राजनैतिक दल लोगों का एक ऐसा संगठित गुट होता है जिसके सदस्य किसी साँझी विचारधारा में विश्वास रखते हैं या समान राजनैतिक दृष्टिकोण रखते हैं। यह दल चुनावों में उम्मीदवार उतारते हैं और उन्हें निर्वाचित करवा कर दल के कार्यक्रम लागू करवाने का प्रयास करते हैं। राजनैतिक दलों के सिद्धान्त या लक्ष्य (विज़न) प्राय: लिखित दस्तावेज़ के रूप में होता है।
विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलग-अलग स्थिति व व्यवस्था है। कुछ देशों में कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता। कहीं एक ही दल सर्वेसर्वा (डॉमिनैन्ट) होता है। कहीं मुख्यतः दो दल होते हैं। किन्तु बहुत से देशों में दो से अधिक दल होते हैं। लोकतान्त्रिक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक दलों का स्थान केन्द्रीय अवधारणा के रूप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। राजनैतिक दल किसी सामाजिक व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे परस्पर विरोधी हितों के सारणीकरण, अनुशासन और सामंजस्य का प्रमुख साधन रहे हैं। इस तरह से राजनैतिक दल समाज व्यवस्था के लक्ष्यों, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक परिवर्तनों, परिवर्तनों के अवरोधों और सामाजिक आन्दोलनों से भी सम्बन्धित होते हैं। राजनैतिक दलों का अध्ययन समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री दोनों करते हैं, लेकिन दोनों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर है। समाजशास्त्री राजनैतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप में देखते हैं। Mohit baghel (Rajpur vrindavan mathura) Uttar Pradesh
राजनीतिक दल की संरचना में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो इसे अन्य समूह से अलग करती हैं:
उपर्युक्त लक्षणों द्वारा राजनीतिक दल को अन्य संगठन से भिन्न करके देख सकते हैं। राजनीतिक दल का गठन समाज व्यवस्था की दो विशेषताओं द्वारा पाया जाता है:
मौरिस डुवर्जर ने राजनीतिक दल के सामाजिक संगठन का महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इन्होंने दल के संगठन को चार सूत्रीय वर्गीकरण द्वारा समझाने का प्रयास किया है। ये वर्ग निम्नलिखित हैं-
कॉकस दल के जाने-पहचाने लोगों का एक लघु समूह कहा जा सकता है जो न अपने विस्तार और न ही अपनी भर्ती में रूचि रखता है। वास्तव में यह एक बन्द समूह है। जिसकी प्रकृति अर्द्ध-स्थायी होती है। केवल चुनाव के समय ही कॉकस अधिक सक्रिय होता है तथा चुनावों के बीच के समय में यह निष्क्रिय रहता है। इसके सदस्यों की न्यून संख्या इसकी शक्ति का माप नहीं है क्योंकि इसके सदस्यों का व्यक्तिगत प्रभाव, शक्ति एवं क्षमता उनकी संख्या से काफी अधिक होती है। अतः इसके ख्याति प्राप्त सदस्यों की संख्या की अपेक्षा उनका प्रभाव एवं क्षमता अधिक महत्वपूर्ण है। डुवर्जर ने फ्रांसीसी रैडिकल पार्टी और 1918 से पूर्व की ब्रिटिश लेबर पार्टी को इसका उदाहरण बताया है। मताधिकार के विस्तार के साथ ‘कॉकस’ प्रकार के दल का ह्रास हो जाता है।
शाखा या ब्रांच दल परिश्मी यूरोप में मताधिकार के विस्तार का परिणाम है। इसका सम्बन्ध जनता से होता है तथा कॉकस की तरह यह एक बन्द समूह नहीं है क्योंकि इनमें गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। अतः यह अधिक से अधिक सदस्यों की भर्ती में सदैव रूचि रखता है। इनकी राजनीतिक संक्रियताएं केवल चुनाव तक ही सीमित नहीं होती अपितु निरन्तर चलती रहती हैं। ब्रांच कॉकस की अपेक्षा बड़ा समूह है इसलिए इसका संगठन अधिक होता है तथा इसमें कॉकस की अपेक्षा अधिक एकीकरण पाया जाता है। इसमें संस्तरण तथा कर्त्तव्यों का विभाजन सुस्पष्ट होता है तथा स्थानीयता एवं संकीर्णता का भी आभास पाया जाता है। इसमें अधिकतर केन्द्रीकृत दल संरचना होती है और प्रारम्भिक इकाईयां निर्वाचन क्षेत्रों की ही भांति भौगोलिक आधार पर संगठित होती हैं। यूरोप के समाजवादी दलों में ब्रांच के सभी लक्षण पाये जाते हैं। कैथोलिक और अनुदारवादी दलों ने न्यूनाधिक सफलतापूर्वक इसका अनुसरण किया है। जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी संगठनात्मक आधार पर इस प्रकार के दल का एक अच्छा उदाहरण है।
