्च पर प्रोटेस्टैंट धर्म का प्रभाव पड़ा, फिर भी अधिकांश ऐंग्लिकन ईसाई अपने को प्रोटेस्टैंट नहीं मानते।
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