ब्रैकियोपोडा (Brachiopoda) अकशेरुकी प्राणियों का संघ है जिसके सभी सदस्य समुद्री प्राणी हैं। इस संघ के प्राणी द्विक्पाटी (bivalve) कवच (shell), अखंड (unsegmented) देवगुहा, द्विपार्श्वी (bilaterial) तथा स्पर्शकयुक्त मुख खाँचा (buccal groove) वाले हैं। ये द्विपार्श्व, असममित प्राणी हैं।
ब्रैकियोपोडा का शरीर द्विक्पाटी कवच के अंदर बंद रहता है। ये कवच क्रमश: पृष्ठ (dorsal) तथा अधर (ventral) कपाट कहलाते हैं। पृष्ठकपाट छोटा होता है। टेरिबैचला (Terebratula) तथा वाल्डहाइमिआ (Waldheimia) वंश के प्राणियों में अधर कपाट प्राय: लंबा होता है और चोंच की तरह पीछे की ओर बढ़ा रहता है। इस चोंच को ककुद (umbo) कहते हैं। वृंत के द्वारा प्राणी पत्थर या चट्टान से जुड़ा रहता है। क्रेनिया (Crania) वंश के प्राणियों में वृंत नहीं होता, क्योंकि इस वंश के प्राणियों का अधर कपाट चट्टान से जुड़ा रहता है।
प्रत्येक कपाट संगत प्रावार फ्लैप (malntle flap) से प्रच्छन्न रहता है। प्रावार उपकला (mantle epithelium) सूक्ष्म पैपिली (papillae) के रूप में वृद्धि करती है और कवच के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाती है। पैपिली जिन कोशिकाओं के बने होते हैं, वे कोशिकाएँ प्राय: सूक्ष्म शाखन प्ररूप की होती हैं। कवच की वृद्धि पैपिली पर निर्भर रहती है। प्रत्येक कवच का बाह्यस्तर कार्बनिक पदार्थ का बना होता है। इस स्तर के नीचे शुद्ध कैल्सियम कार्बोनेट का पतला स्तर रहता है तथा कैल्सियमी एवं आंशिक कार्बनिक पदार्थो का बना मोटा आंतर प्रिज्मीय स्तर (prismatic layer) रहता है। कवच के कपाट पेशी तंत्र द्वारा खुलते और बंद होते हैं। हिंज (hinge) रेखा पीछे और प्रावार गुहिका (mantle cavity) आगे होती है।
कवच को खोल देने पर दिखाई पड़ता है कि अधिकांश स्थान एक जटिल रचनावाले अंग ने घेर रखा है, जिसे लोफ़ोफ़ोर कहते हैं। लोफ़ोफ़ोर के अनुप्रस्थ खाँचे में मुँह स्थित रहता है। यह खाँचा पृष्ठ में सतत ओष्ठ द्वारा तथा अधर में स्पर्शकों की पंक्ति द्वारा घिरा रहता है। खाँचा बहुत बढ़ा रहता है और इसके दोनों किनारे दो बाहुओं का रूप ले लेते हैं। ये बाहु प्राय: सर्पिल वलित रहती है। स्पर्शक (tentacle) लंबे होते हैं और क़वच की दरार से बाहर निकल सकते हैं। स्पर्शक और प्रावार की सतह पर स्थित पक्ष्माभिकाएँ (cilia) अनी कक्षाघाती गति (lashing movement) द्वारा लोफ़ोफ़ोर की दो बाहुओं के सामने दूसरी ओर अंदर जानेवाली जल की दो धाराएँ उत्पन्न करती हैं। बाहर निकलने वाली जल की धारा दोनों बाहुओं के मध्य में होती है। कवच के अंदर उपर्युक्त दोनों जलधाराओं में से प्रत्येक लोफ़ोफ़ोर के स्पर्शकों के मध्य में जाती है, जहाँ पानी में तैरते हुए हलके खाद्य पदार्थ छन जाते हैं। ये पदार्थ दूसरी पक्ष्माभिका द्वारा मुँह के खाँचे में और वहाँ से मुँह में जाते हैं। भारी पदार्थ अधर प्रावारपालि पर रह जाते हैं और बाहर जानेवाली जलधारा द्वारा बाहर चले जाते हैं।
मुँह पक्ष्माभिकामय (ciliated) आहारनाल में खुलता है। आहारनाल की आवृति वी (V) की तरह होती है और इसमें थैली (sac) के आकार का आमाशय सम्मिलित है। आमाशय में शाखित नलियोंवाली पाचक ग्रंथियाँ खुलती हैं, जिसकी गुहा में अधिकांश पाचन होता है। आंत्र सीधी नली की तरह का होता है। वाल्डहाइमिआ में आंत्र अंत में पूर्ण बंद रहता है। लेकिन क्रेनिया और लिंगुला में गुदा रहती है। देहगुहा विस्तृत होती है तथा अधरापृष्ठी (dorsoventral) आंत्रयोजनी (mesentery) द्वारा दाहिने और बाएँ, दो भागों, में बँटी रहती है। अनुप्रस्थ आंत्रयोजनी भी होती है। यह लोफोफोर तथा स्पर्शक में जाती है और प्रावार में प्रावार कोटर (palliala sinus) के रूप में जाती है।
नर मादा प्राय: अलग अलग होते हैं। कुछ प्राणी उभयलिंगी (hermaphrodite) भी होते हैं। जनन अंग देहगुहा की उपकला से आंत्र के पास विकसित होते हैं। जनन ग्रंथियाँ मोटी, पीली पट्टी की तरह दिखाई पड़ती हैं। परिपक्व लिंगकोशिकाएँ देहगुहा में मुक्त होकर वृक्क से बाहर जाती हैं। कुछ वंशों में अंडों के विकास का प्रथम चरण वृक्क के पास स्थित भ्रूणधानियों (brood pouch) में पूरा होता है। यही वृक्क उत्सर्जन का भी कार्य करता है। ये वृक्क एक जोड़ा या कभी कभी दो जोड़ा होते हैं। अधिकांश ब्रैकियोपोडा में निषेचन माता पिता के कवच के बाहर होता है।
