दैलेख जिला नैपाल देस की मध्य पश्चिमांचल विकास क्षेत्र आ भेरी अंचल का एगो जिला हवे। ई जिला एगो विकट पहाड़ी जिला कुल की श्रेणी मे गिनल जाला। जिला क भूगोलीय आकृति तिभुज नियर बा। इहाँ क सबसे ऊँच चोटी महाबुलेक हवे आ सबसे कम ऊँचाई वाला जगह तल्लो डुंगेश्वर नाँव क अस्थान ह। ए जिला क सीमा पुरुब ओर भेरी अंचल की जाजरकोट जिला की साथे, पच्छिम ओर सेती अंचल की अछाम जिला की साथे, दक्खिन ओर भेरी अंचल की सुर्खेत जिला आ उत्तर ओर कर्णाली अंचल की कालीकोट जिला की साथै जुड़ल बाटे।
ए जिला की भूगोलीय बनावट के मुख्यरूप से तीन हिस्सा में बाँटल गइल बा -
ए अस्थान क नाँव "दैलेख" कइसे पड़ल एकरी बारे में कई गो कहानी प्रचलित बा। एगो कहानी की मोताबिक प्राचीन काल में ई स्थान महर्षि दधीचि क तपोभूमि रहल आ एही आधार पर एके "दधिलेख" कहल गइल आ फिन बाद में इहे दधिलेख बदल के दैलेख बनि गइल। दूसरा कहानी की मोताबिक प्राचीन काल में यह स्थान देवता लोगन का निवास स्थान रहल आ देवलोक कहल जाव जेवन बाद में बिगड़ के दैलेख हो गइल। एगो तीसरका मत इहो बा कि इहँवा तमाम दही दूध मिलेला आ एही कारण ए के दैलेख कहल जाला।
ए जिला क नाँव भी जिला मुख्यालय दैलेख की नाँव पर रक्खल गइल बा।
दैलेख जिला बाइसे राज्यकाल में खस राज्य क जाड़ा क राजधानी की रूप में परिचित दुल्लु अउरी बेलासपुर दू गो राज्यन में बंटल रहे। प्राचीन आ मध्यकाल में गू गो राज्यं में बंटल ए जिला के शाहकालीन नेपाल पुर्नएकीकरण अभियान में गोरखाली राजकुमार बहादुर शाह की द्वारा सन 1789 की आसपास नेपाल राज्य में जोड़ला क तथ्य इतिहासी वर्णन में मिलेला।
जिला की विभिन्न जगह पर अस्थापित मन्दिर, देवल आ शिलालेख आदि ए जिला की इतिहास क आजो परिचय दे रहल बाड़ें। कहल जाला कि की दैलेख जिला मुख्यालय पुरानो बजार में प्रसिद्ध कोतगढी पुराना समय में एगो किला रहे। वि.सं. 2009 साल पहिले अछाम, सुर्खेत आ जाजरकोट जिलन के कुछ क्षेत्र भी एही जिला में जुड़ल रहे। राजा रजौटा उन्मुलन ठीक 2016 की बाद आधुनिक नेपाल क प्रशासनिक ढाँचा बमोजिम गौडा अउरी 2018 साल बद ई जिला पूर्व मे भैरीलेक अउरी कट्टीभञ्ज्याङ्ग, उत्तर में महाबुलेक, पश्चिम में कर्णाली नदी, आ दक्षिण में तीनचुला की अन्दर आवे वाला इलाका के दैलेख जिला में मिला के सीमांकन क इललोग। राणा कालिन प्रधान मन्त्री जंग बहादुर राणा क बचपन दैलेख जिला की दुल्लु क्षेत्र में बीतल हवे। दैलेख जिला क लोग वि.सं. 2007 साल की क्रान्ति में पश्चिम नेपाल में सबसे आगे रहे। तत्कालीन भुमीगत नेपाली काँग्रेस पाटी के दैलैख की कटुवाल क निवासी शेर सिंह खड्का कालिकोट, जुम्ला, अछाम, डोटी आदी पश्चिमी जिलन पर कब्जा कइले रहलें। अइसहीं वि.सं. 2036 की जनमत संग्रह में आ 2046 की जन आन्दोलन में भी दैलेख क रंग बहादुर शाही, बिनोद कुमार शाह, मणी राज रेग्मी गणेश बहादुर खड्का, शिव राज जोशी, रंग नाथ जोशी, गोविन्द बन्दी, हेम बहादुर शाही, हर्क बहादुर शाही, पुर्ण ब. शाही, भद्र ब. शाही, तर्क ब. बडुवाल, बजिर सिंह बि.क. चिदानन्द स्वामी नियर बहुत नेता लोग साथ दिहल। वि.सं 2063 की जन आन्दोलन में भी उपर गिनावल लोगन की संघे मिल के कुछ नया नेता लोग जैसे:- थिर ब. कार्की, रत्नेश श्रेष्ठ, कृष्ण बी.सी. राज ब. बुढा, राम प्रसाद इत्यादी लोग हिस्सा लिहल।
