अनुर्वरता, नपुंसकता या बाँझपन (अंग्रेज़ी: Infertility) मूलरूप में संतानोत्पत्ति की स्थायी अक्षमता की अवस्था है। मनुष्यों में एक वर्ष तक प्रयास करते रहने के बाद अगर गर्भधारण नहीं होता तो उसे बन्ध्यता या अनुर्वरता कहते हैं। यह केवल स्त्री के कारण नहीं होती। केवल एक तिहाई मामलों में अनुर्वरता स्त्री के कारण होती है। दूसरे एक तिहाई में पुरूष के कारण होती है। शेष एक तिहाई में स्त्री और पुरुष के मिले जुले कारणों से या अज्ञात कारणों से होती है।
पुरूषों में अनुर्वरता के कारण हैं
बहुत कम शुक्राणू या बिलकुल नहीं।
शुक्राणु की असामान्य आकृति या बनावट उसे सही ढंग से आगे बढ़ पाने में रोकती है।
कई बार पुरूषों में जन्मजात ऐसी समस्या होती है जो कि उनके शुक्राणुओं को प्रभावित करती है। अन्य सन्दर्भों में किसी बीमारी या चोट के परिणाम स्वरूप समस्या शुरू हो जाती है।
पुरूष के सम्पूर्ण स्वास्थ्य एवं जीवन शैली का प्रभाव शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। जिन चीज़ों से शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता घटती है उस में शामिल हैं - मदिरा एवं ड्रग्स, वातावरण का विषैलापन जैसे कीटनाशक दवाएं, धूम्रपान, मम्पस का इतिहास, कुछ विशिष्ट दवाँएं तथा कैंसर के कारण रेडिएशन।
औरतों में अनुर्वरता के कारण हैं - अण्डा देने में कठिनाई, बन्द अण्डवाही ट्यूबें, गर्भाशय की स्थिति की समस्या, युटरीन फाइवरॉयड कहलाने वाले गर्भाशय के लम्पस। बच्चें को जन्म देने में बहुत सी चीजें प्रभाव डाल सकती हैं। इनमें शामिल हैं, बढ़ती उम्र, दबाव, पोषण की कमी, अधिक वज़न या कम वज़न, धूम्रपान, मदिरा, यौन संक्रमिक रोग, हॉरमोन्स में बदलाव लाने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं।
यौनपरक संक्रमण के कारणभूत जीवाणु गर्भाशय और ट्यूबों की ग्रीवा में प्रवेश पा सकते हैं और अण्डवाही ट्यूबों के अन्दर की त्वचा को अनावृत (नंगा) कर देते हैं हो सकता है कि अन्दर पस बन जाए। एन्टीबॉयटिक बगैरह खा लेने से यदि वह ठीक भी हो जाए तो भी हो सकता है कि ट्यूब के अन्दर की नंगी दीवारें आपस में जुड़कर टूयूब को बन्द कर दें और अण्डे को या वीर्य को आगे न बढ़ने दें सामान्यतः गर्भ धारण के लिए अण्डा और वीर्य ट्यूबों में मिलते हैं तो उर्वरता होती है।
बच्चे को जन्म देने की सम्भावनाएं बढ़ती उम्र के साथ निम्न कारणों से घटती है
अधिकतर ३० से कम उम्र वाली स्वस्थ महिला को गर्भधारण की चिन्ता नहीं करनी चाहिए जब तक कि इस प्रयास में कम से कम वर्ष न हो जाए। 30 वर्ष की वह महिला जो पिछले छह महीने से गर्भ धारण का प्रयास कर रही हो, गर्भ धारण न होने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से परामर्श ले। तीस की उम्र के बाद गर्भ धारण की सम्भावनाएं तेजी से घटने लगती है। उचित समय पर और पूर्ण उर्वरकता के लिए अपनी जाँच करवा लेना महत्त्वपूर्ण होता है। अनुर्वरकता का इलाज कराने वाले दो तिहाई दम्पत्ति सन्तान पाने में सफल हो जाते हैं।
पुरूषों के लिए, डॉक्टर सामान्यतः उसके वीर्य की जांच से शुरू करते हैं वे शुक्राणु की संख्या, आकृति और गतिविधि का परीक्षण करते हैं। कई बार डॉक्टर पुरूष के हॉरमोन्स के लैवल की जांच की भी सलाह देते हैं।
महिला की अनुर्वरकता को परखने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित परीक्षण कर सकते हैं।
