सैमुएल जॉन्सन (Samuel Johnson ; 18 सितम्बर 1709 – 13 दिसम्बर 1784)) अंग्रेजी कवि, निबन्धकर, आलोचक थे। इन्हें प्रायः 'डॉ जॉन्सन' कहा जाता है। १८ वीं शताब्दी में अलेक्जैंडर पोप के बाद डॉ जॉन्सन इंग्लैंड की साहित्यिक गतिविधि को विशेष प्रभावित किया। उन्होंने न तो प्रचुर मात्रा में ही लिखा और न निबंधों एवं कतिपय आलोचनात्मक रचनाओं के अतिरिक्त कविता, नाटक या अन्य क्षेत्रों में किए गए उनके साहित्य प्रयासों का आज कोई विशेष महत्व ही है, फिर भी उनके गंभीर व्यक्तित्व का प्रभाव उस समय के अधिकांश छोटे बड़े लेखकों पर पड़ा।
डॉ॰ जॉन्सन का जन्म सन् १७०९ ई. में लिचफील्ड में एक निर्धन पुस्तकविक्रेता के घर हुआ था। जीवन की प्रारंभिक अवस्था से ही उन्हें विषम परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा। दारिद्र्य की विभीषका परिवार पर सदा मँडराया करती। लिचफ़ील्ड के ग्रामर स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने आवसफोर्ड के पेंब्रोक कालेज में प्रवेश किया। लेकिन वहाँ ये केवल १४ महीने रह पाए और इन्हें बिना डिग्री लिए ही कालेज छोड़ देना पड़ा। सन् १७३१ ई. में इनके पिता की मृत्यु हो गई जिससे परिवार का आर्थिक संकट और भी अधिक बढ़ गया। स् १७३५ ई. में इन्होंने श्रीमती एलिज़ाबेथ पोर्टर नाम की विधवा से जिनकी अवस्था इनसे काफी अधिक थी, विवाह किया। इसी समय इन्होंने लिचफील्ड के पास एक निजी स्कूल भी प्रारंभ किया जो चल नहीं पाया। अंत में बाध्य होकर इन्होंने सन् १७३७ में लंदन के लिये प्रस्थान किया और साहित्य को जीवनयापन के माध्यम के रूप में अपनाया।
डॉ॰ जॉन्सन की प्रथम रचना, जिसने लोगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित किया, 'लंदन' शीर्षक कविता थी। पोप ने भी इनकी प्रंशसा की। सन् १७४४ में इन्होंने अपने मित्र रिचर्ड सैवेज की जीवनी लिखी। कतिपय प्रकाशकों के सुझाव पर इन्होंने अंग्रेजी भाषा का शब्द कोश बनाने कार्य हाथ में लिया। प्रकाशन में सहायता मिलने की आशा से इन्होंने शब्दकोश की योजना लार्ड चेस्टरफील्ड के पास भेजी लेकिन जैसे प्रोत्साहन की अपेक्षा थी, वह मिला नहीं। सात साल के कठोर परिश्रम के बाद जब शब्दकोश प्रकाशित हुआ लार्ड चेस्टरफील्ड ने उसके संबंध में 'वर्ल्ड' (World) नामक पत्रिका में दो पंशसात्मक पत्र लिखे। डॉ॰ जॉन्सन ने इस थोथी प्रशंसा से चिढ़कर उन्हें जो उत्तर दिया वह न केवल उनके व्यक्तित्व की गरिमा एवं उनके आत्मसंमान के भाव का परिचायक है, वरन् भावुकता के क्षणों में उनकी भाषाशैली कितनी सरल, ओजस्वी एवं प्रवाहमय हो सकती थी, इसका भी प्रमाण प्रस्तुत करता है।
सन् १७४९ ई. में इनकी कविता 'वैनिटी ऑफ ह्यूमन विशेज' प्रकाशित हुई। इसमें मनुष्य की विभिन्न आकांक्षाओं की निरर्थकता पर उदाहरण सहित विचार है। कार्डिनल ऊल्जे के पतन से शक्ति की निरर्थकता सिद्ध होती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलिलियो को भी अपने ज्ञान के लिये अत्याधिक मूल्य चुकाना पड़ा।
