साक्षरता का अर्थ है साक्षर होना अर्थात पढने और लिखने की क्षमता से संपन्न होना। अलग अलग देशों में साक्षरता के अलग अलग मानक हैं। भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपना नाम लिखने और पढने की योग्यता हासिल कर लेता है तो उसे साक्षर माना जाता है।
किसी देश अथवा राज्य की साक्षरता दर वहाँ के कुल लोगों की जनसँख्या व पढ़े लिखे लोगों के अनुपात को कहा जाता है। अधिकाँश यह प्रतिशत में दर्शाया जाता है। परन्तु कभी कभी इसे प्रति-कोटि (हर हज़ार पर) भी दिखाया जाता है
इसको समझने का गणितीय सूत्र है: साक्षरता दर प्रतिशत = शिक्षित जनसंख्या/कुल जनसंख्या
अर्थात हर सौ लोगों में से कितने लोग साक्षर हैं।
आज़ादी के समय भारत की साक्षरता दर मात्र बारह (१२%) प्रतिशत थी जो बढ़ कर लगभग चोहत्तर (७४%) प्रतिशत हो गयी है। परन्तु अब भी भारत संसार के सामान्य दर (पिच्यासी प्रतिशत ८५%) से बहुत पीछे है। भारत में संसार की सबसे अधिक अनपढ़ जनसंख्या निवास करती है। वर्तमान स्थिति कुछ इस प्रकार है:
जब से भारत ने शिक्षा का अधिकार लागू किया है, तब से भारत की साक्षरता दर बहुत अधिक बढ़ी है। केरल हिमाचल, मिजोरम, तमिल नाडू एवं राजस्थान में हुए विशाल बदलावों ने इन राज्यों की काया पलट कर दी एवं लगभग सभी बच्चों को अब वहाँ शिक्षा प्रदान की जाती है। बिहार में शिक्षा सबसे बड़ी समस्या है जिस से सरकार जूझ रही है। वहाँ गरीबी की दर इतनी अधिक है कि लोग जीवन की मूल-भूत आवश्यकताएं जैसे रोटी कपडा और मकान का भी जुगाड़ नहीं कर पाते| वे किताबों का खर्च नहीं उठा पाते|
भारतीय नियम के अनुसार इस सूत्र में जो उन लोगों को भी शिक्षित गिना जाता है जो अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं तथा पैसे का हिसाब किताब करना जानते हैं अथवा समझ सकते हैं अथवा दोनों।
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