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  • समय।|>>]] |6row= |01= [[त्रुटि: अमान्य समय। १|१]] |02= [[त्रुटि: अमान्य समय। |]] |03= [[त्रुटि: अमान्य समय। ३|३]] |04= [[त्रुटि: अमान्य समय। ४|४]] |05=...
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  • तिथयः । एकः मासः = पक्षौ ( पूर्णिमातः अमावस्यापर्यन्तः कालः कृष्णपक्षः; अमावस्यातः पुनः पूर्णिमापर्यन्तः कालः शुक्लपक्षः। एकः ॠतुः = मासौ । एकम् अयनम्...
  • Thumbnail for नासतो विद्यते भावो...
    [गीता .११] इति प्रस्तुतम् । स एव च अविनाशि तु तद्विद्धि [गीता .१७] अन्तवन्त इमे देहां [गीता .१८] इत्यनन्तरमुपपाद्यते । अतो यथोक्त एवार्थम् ॥.१६॥ असदः...
  • Thumbnail for सुखदुःखे समे कृत्वा...
    गीता, अ. , श्लो. ३१ गीता, अ. १, श्लो. ३७ गीता, अ. , श्लो. ३२ गीता, अ. १, श्लो. ४४ गीता, अ. , श्लो. ३२, ३७ गीता, अ. १, श्लो. ३६ गीता, अ. , श्लो. ३३...
  • Thumbnail for कुतस्त्वा कश्मलमिदं...
    कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ ॥ कुतः, त्वा, कश्मलम्, इदम्, विषमे, समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टम्, अस्वर्ग्यम्...
  • Thumbnail for हिन्दूधर्मः
    बिल्लियन्), . बाङ्गलादेश (१२ मिलियन), . श्रीलङ्का (२५ लक्षं), . संयुक्तराज्यसंस्था (.० मिलियन) . पाकिस्तान (३३ लक्षं), . दक्षिण आफ्रिका (१२ लक्षं), . संयुक्तराज्यं...
  • विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ॥ अयं भगवद्गीतायाः चतुर्थोध्यायस्य ज्ञानकर्मसंन्यासयोगस्य द्वितीयः() श्लोकः । एवं परम्पराप्राप्तम् इमं राजर्षयः...
  • Thumbnail for योगस्थः कुरु कर्माणि...
    गुणः . योग उच्यते = योगः + उच्यते - विसर्गसन्धिः (लोपः) सिद्ध्यसिद्ध्योः = सिद्धिश्च असिद्धिश्च, तयोः - द्वन्द्वः । १. त्यक्त्वा = त्यज् + क्त्वा । . भूत्वा...
  • पचन्, [त्] त्रि, (पचति यः । “लटः शत्रिति ।” । १२४ । इति शतृप्रत्ययः ।) पाक- कर्त्ता । इति व्याकरणम् ॥
  • कियद्भिर्वर्षैर्भविष्यत्यन्तरक्षयः।। .१ ।। सत्वानि च कथं नाथ! रक्षिष्ये मधुसूदन!। त्वया सह पुनर्योगः कथं वा भविता मम।। . ।। मत्स्य उवाच। अद्य प्रभृत्यनावृष्टिर्भविष्यति
  • सुभाषितम्॥१॥ सुभाषितेन गीतेन युवतीनां च लीलया। मनो न भिद्यते यस्य सयोगी ह्यथवा पशुः॥॥ विद्याप्रशंसा अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति। व्ययतो वृद्धिमायाति
  • ॥ १ ॥ .१bv सेवया रोगतो ऽपि वा सेव्याम्भो-ज-हिम-क्षीरि-वल्क-कल्काज्य-लेपितान् । धारयेद् योनि-वस्तिभ्याम् आर्द्रार्द्रान् पिचु-नक्तकान् ॥ .२cv धारयेद्
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