डुवर्जर द्वारा बताया गया दल संगठन का तीसरा प्रकार कोष्ठक या सेल है जो क्रान्तिकारी साम्यवादी दलों की खोज है। यह ब्रांच की अपेक्षा काफी छोटा समूह होता है तथा इसका आधार भौगोलिक न होकर व्यावसायिक होता है। व्यावसायिक आधार के कारण सेल किसी स्थान पर कार्य करने वाले सभी सदस्यों को एक सूत्र में बाँधना है। कारखाना, वर्कशॉप, दफ्तर एवं प्रशासन आदि इसके अंग हो सकते हैं। चूंकि सेल उन सदस्यों का समूह हैं जो एक ही व्यवसाय में लगे हुए हैं तथा जो प्रतिदिन कार्य के समय मिलते हैं, इसलिए इसके सदस्यों में दलीय एकात्मकता अधिक होती है। वैयक्तिक सेल का अन्य सेलों से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। सेल का संगठन अनिवार्य रूप से षड्यन्त्रकारी होता है और इसकी निर्माण शैली इस बात का पक्का इन्तजाम करती है कि एक सेल के नष्ट होने पर सम्पूर्ण दल-संरचना संकट में पड़े क्योंकि एक ही स्तर पर पृथक-पृथक इकाइयों के बीच कोई संपर्क नहीं रहता। यह गुप्त सक्रियता के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम है। इसकी गुप्त सक्रियताएं मुख्यतः राजनैतिक होती हैं तथा सदस्यों के लिए अधिक महत्वपूर्ण होती हैं। मतों को जीतने, प्रतिनिधियों के समूहन तथा मतदाताओं के प्रतिनिधियों से संपर्क रखने की अपेक्षा सेल दल संघर्ष, प्रचार, अनुशासन तथा अगर अनिवार्य तो गुप्त सक्रियता का एक माध्यम है। इनमें चुनाव जीतने की दूसरे दर्जे के महत्त्व की बात मानने की प्रवृत्ति होती है। प्रजा तांत्रिक केन्द्रवाद की धारणा दल के सभी पहलुओं पर केन्द्रीकृत नियंत्रण स्थापित कर देती है जिसका उदाहरण 1917 से पहले लेनिनवादी दल था। डुवर्जर फ्रांसीसी साम्यवादी दल के सदस्यों में सेल संरचना के प्रति शत्रु भाव होने का भी संकेत करते हैं।
डुवर्जर का दल-संगठन का चौथा प्रकार मिलिशिया प्रकार का संगठन है। यह एक प्रकार की निजी सेना है जिसके सदस्यों को सैनिकों की तरह भर्ती किया जाता है तथा जिन्हें सैनिक संगठन की भाँति अनुशासन में रहना और प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इसकी संरचना भी सैनिक संरचना के समान होती है अर्थात् इसके सदस्य सेना की तरह टुकड़ियों, कम्पनियों और बटालियनों से संगठित होते हैं। मिलिशिया सेना के अधिक्रमिक लक्षण ग्रहण कर लेती है। मिलिशिया की चुनाव तथा संसदीय गतिविधियों में कोई रूचि नहीं होती क्योंकि यह प्रजातन्त्रीय व्यवस्था को मजबूत करने की अपेक्षा इसे उखाड़ फेंकने का एक मौलिक साधन है। जिस प्रकार सेल एक साम्यवादी खोज है, ठीक उसी प्रकार मिलिशिया क्रान्तिकारियों की खोज है। हिटलर के आक्रामी सैनिक और मुसोलिनी की क्रान्तिकारी मिलिशिया इस प्रकार की संरचना का उदाहरण हैं। इनकी ओर डुवर्जर यह संकेत करते हैं कि केवल मिलिशिया के आधार पर कभी भी कोई राजनीतिक दल नहीं बना है।
जिस संगठित रूप में राजनीतिक दल आज हमारे सामने विद्यमान हैं, उस रूप में उनका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। उनकी उत्पत्ति उन्नीसवीं शताब्दी में हुई है परन्तु इससे पूर्व भी मनुष्यों द्वारा निर्मित कुछ संगठन, शासन से प्रत्यक्ष न होने पर भी जनमत के निर्माण तथा मांगों को शासकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। आधुनिक समाज में राजनीतिक दलों का गठन विविध आधारों पर किया गया है।
