मृदुकवची द्वितीय सबसे बड़ा प्राणी संघ है। ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय (लवणीय एवं मीठा) तथा अंगतन्त्र स्तर के संगठन वाले होते हैं। ये द्विपार्श्विक सममिति त्रिकोरकी तथा प्रगुही हैं। शरीर कोमल परन्तु कठोर कैल्सियम के कवच से ढका रहता है। इसका शरीर अखण्डित है जिसमें शिर, पेशीय पाद तथा एक अन्तरंग ककुद् होता है। त्वचा की नरम तथा स्पंजी परत ककुद् के ऊपर प्रावार बनाती है। ककुद् तथा प्रावार के बीच के स्थान को प्रावार गुहा कहते हैं, जिसमें पंख के समान क्लोम पाए जाते हैं, जो श्वसन एवं उत्सर्जन दोनों में सहायक हैं। शिर पर संवेदी स्पर्शक पाए जाते हैं। मुख में भोजन हेतु घर्षित्र के समान घिसने का अंग होता है। इसे घर्षित्र-जिह्वा कहते हैं। प्रायः नर और मादा पृथक होते हैं तथा अण्डप्रजक होते हैं। परिवर्धन सामान्यतः डिम्भ के द्वारा होता है। उदाहरण: सेब घोंघा, मुक्ता शुक्ति, समुद्रफेनी, विद्रूप, अष्टबाहु, समुद्री शशक, रद कवचर, खाइटन।
मृदुकवची | |
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मृदुकवची वैविध्य | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | प्राणी |
संघ: | मृदुकवची |
मोलस्क की प्रजातियों में रहने वाले वर्णित अनुमान ५०,००० से अधिकतम १२०,००० प्रजातियों का है। डेविड निकोल ने वर्ष १९६९ में उन्होंने लगभग १०७,००० में १२,००० ताजा पानी के गैस्ट्रोपॉड और ३५,००० स्थलीय का संभावित अनुमान लगाया था।
क्योंकि मोलस्क के बीच शारीरिक विविधता की बहुत बड़ी सीमा होने के कारण कई पाठ्यपुस्तकों में इन्हे अर्चि-मोलस्क, काल्पनिक सामान्यीकृत मोलस्क, या काल्पनिक पैतृक मोलस्क कहा जाता है। इसके कई विशेषताएँ अन्य विविधता वाले जीवों में भी पाये जाते है।
सामान्यीकृत मोलस्क द्विपक्षीय होते है। इनके ऊपरी तरफ एक कवच भी होता है, जो इन्हे विरासत में मिला है। इसी के साथ-साथ कई बिना पेशी के अंग शरीर के अंगों में शामिल हो गए।
यह मूल रूप से ऐसे स्थान पर रहना पसंद करते है, जहां उन्हे प्रयाप्त स्थान और समुद्र का ताजा पानी मिल सके। परंतु इनके समूह के कारण यह भिन्न-भिन्न स्थानो में रहते है। सभी स्थानों पर पाया जाता है
यह उनको विरासत में मिला है। इस प्रकार के खोल मुख्य रूप से एंरेगोनाइट के बने होते है। यह जब अंडे देते है तो केल्साइट का उपयोग करते है।
इनमें नीचे की और पेशी वाले पैर होते है, जो अनेक परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न कार्यों को करने के काम आते है। यह किसी प्रकार के चोट लगने पर श्लेष्म को एक स्नेहक के रूप में स्रावित करता है, जिससे किसी भी प्रकार की चोट ठीक हो सके। इसके पैर किसी कठोर जगह पर चिपक कर उसे आगे बढ़ने में सहायता करते है। यह ऊर्ध्वाधर मांसपेशियों के द्वारा पूरी तरह से खोल के अंदर आ जाता है।
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