दैलेख जिला क बिस्तार अक्षांस: 28.35" से 29.8" उत्तर ले आ पुरुब पच्छिम बिस्तार देशान्तर 81.25" से 81.53" पूर्व ले बाटे। एकर सीमा बनावे वाला अउरी जिला पुरुब ओर जाजरकोट, पश्चिम ओर अछाम, उत्तर में कालिकोट आ दक्खिन में सुर्खेत जिला बाटे।
जिला क कुल क्षेत्रफल: 1502 वर्ग कि.मि. (देश का कुल भू-भाग का 1.02%) बाटे आ इहाँ सब से ऊँच अस्थान: समुद्र सतह से 4168 मीटर (महाबुलेक) आ सबसे नीचाई वाला अस्थान 544 मीटर (तल्लो डुङ्गेश्वर) बाटे।
राजनैतिक हिसाब से दैलेख जिला के 49 गा.वि.स., 2 नगरपालिका, 2 निर्वाचन क्षेत्र आ 11 इलाकन में विभाजित कइल गइल बा।
नदी तट से हिमालय तक फइलल इहँवा की जमीनी भूमि आकार के तीन हिस्सा में विभाजित कइल जाला:
यह भूमि आकार वाला इलाका जिला क क्रम से करीब 10%, 37%, आ 53% रकबा घेरले बाड़ें। मध्य पहाड़ी क्षेत्र में जिला का 85% से भी ज्याद जनसंख्या आ बस्ती केन्द्रित बा।
दैलेख जिला में पहिले कुल 60 गा.वि.स. (ग्राम पञ्चायत) रहे। 5 गा.वि.स.के मिला के नारायण नगरपालिका बनावल गइल, आ 6 गा.वि.स. के मिला के दुल्लु नगरपालिका बनावल गइल। ए समय ए जिला में 49 गा.वि.स. आ दू गो नगरपालिका बाटे।
दैलेख जिले में बिभिन्न जाती तथा बिभिन्न धर्म का क लोग रहेला। इहँवा हिन्दू धर्म की लोगन क बिसेस अधिकता बा। इहाँ हिन्दू लोगन का कुल तिहुआर मनावल जाला। दशैं, तिहार, माघी, होरी, नयां बर्ष, रक्षावंधन, तीज इत्यादी कुल तिहुआरण के हिन्दू धर्मावलम्बी की अलावा अन्य धर्म क लोग भी मनावत देखल जाला। ई जिला बहु-जाती बहु-भाषी भइला की बावजूद भी इहाँ हिन्दू संस्कृती के ढेर मान्यता दिहल जाला। हिन्दू त्यौहारन की दिन सरकारी छुट्टी होला और जगह-जगह पर मेला लागे ला।
दैलेख जिला बिकट पहाड़ी जिला जरुर हवे बाकी एही से ई पर्यटन खातिर एगो रमणीय अस्थान बनि गइल बा। इहाँ पुराना जमाना क बनल देवल, किला, दरगाह आदी जिला की हर हिस्सा में देखाई देला। जैसे:-
ए अस्थानन पर कौनो न कौनो दैविक घटना जरुर मिलेला। कहीं पानी में आग क ज्योती बरत मिलेला त कहीं जमीन में से धूर निकलता लउकेला। कहल जाला कि महाभारत की समय में युधिष्ठिर का मुकावला नागरुप क राजा नहुष की साथ एही पञ्चकोशी अस्थान पर भइल रहे। राजा युधिष्ठिर नाग रुपी नहुक के ज्ञान दिहलें तब जाके नाहक के मुक्तीमिलल। नाग रुपी नहुष क शिर श्रीस्थान पर, गोड़ पादुका आस्थान पर, नाभ नाभिस्थान पर, कक्ष कोटिला पर आ एही तरे धुलेश्वर पर धुलगिरल रहे।
एकरी साथे ए जिला में पर्यटक लोगन का मन मोहित करे वाला कई गो अस्थान बाटे।