इनका एक नाटक 'आइरीन' लगभग इस समय प्रकाशित हुआ। उस समय के प्रख्यात अभिनेता डेविड गैरिक ने इसे रंगमंच पर प्रस्तुत किया और लेखक को इससे ३०० पौंड मिले भी, लेकिन नाटकीयता की दृष्टि से वह असफल ही कहा जायगा। पूरा नाटक पात्रों के बीच नैतिक विषयों पर वार्तालाप के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
सन् १७५९ में 'रासेलाज' नामक शिक्षापद रोमांस प्रकाशित हुआ जिसकी रचना इन्होंने एक सप्ताह में अपनी मृत माँ की अंत्येष्टि के व्यय तथा उनके लिया गया कर्ज चुकाने के निमित्त की थी। अबीसीनिया का युवराज रासेलाज़ राजसी सुखों से ऊबकर अपनी बहिन तथा एक वृद्ध एवं अनुभवी दार्शनिक के साथ मिस्र देश चला जाता है। उसका उद्देश्य जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का अनुभव प्राप्त करना है। एक साधारण कहानी के माध्यम से लेखक सुखी जीवन की खोज पर अपने विचार व्यक्त करता है।
डॉ॰ जॉन्सन ने 'रैंबलर' तथा 'आइडलर' नाम की दो पत्रिकाएँ भी एक के बाद दूसरी निकालीं। इनमें इनके निबंध प्रकाशित होते रहे।
साहित्यालोचन के क्षेत्र में भी इन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया। शेक्सपियर पर विद्वत्तापूर्ण निबंध लिखने के अतिरिक्त इन्होंने अंग्रेजी कवियों के संबंध में 'लाइव्स ऑव दि पोएट्स' नामे एक रोचक ग्रंथ भी लिखा।
सन् १७६२ में इनके लिये सौ पाडंड वार्षिक की पेंश स्वीकृत हुई और इन्हें आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिली। पेंशन के साथ अपनी लेखनीं को भी विश्राम दे दिया। जैसा इन्होंने स्वयं स्पष्ट शब्दों में कहा है, लेखन इनके लिये व्यवसाय मात्र था जिससे रोजी रोटी चलती थी। सन् १७६४ में 'लिटरेरी क्लब' की स्थापना हुई जिसके सदस्यों में बर्कं, गोल्डस्मिथ, बॉस्वेल, गैरिक, गिवन और रेनाल्ड्स आदि थे। डॉ॰ जॉन्सन क्लब के एकछत्र सम्राट से थे। जेम्स वॉल्वेल ने इनकी दिन प्रति दिन की बातों के आधार पर इनका बृहत् जीवनवृत्तांत लिखा जो अंग्रेजी साहित्य की अक्षय निधि है। सन् १७८४ में इनकी मृत्यु हुई।
डॉ॰ जॉन्सन की प्रत्येक रचना में नैतिकता का स्पष्ट आग्रह देखने को मिलता है। 'आइरीन' तथा 'रासेलाज़' में कहानी गंभीर विचारों की अभिव्यक्ति का निमित्त मात्र है। संभवत: इसी कारण इनकी भाषा में भी कृत्रिम दुरूहता का दोष आ गया है। लेकिन जब कभी इन्होंने हृदय की सच्ची भावनाओं की अभिव्यक्ति की, इनकी शैली में प्रवाह और स्वाभाविकता का गुण आया। जीवन में इन्हें बड़े संकट झेलने पड़े। फिर भी इनके स्वभाव में रुक्षता का दोष नहीं आया। सहानुभूति और उदारता के गुण इनमें कूट कूटकर भरे थे। १८ वीं शताब्दी के अधिकांश साहित्य में हम सामाजिकता पर जोर पाते हैं। डॉ॰ जॉन्सन ने भी अपनी रचनाओं द्वारा व्यक्तिपक्ष की तुलना में सामाजिक पक्ष को महत्व दिया।
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