शक्ति वर्ष 1982 में रिलीज़ हुई एक प्रसिद्ध हिंदी फिल्म है, जिसका निर्देशन प्रख्यात फ़िल्मकार रमेश सिप्पी ने किया है।
शक्ति | |
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शक्ति का पोस्टर | |
निर्देशक | रमेश सिप्पी |
लेखक | सलीम-जावेद |
निर्माता | मुशीर आलम मुहम्मद रियाज़ |
अभिनेता | दिलीप कुमार अमिताभ बच्चन राखी स्मिता पाटिल कुलभूषण खरबंदा अमरीश पुरी अनिल कपूर |
छायाकार | एस.एम.अनवर |
संपादक | एम.एस.शिंदे |
संगीतकार | राहुल देव बर्मन |
प्रदर्शन तिथियाँ |
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लम्बाई | 167 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
इस फिल्म से पहली बार रमेश सिप्पी ने अपने घरेलू बैनर ‘सिप्पी फिल्म्स’ से बाहर जाकर निर्माता मुशीर-रियाज़ की कंपनी एम.आर. प्रोडक्शन्स के लिए फिल्म का निर्देशन किया। अपने निर्माण के दौरान ये फिल्म चर्चा में रही और फिल्म प्रेमियों में इस फिल्म काफी उत्सुकता बन गयी क्योंकि इस फिल्म में पहली बार अभिनय जगत के महारथी समझे जाने वाले दो कलाकार- दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन पहली बार एक साथ काम कर रहे थे।
इस फिल्म का लेखन सलीम-जावेद की सफल जोड़ी ने किया था जो इससे पहले रमेश सिप्पी के लिए अनेक सफल फ़िल्में- अंदाज़ (1971), सीता और गीता (1972) , 'शोले ' (1975) और शान (1980) का लेखन कर चुके थे। रमेश सिप्पी 'मदर इंडिया' की तरह एक फिल्म बनाना चाहते थे जिसमे पिता को अपने आदर्शों के लिए पुत्र का बलिदान करते हुए दिखाया जाए। उन्होंने शिवजी गणेशन की एक तमिल फिल्म के अधिकार खरीदकर अपने लेखकों की टीम सलीम-जावेद के साथ मिलकर उस फिल्म की कहानी को विकसित किया और ‘शक्ति’ फिल्म की स्क्रिप्ट को तैयार किया। 'शक्ति' फिल्म की कहानी, पटकथा और प्रस्तुतिकरण में सलीम-जावेद की पिछली फिल्म दीवार (1975 ) का साफ़ असर दिखाई देता है जो स्वयं ‘मदर इंडिया’ और 'गंगा जमुना' से प्रेरित थी ।
अश्विनी कुमार एक कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी है। अश्विनी कुमार कुख्यात गैंगस्टर जे.के. के एक साथी यशवंत को गिरफ्तार कर लेता है। उसे छुड़ाने के लिए जे.के. अश्विनी कुमार के बेटे विजय को उठा लेता है और अश्विनी कुमार से अपने साथी को छोड़ने को कहता है। पर अश्विनी कुमार यह कहकर यशवंत को छोड़ने से मना कर देता है कि चाहे उसके बेटे को मार भी दिया जाए पर वो यशवंत को नहीं छोड़ेगा। मासूम विजय अपने पिता की ये बात सुन लेता है और इसका उसके दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। किसी तरह विजय जे.के. के चंगुल से तो भाग जाता है पर उसके मन में अपने पिता के लिए इज़्ज़त और प्यार ख़त्म हो जाता है। वक़्त के साथ-साथ विजय और उसके पिता में दूरियां बढ़ती जाती हैं।
बड़ा होने पर विजय कुछ बेरोजगारी की वजह और कुछ अपने पिता से दूरियों के कारण अपराध की दुनिया में दाखिल हो जाता है। थोड़े ही दिनों में विजय स्वयं एक जाना- माना गैंगस्टर बन जाता है। अब गैंगस्टर विजय कानून के एक तरफ है और डी.एस.पी. अश्विनी कुमार दूसरी तरफ। मीडिया इस बात को लेकर अश्विनी कुमार की ईमानदारी पर सवाल उठाती है तो अश्विनी कुमार विजय को पकड़ने का बीड़ा उठता है और विजय के पीछे पड़ जाता है। अंत में अश्विनी कुमार के हाथों विजय मारा जाता हैं। मरते-मरते विजय अपने पिता से अपने बुरे कामों के लिए माफ़ी मांगता है और बताता है कि बचपन की उस घटना के बावजूद वो उनको बहुत प्यार करता रहा।
फिल्म में पिता-पुत्र की कहानी साथ-साथ विजय और उसकी माँ के बीच माँ-बेटे की मार्मिक कहानी एवं विजय और उसकी प्रेमिका रोमा की प्रेम-कहानी भी चलती रहती है।
रमेश सिप्पी की पिछली अनेक फिल्मों की तरह इस फिल्म के गीत भी आनंद बख्शी ने लिखे और संगीत राहुल देव बर्मन द्वारा तैयार किया गया।
सभी गीत आनंद बख्शी द्वारा लिखित; सारा संगीत राहुल देव बर्मन द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "ऐ आसमाँ बता" | महेंद्र कपूर | |
2. | "जाने कैसे कब कहाँ इकरार हो गया" | किशोर कुमार, लता मंगेशकर | |
3. | "मांगी थी एक" | महेंद्र कपूर | |
4. | "हमने सनम को ख़त लिखा" | लता मंगेशकर |
इन गीतों में से दो गीत 'हमने सनम को खत लिखा' और 'जाने कैसे कब कहाँ' आज भी बेहद लोकप्रिय हैं।
हालाँकि रिलीज़ के समय फिल्म को समीक्षकों की तारीफ़ और सराहना मिली परन्तु बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को साधारण सफलता ही मिली। उसी वर्ष रिलीज़ हुई अमिताभ बच्चन की अन्य फिल्मों ‘नमक हलाल’, ‘कालिया’, ‘खुद्दार’ और ‘सत्ते पे सत्ता’ और दिलीप कुमार की रिलीज़ हुई फिल्म 'विधाता' की तुलना में इस फिल्म को कुछ कम सफलता मिली, पर अब इस फिल्म की गिनती 80 के दशक की श्रेष्ठतम फिल्मों में की जाती है!
इस फिल्म ने वर्ष 1982 के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले, सर्वश्रेष्ठ ध्वनि-संकलन और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया। दिलचस्प बात ये है कि इस फिल्म के लिए दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन दोनों ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार के लिए नामित किये गए थे पर पुरस्कार जीतने में दिलीप कुमार कामयाब रहे।
वर्ष | श्रेणी | कलाकार | परिणाम | टिप्पणी |
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१९८३ (1983) | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार | मुशीर आलम, मोहम्मद रियाज़ | जीत | एम आर प्रोडक्शंस के लिए |
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार | दिलीप कुमार | जीत | ||
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार | अमिताभ बच्चन | नामित | ||
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | राखी | नामित | ||
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | रमेश सिप्पी | नामित |
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