अनुर्वरकता का उपचार दवाओं से, शल्यक्रिया से, कृत्रिम वीर्य प्रदान करके अथवा सहायक प्रजनन तकनीक द्वारा किया जाता है। कई बार इन उपचारों को मिला भी लिया जाता है।
पुरुषों की अनुर्वरकता का आमतौर पर डॉक्टर निम्नलिखित तरीकों से उपचार करते हैं।
आमतौर पर औरतों की अनुर्वरकता का डॉक्टर निम्नलिखित तरीके से उपचार करते हैं
इस प्रक्रिया में, विशेष रूप से तैयार किए गए वीर्य को महिला के अन्दर इंजैक्शन द्वारा पहुँचाया जाता है। कृत्रिम वीर्य़ का उपयोग सामान्यतः तब किया जाता है
सहायक प्रजनन तकनीक में अनुर्वरित दम्पतियों की मदद के लिए अनेकानेक वैकल्पिक विधियां बताई गई हैं। आर्ट के द्वारा स्त्री के शरीर से अण्डे को निकालकर लैब्रोटरी में उसे वीर्य से मिश्रित किया जाता है और एमबरायस को वापस स्त्री के शरीर में डाला जाता है। इस प्रक्रिया में कई बार दूसरों द्वारा दान में दिए गए अण्डों, दान में दिए वीर्य या पहले से फ्रोजन एमबरायस का उपयोग भी किया जाता है। दान में दिए गए अण्डों का प्रयोग उन औरतों के लिए किया जाता है है जो कि अण्डा उत्पन्न नहीं कर पातीं। इसी प्रकार दान में दिए गए अण्डों या वीर्य का उपयोग कई बार ऐसे स्त्री पूरूष के लिए भी किया जाता है जिन्हें कोई ऐसी जन्मजात बीमारी होती है जिसका आगे बच्चे को भी लग जाने का भय होता है।
35 वर्ष तक की आयु की औरतों में इस की सफलता की औसत दर 37 प्रतिशत देखी गई है। आयु वृद्धि के साथ साथ सफलता की दर घटने लगती है। आयु के अतिरिक्त भी सफलता की दर बदलती रहती है और अन्य कई बातों पर भी निर्भर करती है। आर्ट की सफलता की दर बदलती रहती है और अन्य कई बातों पर भी निर्भर करती है। आर्ट की सफलता दर को प्रभावित करने वाली चीज़ों में शामिल है
तकनीक के सामान्य प्रकारों में शामिल हैं -
आई वी एफ का अर्थ है शरीर के बाहर होने वाला उर्वरण। आई वी एफ सबसे अधिक प्रभावशाली आर्ट है। आमतौर पर इसका प्रयोग तब करते हैं जब महिला की अण्डवाही नलियाँ बन्द होने हैं या जब पुरुष बहुत कम स्परम पैदा कर पाता है। डॉक्टर स्त्री को ऐसी दवाएं देते हैं जिससे कि वह मलटीपल अण्डे दे पाती है। परिपक्व होने पर, उन अण्डों को महिला के शरीर से निकाल लिया जाता है। लेब्रोटरी के एक वर्तन में उन्हें पुरूष के वीर्य से उर्वरित होने के लिए छोड़ दिया जाता है तीन या पांच दिन के बाद स्वास्थ्य/स्वस्थ भ्रूण को महिला के गर्भ में रख दिया जाता है।
जेड आई एफ टी भी आई वी एफ के सदृश होता है। उर्वरण लेब्रोटरी में किया जाता है। तब अति सद्य भ्रूण को गर्भाशय की अपेक्षा फैलोपियन ट्यूब में डाल दिया जाता है।
जी आई एफ टी के अन्तर्गत महिला की अण्डवाही ट्यूब में अण्डा और वीर्य स्थानान्तरित किया जाता है। उर्वरण महिला के शरीर में ही होता है।
आई सी एस आई में उर्वरित अण्डे में मात्र एक शुक्राणु को इंजैक्ट किया जाता है। तब भ्रूण को गर्भाशय या अण्डवाही ट्यूब में ट्रांस्फर (स्थानान्तरित) किया जाता है। इसका प्रयोग उन दम्पतियों के लिए किया जाता है जिन्हें वीर्य सम्बन्धी कोई घोर रोग होता है। कभी कभी इसका उपयोग आयु में बड़े दम्पतियों के लिए भी किया जाता है या जिनका आई वी एफ का प्रयास असफल रहा हो।
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