हंबीरराव मोहिते मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में प्रमुख सैन्य कमांडर थे। उन्होनें एक सक्षम सैन्य जनरल के रूप में छत्रपारी शिवाजी महाराज के लिए कई अभियानों को अंजाम दिया और बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के अधीन काम किया।
हंबीरराव मोहिते | |
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उपनाम | सरनौबत |
जन्म | 1630 सतारा, अहमदनगर सल्तनत (अब महाराष्ट्र में) |
देहांत | 1687 (आयु 57) वाई, मराठा साम्राज्य |
निष्ठा | मराठा साम्राज्य |
सेवा/शाखा | मराठा सेना |
सेवा वर्ष | 1670-1687 |
उपाधि | सेनापति (सैन्य जनरल) |
सम्बंध | सोयाराबाई (बहन), ताराबाई (बेटी), तुकाबाई (चाची) |
हंबीरराव का जन्म मराठा के मोहिते-चव्हाण कबीले में एक सैन्य सरदार संभाजी मोहिते के यहाँ हुआ था। वह 2 भाइयों के साथ बड़ा हुए। जिनका नाम हरिफ़्राव और शंकर था और उनकी दो बहने भी थीं जिनके नाम सोयराबाई और अन्नुबाई थें। सोयराबाई ने बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज से शादी की, जिससे हम्बीरराव छत्रपति शिवाजी महाराज के साले बन गए। उनकी धर्मपत्नी तुकाबाई का विवाह शिवाजी के पिता शाहजी भोसले से हुआ था और उन्होंने मोहितों को शाही पक्ष में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्रतापराव गूजर की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज ने हंबीरराव को अपना सेनापति (कमांडर) बनाया।
बुरहानपुर दक्षिणी और उत्तरी भारत को जोड़ने वाला एक प्रमुख व्यापार केंद्र था और शहर में कुल 17 व्यापार केंद्र थे। 30 जनवरी 1681 को हंबीरराव मोहिते और संभाजी ने अचानक बुरहानपुर पर आक्रमण कर दिया। उस समय बुरहानपुर का सूबेदार जहान खान था। बुरहानपुर में केवल 200 सैनिक तैनात थे, जबकि हंबीरराव के पास 20,000 की सेना थी। मुगलों में हम्बीरराव की सेना का विरोध करने की ताकत नहीं थी। इस लड़ाई में मराठों को 1 करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति मिली थी।
17 मार्च 1683 को, हंबीरराव ने कल्याण - भिवंडी की लड़ाई में औरंगजेब के सबसे शक्तिशाली सरदारों में से एक, राणामस्त खान को हराया था।
मोहिते की बहन ने 1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद संभाजी को हटाने और अपने दस वर्षीय बेटे राजकुमार राजाराम को सिंहासन पर बिठाने की कोशिश की। मोहिते उस समय रायगढ़ से दूर थे और उन्हें वापस जाने के लिए कहा गया। उनकी वापसी पर उनकी बहन ने उनसे मराठा साम्राज्य के अगले छत्रपति के रूप में अपने बेटे को सेना का समर्थन सुनिश्चित करने का अनुरोध किया।
हंबीरराव संभाजी को गिरफ्तार करने के सिलसिले में पन्हाला गए लेकिन उन्होंने निष्ठा बदल दी और अपनी ही बहन के खिलाफ शिवाजी के बड़े बेटे का समर्थन किया। इसने कदम ने संभाजी के प्रवेश और सोयराबाई द्वारा रची गई साजिश की विफलता को सुनिश्चित किया।
हंबीरराव ने 1687 में वाई प्रांत के पास लड़ी गई एक लड़ाई में सरजा खान को हरा दिया, लेकिन एक तोप का गोला उनकों को लग गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
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