यह अल्प विकसित होता है। पृष्ठ आंत्र योजनी में एक अनुदैर्ध्य वाहिनी होती है, जिसके एक क्षेत्र में संकुचनशील आशय (contractile vesicle) होता है। यह आशय हृदय कहलाता है और आमाशय के पृष्ठ की ओर रहता है। अनेक वाहिनियाँ, जो आगे मुँह की और पीछे प्रावार एवं जनन अंगों की ओर जाती हैं, अंत में पूर्ण बंद हो जाती हैं। रक्त रंगहीन होता है।
परिग्रसनी (circumoesophageal) संयोजी द्वारा संयोजित अधिग्रसिका (supraoesophageal) तथा अधोग्रसनली गुच्छिका (suboesophageal ganglion) क्रमश: मुँह के सामने और पीछे रहती है। अधोग्रसनली से निकली तंत्रिकाएँ बाहु, पृष्ठप्रावार पालि अभिवर्तनी (adductor) पेशियों तथा दो छोटी छोटी गुच्छिकाओं में जाती हैं। इन गुच्छिकाओं से निकली तंत्रिकाएँ वृंत (peduncle) तथा अधरप्रावार पालि में जाती हैं। सभी गुच्छिकाएँ एवं परियोजियाँ (commissures) बाह्य त्वचा के निरंतर संपर्क में रहती हैं। प्रत्येक स्पर्शक में भी तंत्रिका जाती हैं। ब्रैकियोपोडा में किसी विशेष ज्ञानेंद्रिय की उपस्थिति ज्ञात नहीं है।
ब्रैकियोपोडा के लार्वा स्वतंत्र रूप से तैरते हैं। लार्वा के तीन खंड होते हैं (१) अग्र (२) मध्य तथा (३) पश्च। अग्रखंड ट्रोपोस्फियर (trophosphere) के मुखपूर्वी खंड की तरह होता है। मध्य भाग में प्रावार की दो पालियाँ होती हैं, जो आरंभिक होती हैं। पश्च भाग प्रावार पालि से छिपा रहता है और यह वृंत में परिवर्तित हो जाता है। प्रावार पालियों में से शूक (chaetae) के चार पूल निकलते हैं। बाद में ये पालियाँ अग्र खंड को घेरने के लिए आगे की ओर मुड़ जाती हैं। अबअग्र खंड से लोफ़ोफोर का विकास प्रारंभ होता है। कवच कपाट प्रावार पालियों पर बनने लगता है, जबकि पश्चखंड वृंत्त के रूप में वृद्धि करता है। देहगुहा एक जोड़ा कोष्ठ (pouch), या एक कोष्ठ, के रूप में आद्यंत्र (archenteron) से विकसित होती है। प्राय: विदलन (cleavage) अरीय (radial) होता है, किंतु एक स्पीशीज में सर्पिल विदलन भी होता है।
ब्रैकियोपोडा कैंब्रियन (cambrain) काल से ही समुद्र की तली में निवास करते हैं, किंतु उस काल में ये दूर तक नहीं फैले थे। पुराजीवी महाकल्प (Palaeozoic era) की चट्टानों में बैकियोपोडा के ४५६ वंश तथा मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic era) की चट्टानों में १७७ वंश मिलते हैं। ये वंश उस समय के अकशेरुकी संसार के महत्वपूर्ण जंतुसमुदाय थे। ब्रैकियोपोडा के ७० वंश, जिनमें लगभग २२५ स्पीशीज हैं, वर्तमान काल में मिलते हैं। आधुनिक लिंगुला (Lingula) वंश तथा ऑर्डोविशन कल्प के लिंगुला सर्वसम हैं। ५० करोड़ वर्ष पुराने इस वंश को ज्ञात प्राणियों का सबसे पुराना वंश होने का गौरव प्राप्त है। अधिकांश वर्तमान ब्रैकियोपोडा उथले जल में रहते हैं और कुछ गहरे जल में। फॉसिल के रूप में प्राप्त प्राणियों के कवचों के विस्तार, अलंकरण (ornamentation) तथा आकृतियाँ विभिन्न होती हैं। जीवित ब्रैकियोपोडाओं के कवच हरे, लाल भूरे या सफेद होते हैं। इन कवचों पर अरीय या संकेंद्रीय चिह्न होते हैं। ये कवच चिकने, या शिरायुक्त (costate), या शूलयुक्त होते हैं।
ब्रैकियोपोडा संघ दो वर्गो में विभक्त है :
इस वर्ग के प्राणी के दोनों कवच लगभग समान होते हैं। कवच में हिंज नहीं होता। ये दोनों कवच पेशी से बँधे होते हैं तथा इनकी गठन शृंगी होती है। इनमें गुदा रहती है। लिंगुला तथा क्रेनिया इसके वर्तमान वंश हैं। लिंगुला हिंद महासागर तथा प्रशांत महासागर में मिलते हैं। लिंगुला पंक में बिल बनाकर रहना पसंद करता है।
इस वर्ग के प्राणियों के दोनों कवच असमान होते हैं। इसमें वृंत के लिए ककुद (umbo) रहता है तथा हिंज भी रहता है। गुदा नहीं होती। इसके वर्तमान जीवित वंश वाल्डेहाइमिआ तथा टेरिब्रैचला हैं।
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