राजनीतिक दलों के निर्माण में मनोवैज्ञानिक आधार अर्थात् मानव स्वभाव में निहित प्रवृत्तियां प्रमुख हैं। मतैक्य एवं संगठन मानव स्वभाव की दो प्रमुख प्रवृत्तियां हैं। समान स्वभाव एवं मूल्यों वाले व्यक्ति संगठित होकर राजनीतिक दल का निर्माण करते हैं तथा फिर उन मूल्यों को बनाये रखने का प्रयास करते हैं। ब्रिटिश कंज़रवेटिव दल का गठन रूढ़िवादी व्यवस्था को बनाये रखने के समर्थक व्यक्तियों द्वारा किया गया है। कुछ व्यक्ति रूढ़िवादी व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते हैं तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदारवादी दलों का निर्माण करते हैं, जबकि कुछ लोग विगत युग की पुनरावृत्ति की आकांक्षा के आधार पर प्रतिक्रियावादी दलों का निर्माण करते हैं।
मानव इतिहास में धर्म की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा आज भी अनेक देशों में धार्मिक नेता एवं पदाधिकारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीति में हस्तक्षेप करते हैं। राजनैतिक दलों के सामाजिक संगठन में धर्म प्रमुख भूमिका निभाता है। उदाहरणार्थ भारत में मुस्लिम लीग, अकाली दल, जनसंघ, हिन्दू महासभा जैसे दलों के सामाजिक संगठन में धर्म केन्द्रीय भूमिका निभाता है।
राजनीतिक दलों के निर्माण में क्षेत्रीयता अथवा प्रादेशिकता भी एक प्रमुख आधार है। प्रादेशिक हितों की रक्षा के लिए तथा प्रादेशिक समस्याओं के शीघ्र निपटारे के लिए कुछ प्रादेशिक दलों का निर्माण होता है। भारत में डी0एम0के0, तेलंगाना प्रजा समिति, असम गण परिषद, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आदि।
राजनीतिक दल आर्थिक या वर्गीय आधारों पर भी संगठित होते हैं। मार्क्स के अनुसार राजनीतिक दलों तथा वर्गों का परस्पर सम्बन्ध राज्य व राजनीति के सिद्धान्त का केन्द्रीय बिन्दु होता है। अनेक अन्वेषणों से हमें यह पता चलता है कि वर्गीय हित, दलीय सम्बद्धताओं तथा निर्वाचनों की पसन्द के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा अधिकांश समाज में राजनीतिक दल निर्वाचक वर्गीय हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिटेन में श्रमिक दल, भारत में मजदूर दल, किसान यूनियन आदि।
जाति, भारतीय समाज की आधारभूत विशेषता है। भारत में राजनैतिक दलों के सामाजिक संगठन को जाति हमेशा से प्रभावित करती रही है। स्वतन्त्रता से पूर्व जाति मुक्ति का आन्दोलन राजनैतिक दलों के गठन को प्रभावित करना रहा है। दलित वर्ग कल्याण लीग, बहिष्कृत हितकारिणी सभा, जस्टिस पार्टी इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
स्वतन्त्रता के पश्चात् निर्वाचन प्रतियोगिता में ‘जाति’ राजनैतिक गतिशीलता लाने वाला प्रमुख सामाजिक आधार बन गया। ‘जातीय संलयन’ और ‘जातीय विखण्डन’ राजनैतिक प्रक्रियाओं में केन्द्रीय भूमिका निभाने लगी। सभी राजनैतिक दल जातीय गणना के आधार पर उम्मीदवारों को तय करने लगे। वर्तमान समय में जातीय आधार पर राजनैतिक दलों के गठन का प्रमुख आधार है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
दलीय संगठन में विचारधारा भी प्रमुख भूमिका निभाती है। समाजवादी, लेनिनवादी और माओवादी विचारधाराओं पर आधारित अनेक दलों का निर्माण भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता रही।
भारत में राजनैतिक दल को संवैधानिक स्वीकृति सन् 1985 में दसवीं अनुसूची के तहत दी गई थी। भारत के राजनैतिक दलों को निम्न आधार पर बांंट सकते है-
This article uses material from the Wikipedia हिन्दी article राजनीतिक दल, which is released under the Creative Commons Attribution-ShareAlike 3.0 license ("CC BY-SA 3.0"); additional terms may apply (view authors). उपलब्ध सामग्री CC BY-SA 4.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। Images, videos and audio are available under their respective licenses.
®Wikipedia is a registered trademark of the Wiki Foundation, Inc. Wiki हिन्दी (DUHOCTRUNGQUOC.VN) is an independent company and has no affiliation with Wiki Foundation.