जिला की मध्यपश्चिम भाग से हो के बहत छामगाड आ पूर्व के तर्फ बहत लोहोरे नदिन क संगम चुप्रा दैलेख जिला क बहुत आकर्षक भूगोलीय स्थल मानल जाला। खस राजा नागराज क हिमाली राज्य क जाड़ा क राजधानी दैलेख दुल्लुक्षेत्र में पञ्चकोशी तीर्थस्थल में श्रीस्थान आ नाभिस्थान की भितर नित्य प्रज्वलित ज्वाला जी नेपाल क राष्ट्रिय स्तर क धार्मिक, इतिहासी अउरी पर्यटकीय अस्थान हवे। भुर्ती गांव में एक साथ रहे 22 देवल के विश्व सम्पदा सम्भाव्य सूची में रखल गइल बाटे। रावतकोट गावं में पञ्चदेवल, जिला मुख्यालय पर कोत गढी आ दुल्लु क्षेत्र में रहे कीर्ति खम्बा, सात खम्बा, पटङ्गेनी दरबार, जंगबहादुर राणा के पिता बाल नरसिंह कुवँर का समाधी स्थल, बालेश्वर मन्दिर जेवना क चिनाई पुराना जमाना में उर्दी क बेसन भें के बनावल सीमेंट नियर चीज से कइल गइल बा, देखे लायक बाटे। एकरी आसपास की गो पौराणिक शिलालेख इहाँ क प्रमुख पर्यटन अस्थान हवें।
दैलेख की भूगोलीय दृष्टी से पहाडी जिला होखाले की वजह से इहाँ बहुत पर्यटकिय क्षेत्र बाटे। नेपाल क परमुख मानल जाए वाला पंचकोशी तिर्थस्थल एही जिला में बाटे। एकरी साथै साथ नेपाल क एकलौता प्रमुख शिलालेख दुल्लु स्थित कीर्तिखम्बा आ वैज्ञानिकन की अनुसार मृत जवालामुखी मानल जाए वाली चोटी धुलेश्वर एही जिला में अवस्थित बाटे।
साथे साथ नेपाल क एक मात्र पेट्रोल, गैस आ मिट्टितेल क खानि एही जिला में मिलले क सम्भावना बाटे। प्राचिन मत अनुसार डुन्गेश्वर में दधिचि ऋषि के आश्रम रहल ई विश्वास कइल जाला। एही तरे बैक का लेक के महाभारत की पात्र दोर्णाचार्य क तपोभूमी द्रोणाचल पर्वत कहल जाला।
इहाँ पर कई धार्मिक सम्पदा रहल बाड़ी। यहां के कुछ धार्मिक सम्पदाओं का नाम प्रकार नीचे दिहल जात बा-
नुवाकोट से लेके भारत की गढ़वाल तक की इलाका में विभिन्न जगह में प्राचिन काल में देवल निर्माण कइल गइल बा। बाकिर सब से ढेर संख्या मे देवल दैलेख जिला मिलेला। स्थानिय जन विश्वास अनुसार महाभारत काल के पात्र पाण्डवों द्वारा निर्माण किए बताए गए ये देवल क्यों और किस प्रयोजन के लिय निर्माण किएगए हें, इस का आज तक कोही ठोस प्रमाण नहीं है। दैलेख जिला कि विभिन्न क्षेत्र में अस्थापित देवल अउरी अन्य सम्पदा निम्नलिखित बाटे:
पर्यटकीय दृष्टिकोण से उपर उल्लिखित सभी सम्पदा स्थित स्थानों में सडक की पहुंच दै। शित काल में सवारी साधन से यात्रा करना सम्भव है। यह सम्पदाएं तक पहुंचने के लिय जिला विकास समिति और गावं विकास समिति के ओर से निरन्तर लगानी होरही है। जितना पहुंच के लिए सडक में लगानी हुइ है, इस तुलना में यह सम्पदाओं का संरक्षण और सम्बर्धन में लगानी हो नही पारहा है। स्थानीय समुदाय को भी इनकी महत्वा के विषय में समझ नहोने के कारण यह अमूल्य सम्पदायें जीर्ण अवस्था में पहुंचे हें।
दैलेख जिला को विभिन्न जात जातीओं का उद्गम स्थल के रूप में भी लिया जाता है क्यों की इस जिले के विभिन्न स्थानों से उद्गम हुए जाती के लोग नेपाल और भारत के विभिन्न जगहों पर बसे हुए हें। जैसे की :-
इत्यादी जगहों से उपर उल्लेखित जातिन क पैदाइश भइल मानल जाला। उपर उल्लेखित जात के लोग संसार की कवनों भी कोने में बसल होखें बाकी ऊ लोग अपना उद्गम स्थान के रूप में दैलेख जिला के जरूर पहिचाने ला।
दैलेख जिला के 49 गा. वि. स. (गाउं विकाश समिती/ ग्राम पञ्चायत), 2 नगर पालिका, 2 सांसदीय क्षेत्र अउरी 11 ब्लॉकन में विभाजीत कइल गइलबाटे। दैलेख जिला के गा. वि. स./नगरपालिका के नाम सूची नीचे दिहल जात बा:-
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